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Saturday, November 2, 2019

सच्चे प्यार का सच्चा वादा

मुझे तुमसे अपने ह्रदय की बात कहना है,
मुझे तो ज़िन्दगी भर बस तुम्हारे साथ रहना है।
मेरा वादा नहीं है चाँद-तारे तोड़ लाने का,
मेरा वादा नहीं है उस फ़लक पर घर बनाने का।
मेरा वादा नहीं है कि तेरी हर बात मानूँगा,
न वादा है कि बिन कहे हर बात जानूँगा।
परेशानी में अक्सर ही तुम्हें रुशवा करूँगा मैं,
तेरी छोटी सी गलती पर बहुत गुस्सा करूँगा मैं।
मेरा वादा नहीं है कि तुम्हें हर पल हँसाऊँगा,
मुझे तुम छोड़ मत जाना भले कितना रुलाऊँगा।
मैं जानता हूँ मैं तुम्हें ज्यादा सताता हूँ,
तुम्हें दिल की सभी बातें भी अक्सर कम बताता हूँ।
मेरा वादा है मैं अपनी सब कसमें निभाऊँगा,
तुझे पाने की खातिर मैं सभी रस्में निभाऊँगा।

तुम्हें सब देखकर बोलेंगे कि छप्पर में रहती हो,
तुम्हें ऐसा लगेगा जैसे कि महलों में बैठी हो।
तुम्हें गीतों में रचकर मंच से फिर गुनगुनाऊँगा,
तुम्हारे प्यार की बातें ज़माने को सुनाऊँगा।
तेरी साँसों के सँग दिल तक तेरे हर बार आऊँगा,
तुझसे मिलने को तेरे घर बनके मैं अखबार आऊँगा।

मेरी चाहत नहीं है चाँद से दीदार हो जाये,
मैं चूमूँ आसमां को कोई चमत्कार हो जाये।
मेरी चाहत है इतनी सी कुछ ऐसा यार हो जाये,
मेरी तरह तुमको भी मुझसे प्यार हो जाये।

देने को मैं तुम्हें बस चुटकी भर सिन्दूर दे दूँगा,
और उसके सँग जीवन भर का अपना नूर दे दूँगा।
तुम्हें गीतों में लिख-लिख कर बहुत अजान कर दूँगा,
और अपने दिल की दुनियाँ को तुम्हारे नाम कर दूँगा।
तुम्हें रोमाँचित करती सुबह और शाम दे दूँगा,
तुम्हें अपनी सफलतायें सभी अविराम दे दूँगा।

तुम्हें अपने जीवन का सबसे कीमती उपहार दे दूँगा,
तुम्हारे हिस्से में मैं अपनी माँ का प्यार दे दूँगा।
मेरा वादा है कि मैं सब वादे निभाऊँगा,
तुम्हें गीतों का ग़ज़लों का बड़ा संसार दे दूँगा।

- कुमार आशीष
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Saturday, September 28, 2019

पूजनीय-स्त्री

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एक स्त्री थी मय की पुत्री, एक सूपर्णखा भी नारी थी।
एक संस्कार में पली बढ़ी, एक अहंकार की मारी थी।।
एक सीता का आतिथ्य करे, वस्त्र भेंट सम्मान करे।
एक सीता पर बन्धन डाले, और महाघोर अपमान करे।।

दोनों में खून का रिश्ता है लेकिन कर्मों से हैं अलग-अलग।
एक हँसती सीता का विलाप सुन, एक रोती थी विलख-विलख।।
एक यत्न करे प्रतिशोध हेतु, एक सोंचे मैं देश बचा लूँ।
एक सोंचे पति का गौरव, एक सोंचे मैं काम बना लूँ।।

एक कहे कि पत्नी ले लो, एक कहे कि भक्ति ले लो।
एक कहती है सर्वनाश और एक कहे कि यूँ न खेलो।।
एक है जो पति को समझाए, एक है भाई को भड़काये।
एक चाहे है सबका मंगल, एक मन को विनाश ही भाये।।

पर हे मय दानव की पुत्री! तू शान बन गयी दो कुल की।
तेरे कर्मों पर आभारी है देखो रानी रघुकुल की।।
"आशीष" तुम्हें है नमन कर रहा तुमने ऐसा कर्म किया।
रानी, पत्नी और माँ बनकर निबाह अपना सब धर्म दिया।।

