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Sunday, July 9, 2023

मैं प्रेमी भी हूँ और लेखक भी

मैं प्रेमी भी हूँ और लेखक भी, इसलिए मैं करना चाहता हूँ एक सफल प्रेम और फिर उस पर लिखना चाहता हूँ, एक किताब। एक ऐसी किताब जिसके प्रत्येक पृष्ठ पर प्रेम हो, कुछ में उसे पाने का संघर्ष और बाकी में उसी प्रेम की सफलता के किस्से...

असफल प्रेम कहानियाँ तो बहुत बार लिखी गयीं, सुनी गयी, सराही भी गयी बस महसूस नहीं की गयी। उन दो बिछड़ चुके या कहें सामाजिक ढोंग-ढकोसलों के रूप में राहु-केतु द्वारा ग्रसित सूरज-चंदा जैसे शाश्वत प्रेम को ग्रहण लगा कर अलग कर दिए गये, उन दो सुकोमल हृदयों से निकले रक्त की हर बूँद और नयनों से बहे आँसू के हर एक कण पर हमने बार-बार कविताएँ और कहानियाँ लिखीं और जिन सामाजिक ठेकेदारों ने निर्दयता से उन्हें दूर कर दिया था उन्होंने भी बड़े चाव से सुना और 'वाह-वाह' किया। किसी का बिछड़ना भी समाज ने आनन्द का कारण बना लिया और उससे आपना मनोरंजन किया। उस पर भी मन नहीं भरा तो समाज ने उसे श्रृंगार रस के संयोग श्रृंगार और वियोग श्रृंगार के रूप में व्याख्यायित किया, जबकि मैं कहूँगा कि ये सब बहुत विभत्स है, ऐसे लेखों, कविताओं और कहानियों में विभत्स रस प्रधान है।

खैर! समाज मेरे हिसाब से व्याख्याएँ नहीं करेगा। इसलिए मेरी किताब में हमारी सफल प्रेम की गाथाएँ होंगी। नितान्त मौलिक, अनुभव आधारित, सहजता, सम्मान, स्नेह, विश्वास से परिपूर्ण, आधुनिक भी और पारंपरिक भी... 

यहाँ मैं किसी को जवाब देने, नीचा दिखाने अथवा गलत ठहराने की कोशिश नहीं कर रहा हूँ। क्योंकि प्रेम का उद्देश्य इतना ओछा हो भी नहीं सकता और मैं इतनी छोटी सोच रखकर प्रेम का अपमान करना भी नहीं चाहता। मैं ऐसी किताब सिर्फ इसलिए लिखना चाहता हूँ कि आने वाली पीढ़ी और उससे निर्मित होने वाले समाज को ये बता सकूँ कि वो "कुछ वर्षों बाद प्रेम कम या खत्म क्यों हो जाता है?" "विवाह के बाद पहले जैसा प्रेम क्यों नहीं रहता?" जैसे प्रश्नों का उत्तर लिखकर इंटरनेट का भार बढ़ाने वाले कीबोर्ड वीरों से बचकर रहें। जो कम-ज्यादा की मापनी में उतरे, विश्वास-अविश्वास के धरातल पर परखा जाए वो प्रेम नहीं महज आकर्षण होता है। ये आकर्षण कभी शरीर की खूबसूरती से उत्पन्न हुआ, कभी सैलरी पैकेज से, कभी बड़े पदनाम से, कभी बड़ी सामाजिक प्रतिष्ठा से, कभी चाल-ढाल से, कभी हाव-भाव से, कभी काम-काज से और कभी-कभी आवश्यकताओं से... इन केंद्रबिंदुओं की धुरी से बँधा हुआ आकर्षण इनके कम ज्यादा होने से प्रभावित होता है। जैसे-जैसे खूबसूरती उम्र की चपेट में ढलेगी, पैसा-प्रॉपर्टी परिस्थितियों की मार में कम या अधिक होगा तो आकर्षण भी उसी अनुपात में घटता-बढ़ेगा रहेगा। परन्तु अखिल ब्रम्हाण्ड नायक चराचर परब्रम्ह भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी स्वरूप प्रेम इन बिंदुओं से बहुत ऊपर, बहुत अलग केवल दो आत्माओं के एकीकृत हो जाने का नाम है। अब जो आकर्षण उत्पन्न होगा उसका कारण प्रेम है और प्रेम हर परिस्थिति में बीते हुये कल से आज कुछ और गाढ़ा होता है तो आकर्षण भी बढ़ता जाएगा। इस आकर्षण का केंद्रबिंदु प्रेम है और प्रेम शाश्वत है तो उससे जुड़ी हर चीज सदा शाश्वत ही रहेंगी। मसलन वो चेहरा, उसकी खूबसूरती, उसके हाव-भाव और अन्य तमाम भौतिक चीजें भी... 

मैं इन सब बातों को किताब में लिख देना चाहता हूँ। जिससे आने वाले लोग ये समझ सकें कि कैसे एक लंबे कालखण्ड तक समाज ने प्रेम करने से ज्यादा प्रेम लिखने को प्राथमिकता दी। प्रेम लिखने वाले तो सराहे जाते रहे, परंतु प्रेम करने वाले हमेशा हाशिये पर रह गए। उन्हें न ही इस क्रूर समाज ने स्वीकृति दी और न वो सम्मान ही जिसके वो हकदार थे और जो सम्मान दिया भी, वो उनके मरने के बाद किताबों में अपने मनोरंजन के लिए दिया। यही समाज का वीभत्स स्वरूप है। 

मैं इस व्यथा को परिवर्तित करना चाहता हूँ। इसलिये मैं भगवान श्रीकृष्ण और माँ राधा की उपासना मानकर प्रेम करना चाहता हूँ और अपने सफल प्रेम के किस्से समाज को सौंपकर इस संसार से जाना चाहता हूँ। (लेख समाप्त) 

मेरी किताब की प्रमुख नायिका पात्र हेतु मेरा हृदय आपको वरण कर रहा है और मैं आपसे सहयोग और सार्थक मार्गदर्शन की अभिलाषा रखता हूँ। यदि ये ख्वाब मेरी हैसियत से बहुत आगे का नहीं है तो इसे अपनी स्वीकृति से सम्मानित कीजिये। मेरे जीवन में मेरी सहधर्मिणी और मेरे कविताओं, कहानियों और लेखों की रानी बनने के लिए आपका स्वागत है... 


मेरा जीवन है शापित दुपहरी कोई, मेरी शामें-ए-सुहानी बनोगी क्या?
मैंने लेखों में तुमको ही लिखा सदा, अब उनकी निशानी बनोगी क्या?
मैं ये जीवन लुटा दूँ तुम्हारे लिए, और धर दूँ मेरा यश तेरी देहरी,
बस मुझे तुम बता दो जरा सोचकर, मेरे गीतों की रानी बनोगी क्या?
- कुमार आशीष

Saturday, March 25, 2023

तुम्हारे साथ मेरे ख़्वाब

सुनो! मुझे एक बात बतानी है। आजकल मैं अपनी अधजगी रातों और अलसाये दिनों में, खुली-बंद आँखों से बहुत-से ख़्वाब देखने लगा हूँ। एक ऐसा ख़्वाब जो शायद पूरा भी हो और न भी हो। मैंने ख्वाब में देखा तुमसे बातें करते हुए मैं मुस्कुरा रहा था, मैंने खुद को इतना खुश कभी बड़ी-से-बड़ी सफलता पर भी नहीं देखा जितना खुश तुम्हारे साथ होने भर से था। मैंने ख्वाब में खुद को अकेले बैठकर तुम्हारे बारे में सोचते हुए देखा, मैंने जाना कि मैं क्या सोच रहा था... मैं सोच रहा था कि जिस लड़के को कभी अपनी पसन्द का एक परिधान तक पाने की ख्वाहिश नहीं हुई वो अचनाक इतने ख़्वाब  कैसे पाल रहा है? लेकिन अब जो मेरी चाहत है वो है...

मैं चाहता हूँ कि मैं तुमसे अपने सभी सपने बता दूँ, तुम हँस भी दोगी तो बुरा नहीं लगेगा। तुमसे बता दूँ कि मैं जिन्दगी में पैसे, नाम, पद-प्रतिष्ठा के पीछे भागते हुए मरना नहीं चाहता, मैं जिन्दगी में प्यार, व्यवहार और सद्विचार के साथ यात्रा करना चाहता हूँ, मैं ईमानदार रहना चाहता हूँ, मैं चाहता हूँ कि मैं किसी की मदद का निमित्त बन सकूँ। मैं अपना बचपना और उसकी निश्चलता अपने जीवन की आख़िरी साँस तक साथ रखना चाहता हूँ, मैं बहुत समझदार बनने से बचना चाहता हूँ। मैं अपनी इस भौतिक सुविधा विहीन परन्तु स्नेह, शान्ति, सुकून और आनंद से भरे जीवन यात्रा में तुम्हें अपना सहयात्री बनाना चाहता हूँ। इस यात्रा के दौरान हम दोनों एक-दूसरे की सफलता, असफलता, हँसी-ख़ुशी, दुःख-दर्द सब में समान रूप से सहभागी रहें। कभी मैं तुम्हें प्रेरित करूँ, कभी तुम मुझे, हम दोनों मिलकर अपने परिवार, अपने गाँव-समाज, अपने देश के लिए क्या कर सकते हैं वो सोचे, उसके लिए परिश्रम करें और ईश्वर से सफलता की प्रार्थना करें। मैं तुम्हें भगवान् की आरती उतारते हुए या पूजा की थाल से जरा-सा लाल चन्दन मेरे माथे पर लगाते हुए बड़े हर्ष और सम्मान के साथ देखना चाहता हूँ। मैं पूरी दुनियाँ को बताना चाहता हूँ कि तुमने मेरा घर, मेरा जीवन सब अपने माता-पिता के दिए उच्च संस्कारों से मंदिर की तरह पवित्र कर दिया है। तुम्हें पाकर मैं ही नहीं मेरे माता-पिता, यार-दोस्त, रिश्तेदार, कुल-खानदान के लोग भी धन्य हो रहे हैं...

मैं चाहता हूँ कि कभी-कभी हम दोनों अपने व्यवसायिक जीवन से फुर्सत के कुछ दिन चुरायें और फिर बंजारों की तरह धरती का हर कोना अपनी आँखों से देखने निकल पड़ें। कभी हम रेगिस्तान में उड़ती रेत के बीच अपनी आँखों को अपने हाथों से ढाँपे आगे बढें और फिर प्यास एवं थकान से व्याकुल एक दूसरे के सूखते होंठों को देखकर कहीं थोड़ी-सी छाया खोजे और वहीं सुस्ताते हुए दुनियाँ-जहान की बातें करें। वैसे भी हम दोनों के पास कभी न ख़त्म होने वाली बातें तो हैं ही...

कभी किसी समन्दर के किनारे जाएँ, वहाँ लगातार उठती लहरों के आरोहों-अवरोहों के बीच दिन भर अठखेलियाँ करें। समन्दर की लहरें हमें सिखायेंगी कि प्यार कैसा होना चाहिए? जैसे समन्दर में लहरों का वेग कभी धीमा नहीं पड़ता, जैसे उसकी लहरें हर बार नई-सी लगती हैं, जैसे उसकी लहरों में अनेकों बहुमूल्य खजाने होते हैं, ठीक वैसे ही हमारा प्यार भी हो। रोज़ एकदम नया, रोज़ बीते हुए कल से थोड़ा और गहरा, हम दूर रहें या पास हमारे प्यार की तरंगे उन्हीं लहरों की तरह हमेशा एक-दूसरे के दिलों को भिगोती रहें। हमारे प्यार की प्रत्येक लहर भी खजानों से भरी हुईं हों, खजाना; हीरा-मोती-माणिक्य आदि नहीं बल्कि विश्वास, सुकून, सम्मान और आत्मीयता का... इन्हीं खज़ानों के साथ हमारे प्रेम समन्दर को अनन्त काल तक के लिए एक प्यास का एहसास भी रहे। ये प्यास हो, कभी न समाप्त होने वाली हमारी बातों की, असीमित स्नेह की, अविश्वसनीय विश्वास की और जीवन भर साथ रहने के चाहत की और इसी तरह हम एक-दूसरे पर सदैव खुद को न्यौछावर करते रहें। यहाँ से प्यार करना सीखकर हम दोनों एक ऊँची जगह ढूँढे जहाँ से समन्दर की लहरें सिर्फ दिखाई दें वो हमें छू न सकें। क्योंकि यहाँ मैं किसी का स्पर्श नहीं चाहता, बस तुम्हें महसूस करना चाहता हूँ। उस ऊँचाई पर बैठे हुए दोनों सामने लहरों पर नज़र गड़ाए, समन्दर में एक-दूसरे का चेहरा बनायें, देर तक ख़ामोश बैठे रहें, फिर अचानक एक-दूसरे की तरफ देखें, मुस्कुराये और अगले पड़ाव के लिए उठकर चल दें।

