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Sunday, July 9, 2023

मैं प्रेमी भी हूँ और लेखक भी

मैं प्रेमी भी हूँ और लेखक भी, इसलिए मैं करना चाहता हूँ एक सफल प्रेम और फिर उस पर लिखना चाहता हूँ, एक किताब। एक ऐसी किताब जिसके प्रत्येक पृष्ठ पर प्रेम हो, कुछ में उसे पाने का संघर्ष और बाकी में उसी प्रेम की सफलता के किस्से...

असफल प्रेम कहानियाँ तो बहुत बार लिखी गयीं, सुनी गयी, सराही भी गयी बस महसूस नहीं की गयी। उन दो बिछड़ चुके या कहें सामाजिक ढोंग-ढकोसलों के रूप में राहु-केतु द्वारा ग्रसित सूरज-चंदा जैसे शाश्वत प्रेम को ग्रहण लगा कर अलग कर दिए गये, उन दो सुकोमल हृदयों से निकले रक्त की हर बूँद और नयनों से बहे आँसू के हर एक कण पर हमने बार-बार कविताएँ और कहानियाँ लिखीं और जिन सामाजिक ठेकेदारों ने निर्दयता से उन्हें दूर कर दिया था उन्होंने भी बड़े चाव से सुना और 'वाह-वाह' किया। किसी का बिछड़ना भी समाज ने आनन्द का कारण बना लिया और उससे आपना मनोरंजन किया। उस पर भी मन नहीं भरा तो समाज ने उसे श्रृंगार रस के संयोग श्रृंगार और वियोग श्रृंगार के रूप में व्याख्यायित किया, जबकि मैं कहूँगा कि ये सब बहुत विभत्स है, ऐसे लेखों, कविताओं और कहानियों में विभत्स रस प्रधान है।

खैर! समाज मेरे हिसाब से व्याख्याएँ नहीं करेगा। इसलिए मेरी किताब में हमारी सफल प्रेम की गाथाएँ होंगी। नितान्त मौलिक, अनुभव आधारित, सहजता, सम्मान, स्नेह, विश्वास से परिपूर्ण, आधुनिक भी और पारंपरिक भी... 

यहाँ मैं किसी को जवाब देने, नीचा दिखाने अथवा गलत ठहराने की कोशिश नहीं कर रहा हूँ। क्योंकि प्रेम का उद्देश्य इतना ओछा हो भी नहीं सकता और मैं इतनी छोटी सोच रखकर प्रेम का अपमान करना भी नहीं चाहता। मैं ऐसी किताब सिर्फ इसलिए लिखना चाहता हूँ कि आने वाली पीढ़ी और उससे निर्मित होने वाले समाज को ये बता सकूँ कि वो "कुछ वर्षों बाद प्रेम कम या खत्म क्यों हो जाता है?" "विवाह के बाद पहले जैसा प्रेम क्यों नहीं रहता?" जैसे प्रश्नों का उत्तर लिखकर इंटरनेट का भार बढ़ाने वाले कीबोर्ड वीरों से बचकर रहें। जो कम-ज्यादा की मापनी में उतरे, विश्वास-अविश्वास के धरातल पर परखा जाए वो प्रेम नहीं महज आकर्षण होता है। ये आकर्षण कभी शरीर की खूबसूरती से उत्पन्न हुआ, कभी सैलरी पैकेज से, कभी बड़े पदनाम से, कभी बड़ी सामाजिक प्रतिष्ठा से, कभी चाल-ढाल से, कभी हाव-भाव से, कभी काम-काज से और कभी-कभी आवश्यकताओं से... इन केंद्रबिंदुओं की धुरी से बँधा हुआ आकर्षण इनके कम ज्यादा होने से प्रभावित होता है। जैसे-जैसे खूबसूरती उम्र की चपेट में ढलेगी, पैसा-प्रॉपर्टी परिस्थितियों की मार में कम या अधिक होगा तो आकर्षण भी उसी अनुपात में घटता-बढ़ेगा रहेगा। परन्तु अखिल ब्रम्हाण्ड नायक चराचर परब्रम्ह भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी स्वरूप प्रेम इन बिंदुओं से बहुत ऊपर, बहुत अलग केवल दो आत्माओं के एकीकृत हो जाने का नाम है। अब जो आकर्षण उत्पन्न होगा उसका कारण प्रेम है और प्रेम हर परिस्थिति में बीते हुये कल से आज कुछ और गाढ़ा होता है तो आकर्षण भी बढ़ता जाएगा। इस आकर्षण का केंद्रबिंदु प्रेम है और प्रेम शाश्वत है तो उससे जुड़ी हर चीज सदा शाश्वत ही रहेंगी। मसलन वो चेहरा, उसकी खूबसूरती, उसके हाव-भाव और अन्य तमाम भौतिक चीजें भी... 

मैं इन सब बातों को किताब में लिख देना चाहता हूँ। जिससे आने वाले लोग ये समझ सकें कि कैसे एक लंबे कालखण्ड तक समाज ने प्रेम करने से ज्यादा प्रेम लिखने को प्राथमिकता दी। प्रेम लिखने वाले तो सराहे जाते रहे, परंतु प्रेम करने वाले हमेशा हाशिये पर रह गए। उन्हें न ही इस क्रूर समाज ने स्वीकृति दी और न वो सम्मान ही जिसके वो हकदार थे और जो सम्मान दिया भी, वो उनके मरने के बाद किताबों में अपने मनोरंजन के लिए दिया। यही समाज का वीभत्स स्वरूप है। 

मैं इस व्यथा को परिवर्तित करना चाहता हूँ। इसलिये मैं भगवान श्रीकृष्ण और माँ राधा की उपासना मानकर प्रेम करना चाहता हूँ और अपने सफल प्रेम के किस्से समाज को सौंपकर इस संसार से जाना चाहता हूँ। (लेख समाप्त) 

मेरी किताब की प्रमुख नायिका पात्र हेतु मेरा हृदय आपको वरण कर रहा है और मैं आपसे सहयोग और सार्थक मार्गदर्शन की अभिलाषा रखता हूँ। यदि ये ख्वाब मेरी हैसियत से बहुत आगे का नहीं है तो इसे अपनी स्वीकृति से सम्मानित कीजिये। मेरे जीवन में मेरी सहधर्मिणी और मेरे कविताओं, कहानियों और लेखों की रानी बनने के लिए आपका स्वागत है... 


मेरा जीवन है शापित दुपहरी कोई, मेरी शामें-ए-सुहानी बनोगी क्या?
मैंने लेखों में तुमको ही लिखा सदा, अब उनकी निशानी बनोगी क्या?
मैं ये जीवन लुटा दूँ तुम्हारे लिए, और धर दूँ मेरा यश तेरी देहरी,
बस मुझे तुम बता दो जरा सोचकर, मेरे गीतों की रानी बनोगी क्या?
- कुमार आशीष

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