लेकिन तेरे इस कुकृत्य से राक्षस कुल का उद्धार हुआ।
लंका में राम राज्य आया समग्र राम जयकार हुआ।।
इसलिये नमन है तुझको भी तेरे नयनों में राम दिखें।
तेरा भी क्या दोष कहूँ जब सृष्टि सभी भगवान् लिखें।।

पूरी कविता का सार अंश बस इतनी बातें याद रखो।
कुछ भी हो बस साहस से श्रीराम प्रभु को साथ रखो।।
मैंने ग्रन्थों से सीखा है लज्जा स्त्री का गहना है।
वो ही स्त्री है पूजनीय कि जिसने इसको पहना है।।

आपका अपना
- कुमार आशीष
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Saturday, September 21, 2019

चल पड़े हैं कदम


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चल पड़े हैं कदम उस दिशा की तरफ,
ज़िन्दगी भी वहीं, मौत भी है वहीं...

दुनियाँ मुझको भी सुनने को बेताब है,
जब से गीतों में तुम आ के रहने लगे।
जब भी कोई लगा पूछने हाल-ए-दिल,
हम तुम्हारी ही बातों को कहने लगे।
हमने सोचा छुपाने से क्या फायदा,
ये भी बातें थीं होनी कभी-न-कभी।
चल पड़े हैं कदम...

जब प्रणय के समर में उतर ही गये,
बात क्या अब करूँ जीत की, हार की।
जो कहो तुम वही अब करूँगा प्रिय!
हारना भी तो है जीत ही प्यार की।
कोई दुविधा न रख अपने मन ज़िन्दगी!
हारना है जहाँ, जीत भी है वहीं।
चल पड़े हैं कदम...

एक सपना ही है मेरी आँखों का ये,
तुम मेरी ज़िन्दगी में भी आओ कभी।
मैंने गीतों में अक्सर तुम्हें ही लिखा,
गीत मेरे ही मुझको सुनाओ कभी।
प्रेम के इस नगर, बात ये है ग़ज़ब,
मौन भी हैं यहीं, गान भी है यहीं...
चल पड़े हैं कदम...

आपका अपना
- कुमार आशीष
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Saturday, September 14, 2019

हिन्दी-दिवस


चित्र : गूगल से साभार 

मुझको आशीष दो इतना उत्साह दो
माँ तुम्ही को सदा मैं यूँ गाता रहूँ
हाथ रख दो जरा साथ दो तुम मेरा
मंच से मैं तुम्हें गुनगुनाता रहूँ

आज दिन है तेराऔर तेरा दिवस
क्या समर्पित करूँ मेरा मन है विवश
इसलिए व्यर्थ शब्दों की कविता लिखूं
तुझमे ही मैं लिखूं और तुमको अर्पित करूँ
बन सकूँ न अगर धूल चरणों की तो
तेरी रज को ही माथे लगाता रहूँ
हाथ रख दो जरा साथ दो तुम मेरा
मंच से मैं तुम्हें गुनगुनाता रहूँ
मुझको आशीष दो...

जब किया आक्रमण उसने दहलीज पर
राजरानी बनी जो थी दासी तेरी
माँ करों अब क्षमा जो भी मैंने किया
जिंदगी की बड़ी भूल थी वो मेरी
अब यही कामना और इतनी विनय
नित नई सोंच दिल में जगाता रहूँ
हाथ रख दो जरा साथ दो तुम मेरा
मंच से मैं तुम्हें गुनगुनाता रहूँ
मुझको आशीष दो...

थी शुभ घड़ी एक आशा जगी
सन् उनचास में राज्यभाषा बनीं
देश तेरे सहारे चला जा रहा
माँ तुम्हारे लिय ही तो मैं गा रहा
तेरे शब्दों का सागर बहुत है अतुल
शब्द सागर में गागर डुबाता रहूँ
हाथ रख दो जरा साथ दो तुम मेरा
मंच से मैं तुम्हें गुनगुनाता रहूँ
मुझको आशीष दो...