हम वहाँ से उठें और कहीं दूर, बहुत दूर किसी पहाड़ की दुर्गम चोटी पर एक-दूसरे का हाथ थामे चढ़ते जाएँ। जैसे हमने अपने सपनों के आकाश की यात्रा की हो, जैसे हम जीवन के उतार-चढ़ाव में एक-दूसरे का संबल रहे हों वैसे ही इस पहाड़ी के दुर्गम रास्तों पर चलते रहें। जब तुम थक जाओ तो मैं सहारा दूँ, जब मैं थक जाऊँ तो तुम सहारा दो और जब दोनों थक जाए तो किसी पत्थर के सहारे बैठकर देर तक हाँफते-हँसते हुए एक दूसरे से बातें करें और फिर एक-दूसरे की ऊर्जा बनकर उठें और आगे बढ़ें... थकना, गिरना, उठना अपना जीवन हो, बस उसमें रुकना न हो। जब इतनी मेहनत से आगे बढ़ेंगे तो प्रकृति के कुछ मन चुराने वाले दृश्यों को भी देखेंगे, वहाँ तुम्हारी तस्वीरें उतारते हुए मेरी नज़र कैमरे पर कम और तुम्हारे चेहरे पर ज्यादा होगी। तुम्हें एक बार और मुस्कुराता हुआ देखने की लालच में ये प्यारा झूठ बार-बार बोलेंगे कि वो फोटो अच्छी नहीं है, फिर से खींचते हैं... हालाँकि मैं अपने और तुम्हारे बीच कैमरे को उतना ही आने देना चाहता हूँ जितना यादें सहेजने के लिए जरूरी हो, बाकी मैं पूरा वक़्त जीकर सब अपने दिल में सहेज लेना चाहता हूँ।

पहाड़ों पर चलकर, पसीने से नहाये हुए, हम वसुधारा या दूध-धारा जैसे दिखने वाले किसी पवित्र झरने तक पहुँचेंगे। लेकिन ये जलप्रपात ऐसी जगह होगा जहाँ भीड़ नहीं होगी, सिर्फ मैं और तुम होंगे। उसी झरने के पास कुछ तस्वीरें उतारने के बाद कैमरा ऑफ़ करके अलग रख देंगे और फिर दोनों साथ खड़े होकर झरने की रफ़्तार और अपने प्यार का स्पंदन महसूस करेंगे। वहीं झरने की कुछ फुहारों से भीग रहे तुम्हारे बालों को मैं सुलझाना चाहूँगा, तुम्हारा क्लेचर निकालकर किसी खाई में फेंक दूँगा कि तुम खुले बालों में ज्यादा सुन्दर लगती हो। तुम्हारे सौन्दर्य को प्रकृति का आशीष उन्हीं धवलधारा की कुछ बूंदों से प्राप्त होगा, तुम्हारे चेहरे पर बिखरी तुम्हारी हल्की भीग चुकी जुल्फों को हटाते हुए मैं देर तक तुम्हारी आँखों में देखूँगा। मैं उस समय प्रकृति की सारी सुन्दरता तुम्हारी आँखों से देख लेने को उतावला रहूँगा, मैं तुम्हें हर चीज बता-बताकर दिखाऊँगा। जितना ज्यादा वहाँ के बारे में जानकारी होगी सब साझा कर दूँगा। फिर अचानक मुझे लगेगा कि सब बातें तुमने भी पढ़ रखी हैं, सब दृश्य तुम खुद भी देख रही हो, इसमें बताने जैसा क्या है? लेकिन सब जानकर भी केवल मेरी ख़ुशी के लिए धैर्य से सुनती हुई तुम, अचनाक मेरे चुप होने पर मेरी तरफ देखोगी और हम दोनों मेरी इस बेवकूफी पर जब साथ में मुस्कुरायेंगे तब मेरा ध्यान तुम्हारे अधरों की लालिमा पर ठहर जाएगा। मेरी पसन्द की लिपस्टिक से लाल हुए तुम्हारे होंठ मुस्कुराते हुए वैसे ही सुन्दर लगते हैं जैसे ब्रम्हा जी की सृष्टि में पहला कमल खिला हो। इन मुस्कुराते होंठो की कोमलता पर झरने की फुहारों से बिछुड़ी श्वेतरंगी मोती समान कुछ बूँदें उसकी खूबसूरती को कई गुना बढ़ा रही हैं। अब मैं सब भूलकर बस इन्हीं मोतियों को तुम्हारे मुस्कराहट की मुद्रा में हुए अधरों पर देखते रहना चाहता हूँ। मेरी देखने की अभिलाषा इतनी है कि मैं इन अधरों और मोतियों को स्पर्श नहीं करना चाहता कि कहीं ये मोती बिखर न जाये, कहीं नीचे न गिर जाए।

रुको! बस, अब आगे न पढ़ो, आगे पढ़ोगी तो ये होंठ हिलेंगे और होंठ हिले तो ये बूँद का मोती छिटक सकता है, जो कि मैं नहीं चाहता। मैं बस इन्हें ऐसे तुम्हारे लाल अधरों पर सजा हुआ देखते रहना चाहता हूँ, तुम बस ऐसे ही मुस्कुराती रहो...

- कुमार आशीष
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Wednesday, March 11, 2020

होली वाला दिन (अनकहा-अनसुना प्यार)

चित्र : गूगल से साभार
होली वाला दिन
अनिरुद्ध ने डिनर ख़त्म किया फिर आराधना को उसके फ्लैट के पास छोड़ने के बाद बिना कार से उतरे ही ‘बाय’ बोलकर कार को गतिमान कर दिया। आमतौर पर ऐसा होता नहीं था इसलिए आराधना को ये बात थोड़ी अखरी जरूर पर उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। कल होली है इसलिए आराधना सोच रही थी कि अनिरुद्ध उससे कोई प्लान डिस्कस करेगा परन्तु उसे तो जैसे याद ही नहीं कि कल उन दोनों की पहली होली है। अनिरुद्ध वहाँ से दुबारा मार्केट की तरफ गया और कुछ सामान खरीदकर अपने अपने फ्लैट पर पहुँचा। सुबह उठने के बाद अनिरुद्ध ने चाय बनाई और बालकनी में खड़े होकर चुस्कियों के साथ मोबाइल पर आये मैसेज रिप्लाई करने में व्यस्त हो गया, उसी में एक मैसेज आराधना का भी था। रिप्लाई करते ही उधर से एक और मैसेज आया, आराधना ने उसे अपने घर बुलाया था क्योंकि वो चाहती थी कि अनिरुद्ध भी कुछ खा-पी ले अकेला रहता है तो क्या बनायेगा। चाय ख़त्म करके तैयार होकर अनिरुद्ध आराधना के फ्लैट पर पहुँचा, उसकी वेशभूषा से बिलकुल नहीं लग रहा था कि होली खेलने आया है। किचन में आराधना गुझिया तलने में व्यस्त थी, वहीं खड़े होकर अनिरुद्ध भी बात करने लगा। आराधना ने काम ख़त्म करके अपने मन की बात कह दी, “मैंने सोचा था कि हम ये होली बहुत अच्छे से सेलिब्रेट करेंगे पर आपने तो कोई प्लान ही नहीं बनाया और रोज से भी ज्यादा जल्दी में कल चले गये।“ अनिरुद्ध ने कोई जवाब नहीं दिया बस खड़ा होकर मुस्कुराता रहा। अब आराधना को गुस्सा लगने लगी थी पर वो जताना नहीं चाहती थी वरना होली खराब हो जाती। आराधना किचन में गयी और कुछ खाने का सामान ले आई। अनिरुद्ध ने कहा उसे अभी भूख नहीं है थोड़ी देर बाद खाते हैं। आराधना ने इशारे से ठीक है कहा और वापस में किचन में चली गयी। लौटकर उसने टीवी ऑन करना चाहा तो अनिरुद्ध ने रिमोट छीन लिया और बोला “होली नहीं खेलोगी?” आराधना अब अपना गुस्सा रोक नहीं पा रही थी उसने तुनककर कहा, “होली खेलने की बात आप न ही करो तो अच्छा रहेगा, मैं होली पर झगड़ा नहीं करना चाहती।” अनिरुद्ध ने उसके गालों को अपने हाथों से पकड़ा और कहा, 
“आपने क्या प्लान बनाया था, रंग लायी हो?” 
“आपको क्या फर्क पड़ता है मैं रंग लायी हूँ या नहीं?”
“खुद की गलती तो दिखती नहीं है, कल इतनी देर खरीददारी की तो रंग भी ले लेती”
जब आप कुछ प्लान करते तब तो ले लेती, लेकिन आपके लिए तो जैसे कल तक होली जैसा कुछ था ही नहीं, मैंने याद दिला दिया मैसेज करके वरना शायद पता भी नहीं चलता कि होली क्या होती है...”
“अब झगड़ा ही करोगी या रंग भी लगाओगी?” इस बार अनिरुद्ध की मुस्कुराहट की जगह उसकी गंभीरता ने ले लिए थे। आराधना को लगा कि उसकी भी गलती है, वो भी तो प्लान कर सकती थी। उसने बेड के नीचे से एक कटोरी निकाली और थोड़ा-सा रंग अनिरुद्ध के गालों पर लगा दिया, इसके साथ ही कटोरी आगे बढ़ा दी कि वो भी रंग लगा सके। परन्तु अनिरुद्ध ने रंग लगाने के बजाय आराधना के बाल खोल दिए और उन्हें अपनी उगालियों से सहलाने लगा तभी आराधना के ऊपर रंग गिरने लगा। वो आश्चर्य से थोड़ा पीछे हटी और मुस्कुराते हुए पूछा, “ये रंग कहाँ से आया और आपने मेरे बालों में कब डाल दिया?’ अनिरुद्ध ने विजेता ही तरह मुस्कुराते हुए कहा, “जब आप खाना बना रही थीं तभी रंग आपके बालों में डाल दिया था, लेकिन बताया नहीं था। बस थोड़े से गुस्से का रंग भी देखना चाहता था, क्योंकि लाल रंग के बिना सब बेकार ही लगता।” आराधना बहुत खुश हुई उसने प्यार से अनिरुद्ध की तरफ देखा और एक मुट्ठी रंग लेकर उसके ऊपर फेंक दिया। जब रंग गाल में लगाया तो मनमुताबिक प्लान न कर पाने का मलाल भी था पर इस बार जो रंग फेंका उसमें कोई ‘मलाल’ नहीं सिर्फ उसके प्यार का रंग ‘लाल’ था। इसके बाद दोनों ने एक दूसरे को खूब रंगों से सराबोर कर दिया। इसके बाद अनिरुद्ध फ्लैट से नीचे जाकर अपनी कार से एक वलून निकाला और लाकर आराधना को दिया। आराधना ने थैंक यू बोलकर पूछा, “मैं कोई बच्ची हूँ जो इस वलून से खेलूँगी?” अनिरुद्ध ने जवाब दिया “ये आपके खेलने के लिए नहीं फोड़ने के लिए है।” जैसे ही आराधाना ने वलून फोड़ा गुलाब की पंखुड़ियाँ अपने रंग और सुगंध के साथ पूरे कमरे में फ़ैल गयीं। दोनों ने साथ में बहुत सारी फोटो खींची और खूब मन से होली सेलिब्रेट किया, आख़िर उनकी ये पहली होली थी। अभी वो दोनों होली खेल ही रहे थे तब तक कुछ कॉमन फ्रेंड भी आ गये। फिर तो डबल धमाल शुरू हो गया। सबने एक-दूसरे को खूब रंग लगाये, गले मिले, साथ में कुछ खाये-पिये और लगभग 2 घंटे तक उधम मचाने के बाद सब दोस्त वापस चले गये। दोस्तों को फ़ोन करके अनिरुद्ध ने बुलाया था ये सब उसने आराधना से इसलिए नहीं डिस्कस किया ताकि वो सरप्राइज दे सके। सबको फ्लैट की लिफ्ट तक छोड़ने के बाद अनिरुद्ध वापस कमरे में आया तो आराधना बोली “अब मैं नहाने जा रही हूँ, तुम भी नहा लो फिर कुछ खाते-पीते हैं।” अनिरुद्ध ने पीछे से आराधना का हाथ पकड़ा तो वो एक कदम आगे बढ़ने के बाद रुक गयी। अनिरुद्ध ने आराधना को ऐसे देखा जैसे आज पहली बार देख रहा हो। आराधना ने पूछा क्या हुआ तो बोला कुछ नहीं बस ऐसे ही। उसने हाथ छोड़ दिया और वो नहाने चली गयी। उसके बाद अनिरुद्ध एक कागज़ पर कुछ लिखने में व्यस्त हो गया। जब आराधना नहाकर आयी तो अनिरुद्ध ने पूछा कि “इतना गुस्सा कर रही थी आप, जबकि मैंने इतना कुछ प्लान भी किया था। अब आप बताओ आपने क्या प्लान किया था।” आराधना अन्दर गयी और एक गिफ्ट पैक बॉक्स लाकर अनिरुद्ध को दे दिया। अनिरुद्ध ने पूछा ये क्या है तो बोली ये होली का गिफ्ट है। अनिरुद्ध ने तुरंत खोलकर देखा उसमें वही मैकबुक था जो अनिरुद्ध काफी दिनों से खरीदना चाहता था। वो बहुत खुश हुआ। उसने भी आराधना के लिए एक नेकलेस लिया था जिसने अपने हाथों से पहना दिया। आराधना पूजा करने लगी और अनिरुद्ध नहाने चला गया। थोड़ी देर तक दोनों साथ रहे, खाना खाया बातें की और फिर लगभग 5 बजे अनिरुद्ध अपने फ्लैट के लिए चल पड़ा। जैसे ही आराधना ने अपना दरवाजा बंद किया उसकी नज़र बेड पर पड़े एक कागज़ पर गयी। ये वही कागज़ था जिस पर अनिरुद्ध कुछ लिख रहा था। उसने लिखा था, “आराधना! तुम्हारे गोरे गालों पर लगे लाल, पीले, नीले, हरे रंग मानों बरसात के बाद आकाश पर बने हुए इंद्रधनुष जैसे लग रहे हैं। तुम्हारी आँखें आज रोज से अधिक नशीली लग रहीं हैं। तुम्हारे गुलाबी होंठों पर पड़े रंग के छीटें उसकी शोभा में चार चाँद लगा रहे हैं। तुम्हारे गालों पर रंग से बने मेरी उँगलियों के निशान हमारे प्यार के गवाह हैं। हमारी मोहब्बत के बवंडरों में उड़े सब रंग तुम्हारे बालों में भर गये हैं। और जब तुम नहाकर बाहर आयी तो ऐसा लगा मानो वर्षा के बाद बादल और स्वच्छ, सुन्दर और उज्ज्वल लगने लगे हैं। हैप्पी होली माय लव!”
पढ़ने के बाद आराधना ने तुरंत बाहर जाकर देखा तो गेट पर अभी भी अनिरुद्ध सेक्यूरिटी वाले अंकल जी को होली विश कर रहा था। आराधना ने तुरंत कॉल करके अनिरुद्ध को वापस बुलाया और वो चिट छुपा दिया। अनिरुद्ध ने वापस बुलाने का कारण पूछा क्योंकि उसे तो याद भी नहीं कि उसने जो लिखा था वो कहाँ है, किसके पास है? आराधना ने कहा कि “बैठो एक काम है।” अनिरुद्ध बैठते ही आराधना भी उसके बगल बैठ गयी। आराधना ने कहा “क्या तुम मेरे लिए शायरी कर सकते हो?” अनिरुद्ध ने जवाब दिया, “मैं सॉफ्टवेर इंजीनियर हूँ, शायर नहीं।” “फिर भी इतना अच्छा लिख लेते हो...?” आराधना ने बिना देरी के प्रतिउत्तर में प्रश्न कर दिया। अनिरुद्ध ने कुछ न समझ पाने जैस मुँह बनाया। तभी आराधना ने उसे चिट दिखाई और थोड़ी शरारती अंदाज़ में कहा, “मेरे पीठ पीछे ही तारीफ करोगे कि कभी मुँह पर भी कुछ बोलोगे...” जब तक अनिरुद्ध को कुछ ज्यादा समझ आता आराधना ने उसके बालों को पीछे पकड़ा और उसका चेहरा अपने सामने लाकर अपने होठ अनिरुद्ध के होठो पर ऐसे रख दिया जैसे भगवान् कृष्ण ने अपने होठों पर वंशी रख दी हो। अनिरुद्ध अब कुछ सोचना-समझना चाहता भी नहीं था, वो संसार भुलाकर अपनी दुनियाँ में खो जाना चाहता था। प्रेम का सूर्य कमरे में चमक उठा था, मोहब्बत की सुगन्धित वायु का वेग तीव्र हो गया, दुनियाँ भर की ख़ुशी उन दोनों के लिए उस एक कमरे में ठहर गयी थी। कमरे के बाहर बहुत दूर कहीं सूर्यदेव के अश्व सरगम के ताल पर चलते अस्तांचल की तरफ बढ़ रहे थे, पक्षी अपने घोसलों की तरफ हर्षोल्लास के साथ लौट रहे थे, गायें गौशालों की तरफ दौड़ रही थीं और बछड़ों को स्नेह कर रही थीं। बच्चे होली के रंग में रंगे नदी की तरफ स्नान के लिए जा रहे थे। दूर कहीं किसी टीले पर खड़े भगवान् कृष्ण मुस्कुराते हुए वंशी बजा रहे थे। प्यार, सौहार्द और मिलन के त्यौहार होली पर मोहब्बत के रंग में रँगी अपनी सृष्टि को देखकर आत्मुग्ध हो रहे थे... होलिकोत्सव की अनन्त शुभकामनाएँ... 
मेरी आने वाली पुस्तक “अनकहा अनसुना प्यार” से...

