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Tuesday, July 11, 2023

मेरी उत्तराखण्ड यात्रा (दिन-2, भाग-1 : अल्मोड़ा से जागेश्वर और दण्डेश्वर)

इस यात्रा को आरम्भ से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये

अल्मोड़ा की सुबह बहुत लुभावनी लगी। थोड़ी देर बालकनी में खड़े होकर पर्वत श्रृंखलाओं को निहारा और फिर उस किताब की कुछ तस्वीरें क्लिक की जिसमें अल्मोड़ा के विषय में पढ़ा था। लेखक श्री अनुराग पाठक जी ने एक सच्ची घटना के आधार पर ‘ट्वेल्थ फेल’ नाम की एक किताब लिखी है। जिसमें उस किताब का नायक नव-वर्ष पर नायिका से एक बार बात करने के लिए उसके पैत्रिक घर अल्मोड़ा जाता है। उसी की यात्रा के दौरान अल्मोड़ा का थोड़ा-सा वर्णन उस किताब में आता है। हालाँकि वो बहुत कम था फिर भी अल्मोड़ा तब से मेरे मन से नहीं निकला। अल्मोड़ा आना मेरे लिए सपने के सच होने जैसा ही था। खैर, हम आज की यात्रा शुरू करते हैं।

होटल की बालकनी से अल्मोड़ा

आज हमें श्री जागेश्वर धाम की तरफ जाना था। आज मैंने होशियार बच्चे की तरह मोशन-सिकनेस की दवा सुबह ही खा ली थी जिससे दिन भर में कोई दिक्कत न हो। मेरे एक मित्र ने मुझे जागेश्वर धाम के विषय में बताया था। मैंने उनसे कहा था मुक्तेश्वर जाना है तो उन्होंने जागेश्वर का भी जिक्र कर दिया। हालाँकि पहले ये मेरी योजना में नहीं था परन्तु भोलेनाथ की कृपा से इधर भी चल पड़े। अल्मोड़ा से थोड़ी दूर ही ‘श्री चितई गोलू देवता’ का मंदिर है। हमारा आज का पहला पड़ाव यही है। जब तक हम मंदिर में दर्शन करके आते हैं तब तक आप इस मंदिर के विषय में पढ़ लीजिये।

श्री चितई गोलू देवता मंदिर:

ये स्थान अल्मोड़ा से आठ किलोमीटर दूर पिथौरागढ़ हाईवे पर है। मन्दिर के अंदर सफेद घोड़े पर बैठे, सिर में सफेद पगड़ी बाँधे गोलू देवता की प्रतिमा है, जिनके हाथों में धनुष बाण है। स्थानीय संस्कृति में सबसे बड़े और त्वरित न्याय के राजवंशी देवता के इस मन्दिर में विदेशों से भी श्रद्धालु पहुँचते हैं, ऐसा मुझे बताया गया। यहाँ आपको लाखों की संख्या में चिट्ठियाँ और स्टाम्प लटके मिलेंगे और उतनी ही घंटियाँ और बड़े घंटे भी दिखेंगे। लोकमान्याता अनुसार लोग अपनी मनोकामनाएँ यहाँ चिट्ठी में लिखकर टांग देते हैं और फिर जब वो कामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं तो घंटी चढ़ाने आते हैं। बढ़िया प्रांगण और सुन्दर मन्दिर निश्चित दर्शनीय है। इसके बाहर प्रसाद और खाने-पीने की तमाम दुकानें भी हैं।