जब दिवाकर उगे तब अँधेरा मिटे
और इसी मध्य में रोज ऊषा सजे
जिंदगी के सभी रास्ते बंद हों
फिर भी गाऊं अगर तो मेरे छंद हों
चाहे सोने की माला सजा न सकूँ
पर सदा शब्द कंचन सजाता रहूँ
हाथ रख दो जरा साथ दो तुम मेरा
मंच से मैं तुम्हें गुनगुनाता रहूँ
मुझको आशीष दो...

कोई कविता लिखूं तो वो हाला बनें
मैं जहाँ पर लिखूं मधु की शाला बने
जो कलम है मेरी ये पिलाती रहे
शब्द अंगूर को गुनगुनाती रहे
तेरे महिमा की हाला को प्याले में भर
खुद भी पीता रहूँ और पिलाता रहूँ
हाथ रख दो जरा साथ दो तुम मेरा
मंच से मैं तुम्हें गुनगुनाता रहूँ
मुझको आशीष दो...

मैं तो अल्पज्ञ हूँ कैसे वर्णन करूँ
किस अलंकार में कौन सा रस भरूं
तेरा आँचल मिले उसकी छाया तले
मेरी कविता खिले मेरी भाषा पले
अब यही है विनय आखिरी पंक्ति में
शब्द दीपों को यूँ ही जलाता रहूँ
हाथ रख दो जरा साथ दो तुम मेरा
मंच से मैं तुम्हें गुनगुनाता रहूँ
मुझको आशीष दो...

आपका अपना

- कुमार आशीष
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Sunday, December 16, 2018

क्या वो भी ख़्वाबों का आदी है



क्या वो भी ख़्वाबों का आदी है,
जिससे हुई तुम्हारी शादी है।
क्या उसकी बातें भी तुमको कुछ नया ख्वाब दिखलाती हैं
और फिर उन ख्वाबों को पूरा करना भी सिखलाती हैं
क्या वो भी अक्सर बातों का ढेर लगाता है,
और बातें करते-करते कोई अच्छा शेर सुनाता है।

क्या वो भी ऑफिस की बातों से रातें बोरिंग करता है,
क्या वो भी सिर्फ तुम्हारे पेन से अपनी साइन करता है।
क्या कभी तुम्हारे गालों पर वो ऑटोग्राफ बनाता है,
या तुम्हें मनाने की खातिर कोई फोटोग्राफ सजाता बनाता है।

जब वो ऑफिस के कामों में बहुत बिजी हो जाता है,
“कॉल यू लेटर” वाला मैसेज पास तुम्हारे आता है।
क्या उसका मोबाईल भी सौ-सौ मिसकालों से भरती हो,
जब शाम को वो घर आता है क्या उससे भी झगड़ा करती हो।

क्या उसके किये बहानों पर भी तुम्हें भरोसा होता है,
क्या जैसे मेरे संग होता था सबकुछ वैसा होता है।
दिन भर क्या-क्या किया आज क्या सबकुछ उसे बताती हो,
या “थके हुए हो सो जाओ” ये कहकर प्यार जताती हो।

क्या सर्दी में बाइक से घर आने पर उसका भी हाथ रगड़ती हो,
और फिर काली चाय पिलाने की खातिर कभी अकड़ती हो।
क्या उससे भी अपने बचपन वाली सब बातों को बता दिया,
जितना अधिकार जताती थी क्या सब उस पर भी जता दिया।

निभा रही हो तुम जिसके संग जीवन की सब रस्मों को,
क्या वो भी निभा रहा है अपने सब वादों, सब कसमों को।
क्या वो भी तुमसे कहता है, “विस्तार तुम्हारा अम्बर तक,
दुनियाँ क्या रोकेगी तुमको, इसकी औकात महज आडम्बर तक”

जिन आँखों के खालीपन में कुछ ख़्वाब सजाये थे मैंने,
जिन अधरों की मुस्कानों पर कुछ गीत बनाये थे मैंने।
जिन अभिलाषाओं के पूजन में मेरे दिन-रात कटा करते,
जिनकी प्यारी बातों से मन के सब दोष छटा करते।
क्या उन आँखों, उन अधरों पर मेरी छुअन अभी भी है,
क्या मुझको न पाने की खातिर कोई चुभन अभी भी है।