- कुमार आशीष
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Saturday, November 23, 2019

बचपन की यादें और हमारा प्रोटेस्ट (कृषि विज्ञान विशेष)

चित्र : गूगल से साभार
मैंने अपने विद्यालयी शिक्षा के दौरान आठवीं तक कृषि-विज्ञान पढ़ा है। उस समय जो मेरे कृषि-विज्ञान के अध्यापक थे उनका खुद कृषि-कार्यों से दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं था। पढ़ाने का तरीका उनका बहुत बढ़िया था तो पाठ पढ़कर प्रश्नोंत्तर लिखवा दिया करते थे और हम लोग रट्टा मारकर परीक्षा में लिख आते थे। उनकी आदत थी कि कक्षा में पढ़ाते समय कई बार कृषि-विज्ञान से हटकर जीवन की गम्भीरता और नैतिक शिक्षा पर हमारा ज्ञानवर्धन किया करते थे, ये आजीवन हमारे बहुत काम आयेगा।

जब मैं सातवीं कक्षा में था तो परीक्षा के दौरान प्रक्टिकल भी होना था। जिसमें गृह-विज्ञान पढ़ने वाली छात्राओं को विभिन्न व्यंजन बनाकर खिलाने थे और हम लोगों को कृषि कार्य से सम्बन्धित कुछ बनाकर लाना था, जैसे:- रस्सी, डलिया आदि।

जिस दिन प्रक्टिकल था उस दिन लड़कियों ने बढ़िया-बढ़िया व्यंजन विद्यालय में बनाये और गुरूजी लोगों के खाने के बाद जो बचा वो प्रसाद हम लोगों ने छककर उड़ाया। उसके बाद कृषि-विज्ञान वाले शिक्षक ने हम लोगों से पूछा ‘क्या लाये हो?’ तो हम मुँह बनाकर खड़े हो गये। सब लड़के गृह-विज्ञान के प्रक्टिकल में बने समोसा, कचौड़ी, टिक्की, पानी-बताशा आदि से पेट भरकर और हाथ से खाली थे। गुरूजी को गुस्सा भी लगी और समोसा की डकार आयी तो उन्हें कुछ अपमान भी महसूस हुआ कि गृह-विज्ञान वाली मैडम जी अब उन्हें नीचा दिखा सकती हैं क्योंकि उनकी लड़कियों ने इतना कुछ बनाकर खिलाया और गुरूजी के लड़के सब एक लाइन से नालायक और निकम्मे निकल गये। गुरुदेव को काफ़ी गुस्सा लगी तो उन्होंने अपने आशीर्वचनों से हमें कुछ सम्मानित किया, अब गुस्सा होने की बारी हमारी थी। मैं क्लास का मॉनीटर था तो मैंने ही सबका प्रतिनिधित्व करते हुए गुरूजी से कहा कि “जब हमें यहाँ विद्यालय में कुछ बनाने को सिखाया नहीं गया तो हम कैसे बना दें?” मेरी आवाज़ में गुस्सा और आत्मविश्वास एक साथ था क्योंकि मेरे लिए कृषि से सम्बंधित कुछ बनाकर लाना बिलकुल ‘आउट ऑफ़ स्लेबस’ जैसा ही था। सब लड़कों ने भी कुछ बुदबुदाकर मेरा समर्थन कर दिया।

हमारे इस तरह के “प्रोटेस्ट” के बाद गुरूजी ने समोसा खाकर बनाई गयी पूरी ऊर्जा के साथ सबको एक लाइन से 5-5 दण्डे का प्रसाद वितरित किया और आदेश दिया कि अगर कल तक आप लोगों ने कुछ बनाकर विद्यालय में जमा नहीं करवाया तो सब फेल कर दिये जाओगे। यूँ तो ये धमकियाँ हमको इतनी बार मिली थी कि हमें “फेल होने से डर नहीं लगता साहब! दण्डे से लगता है...” हम अपनी चोट में समोसा की चटनी का स्वाद भूल चुके थे और हमारा प्रोटेस्ट शुरू होने से पहले ही कुचल दिया गया। उस समय न ये बातें अख़बार में आ सकती थीं, न मिडिया इसे दिखाता, न इसके पक्ष/विपक्ष में चर्चा करने के लिए फेसबुकिया विद्वान थे। यहाँ तक की हम अपनी शिकायत प्रधानाचार्य जी से भी नहीं कर सकते थे, क्योंकि हमें लगता था कि अध्यापकों का एक गुट होता है जो सिर्फ हमें मारने के लिए विद्यालय आता है और प्रधानाचार्य जी तो उसके सरदार हैं उन तक गये तो प्रसाद की मात्रा अधिक भी हो सकती है।

हमारे अभिभावक स्कूल और ट्यूशन के अध्यापकों पर इतना भरोसा करते थे कि कभी हमारे दण्डित होने पर शिकायत लेकर विद्यालय नहीं गये। अब तो लोग खुद विद्यालय पहुँच जाते हैं कि हमारे बच्चों को क्यों मारा, तब ऐसा नहीं होता था। उल्टा अगर पापा को गुस्सा लगती थी तो वो मारने का काम अध्यापाकों को सौंप देते थे। एक अध्यापक जिन्होंने मुझे 4 वर्ष की उम्र से 13 वर्ष की उम्र तक लगातार घर आकर ट्यूशन पढ़ाया वो ये काम बखूबी करते थे। उन्होंने ही ABCD भी सिखाई, ‘अ’ से अनार, ‘आ’ से आशीष भी सिखाया और पीटाई भी मन-भर करते थे।

अब फिर से अपनी बात पर आते हैं, हुआ ये कि लड़कियों द्वारा बनाये गये ‘समोसा’ और गुरूजी द्वारा मिली ‘मार’ खाकर हम शाम को विद्यालय से घर पहुँचे और बता दिया कि कल से हम पढ़ने नहीं जायेंगे हमारा नाम अलग लिखवा दो। पूछा गया क्या हुआ तो सब घटना सविस्तार वर्णन कर दिये। हमारे गाँव के एक दादा थे जो लगभग 20 वर्षों से हमारे घर पर काम करते थे। ट्रैक्टर चलाना, भैंस-गाय खिलाना, खेती आदि की सब व्यवस्था वही देखते थे और मेरे बाबा जी (ग्रैंडफादर) जो कि रिटायर्ड पुलिस ऑफिसर थे वो खेती के कार्यों में दादा की सलाह ऐसे मानते थे जैसे उनके उच्च अधिकारी का आदेश हो। हमने दादा से कहकर एक बहुत बढ़िया रस्सी बनवाई। उन दिनों पेटुआ खेत में बोया जाता था फिर उसे तालाब में डुबाकर रखते थे कुछ समय बाद निकालकर उससे सन तैयार किया जाता था और फिर उसकी रस्सी बनती थी। जब रस्सी तैयार हो गयी तो फिर मैंने अपनी क्रियटीविटी दिखानी शुरू की। पास की दुकान से अलग-अलग कलर लेकर आये चवन्नी वाला फिर उसे पानी में खोलकर उसी में रस्सी को कलरफुल बनाया और रात भर सुखाने के बाद अगली सुबह विद्यालय में पेश किया। उस रस्सी की खूब तारीफ हुई, और पूरे विद्यालय में सबको दिखाई गयी। गुरूजी ने सबको बताया कि एक लड़के ने पहली बार रस्सी बनाई और इतनी बढ़िया रस्सी तैयार हुई है। उन्हें क्या पता कि लड़के के दादा ने रस्सी तैयार की है जिनके पूरे जीवन की हर बरसात रस्सी बनाने में बीतती थी। खैर, ये रहस्य आज उजागर हो गया। सब लड़के कोई रस्सी, कोई डलिया लेकर आये और गुरुदेव को समर्पित हुआ। कुछ डलिया विद्यालय में रखी गयी और कुछ गुरूजी अपने घर लेकर चले गये। अब गुरूजी भी खुश और बच्चे भी...
अतीत बड़ा लुभावना होता है चाहे उसमें कडुवाहट हो या मिठास...