चितई गोलू देवता मन्दिर

यहाँ पर हम चितई गोलू देवता की पूजा और अपनी पेट पूजा करके आगे बढ़े। आज नाश्ते में आलू के पराठे के साथ दही और सलाद मिला था। जबकि मैं आमतौर पर चाय-पराठे को प्राथमिकता देता हूँ। सुबह से एक भी चाय नहीं मिलने से आगे के खूबसूरत नज़ारे पूरा आनन्द नहीं दे पा रहे थे। मैं मंजिल से भी ज्यादा सफर का आनन्द उठाने में विश्वास रखता हूँ। इसलिए एक अल्प-विराम लिया और ‘दुग्ध शर्करा मिश्रित पेय पदार्थ’ से अपने गले को सिंचित करके हम जागेश्वर की तरफ बढ़ते जा रह थे। रास्ता मेरे अनुमान से अधिक सुन्दर था। इधर के तमाम विडियो मैंने विभिन्न ट्रेवल व्लोग्स में देख रखे थे। आज उसी खूबसूरत रास्ते पर अपने बाइक चलाने के सपने को पूरा कर रहा था। पहाड़ों की सबसे बड़ी दिक्कतों में से एक ये भी है कि हर 15 मिनट पर रुककर फोटो खिंचवाने का मन करता है। मेरे साथ हितेश भैया जैसे ‘उत्तराखण्ड यात्रा विशेषज्ञ एवं धैर्यवान फोटोग्राफर’ भी थे। उन्होंने कई जगह चिन्हित करके खुद भी स्कूटी रुकवाई और कई जगह मैंने रोकी। हम दोनों ने खूब सारी तस्वीरें ली, हालाँकि उनकी कम मेरी ज्यादा होती थी। हितेश भैया जो नज़ारों को कैद करते हैं उसके फैन्स तो विभिन्न यात्रा समूहों में तमाम लोग हैं ही, मैंने उन्हें तस्वीरें लेते हुए देखा। कैसे उसी जगह मुझे कुछ और दिख रहा होता और जब वो क्लिक करके दिखाते तो वही जगह एकदम ही अलग लगती। कई बार मैंने भी उनके एंगल से क्लिक करने का असफल प्रयास भी किया। इस यात्रा में उनके साथ होने से बहुत सहूलियत रही और फोटोग्राफी का थोड़ा-थोड़ा तरीका उनसे सिखने को मिल रहा था।

अल्मोड़ा से जागेश्वर धाम के रास्ते में कहीं

फोटो/विडियो निकालते, चाय पीते, सफ़र का आनन्द उठाते हम जागेश्वर धाम पहुँच गये। सबसे पहले हितेश भैया के एक सूत्र के पास अपने बैग और हेलमेट रखे और फिर हाथ-पाँव धोकर श्री शंकर जी के प्रथम शिवलिंग स्वरुप के दर्शनों के लिए चल पड़े। यहीं से 200मी की दूरी पर इन्हीं मंदिर समूहों में से एक हैं श्री दण्डेश्वर महादेव जी हम वहाँ भी दर्शन करेंगे। जब तक हम सब जगह के दर्शन करके आते हैं तब तक आप इस स्थान की विशेषताओं से परिचित हो लीजिये।

श्री जागेश्वर धाम एवं दण्डेश्वर महादेव: 

जागेश्वर धाम उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँमण्डल में पड़ने वाले एक खूबसूरत जनपद अल्मोड़ा में समुद्रतल से 1890 मीटर की ऊँचाई पर स्थित कई मंदिरों का समूह है। यहाँ कुल 124 मंदिर एक ही स्थान बने हैं। कुछ जगह इनकी गिनती 250 बताई जाती है परन्तु वो शायद दण्डेश्वर और वृद्धजागेश्वर आदि जोड़कर लिखी जाती होगी। मंदिर समूह से लगकर ही एक धारा भी बहती है, जिसे ‘जटागँगा’ कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी स्थान पर भगवान् शिव ने माता सती के जीवनसमाप्ति के बाद तपस्या की थी। ये स्थान सप्तऋषियों की भी तपःस्थली भी है। इससे जुड़ी एक कथा आप डंडेश्वर मंदिर के सन्दर्भ में पढेंगे। यहाँ भगवान् शिव के बालरूप एवं तरुणावस्था की पूजा होती है। जागेश्वर धाम में स्थित शिवलिंग ही ब्रम्हाण्ड का प्रथम शिवलिंग है। लोकमान्यताओं के अनुसार पुराणों में जो द्वादश ज्योतिर्लिंग की चर्चा आती है उसमें से 8वां ज्योतिर्लिंग यही जागेश्वर धाम स्थित नागेश भगवान् ही हैं। “नागेशं दारुकावने” इसी स्थान के लिए लिखा गया है। कुछ लोग ‘दारुकावने’ का अर्थ देवदार के वन से लगते हैं उनके अनुसार ये स्थान 8वां ज्योतिर्लिंग है और कुछ लोग इसका अर्थ द्वारिका से निकालते हैं तो वो गुजरात स्थित नागेश को 8वां ज्योतिर्लिंग मानते हैं। इस स्थान को उत्तराखण्ड के चार धामों (केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री) के बाद 5वाँ धाम माना जाता है। लोकश्रुतियों की माने तो यहाँ माँगी गयी हर मनोकामना उसी स्वरुप में पूर्ण हो जाती थी, जिससे कई बार इसका दुरूपयोग भी होता था। फिर आदिगुरू शंकराचार्य जी ने यहाँ स्थित मृत्युंजय शिव स्वरुप को कीलित करके उसके दुरूपयोग को रोका अर्थात् अब ये स्थान आपकी सद्इच्छाओं की पूर्ति के लिए है। 