मैं नहीं तुम्हारा हो पाया, पर गीत मेरे सब तेरे हैं,
मेरा प्यार, दुआ मेरी, एहसास, शब्द जो मेरे हैं,
सब तुम्हें समर्पित करता हूँ, तुम रखना अब इन्हें सम्भाल,
जीवन हँसकर जी लेना, आगे बढ़ना, करना कमाल।

मेरा क्या है, मैं तो शायर हूँ, ख़्वाबों के संग जी लूँगा,
जीवन मंथन के विष को मैं महादेव बन पी लूँगा।
मैं बस्ती-बस्ती, द्वारे-द्वारे अपना गीत सुनाऊँगा,
कभी किया था जो मोहन ने वो सबको प्रेम सिखाऊँगा।

- कुमार आशीष
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Thursday, November 29, 2018

सुन सफलता!

साभार इन्टरनेट

स्नेह के बंधन सभी,
जो थे तुम्हारे संग कभी।
उन बन्धनों को खोलकर,
दृढ़ता को अपनी तोलकर।
वो पथ जो दुनियाँ को न भाये,
आकाश के आगे जो जाये।
उस राह पर चलने की खातिर में मैं स्वयं को,
अब उसी पर मोड़ता हूँ, 
सुन सफलता!
आज से मैं साथ तेरा छोड़ता हूँ।

मत करो जयघोष के स्वर,
मैं अब इनसे डर रहा हूँ। 
शोहरतें ज्यों-ज्यों बढ़ें हैं,
मैं स्वयं में मर रहा हूँ। 
ज़िन्दगी से मोह मेरा टूटता है,
और अपना साथ देखो छूटता है।
मैं हूँ बहुत विक्षिप्त इस कारण स्वयं को,
अब किसी वनवास से मैं जोड़ता हूँ, 
सुन सफलता!
आज से मैं साथ तेरा छोड़ता हूँ।

कर निछावर अनगिनत रातों की नींदें,
मैं स्वयं के आँसुओं में भीगता था।
हर तरफ था एक सन्नाटा ग़ज़ब का,
और उसमें मैं अकेला चीखता था।
मुस्कान, आँसू, नेह, सपने, नाम अपना,
सब छोड़कर कितना किया नुकसान अपना।
सब खो दिया था एक जिस वादे की खातिर,
मैं स्वयं अपना वो वादा तोड़ता हूँ,
सुन सफ़लता!
आज से मैं साथ तेरा छोड़ता हूँ।

- कुमार आशीष
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Saturday, June 9, 2018

हे मेरे राम! आकर के मुझसे मेरा

इंटरनेट से साभार

हे मेरे राम! आकर के मुझसे मेरा,
एक परिचय जरा-सा करा दीजिये।
बेर जूठे रखे, मैं हूँ शबरी बना,
आ के मेरी प्रतीक्षा मिटा दीजिये।
हे मेरे राम!...

एक युग से बना जड़ अहिल्या-सा मैं,
पूरे संसार की ठोकरों में पड़ा।
कोई ऐसा नहीं जो मेरे संग हो,
कोई भी तो नहीं साथ मेरे खड़ा।
आखिरी आस मेरी तुम्हीं हो प्रभु!
अपने चरणों से मुझको लगा लीजिये।
हे मेरे राम!...

मैंने जो था किया वो सही था किया,
और मुझको ही तो घर निकाला मिला।
मैंने समझाया भी, मैंने बतलाया भी,
पर मेरे प्यार का अब यही है सिला।
एक बन्दर ही हूँ, नाम सुग्रीव है,
मेरा सम्मान मुझको दिला दीजिये।
हे मेरे राम!...

आपको तो था मैं पहले भूला हुआ,
अब स्वयं को भी मैं भूलने हूँ लगा।
एक सागर किनारे पे मैं हूँ खड़ा,
उसकी लहरों के संग झूलने हूँ लगा।
मेरे गुण-दोष क्या हैं मझे क्या पता,
ऋक्षपति बन के मुझको दिशा दीजिये।
हे मेरे राम!...
- कुमार आशीष
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Sunday, April 29, 2018

जन्मदिवस है आज आपका


जीवन की आपाधापी तो जीवन भर चलती रहती है,
काम-काज की भीड़ में बस ये काया गलती रहती है।
जीवन कष्टों को आँख दिखा कुछ वक़्त चुराना पड़ता है,
इस समर क्षेत्र में सबकुछ खोकर भी मुस्काना पड़ता है।
काश! आप भी अपने कामों से कुछ वक़्त चुरा लेते,
जन्मदिवस है आज आपका, उसको आज मना लेते।