- कुमार आशीष
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Saturday, November 16, 2019

बहुत याद आती है वो

चित्र : गूगल से साभार
हमारी जिंदगी में कितना कुछ अचानक हो जाता है न। जब हम मिले थे तब नहीं सोचा था कि कभी बात करेंगे, जब बात किया तब नहीं सोंचा था कि दोस्ती होगी और फिर प्यार होगा, लेकिन ये सब हुआ। अगर पीछे मुड़कर देखें तो लगता है कि जिंदगी के सबसे खूबसूरत दिन वे ही थे जब हम एक-दूसरे के करीब आये। हम कितना खुश रहते थे, ऐसा लगता था अब किसी और चीज की जरूरत ही नहीं मानो जैसे जिंदगी पूर्ण हो गयी हो। लेकिन जिस तरह हमें अनचाही खुशियाँ मिलती हैं उसी तरह हमें कई बार अनचाहे दुःख भी मिलते हैं, जो आज हमारे साथ हो रहा है। इतना लंबा समय बीत गया और पता भी नहीं चला ऐसा लगता है जैसे नींद में थे अब उठे हैं तो हमारे संग-संग जीने के वो हसीन ख्वाब टूटकर बिखर गये हैं। काश! ऐसा ही होता जैसे हम कभी जब सोकर उठते हैं तो सपने में मिली उपलब्धियों के खोने का कोई दुःख नहीं होता बस याद करके मुस्कुराते हैं और जिंदगी के साथ दौड़ में शामिल हो जाते हैं, लेकिन आज ऐसा नहीं हो रहा है, आज इस ख्वाब के टूटने का बहुत दुःख है। जीवन में कई क्षण ऐसे आते हैं जब हमें आगे का रास्ता कदाचित् साफ़-साफ़ दिखायी नहीं पड़ता, ऐसे में हम अनुमान के सहारे आगे बढ़ते हैं। आज ऐसा ही एक क्षण है जब हम दोनों को अनुमान के सहारे आगे बढना है, क्योंकि हमारे प्रेम के बीच में रस्म-औ-रिवाज की एक बन्दिश है। आज अगर हम अपने ख्वाब पूरा करने की सोंचे तो बहुत सी आँखों के ख्वाब टूट जायेंगे, तो बहुत से चेहरों को उदास करने से अच्छा है हम ही अपना दुर्भाग्य समझ लें। आज एक दुनियाँ उजड़ रही है लेकिन कल को इसी खण्डहर पर अनेकों नव-निर्माण होंगे। अभी हमें चारों तरफ अँधेरा-ही-अँधेरा दिखायी दे रहा है लेकिन ये भी है कि इस क्षितिज के उस पार कहीं कोई उजाले की किरण अवश्य होगी। ये सच है कि दुनियाँ की नज़रों में अब हमारा एक-दूसरे से कोई वास्ता नहीं लेकिन हम तो एक-दूसरे की आँखों में रहकर रोज मिलेंगे। इसलिये ध्यान रखना कि जब-जब मैं अपने प्यार के बारे में सोंचूँ या आईना देखूँ तो मेरा सर फक्र से उठा हो मैं नहीं चाहता तुम कोई ऐसा काम करो जिससे मुझे शर्मिंदगी हो और मैं भी वादा करता हूँ मैं कभी भी कुछ ऐसा नहीं करूँगा तो तुम्हें अच्छा न लगे। तुम चाहती थी कि मैं कविता लिखना न छोडूँ तो नहीं ठीक है नहीं छोडूँगा यही मेरा तुम्हें आखिरी उपहार है। हम हमेशा एक-दूसरे के दिल की धड़कन बनकर धड़कते रहेंगे इसी वादे के साथ अलविदा...

- कुमार आशीष
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Saturday, November 9, 2019

श्री जवाहर लाल नेहरु जी

चित्र : गूगल से साभार


स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहर लाल नेहरु जी को आज़ादी और स्वतन्त्र भारत के विकास में उनके योगदानों के प्रति हम कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं। पण्डित जवाहर लाल नेहरु जी का जन्म 14 नवंबर सन् 1889 को इलाहाबाद में हुआ था। इनके पिता जी का नाम श्री मोतीलाल नेहरु था और माता जी का नाम श्रीमती स्वरूपरानी था। पण्डित जवाहर लाल नेहरु जी के पिता श्री मोतीलाल नेहरु जी इलाहाबाद के प्रसिद्ध वकील और धनाड्य व्यक्ति थे। पण्डित जवाहर लाल नेहरु जी की अध्ययन में रूचि होने से उन्हें अंग्रेजी, हिंदी और संस्कृत का अच्छा ज्ञान था। वो उच्च शिक्षा के लिए 1905 में विदेश चले गए और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से लॉ की डिग्री हासिल की। अपनी शिक्षा पूरी करके सन् 1912 में वो भारत लौटे और वकालत शुरू की। 1916 में उनकी शादी कमला नेहरू से हुई। पण्डित नेहरु जी की सुपुत्री का नाम इंदिरा प्रियदर्शनी था। यही प्रियदर्शिनी आगे चलकर स्वतन्त्र भारत की प्रथम महिला प्रधानमन्त्री बनीं और अपने अदम्य साहस से बड़े-बड़े निर्णय लिए तथा 'लौह-महिला' श्रीमती इन्दिरा गाँधी के नाम से प्रसिद्ध हुईं।

सन् 1917 में पण्डित जवाहर लाल नेहरू जी 'होम रुल लीग'‎ में शामिल हो गये। राजनीति में उनकी असली दीक्षा दो साल बाद सन् 1919 में हुई जब वे महात्मा गाँधी जी के संपर्क में आये। उस समय महात्मा गाँधी जी ने ‘रॉलेट अधिनियम’ के खिलाफ एक अभियान शुरू किया था। पण्डित नेहरू जी, महात्मा गाँधी जी के सक्रिय लेकिन शान्तिपूर्ण, 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' के प्रति खासे आकर्षित हुए। दिसम्बर 1929 में, 'कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन' लाहौर में आयोजित किया गया, जिसमें पण्डित जवाहरलाल नेहरू जी को कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष चुना गया। इसी सत्र के दौरान एक प्रस्ताव भी पारित किया गया जिसमें 'पूर्ण स्वराज्य' की मांग की गई। 26 जनवरी 1930 को लाहौर में पण्डित जवाहरलाल नेहरू जी ने 'स्वतंत्र भारत का झंडा' फहराया। उसके बाद 15 अगस्त 1947 को उन्होंने देश के पहले प्रधानमन्त्री के रूप में लालकिले से तिरंगा फहराया और राष्ट्र को सम्बोधित किया। अंग्रेजों ने करीब 500 देशी रियासतों को एक साथ स्वतंत्र किया था और उन्हें एक झंडे के नीचे लाना उस वक्त की सबसे बडी चुनौती थी। पण्डित जवाहरलाल नेहरू जी ने आधुनिक भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। उन्होंने 'योजना आयोग' का गठन किया, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास को प्रोत्साहित किया और तीन लगातार पंचवर्षीय योजनाओं का शुभारंभ किया। उनकी नीतियों के कारण देश में कृषि और उद्योग का एक नया युग शुरु हुआ। नेहरू ने भारत की विदेश नीति के विकास में एक प्रमुख भूमिका निभायी। पण्डित जवाहर लाल नेहरु जी ने 6 बार कांग्रेस अध्यक्ष के पद को सुशोभित किया। सन् 1942 के 'भारत छोड़ो' आंदोलन में नेहरूजी 9 अगस्त 1942 को बंबई में गिरफ्तार हुए और अहमदनगर जेल में रहे, जहाँ से 15 जून 1945 को रिहा किये गये। नेहरू ने पंचशील का सिद्धांत प्रतिपादित किया और 1954 में 'भारतरत्न' से अलंकृत हुए नेहरूजी ने तटस्थ राष्ट्रों को संगठित किया और उनका नेतृत्व किया। पंडित जवाहरलाल नेहरू जी के कार्यकाल में लोकतांत्रिक परंपराओं को मजबूत करना, राष्ट्र और संविधान के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को स्थायी भाव प्रदान करना और योजनाओं के माध्यम से देश की अर्थव्यवस्था को सुचारू करना उनके मुख्य उद्देश्य रहे। पण्डित जवाहर लाल नेहरु जी के विषय में ‘मिसाइल मैन’ वैज्ञानिक और भारत के पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम सर ने अपनी आत्मकथा 'अग्नि-की-उड़ान' में लिखा है:- “भारत में रॉकेट विज्ञान के पुनर्जन्म का श्रेय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के नई प्रौद्योगिकी के विकास की दृष्टि को जाता है। उनके इस सपने को साकार बनाने की चुनौती प्रो. साराभाई ने ली थी। हालाँकि कुछ संकीर्ण दृष्टि के लोगों ने उस समय यह सवाल उठाया था कि हाल में आजाद हुए जिस भारत में लोगों को खिलाने के लिए नहीं है उस देश में अंतरिक्ष कार्यक्रमों की क्या प्रासंगिकता है। लेकिन न तो प्रधानमंत्री नेहरु और न ही प्रो. साराभाई में इस कार्यक्रम को लेकर कोई अस्पष्टता थी। उनकी दृष्टि बहुत साफ़ थी— ‘अगर भारत के लोगों को विश्व समुदाय में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है तो उन्हें नई-से-नई तकनीक का प्रयोग करना होगा, तभी जीवन में आने वाली समस्याएँ हल हो सकेंगी।’ इनके माध्यम से उनका अपने शक्ति प्रदर्शन का कोई इरादा नहीं था।”

जैसा कि लगभग हर नेता के जीवन में विवाद अक्सर जुड़े रहते हैं, ऐसे ही पण्डित नेहरु जी भी इससे बच नहीं पाये। पण्डित नेहरू जी को महात्मा गाँधी जी के राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर जाना जाता है। गाँधी जी पर यह आरोप भी लगता है कि उन्होंने राजनीति में नेहरू जी को आगे बढ़ाने का काम सरदार वल्लभभाई पटेल समेत कई सक्षम नेताओं की कीमत पर किया। जब आजादी के ठीक पहले कांग्रेस अध्यक्ष बनने की बात थी और माना जा रहा था कि जो कांग्रेस अध्यक्ष बनेगा वही आजाद भारत का पहला प्रधानमन्त्री होगा, तब भी गाँधी जी ने प्रदेश कांग्रेस समितियों की सिफारिशों को अनदेखा करते हुए नेहरू को ही अध्यक्ष बनाने की दिशा में सफलतापूर्वक प्रयास किया। इससे एक आम धारणा यह बनती है कि पण्डित नेहरू ने न सिर्फ महात्मा गाँधी जी के विचारों को आगे बढ़ाने का काम किया होगा बल्कि उन्होंने उन कार्यों को भी पूरा करने की दिशा में अपनी पूरी कोशिश की होगी जिन्हें खुद गाँधी जी नहीं पूरा कर पाए। लेकिन सच्चाई इसके उलट है। यह बात कोई और नहीं बल्कि कभी पण्डित नेहरू जी के साथ एक टीम के तौर पर काम करने वाले श्री जयप्रकाश नारायण ने 1978 में आई पुस्तक ‘गाँधी टूडे’ की भूमिका में कही थी। जेपी ने नेहरू के बारे में कुछ कहा है तो उसकी विश्वसनीयता को लेकर कोई संदेह नहीं होना चाहिए क्योंकि नेहरू से जेपी की नजदीकी भी थी और मित्रता भी। लेकिन इसके बावजूद जेपी ने 'नेहरू मॉडल' की खामियों को उजागर किया।

समस्त राजनीतिक विवादों से हटकर बात करें तो राजनीतिक क्षेत्र में लोकमान्य तिलक के बाद सक्रीय रूप से लिखने वाले नेताओं में नेहरु जी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। नेहरू जी ने व्यवस्थित रूप से अनेक पुस्तकों की रचना की है। राजनीतिक जीवन के व्यस्ततम संघर्षपूर्ण दिनचर्या के चलते उन्हें लेखन का समय बहुत कम मिल पाता था, इसका हल उन्होंने यह निकाला कि वो अपने जेल के लम्बे दिनों को लेखन में बिताने लगे। उन्होंने अपनी अधिकाँश पुस्तकों की रचना जेल में ही की है। एक लेखक के रूप में उनमें एक साहित्यकार के साथ एक भाव प्रधान व्यक्ति भी दिखाई देता है। इसके साथ ही उन्हें ऐतिहासिक खोजी लेखक की तरह भी देखा जा सकता है। पण्डित नेहरु जी अपनी पुत्री इन्दिरा गाँधी को पत्र लिखा करते थे, ये पत्र वास्तव में कभी भेजे नहीं गये। परन्तु इससे विश्व इतिहास की झलक जैसा सुसंबद्ध ग्रंथ तैयार हो गया। 'भारत की खोज' (डिस्कवरी ऑफ इण्डिया) की लोकप्रियता के चलते उस पर आधारित 'भारत एक खोज' नाम से एक धारावाहिक भी बनाया गया था। उनकी आत्मकथा 'मेरी कहानी' के बारे में सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का मानना है कि उनकी आत्मकथा, जिसमें जीवन और संघर्ष की कहानी बयान की गयी है, हमारे युग की सबसे अधिक उल्लेखनीय पुस्तकों में से एक है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकें की सूची इस प्रकार है:-
  1. पिता के पत्र : पुत्री के नाम - 1929
  2. विश्व इतिहास की झलक - 1933
  3. मेरी कहानी - 1936
  4. भारत की खोज/हिन्दुस्तान की कहानी (दि डिस्कवरी ऑफ इंडिया) - 1945
  5. राजनीति से दूर
  6. इतिहास के महापुरुष
  7. राष्ट्रपिता
  8. जवाहरलाल नेहरू वाङ्मय (11 खंडों में)
चार बार पण्डित नेहरू जी की हत्या का प्रयास किया गया था। पहली बार 1947 में विभाजन के दौरान, दूसरी बार 1955 में एक रिक्शा चालक ने, तीसरी बार 1956 और चौथी बार 1961 में मुंबई में। 27 मई, सन् 1964 को हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया। भारतीय बच्चे उन्हें प्यार से ‘चाचा नेहरू’ के रूप में जानते हैं। यही कारण है कि उनके जन्मदिवस को आज भी भारत में ‘बाल-दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