श्री जागेश्वर धाम मंदिर समूह

इसी से 200मी. की दूरी है श्री दण्डेश्वर महादेव जी की मंदिर है। कहते हैं एक बार जब सप्तऋषियों की पत्नियाँ यहाँ से अपने आश्रमों की तरफ जा रही थी। उन्होंने भगवान् शिव को तपस्या करते देखा और मोहित होकर रुक गयी। उनके आश्रम विलम्ब से पहुँचने का कारण सप्तऋषियों ने शिव को समझा और उन्हें दण्डित करते हुए श्राप दे दिया। उसी स्थान पर अब श्री दण्डेश्वर महादेव जी का शिवलिंग स्वरुप लेते हुए अवस्था पूजित होता है। 

पुरातव विभाग के सर्वेक्षणों और इतिहासकारों को माने तो इन मंदिर समूहों का निर्माणकाल तीन अलग-अलग कालों में विभाजित है। कल्युरीकाल, उत्तरकत्युरीकाल एवं चंद्रकाल। कत्यूरीवंशी राजाओं ने ही अल्मोड़ा जनपद में जागेश्वर मंदिर समूहों सहित अन्य 400 मंदिरों का भी निर्माण करवाया था। मंदिरों का निर्माण लकड़ी या सीमेंट की जगह बड़े-बड़े पत्थर स्लैब से किया गया है। यहाँ की वास्तुकला के अनुसार इनके निर्माणकाल खण्ड का अनुमान 7वीं से 12वीं शताब्दी लगाया जाता है। इन विषयों पर कोई मतेक्य नहीं है, सभी के अपने-अपने तथ्य एवं तर्क हैं। देवदार के घने वन प्रदेश में, बड़े देवदार वृक्षों और ऊँची पहाड़ियों से घिरा हुआ ये परम पवित्र स्थान नयनाभिराम दृश्यों से अलंकृत तो है ही, इसके साथ आपको यहाँ मन की शान्ति और सुकून का जो एहसास मिलेगा उसका अनुभव यहाँ पहुँचकर ही किया जा सकता है। अल्मोड़ा से इस स्थान की दूरी लगभग 40 किलोमीटर है। जहाँ आप बस, टैक्सी या निजी वाहन द्वारा आसानी से पहुँच सकते हैं, सडक मार्ग से बढ़िया जुड़ा हुआ है और रास्ते भी अच्छे हैं। नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम और हवाई अड्डा पन्त नगर है।

श्री दण्डेश्वर महादेव मंदिर

श्री दण्डेश्वर महादेव मंदिर

उपर्युक्त परिचय वहाँ के स्थानीय लोगों  और इन्टरनेट आदि के माध्यम से प्राप्त जानकारी के आधार पर है। मैं इतिहास का विद्यार्थी भी नहीं हूँ तो मेरी अल्पज्ञता का ध्यान रखकर तथ्यात्मक त्रुटियों को अपनी प्रतिक्रियाओं में ठीक करते रहिएगा, आपकी बड़ी कृपा होगी।

श्रीजागेश्वर धाम और श्रीदण्डेश्वर धाम जी के दर्शनों के बाद हम वापस अल्मोड़ा की तरफ चल पड़े। यहाँ से वृद्ध जागेश्वर की दूरी अधिक नहीं है परन्तु हमारी योजना किसी और तरफ होने तथा अगली बार यहाँ आने के बहाने के नाम पर हम श्री वृद्ध जागेश्वर नहीं जा रहे हैं। इस यात्रा में ये दूसरा दिन आधा बीत रहा है। बाकी का आधा दिन एक ऐसे स्थान पर बीतेगा जो अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस स्थान की एक अनोखी विशेषता है। ये स्थान भारत में इकलौता और विश्व में केवल 3 है। बाकी विस्तृत हम वहाँ पहुँचकर बतायेंगे। तब तक आप फोटो देख लीजिये, हम मिलते हैं इस यात्रा-वृत्तांत के अगले भाग में...

अल्मोड़ा का एक दृश्य

जटागँगा की पवित्र धारा

- कुमार आशीष
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