अद्भुत धैर्य आपके अन्दर जीवन में ठहराव बहुत,
इन्हीं खूबियों से तो मुझको रहता सदा लगाव बहुत।
“पुत्र आपका हूँ” मैं तो बस इस पर ही इतराता हूँ,
और गर्व को शब्दों में लिख गीत कोई रच जाता हूँ।
वरना शब्द अकिंचन हैं ये आपको क्या लिख पायेंगे,
अम्बर से ऊँचा कद जिसका उसको क्या रच पायेंगे।
जियो हजारों साल आप और संग प्यारी मुस्कान रहे,
जन्मदिवस है आज आपका इसे मनाना ध्यान रहे।

आपकी आँखों में भी आया होगा कोई ख्वाब कभी,
छोटा घर और बड़ी गाड़ियों का कोई रुआब कभी।
उन ख्वाबों को धक्के देकर आँखों से था भगा दिया,
और वहीं पर मेरी आँखों के ख्वाबों को सजा लिया।
होकर रुख्सत ख्वाब आपके भटक रहे पर मरे नहीं,
उनकी घोर प्रतीक्षा के दिन शायद अब तक भरे नहीं।
‘उनको वापस लाऊँगा’ ये ही वादा उपहार मेरा,
जन्मदिवस है आज आपका बहुत आपको प्यार मेरा।
- कुमार आशीष
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Saturday, April 28, 2018

जो कभी थे आपके हम


आपकी हर याद में हम हँस रहे हैं रो रहे हैं।
जो कभी थे आपके हम वो किसी के हो रहे हैं।।
आपकी हर इक दुआ अब आपको ही हो मुबारक,
बद्दुआओं की किसी एक भीड़ में हम खो रहे हैं।
जो कभी थे आपके हम वो किसी के हो रहे हैं।।

याद है हर एक लम्हा साथ में जो था बिताया।
टुकड़े-टुकड़े में सुरक्षित ख़्वाब है जो था सजाया।।
जो मुकम्मल ख़्वाब हैं वो आपको ही हो मुबारक,
हम तो टूटे ख़्वाब के संग हँस रहे हैं रो रहे हैं।
जो कभी थे आपके हम वो किसी के हो रहे हैं।।

याद आयेंगे कभी ये दिन जो सारे जा रहे हैं।
गुनगुनाओगे कभी ये गीत जो हम गा रहे हैं।।
गीत के स्वर-ताल सब कुछ आपको ही हो मुबारक,
हम तो अपनी चुप्पियों संग हँस रहे हैं रो रहे हैं।
जो कभी थे आपके हम वो किसी के हो रहे हैं।।

जिस तरह से भा गये थे आपके दिल को अचानक।
कुछ उसी जैसे हैं भाये हम किसी को बन कथानक।।
प्रेम के हर एक मानक आपको ही हो मुबारक,
हम तो अपने ही प्रणय संग हँस रहे हैं रो रहे हैं।
जो कभी थे आपके हम वो किसी के हो रहे हैं।।
- कुमार आशीष
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Sunday, March 25, 2018

श्रीराम जी से दूरी


देखो फिर विक्षिप्त हुआ मृग, बिछड़ के निज कस्तूरी से।
पूरा जंगल तड़प उठा हे राम तुम्हारी दूरी से।। 

जब से तुम जंगल आये थे, नवजीवन हम सब पाये थे।
छूकर पावन चरण तुम्हारे, नयन सहज ही भर आये थे।।

तुमने आकर कष्ट निवारे, तुमने आकर भाग्य सँवारे।
जीवन का वरदान सौंपकर, बन बैठे तुम प्राण हमारे।।
अब तो हम घुट-घुट जीते हैं, जीवन की मजबूरी से।
पूरा जंगल तड़प उठा हे राम तुम्हारी दूरी से।। 

फिर से था यदि हमें रुलाना, तो फिर हमें हँसाया क्यों?
इन मायावी असुरों के, चंगुल से हमें बचाया क्यों?
हमको तुमसे अनुराग हुआ अब, बिछड़ के न रह पायेंगे।
हमको भी प्रभु अवध बुला लो, जंगल में मर जायेंगे।।

जीवन का रथ आगे कैसे, जाये साँस अधूरी से?
पूरा जंगल तड़प उठा हे राम तुम्हारी दूरी से... 