- कुमार आशीष
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Sunday, October 27, 2019

दीपावली पर माँ भारती के पुत्रों को पत्र


ईश्वरीय स्वरुप सम्माननीय भारती पुत्रों!
चरणस्पर्श

सर्वप्रथम आप सभी को पूरे देश की तरफ से दीपावली की अनन्त शुभकामनाएँ! अद्भुत स्थिति है, आज पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ दीपकोत्सव का पावन पर्व मनाया जा रहा है और आपके पास आज भी सिवाय शुभकामनाओं के और कुछ भी नहीं। हमने अपने घरों को लाइट्स से सजाया है, सैकड़ों दीपक जल रहे हैं, मिठाइयाँ बाँटी जा रही हैं। लाई-बताशे का पहला फाँका मारकर लोग ज्ञान दे रहे हैं कि चायनीज़ लाइट्स का इस्तेमाल गलत है, पटाखों से प्रदुषण फ़ैलता है और जाने क्या-क्या... परन्तु आप लोग इन सब राजनितिक/सामाजिक बयानबाजी से दूर श्वेत हिम की चादर पर हाथियारों के साथ खड़े, जीवन और मृत्यु के मोहबंधन से स्वतन्त्र, चौकन्ने होकर सिर्फ ये सोच रहे हैं कि आपसे कोई चूक न हो जिससे देश में चल रहे हर्षोत्सव में विघ्न न पड़े। ‘शुभ-दीपावली’ में कोई ‘अशुभ, अप्रिय’ घटना न हो, किसी के अन्तःकरण में किसी प्रकार का अँधेरा न रह जाये। हज़ारों फीट ऊँचाई पर खड़े बर्फीली हवाओं का शोर सुनते हुए, लगातार अपनी मौत को आँखे दिखाकर, या रेगिस्तान में उड़ते रेतों के बवण्डरों की धूल फाँककर जीने के बावज़ूद जो आपकी सतर्कता है उसी के बलबूते आज भारत जगमग कर रहा है। भारत के त्यौहारों और माँ भारती के चेहरे की रौनक के प्रथम कारण आप लोग ही हैं। आपसे ही देश की सुरक्षा है, आपसे ही देश में खुशियाँ हैं, आपसे ही देश में रौशनी का अम्बार लगा है। पता नहीं इस वक़्त देश के कितने लोग आपको याद कर रहे होंगे, परन्तु वो माँ जिसने दूध के माध्यम से अपनी रगों में बहने वाला रक्त पिलाकर आपको पालापोसा था, वो पिता जिसने फटी बनियान के जेब में से रूपये निकालकर आपको पढ़ाया-लिखाया, वो बहन जिसकी कई वर्षों से राखी प्रतीक्षा में है कि भैया घर आये तो त्यौहार हो, वो पत्नी जिसके सिन्दूर रोज़ उससे पूछते हैं कि जिसके लिए माथे पर सजा रही हो वो माथा चूमने कब आयेगा, वो भाई जो गर्व से सीना चौड़ा करके गाँव भर में बताता रहता है कि उसका भैया सैनिक है, वो गाँव वाले जिन्हें आपकी फ़िक्र लगी रहती है, वो आपका हर “आशीष” जो आपकी याद में पत्र लिख रहा है वो सब आपको बहुत याद कर रहे हैं। मैं पूरे देश की तरफ से कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए आपके और आपके परिवार वालों के महानतम त्याग को प्रणाम करता हूँ। ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि आपको दीर्घजीवन प्रदान करें, आपके जीवन में खुशियों का दीपक सदैव जगमगाता रहे। पुनः दीपकोत्सव की बहुत-बहुत बधाईयाँ...

- कुमार आशीष
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Saturday, October 26, 2019

भारत की अखण्डता और सरदार पटेल

चित्र : गूगल से साभार

आज का विषय है - “भारत की अखण्डता और सरदार पटेल” इससे पहले कि मैं भारत की अखण्डता या उसमें सरदार पटेल जी के योगदानों की चर्चा शुरू करूँ, एक संक्षिप्त परिचय सरदार पटेल जी का प्राप्त कर लेते हैं।

‘सरदार पटेल’ के नाम से प्रसिद्ध भारतीय राजनीति के अति-महत्वपूर्ण व्यक्तित्व का पूरा नाम वल्लभ भाई झावेर भाई पटेल था। पटेल जी का जन्म गुजरात राज्य के नडियाद नामक स्थान पर 31 अक्टूबर 1875 को हुआ था। वे झवेरभाई पटेल एवं लाडबा देवी की चौथी संतान थे। मुख्यतः स्वाध्याय से अपनी शिक्षा की शुरुआत करने वाले सरदार पटेल जी ने लन्दन जाकर बैरिस्टर की पढ़ाई की। पढ़ाई ख़त्म होने के अगले दिन वो स्वदेश लौटे और अहमदाबाद में वक़ालत करने लगे। लन्दन में अध्ययन और निवास के दौरान सुबह से लेकर रात लाइब्रेरी बन्द होने तक वो पढ़ते रहते थे। एक दिन में सत्रह-सत्रह घंटे पढ़ाई करने का ही चमत्कार था कि छात्रवृत्ति के साथ फीस माफ़ी का भी फायदा पाते थे। उसके बाद जब वक़ालत शुरू की तो विपक्षी अधिवक्ता क्या कई बार तो जज तक को अपने ज्ञान और वाक्पटुता से आश्चर्यचकित कर देते थे। हर मुकदमें में पूरा समय और जी-जान लगाने का फायदा ये होता था कि वो लगभग हर मुकदमा जीत जाते थे, जिससे उन्हें खूब काम, धन और यश प्राप्त हुआ। कहते हैं एक बार जब वो किसी मुकदमें को लेकर अदालत में बहस कर रहे थे तभी उन्हें एक तार प्राप्त हुआ, उन्होंने उसे पढ़कर टेबल पर रख दिया और केस जारी रखा। जब बहस समाप्त हुई और वो केस जीत गये तो उन्होंने अपने सहयोगियों को बताया कि तार में लिखा है कि उनकी पत्नी का देहान्त हो गया है। केस के बीच में ही ये जानकार भी जिस धैर्य के साथ वो अपने काम में लगे रहे वो सचमुच अद्भुत था और वहाँ उपस्थित सभी लोगों को आश्चर्यचकित करने वाला था। 

सरदार पटेल जी ने जब अपना व्यवसायिक जीवन शुरू किया तो वो बहुत शान-ओ-शौकत से रहते थे। परन्तु धीरे-धीरे गाँधी जी के विचारों और व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उनका भी झुकाव भारतीय स्वतन्त्रता के आन्दोलनों में होने लगा। स्वतन्त्रता आन्दोलन में सरदार पटेल जी ने सबसे पहला और बड़ा योगदान खेडा संघर्ष में दिया। गुजरात का खेडा खण्ड उन दिनो भयंकर सूखे की चपेट में था। किसानों ने अंग्रेज सरकार से भारी कर में छूट की माँग की, जो कि जाहिर है अंग्रेज कभी पूरी नहीं करते। परन्तु तब सरदार पटेल जी ने उन किसानों का नेतृत्व किया तथा लोगों को कर न देने के लिए प्रेरित किया, परिणामस्वरुप सरकार झुकी और उस वर्ष करों में राहत दी गयी।

इस तरह सार्वजानिक जीवन में प्रवेश के बाद सरदार पटेल बस देश के होकर रह गये। खेडा सत्याग्रह के अलावा नागपुर झण्डा सत्याग्रह, बोरसद सत्याग्रह, रॉलेट एक्ट का विरोध, बारदोली सत्याग्रह, असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन, त्रिपुरी सम्मलेन, क्रिप्स मिशन, भारत छोड़ो आन्दोलन, शिमला आन्दोलन कैबिनेट मिशन, आंतरिक सरकार में भी उनका योगदान अत्यन्त महत्वपूर्ण रहा। सविनय अवज्ञा आन्दोलन के समय चौरी-चौरा हत्याकाण्ड के फलस्वरूप जब गाँधी जी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन को स्थगित करने की घोषणा कर दी तो देश की सामान्य जनता के साथ-साथ अनेक चोटी के नेताओं को भी बहुत निराशा हुई। पण्डित लाला लाजपत राय जी और पण्डित मोतीलाल नेहरु जी जो कि उन दिनों जेल में थे, उन्हें भी गाँधी जी के इस निर्णय से बहुत आघात लगा था और उन्होंने एक असहमति का पत्र भी गाँधी जी को लिख भेजा था। ऐसे समय में भी बड़े नेताओं में केवल दो नेता श्री राजेन्द्र बाबू और वल्लभ भाई पटेल जी बिना किसी नुक्ताचीनी के, बिना चेहरे पर निराशा का भाव लाये, पूरे अनुराग और श्रद्धा से गाँधी जी के निर्णय में साथ खड़े रहे।

अपने साहसिक निर्णयों, देश सेवा की सच्ची भावनाओं और ज़मीनी स्तर से जुड़कर काम करने की लगन के चलते जल्दी ही सरदार पटेल जी काँग्रेस के कद्दावर नेता बन गये। काँग्रेस के सभी कार्यकर्ता पण्डित जवाहर लाल नेहरु जी से भी अधिक सरदार पटेल को प्यार करते थे और सम्मान देते थे। इसका सबसे बड़ा उदाहरण ये है कि जब स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री के चुनाव की बात आई तो अधिकाँश प्रान्तीय काँग्रेस समितियों ने अपना मत सरदार पटेल के पक्ष में दिया। क्योंकि सब जानते थे कि नेहरु जी और पटेल जी दोनों ने वक़ालत की डिग्री लन्दन से प्राप्त की है मगर फिर भी वक़ालत में पटेल जी नेहरु जी से बहुत आगे थे। नेहरु जी अन्तराष्ट्रीय ख्याति के भूखे थे जबकि सरदार पटेल जी भारत के गरीब किसानों को लेकर चिंतित रहते थे। नेहरु जी से अधिक मत हासिल करने के बावजूद भी सरदार पटेल जी ने गाँधी जी की इच्छा का सम्मान करते हुए स्वयं को प्रधानमन्त्री की दौड़ से बाहर ही रखा और स्वतन्त्र भारत के प्रथम उप-प्रधानमन्त्री तथा गृह-मन्त्री बने।

5 जुलाई 1947 को एक ‘रियासत विभाग’ की स्थापना की गई थी। सरदार पटेल जी उप-प्रधानमन्त्री के साथ-साथ गृह और रियारत मन्त्री भी बनाये गये थे। उनका प्रथम दायित्व टुकड़े-टुकड़े में बिखरे भारत का एकीकरण करके उसे अखण्डता प्रदान करना था। इस अभियान में सरदार पटेल जी ने अपना महत्वपूर्ण योगदान आज़ादी से ठीक पहले (संक्रमण काल में) देना शुरू कर दिया था। उन्होंने वीपी मेनन के साथ मिलकर देसी राजाओं को समझाया कि उन्हें स्वायत्तता नहीं दिया जा सकता है, इसके परिणामस्वरूप तीन को छोडकर शेष सभी राजवाडों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। बस्तर की रियासत में कच्चे सोने का बड़ा भारी क्षेत्र था और इस भूमि को दीर्घकालिक पट्टे पर हैदराबाद की निज़ाम सरकार खरीदना चाहती थी। सरदार पटेल को जैसे ही ये जानकारी प्राप्त हुई वे वीपी मेनन के साथ तुरन्त उड़ीसा पहुँचे, वहाँ के 23 राजाओं से कहा, "कुएँ के मेढक मत बनो, महासागर में आ जाओ" इस तरह उन्होंने सभी 23 राजाओं को भारत में विलय करवा लिया। फिर नागपुर के 38 राजाओं से मिले, इन्हें "सैल्यूट स्टेट" कहा जाता था। अर्थात् जब कोई इनसे मिलने जाता तो तोप छोड़कर सलामी दी जाती थी। पटेल ने इन राज्यों की बादशाहत समाप्त करके उन्हें भारत में मिला लिया। इसी तरह वे काठियावाड़ पहुँचे जहाँ लगभग 250 रियासतें थी। जिनमें कुछ केवल 20-20 गाँव की रियासतें थीं, सबको भारत में विलय करवाया। एक बार मुम्बई गये और आसपास के राजाओं से बातचीत करके उन्हें भारत में मिलाया। अन्ततः15 अगस्त 1947 तक केवल तीन रियासतें-कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद छोड़कर उन्होंने सभी रियासतों को भारत में मिला दिया। इन तीन रियासतों में भी जूनागढ़ को 9 नवम्बर 1947 को मिला लिया गया, जब उसका निज़ाम पाकिस्तान भाग गया था। 13 नवम्बर को सरदार पटेल जी ने सोमनाथ के भग्न मंदिर के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया, जो नेहरू जी के तीव्र विरोध के पश्चात भी बनवा दिया। 1948 में हैदराबाद भी केवल 4 दिन की पुलिस कार्रवाई द्वारा भारत में मिला लिया गया। जहाँ तक कश्मीर रियासत की बात है तो इसको पण्डित जवाहरलाल नेहरू जी ने सरदार पटेल के एकीकरण अभियान से निकालकर स्वयं अपने अधिकार में रख लिया था। यदि नेहरु जी ने ऐसा न किया होता तो निश्चित ही आज कश्मीर समस्या होती ही नहीं। कश्मीर को लेकर पटेल जी के पास पुख्ता योजना थी परन्तु उस पर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया। सरदार पटेल जी कश्मीर में जनमत संग्रह तथा कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने पर नेहरु जी से असहमत थे।

आज का अखण्ड भारत जो हमारे पास है वो सरदार पटेल जी की मेहनत, साहस, लगन और तपस्या का परिणाम है। विश्व के इतिहास में वो एकमात्र ऐसे व्यक्तित्व रहे कि जिसने इतनी बड़ी मात्रा में राज्यों का एकीकरण किया हो। सरदार पटेल जी ने छोटी-बड़ी 562 रियासतों का भारतीय संघ में विलीनीकरण करके भारत को एकता और अखण्डता का वरदान दिया। नि:संदेह सरदार पटेल द्वारा यह 562 रियासतों का एकीकरण विश्व इतिहास का एक आश्चर्य था। भारत की यह रक्तहीन क्रांति थी। महात्मा गांधी ने सरदार पटेल को इन रियासतों के बारे में लिखा था, "रियासतों की समस्या इतनी जटिल थी जिसे केवल तुम ही हल कर सकते थे।" लोगों की  मान्याता बनी कि सरदार पटेल बिस्मार्क की तरह थे। लेकिन लंदन टाइम्स ने लिखा था "बिस्मार्क की सफलताएँ पटेल जी के सामने महत्वहीन रह जाती हैं। यदि पटेल जी के कहने पर चलते तो कश्मीर, चीन, तिब्बत व नेपाल के हालात आज जैसे न होते। पटेल जी सही मायनों में मनु के शासन की कल्पना थे। उनमें कौटिल्य की कूटनीतिज्ञता तथा महाराज शिवाजी की दूरदर्शिता थी। वे केवल सरदार ही नहीं बल्कि भारतीयों के हृदय के भी सरदार थे।"

केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने "राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता" को प्रोत्साहित करने के लिए पद्म पुरस्कारों की तर्ज पर  ‘सरदार पटेल राष्ट्रीय एकता सम्मान’ प्रदान करने का निर्णय लिया है। गृह मंत्रालय की ओर से जारी अधिसूचना के अनुसार, यह सम्मान "राष्ट्रीय एकता और अखण्डता" को प्रोत्साहित करने में दिये गये प्रेरक योगदान तथा सशक्त एवं अखण्ड भारत के मूल्यों को मजबूती देने वालों को दिया जायेगा। नस्ल, पेशा, पद या लिंग के भेदभाव के बिना कोई भी व्यक्ति यह सम्मान पाने का हक़दार होगा। यह सम्मान बेहद दुर्लभ मामलों में बहुत योग्य व्यक्ति को मरणोपरांत भी दिया जा सकेगा। केंद्र सरकार ने 31 अक्टूबर जो कि सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती है, उस दिन को "राष्ट्रीय एकता दिवस या राष्ट्रीय या अखण्डता दिवस" के रूप में मनाने का फैसला किया है। अदम्य साहस के धनी, अद्भुत धैर्य के स्वामी सरदार पटेल को उनके इस अद्भुत और अकल्पनीय योगदान के कारण "लौह पुरुष" कहा जाता है। एकता की प्रतिमूर्ति सरदार पटेल जी की प्रतिमा “स्टेच्यू ऑफ़ यूनिटी” का निर्माण गुजरात राज्य के नर्मदा जिले में ‘सरदार सरोवर’ बाँध के पास साधू बेट नामक स्थान पर लगाई गयी है। 182 मीटर (597 फीट) और आधार सहित 240 मीटर (790 फीट) की ऊँचाई वाली ये मूर्ति विश्व की सबसे ऊँची मूर्ति है।

अखण्ड भारत की नींव को अपना जीवन सौंपकर मजबूत करने वाले सरदार पटेल जी के हम कृतज्ञ हैं, कि उन्हीं की वजह से आज हम एक विकासशील राष्ट्र में जीने का सौभाग्य प्राप्त कर रहे हैं। अगर वो नहीं होते तो शायद भारत की विशालता आज इतनी नहीं होती जितनी की है। ऐसे में बहुत हद है सम्भव है हम अपने देश के तमाम राज्यों के ही पड़ोसी देश होते और उन्हीं के साथ लड़ाई-झगड़े में फँसकर अपने विकास का मार्ग अवरुद्ध किये बैठे रहते। परन्तु पटेल जी के अतुलनीय योगदान के कारण सभी रियासतों ने भारत में विलय किया और आज भारत विकास के मार्ग पर अग्रसर है। दुनियाँ के बड़े-से-बड़े राष्ट्र भारत की मित्रता का आदर करते हैं और वे भारत के साथ मधुर सम्बन्ध की इच्छा रखते हैं। कुछ देश जो स्वयं ही भारत से शत्रुता किये बैठे हैं उनकी हालत कितनी बदतर है ये हमसे छुपी नहीं है। बार-बार शान्ति प्रस्तावों को अपमानित करने वाला पाकिस्तान आज अपने बोये काँटों से घायल होता रहता है। यदि सरदार पटेल जी न होते तो शायद हम दुनियाँ के नक़्शे पर इतना कम स्थान पाते कि दिखाई ही नहीं पड़ते। परन्तु आज का भारत अपने वीर सपूतों, महापुरुषों के आचरण पर गर्व करता हुआ हिमालय की चट्टानों से भी मजबूत होकर अपना सिर ऊँचा किये दुनियाँ को विकास, आदर्श, शान्ति, संघर्ष, संस्कार की परिभाषा सिखाता रहता है।


जय हिन्द-जय भारत

- कुमार आशीष
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Saturday, October 19, 2019

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के नाम पत्र

चित्र : गूगल से साभार

प्रिय मोहनदास करमचन्द जी! 
सादर अभिवादन!
                  
                            सर्वप्रथम मैं ये स्पष्ट कर देता हूँ कि मैंने आपको महात्मा गाँधी, बापू या राष्ट्रपिता जैसे सम्बोधन से सम्बोधित क्यों नहीं किया? इसका कारण ये है कि अपने देश भारत में ही आपके ‘महात्मा’ होने पर प्रश्न-चिन्ह लग चुका है, ‘बापू या राष्ट्रपिता’ जैसे शब्द लगभग बैन होने की कगार पर हैं और ‘गाँधी’ तो जैसे गाली का पर्यायवाची शब्द ही हो।

उपर्युक्त स्पष्टीकरण से सम्भव है आप मेरी विवशता समझ गये होंगे। धरती पर और अपने देश में हम सब कुशल मंगल हैं और आशा करते हैं आप भी स्वर्ग के आनन्द सकुशल भोग रहे होंगे। पत्र में अपनी कुशलता बताने का यह एक औपचारिक तरीक़ा हमें सिखाया गया है। वास्तविकता ये है कि हम लोग बहुत परेशान हैं, हम आपस में लड़ते रहते हैं, अपने ज़िद और अहंकार में हम देशहित तक का त्याग किये बैठे हैं। जिस सत्य और अहिंसा की पुस्तक आप हमें थमा गये थे वो हममें से अधिकतर लोग गन्दे नाले में फेंक चुके हैं और जिन्होंने अपने पास रखा भी है, वो सिर्फ उसे शोभा की वस्तु की तरह प्रयोग में ले रहे हैं। हालाँकि अभी भी कुछ ऐसे लोग हैं जो अहिंसा की बात करते हैं, अहिंसा का पाठ ख़ुद भी पढ़ते हैं और दूसरों को भी सिखाते हैं, ये और बात है ये लोग भी इसे अपने आचरण में नहीं लाते हैं। आपके बारे में मुझे जानकारी है कि आप एक वकील थे। उस ज़माने में उच्च शिक्षा बहुत कम लोगों को हासिल हो पाती थी, जाहिर है वकील भी कम रहे होंगे। मुझे ये बात समझ नहीं आ रही है कि आपने वक़ालत छोड़ कर देश-सेवा का रास्ता क्यों चुन लिया? वक़ालत करते ढेर सारा पैसा कमाते, लग्ज़री ज़िन्दगी जीते और यदा-कदा रैली वगैरह में जाकर लम्बे-चौड़े भाषण दे आते तो शायद आज़ादी में आपका योगदान कुछ ख़ास तरह से आँका जाता। लेकिन आपने अपनी जीवन शैली इतनी साधारण कर ली कि आपके असाधारण योगदान भी आज धूल फांक रहे हैं। आप बहुत अच्छे वकील रहे होंगे परन्तु आज आप अपना ही पक्ष लेकर कुछ कह नहीं सकते हैं, आप अपने ही देश में गालियाँ खाने और बार-बार अपमानित होने के लिए विवश हैं। आपका दुःख कदाचित् मैं समझ पा रहा हूँ। आपके जीवन की तमाम घटनाओं को लेकर आपको नित्य-नई गालियों से सम्मानित किया जाता है और ये सम्मान आपको उन लोगों द्वारा मिलता है जिन्होंने आपके विषय में एक पृष्ठ तक नहीं पढ़ा है। आपकी आत्मकथा “सत्य के साथ मेरे प्रयोग” पढ़ते हुए मैं कई जगह ठिठक गया। आप जानते थे कि ये पुस्तक एक दिन सामान्य जनमानस तक जरूर पहुँचेगी, फिर भी आपने स्वयं को बिलकुल खोलकर उसमें रख दिया है। जितनी बेबाक़ी और निडरता से आपने उस पुस्तक में अपनी ज़िन्दगी और गलतियों को लेकर बात की है उतनी बेबाकी से हम अपनी वो डायरी भी नहीं लिख पाते हैं जो सिर्फ हमें पढ़नी रहती है।

धरती पर अभी ऐसे भी लोग कम नहीं हैं जो आपके वर्चस्व के आगे नतमस्तक हैं। बहुत-से लोग ऐसे हैं जो अपने दिल में आपके लिए बहुत प्यार और बहुत सम्मान भी रखते हैं। कुछ ऐसे लोग भी हैं जो भले ही दिल से आपको सम्मान या प्यार न करते हों, परन्तु उनका साहस अभी इतना नहीं बढ़ा है कि खुलकर आपका विरोध कर सकें। वो आज भी पब्लिक डोमेन में आपकी तारीफ़ करते ही पाये जाते हैं। वो जानते हैं कि आज और आज के आने वाले हज़ार वर्षों बाद तक आपकी उपेक्षा करके भारत में अपनी छवि बनाये रखना सम्भव नहीं है। उनको पता है कि नाथूराम गोडसे की गोली ने भले ही आपका शरीर निर्जीव कर दिया था परन्तु दुनियाँ में अभी वो गोली नहीं बन सकी है जो आपके विचार को ख़त्म कर सकें। 

मैं अगर अपनी बात करूँ तो मैं आपके बारे में जितना भी अनर्गल पढ़ता हूँ मेरे दिल में आपके प्रति श्रद्धा और बढ़ जाती है। क्योंकि मैं जानता हूँ कि किसी बहुत अच्छे व्यक्ति के बारे में भी बहुत ज्यादा बुरी बातें हो सकती हैं। ये सच है कि मैं भी आपके कुछ निर्णयों से और कुछ आचरणों से सहमत नहीं हूँ, इसका मतलब ये भी हो सकता है कि वो आपकी ग़लती रही हो और ये भी हो सकता है कि उन बिन्दुओं को समझने में मैं ही ग़लती कर रहा हूँ। मेरा अपना मानना ये है कि “कोई भी बड़ी लड़ाई अकेले नहीं जीती जाती है, बल्कि उसमें कई लोगों का योगदान होता है और हर योगदान का अपना महत्वपूर्ण स्थान होता है।” अपने इसी सिद्धांत के आधार पर मैं अक्सर सोचता हूँ कि देश की आज़ादी और उसके तुरन्त बाद के हालात पर काबू करने में जिन असंख्य लोगों का योगदान था उसमें जो भाग आपका था वो हमेशा बना रहेगा। किसी और के बड़े-से-बड़े योगदान का मतलब ये नहीं कि आपका योगदान कम हो जाता है। हर व्यक्ति के योगदान का तरीका अलग-अलग था और उसी के सामूहिक प्रयास से हमें आज़ादी मिली। इस लड़ाई में जो भाग आपके हिस्से में आया था वो इतना विस्तृत था कि आने वाली सदियों में जब तक भारतीय इतिहास ज़िदा रहेगा आपके योगदान की सराहना होती रहेगी। हर सच्चा भारतवासी पूरी श्रद्धा और सम्मान से आपको और आपके योगदानों को प्रणाम करता रहेगा।

बस एक ही दिक्कत है, मैं ये नहीं जानता कि ये भारतीय इतिहास किस सदी तक जीवित रहेगा? क्योंकि आधुनिक राजनीतिक परिदृश्य में हर कोई इतिहास को अपने हितों के हिसाब से तोड़ने-मरोड़ने में लगा हुआ है। इसलिए मुझे डर है कहीं वास्तिक इतिहास अपनी सच्चाई को गले लगाये किसी चिता पर लेटा हुआ न मिले, कहीं वो अपना आस्तित्व खोकर धुआँ बनकर उड़ न जाये? जिन्हें आपको अच्छा कहने में फायदा है वो अच्छा कहते हैं, जिन्हें बुरा कहने में फायदा है वो बुरा कहते हैं। इन दोनों तरह के लोगों को इस बात से कोई मतलब नहीं है कि आप अच्छे थे या बुरे थे, इन्हें बस अपने हितों के हिसाब से बोलना है। कुछ ‘गाँधी बापू अमर रहे’ बोलते हैं कुछ ‘नाथूराम गोडसे अमर रहें’ बोलते हैं और इसी विचाराधारा के टकराव में आपका ‘सत्य-अहिंसा’ दम तोड़ देता है, फिर दोनों विचारधारा के लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं। खैर, जितना मैं आपको समझ पाया हूँ उस हिसाब से इतना विश्वास है कि आप अपने अपमान से तो दुःखी नहीं होते होंगे, क्योंकि आप मान-अपमान की सीमा से आगे बढ़ चुके हैं। लेकिन आपको ये जानकर तो दुःख जरूर होता होगा कि जिस ‘राम-राज्य’ की कल्पना आपने भारत के लिए की थी उसी राम के चरित्र पर अब लोग प्रश्न-चिन्ह लगाने लगे हैं। कुछ अति बुद्धिजीवी लोग अब ‘जय लंकेश, जय लंकेश’ करते रहते हैं। उन्हें राम नहीं बनना है उन्हें तो रावण बनने की लालसा जकड़े हुए है। अब सोचिये जिस देश के लोगों को अखिल ब्रम्हाण्ड नायक ‘परमपिता’ में कमी दिखाई दे जाती हो उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ के अन्दर कमियाँ ढूँढने में कौन-सी देर लगनी है।

एक वक़्त था कि श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर जी ने आपको “महात्मा” कह दिया और दुनियाँ आपको “महात्मा” मानने लगी। श्री सुभाष चन्द्र बोस जी ने आपको “राष्ट्रपिता” कहकर सम्बोधित कर दिया और दुनियाँ आपको भारत का “राष्ट्रपिता” कहने लगी। अब ये वाला युग बदल चुका है, अब हमारे पास ‘राईट टू इन्फॉर्मेशन’ (आरटीआई) [RTI – Right to Information] की सुविधा है। जब तक उस कागज़ के टुकड़े में लोगों को ‘महात्मा’ या ‘राष्ट्रपिता’ लिखा नहीं मिलेगा तब तक लोग आपके प्रति ऐसे सम्बोधनों से परहेज़ करते रहेंगे। बहुत-से लोग तो सुभाष बाबू की तरफ से खड़े होकर आपको दिन-रात गाली देते हैं, ये और बात है कि सुभाष बाबू आपका बहुत सम्मान करते थे। लेकिन उन्हें इससे क्या? न तो ऐसे लोग सुभाष बाबू को पढ़ते-समझते हैं और न आपको पढ़ने में समय जाया करना चाहते हैं। इस तरह की ओछी मानसिकता वाले कुछ लोग बहुत घटिया आचरण करते हैं। एक वक़्त था सबकी जन्मदात्री माँ उन्हें बचपन से एक पुरुष की तरफ ईशारा करके कह देती थी कि ये तुम्हारा बाप है और लोग उसी पुरुष को जीवन भर पिता मानकर आदर-सम्मान देते थे। परन्तु अब लोगों के पास आधुनिक तकनीकि है- डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक अम्ल (डीएनए) [DNA – Deoxyribo Nucleic Acid]। जब तक इस रिपोर्ट में लिखकर नहीं आयेगा वो अपने बाप को बाप मानने को तैयार नहीं है। हर बात का प्रमाण ढूँढने की अंधी ज़िद पाले हुए लोग बहुत ही विवेकहीन, संस्कारहीन और भावुकताहीन जीवन जीते जा रहे हैं और इन सबको वो “आधुनिकता” के आवरण में छिपाये रखते हैं। ये आवरण अन्दर से कैसा भी हो बाहर से तो सुन्दर ही दिखता है।

आपसे कहने को मेरे पास इतना कुछ है कि सब लिखने बैठूँगा तो एक पूरी किताब बन जायेगी। अन्त में मैं आपसे इतना ही बताना चाहूँगा कि मैं आपको बहुत प्यार करता हूँ, मेरे ह्रदय में आपका एक सम्मानजनक स्थान है। आपकी दी हुई शिक्षा के सहारे, आपके बताये  हुए रास्ते पर चलने का यथासम्भव प्रयास भी करता हूँ। मैं जिस राष्ट्र का नागरिक हूँ आप उसके ‘राष्ट्रपिता’ हैं, देश के सभी नागरिकों को बच्चों की तरह प्यार करने वाले ‘बापू’ हैं, आदर्श जीवन की परिभाषा जीने वाले आप ‘महात्मा’ हैं। मुझे आपके सम्मान में प्रयोग किये जाने वाले इन सम्बोधनों के लिए किसी प्रमाण नहीं आवश्यकता नहीं है। आप मेरे हैं, मेरे देश के हैं, मैं इस बात पर गर्व करता हूँ। आपको बहुत-बहुत प्रणाम, बहुत सम्मान और प्यार...

आई लव यू प्यारे बापू! 

सधन्यवाद

आपका अपना
- कुमार आशीष
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Tuesday, October 15, 2019

डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के नाम पत्र

चित्र : गूगल से साभा

परम आदरणीय डॉ कलाम साहब!
चरणस्पर्श
                                 सर्वप्रथम आपके जन्मदिवस पर आपको बहुत-बहुत बधाई कलाम साहब! मेरे लिए तो आपका कद और किरदार ईश्वर के समकक्ष ही है। हमारे धरा-धाम पर सब कुशल मंगल है, आशा है आप भी परमपिता के सानिध्य में सानन्द होंगे। आज आपके जन्मदिवस पर आपके सभी चाहने वाले आपको अपनी-अपनी तरह से याद कर रहे हैं और मैं ये कल्पना करने में व्यस्त हूँ कि आप अब अपना जन्मदिवस कैसे मानते होंगे? क्या आप देवराज इन्द्र की सभा में उपस्थित सभी देवताओं के बीच विशेष आसन पर विराजमान होकर अपने जीवन के अनुभवों से सबको आश्चर्यचकित कर रहे होंगे या फिर बैकुण्ठनाथ के साथ क्षीरसागर के किनारे उसी प्रकार ऊँगली पकड़े चल रहे होंगे जैसे बचपन में धरती पर अपने पिता जी की ऊँगली पकड़कर समुद्र किनारे टहला करते थे। आप स्वयं साहित्यकार भी हैं और हिन्दी के प्रतिभाशाली पुत्रों का जमावड़ा तो स्वर्ग में पहले से ही लगा है। बहुत हद तक सम्भव है आज महाप्राण निराला आपको “राम की शक्तिपूजा” सुना रहे हों, दिनकर जी अपनी “रश्मिरथी” से माहौल को नई दिशा दे रहे हों, आपके निकटतम मित्र पण्डित अटल बिहारी वाजपेयी जी अपनी “इक्यावन कविताओं” से आपको सराबोर कर रहे हों या फिर डॉ. हरिवंश राय बच्चन जी अपनी “मधुशाला” के सस्वर वाचन से माहौल को नई उमंग और तरंग देने में व्यस्त हों। विक्रम साराभाई, प्रो. सतीश धवन और ब्रम्हप्रकाश जैसे महान वैज्ञानिक इस महफ़िल में उपस्थित रहते होंगे। उन्हें भी पता चलता होगा कि जिस कलाम नाम के पौधे का रोपण उन्होंने धरती पर किया था वो बड़ा होकर पेड़ के रूप में पूरे देश-दुनियाँ को छाया बाँटने की सामर्थ्य रखने वाला बन गया। अहा! कवियों, लेखकों और वैज्ञानिकों का क्या अद्भुत संगम हो रहा होगा। अगर ऐसी महफ़िल जमी होगी तो मुझे पूरा विश्वास है कि पण्डित अटल बिहार वाजपेयी जी पोखरण में हुए परमाणु परीक्षण के दौरान आपने जो अदम्य साहस और कार्य-कुशलता का परिचय दिया था उसकी चर्चा करके अपनी प्रशंसा भरी प्रतिक्रियाओं और स्नेहिल मधुर मुस्कान से आपको गदगद जरूर कर रहे होंगे।
                               
उन्हें ऐसा करना भी चाहिए क्योंकि पोखरण में अमेरिकी सेटलाइट्स से बचते हुए जो आपने इतना बड़ा चमत्कार किया था न उसी का प्रतिफल कि आज कोई भी दुश्मन देश भारत की तरफ भृकुटी तक तिरछी करके देखने की हिम्मत नहीं रखते हैं। आपके अथक प्रयासों से जिन शक्तियों का जन्म हुआ उसी से सुसज्जित भारत की छवि देखकर कोई भी देश भारत से सिर्फ दोस्ती ही करना चाहता है। जिस तरह श्वेत सप्त अश्वों से जुते रथ पर भगवान् श्रीकृष्ण को सारथि और अर्जुन को रथी के रूप में बैठे देखकर भगवान् शिव के अतिरिक्त कोई भी भयभीत हो जाता था उसी तरह आज बड़े-से-बड़े शक्तिशाली देशों की हिम्मत नहीं है कि वो भारत के साथ दुश्मनी करने की सोचे भी... पोखरण में प्राण-पीने वाली गर्मी और बार-बार उठने वाले रेत के बवंडरों से जूझते हुए आपने जिस तरह से परमाणु-परीक्षण के काम को अंज़ाम दिया था वो तो कदाचित् देवलोक वालों को भी अचरज में डाल देता होगा, वैसे भी देवलोक वासी परिश्रम और संघर्ष करना क्या जाने ये तो केवल मनुष्यों का विशेषाधिकार है। आपकी काम की लगन और निष्ठा के कारण ही ‘भारत’ परमाणु शक्ति से संपन्न राष्ट्रों की सूची में स्थान प्राप्त कर सका।

इससे पहले भी इसरो की तमाम उपग्रह प्रक्षेपण परियोजना में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए देश के पहले सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SLV-III) को विकसित करने के लिए मिशन डायरेक्टर के रूप में महत्वपूर्ण योगदान दिया। एसएलवी-3 ने जुलाई 1980 में पृथ्वी की कक्षा के निकट में रोहिणी उपग्रह को सफलतापूर्वक इंजेक्ट किया, जिसके बाद भारत स्पेस क्लब का विशेष सदस्य बना। इसके अलावा पृथ्वी, अग्नि, नाग, ब्रम्होस और त्रिशूल आदि प्रोजेक्ट्स पर काम करते हुए  भारत को बैलेस्टिक मिसाइल और लॉन्चिंग टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भर बनाने के कारण आप “मिसाइल मैन” के नाम से अलंकृत हुए। वैज्ञानिक जीवन के अलग हटकर आपने देश की सेवा में महत्वपूर्ण योगदान, देश के 11वें राष्ट्रपति के रूप में दिया। ज़मीनी स्तर से जुड़कर काम करने की अद्भुत कला ने आपको “जनता का राष्ट्रपति” बना दिया। अपने वैज्ञानिक जीवन में तमाम अलग-अलग परियोजनाओं पर काम करते हुए आपने बहुत संघर्ष झेला। किस तरह आपके जीवन के महत्वपूर्ण 3 वर्षों में (जबकि आपका काम पर ध्यान देना बहुत महत्वपूर्ण था तभी) जीजा जी, पिता जी फिर माता जी का इंतकाल हुआ। इससे आप भावात्मक रूप से काफी व्यथित हुए। “एसएलवी-3” की असफ़लता ने आपको कितना कष्ट दिया होगा? एक प्रतिभाशाली वैज्ञानिक जो यदि चाहता तो देश के बाहर जाकर काम करता और धनाड्य वैज्ञानिकों में शामिल हो सकता था उसने सिर्फ देश की सेवा करने के लिए उस लग्ज़री ज़िन्दगी और अपार धन-दौलत को ठोकर मार दी थी। फिर यही वैज्ञानिक “अग्नि” की असफलता पर रोज़ कैसे-कैसे व्यंग-बाणों से घायल होता था, कितने कार्टून बना दिए गये उसे चिढ़ाने के लिए... आपके कार्यों के दौरान प्रकृति ने भी आपकी खूब परीक्षा ली, कभी उमस, कभी तेज़ आँधी ने सदा ही आपको परेशान किया। परन्तु इन सब से लड़कर, जीतकर आप आगे बढ़े और अपने सपनों को साकार करते हुए देश को महाशक्ति बनाने में सहायता की। श्रम और प्रकृति का ये संघर्ष कितना अद्भुत रहा होगा।

आपके अद्भुत कारनामों के परिणाम स्वरुप ही आपको लगभग चालीस विश्वविद्यालयों द्वारा मानद डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्राप्त हुईं, भारत सरकार द्वारा 1981 में पद्म भूषण और 1990 में पद्म विभूषण से आपको सम्मानित किया गया। वैसे तो ये सम्मान व्यक्ति को सम्मानित करते हैं परन्तु कभी-कभी इनके भाग्य में कुछ ऐसे लोग भी आते हैं जो इन सम्मानों को सम्मानित करते हैं। इसी क्रम में 1997 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान “भारत-रत्न” आपको पाकर सम्मानित और गौरवान्वित हुआ।

आपकी पुस्तक “अग्नि की उड़ान” में लेखक श्री अरुण तिवारी जी ने पाठको को संबोधित करते हुए लिखा है, “इस पुस्तक के माध्यम से आप उनके (डॉ कलाम सर) सानिध्य का आनन्द प्राप्त करेंगे और वे आपके आत्मीय मित्र बन जायेंगे।“ इस बात से मैं अक्षरशः सहमत हूँ। मुझे सचमुच ऐसा लगा जैसे आप मेरे बगल में बैठकर अपने जीवन-वृत्तांत सुना रहे हों। जैसे-जैसे मैं आपके विषय में पढ़ता जाता हूँ मेरी ये धारणा और दृढ़ हो जाती है कि आप कभी इस धरती पर थे ही नहीं, आपमें जितनी क्षमता, कुशलता, साहस और सादगी थी वो मनुष्यों में किसी में भी नहीं देखने को मिलती है। हालाँकि इस धारणा में सच्चाई तो नहीं है क्योंकि मुझे खुद ही आपके जीवन काल में धरती पर रहने का सौभाग्य प्राप्त रहा है। अब ये सौभाग्य देवलोक वाले उठा रहे हैं। वहाँ तो कोई काम भी नहीं रहता होगा, परमपिता की इच्छा मात्र से सब कार्य संचालित होते हैं। भूख, प्यास जैसे रोग तो मानवीय हैं तो निश्चित ही वहाँ के लोग इन सब से मुक्त होंगे। आप पूरा समय अपने अनुभवों और प्रेरक विचारों से देवलोक वालों को आनंदित करते होंगे। अभी लिखने से मन नहीं भरा है परन्तु अब आगे फिर कभी... आज आपका दिवस है आपको पुनः बहुत-बहुत बधाई, जब तक धरती पर थे तब तक काम और देश सेवा के अतिरिक्त आपने स्वयं का कोई अस्तित्व रखा ही नहीं था। अब आपके सपनों का भारत बन रहा है, हमारे प्रतिभाशाली वैज्ञानिक देश को टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अग्रसर कर रहे हैं। अब आप आनन्द से अपना जन्मदिवस मनाइये और भगवान् से बात करके पुनः धरती पर आने का कुछ इंतज़ाम करिए। ये भी है कि शायद आप अपनी तरह के एक ही थे, आप जैसे लोग हर शताब्दी के भाग्य में नहीं होते वो तो युग-युगान्तर में एक बार ही धरती पर आते हैं। आपकी पुस्तक के अनुसार, आपने प्रेम की पीड़ा को रॉकेट बनाने के मुक़ाबले में कहीं अधिक कठिन समझा इसलिए स्वयं का जीवन एकाकी रखा परन्तु मैं तो जितना आपको पढ़ता जाता हूँ उतना ही आपसे मेरा इश्क़ गाढ़ा होता जा रहा है। आपकी पुस्तक में पढ़ी एक कविता पढ़कर अक्सर खुद को उर्जान्वित करता रहता हूँ:-

‘क्यों है चिंतित
सहमा, डरा, उदास, कापुरुष।
अभी कहाँ आया है अवसर,
अभी कहाँ खोया है कुछ भी।’

अन्त में आपके लिए आपकी ही एक कविता की कुछ पंक्तियाँ लिख रहा हूँ...

‘सुन्दर हैं वे हाथ
सृजन करते जो सुख से
धीरज से
सच से
साहस से
हर क्षण, हर पल
हर दिन, हर युग।’

आई मिस यू कलाम साहब! आई लव यू....
आपका अपना
- कुमार आशीष
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Saturday, October 12, 2019

भारतीय समाज पर सोशल-मीडिया के प्रभाव

चित्र : गूगल से साभार

सोशल मीडिया संक्षिप्त परिचय:-
                                                सोशल मीडिया एक Non-Traditional (गैर-पारंपरिक) मीडिया है, जो कि इन्टरनेट के माध्यम से एक ऐसा वर्चुअल संसार बनाता जिससे दुनियाँ के एक कोने से दूसरे कोने की दूरी को हम पल भर में तय कर लेते हैं। आजकल सोशल मीडिया के कई प्लेटफॉर्म खूब प्रचलन में हैं जैसे- फेसबुक, ट्विटर, इन्स्टाग्राम, यूट्यूब, लिंक्डइन आदि। सोशल मीडिया के आगमन का भारत ही नहीं दुनियाँ पर मिला-जुला प्रभाव पड़ा है, यहाँ हम भारत के अन्दर सोशल मीडिया से होने वाले लाभ और हानियों पर विचार करेंगे। 

सोशल मीडिया के लाभ:-
                                  सोशल मीडिया ने हर व्यक्ति को आज एक ऐसा मंच दिया है जिससे वो अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करता है और आगे बढ़ जाता है। हाल ही में रानू मण्डल के फर्श से अर्थ तक पहुँचने की कहानी इसका ताजा एवं जीवन्त उदाहरण है। सोशल मीडिया का उपयोग करके हम तमाम चीजें घर बैठे सीख सकते हैं, बहुत सारी जानकारियों का भण्डार हमें प्राप्त होता है। दिल्ली में हुए निर्भया काण्ड के बाद सोशल मीडिया की शक्ति से ही नवयुवकों ने एक आन्दोलन चलाया और फिर बाद में न्याय की लड़ाई के लिए सड़क पर उतरे जिसके परिणाम स्वरुप सरकार को त्वरित निर्णय लेने पड़े। इसी मीडिया की शक्ति से 2011 में अन्ना जी का भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन इतने बड़े स्तर पर सम्भव हो सका। सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ भी सोशल मीडिया पर लोगों को जागरूक किया जा रहा है और सौभाग्यवश उसके सुखद परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं।

इन सबके इतर व्यवसाय में सोशल-मीडिया की भूमिका बहुत ही सराहनीय रही है। सोशल मीडिया के प्रभावी उपयोग के द्वारा कोई भी बहुत-ही कम लागत में अपना व्यवसाय पूरी दुनीयाँ में प्रचारित करके ग्राहकों को संगठित कर सकता है। सोशल मीडिया मार्केटिंग को लेकर हुए  एक सर्वेक्षण में 89% लोगों ने माना है कि उनका व्यवसाय सोशल मीडिया से बढ़ा है। पिछले ही वर्ष ‘भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंधन संस्थान, ग्वालियर’ के अध्ययन में ये बात सामने आई है कि बहुत बड़े प्रतिशत में विदेशी पर्यटक भारत आने का विचार तब बनाते हैं जब सोशल मीडिया के माध्यम से उनकी नज़र में भारत की अच्छी तस्वीर बनती है। 

सोशल मीडिया की हानियाँ:-
                                          एक बहुत प्रचिलित कहावत है कि ‘हर सिक्के के दो पहलू होते हैं।’ ये कहावत सोशल मीडिया के लिए भी बिलकुल सार्थक है। जहाँ एक ओर सोशल मीडिया के तमाम लाभ हैं वहीं इसके नुकसान भी कम नहीं हैं। आजकल के समय में सोशल मीडिया के माध्यम से पहचान की चोरी, धोखाधड़ी, हैकिंग, वायरस अटैक जैसी की घटनाओं को भी अंजाम दिया जा रहा है। सोशल मीडिया पर हमारे द्वारा अपडेट की जाने वाली हमारी व्यक्तिगत जानकरियाँ जैसे- जन्मतिथि, मोबाइल नम्बर आदि के लीक होने से हमारी सुरक्षा को ख़तरा है। आजकल तस्वीरें साझा करने का भी खूब प्रचलन है और कई बार उन्हीं तस्वीरों के दुरूपयोग से भी हमें ख़तरा रहता है। विद्यार्थियों के लिए सोशल-मीडिया पर परोसी जाने वाली जानकारियाँ कई बार बहुत भ्रामक होती हैं। इतिहास के कई काल-खण्डों को अब के लोग अपने-अपने हित के हिसाब से तोड़-मरोड़ कर पेश करते हैं, जिससे सही जानकारियाँ कहीं विलुप्त हो रही हैं। अनेकों बार हमने देखा हैं कि भड़काऊ पोस्ट, तस्वीरें जो किसी व्यक्ति, धर्म, मजहब, या सम्प्रदाय की भावनाओं को आहत करने वाली होतीं हैं, उसकी वजह से दंगे हो जाते हैं या किसी पर व्यक्तिगत हमले होते हैं। एक अनुमान के मुताबिक 2017-18 में फेसबुक, ट्विटर समेत कई सोशल-साईट्स  पर 2,245 आपत्तिजनक सामग्रियों के मिलने की शिकायत की गई थी जिनमें से जून, 2018 तक 1,662 सामग्रियाँ हटा दी गईं। फेसबुक ने सबसे ज़्यादा 956 आपत्तिजनक सामग्रियों को हटाया। इनमें ज़्यादातर वे कंटेंट्स थे जो धार्मिक भावनाएँ और राष्ट्रीय प्रतीकों के अपमान का निषेध करने वाले कानूनों का उल्लंघन करते थे। इतनी कम अवधि में बड़ी संख्या में आपत्तिजनक कंटेंट्स का पाया जाना यह बताता है कि सोशल मीडिया का कितना बड़ा दुरुपयोग हो रहा है।

उपसंहार/निष्कर्ष:-
                            उपर्युक्त बातों से ये बात स्पष्ट होती है कि सोशल मीडिया का वर्तमान भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने में, आर्थिक प्रगति में अहम् योगदान है। साथ ही इसके दुरूपयोग से विश्व पटल पर भारत की छवि भी धूमिल हो रही है और भारत के भीतर कई प्रकार के जान-माल का नुकसान भी हो रहा है। 
दोनों पहलुओं पर विचार करने के बाद हमें ये पता चलता है कि अगर हम सोशल मीडिया के दुरूपयोग को ख़त्म कर सकें या  कम कर सकें तो ये हमारे लिए किसी वरदान से कम नहीं है। इसका दुरुयोग रोकने के लिए जागरूकता सबसे अहम् कदम हो सकती है, साथ ही कानूनी तौर पर भी इसके दुरूपयोगकर्ताओं पर शिकंजा कसने की जरूरत है। बाहरी देशों की बात करें तो मलेशिया में इसके लिये दोषी व्यक्ति को 6 साल की सज़ा, थाईलैंड में 7 साल की सज़ा का प्रावधान है। इसके अलावा सिंगापुर, चीन, फिलीपिंस आदि देशों में भी गलत खबरों पर रोक लगाने के लिये सख्त कानून बनाए गए हैं। जर्मनी में यह भी प्रावधान है कि कंपनियों को हर 6 महीने बाद सार्वजनिक रूप से बताना होगा कि उन्हें कितनी शिकायतें मिलीं और उन पर किस प्रकार संज्ञान लिया गया। इसके अलावा, उन्हें उस यूज़र की पहचान भी बतानी होगी, जिस पर लोगों की मानहानि या गोपनीयता भंग करने का आरोप लगाया गया है। जानकारों का मानना है कि यह कानून लोकतांत्रिक देशों में अब तक का सबसे कठोर कानून है। हालाँकि भारत भी इस तरफ अपना कदम बढ़ा चुका है लेकिन देखने वाली बात होगी कि यह कितना कारगर साबित हो सकता है। हाल ही में केंद्र सरकार ने सूचना तकनीक कानून की धारा 79 में संशोधन का मसौदा तैयार किया है। इसके तहत फेसबुक और गूगल जैसी कंपनियाँ अब अपनी ज़िम्मेदारियों से नहीं भाग सकेंगी। इसके अलावा, गृह मंत्रालय ने राज्य पुलिस बलों और खुफिया ब्यूरो को इस पर एक्शन लेने के लिये सोशल यूनिट्स बनाने के निर्देश दिये हैं। इसका सारांश इन चार पंक्तियों में है:

“सोशल मीडिया हथियार है, वरदान है,
जो करे सदुपयोग शख्स वो महान है।
सफलताओं का यहाँ से है निकलता रास्ता,
जिसने किया दुरूपयोग वो मूर्ख के सामान है।।"

आपका अपना

- कुमार आशीष
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