- कुमार आशीष
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Thursday, March 8, 2018

महिला-दिवस

साभार इन्टरनेट 

आज के महिला-दिवस पर मैंने हजारों पोस्ट्स महिलाओं के सम्मान में पढ़ीं। जहाँ अधिकतर पुरुष, महिलाओं के सम्मान की बातें करते मिले भले ही वो खोंखली हीं हों, वहीँ अधिकतर महिलायें अपने अधिकारों को लेकर पुरुषों के मुँह पर तमाचा लगाती मिलीं। पता नहीं क्यों महिलाओं को ये लगता है कि अगर उनके घर वाले उन्हें देर रात बाहर अकेले जाने से मना कर रहे हैं तो वो कोई ज़ुल्म कर रहे हैं? हो सकता है उन्हें आपकी सुरक्षा की चिन्ता हो, क्योंकि कोई भी पुरुष शक्तिमान तो है नहीं कि अपनी पत्नी या बहन की रक्षा के लिये घर से तुरंत उस जगह पहुँच जाये जहाँ वो है। आज के समय मैं आपको ये वचन दे सकता हूँ कि रात को ग्यारह बजे सूनसान सड़क पर अगर कोई अकेली लड़की मुझे मिली तो उसे मुझसे कोई ख़तरा नहीं है, लेकिन मैं ये वचन नहीं दे सकता कि बहन तुम रात को ग्यारह बजे कहीं जाओ तुम्हें कोई ख़तरा नहीं। क्योंकि मैं नहीं जानता वहाँ कौन लोग हो सकते हैं? उनकी मानसिकता कैसी होगी? और मैं उन लोगों से लड़ने में न तो सक्षम हूँ न ही खुद शक्तिमान की तरह तुम्हारे पास आकर तुम्हारी रक्षा कर पाउँगा। तुम इसे मेरी कमजोरी भी कह सकती हो, परन्तु शक्तिमान की बातें धारावाहिकों में अच्छी लगती है, वास्तविक धरातल पर ऐसा सम्भव नहीं है। तुम्हारी इज्ज़त की रक्षा के लिये मैं जान भी दे सकता हूँ लेकिन शायद जान देकर भी तुम्हें न बचा सकूँ जो लोग मुझे मार सकते हैं वो तुम्हारे साथ भी कुछ भी कर सकते हैं।

तुम्हें ये समझना होगा कि अपने पिता, भाई या पति की बात मानने से तुम्हारा सम्मान कम नहीं हो रहा वरन बढ़ता है। अगर किसी लड़की के साथ कुछ हो जाए तो समाज उन लड़कों को दोष देने की जगह लड़कियों को ही देते हैं। ये महिलायें जो अधिकार के नाम पुरुषों को तमाचा जड़ने का वीणा लेकर घूम रहीं हैं वो आज तो तुम्हें अपनी व्यक्तिगत ज़िन्दगी के नाम पर मस्ती करने को कहकर रात को बारह बजे डिस्को ले जायेंगी लेकिन अगर कुछ हुआ तो सबसे पहले वही तुम पर थूकेंगी। याद रखो बहन! जब सीता का विवाह हुआ था तब उन्हें भी लगता है मेरे पति सबसे बड़े हैं मैं अयोध्या जैसे बड़े साम्राज्य की होने वाली महारानी हूँ। अगर वनवास के समय वो पति को उकसातीं कि “मैं तुम्हारे पैर की जूती नहीं हूँ कि जो तुम करो मैं भी करूँ तुम्हें जाना है वन तो जाओ मैं यहाँ अपना अधिकार लेना जानती हूँ” तो शायद आज उन्हें जिस त्याग के लिये सम्मान दिया जाता है या पूजा जाता है वो उसकी अधिकारी न रहतीं। आज सीता को इसलिये पूजा जाता है क्योंकि उन्हें पता है किसके सामने झुकना है किसके सामने अड़ना है। स्त्री वो है जो अपने स्वाभिमान को ज़िंदा रखे। यही कारण आज अनुशाशित सीता माँ को पूजा जाता है और स्वच्छन्द विचरण करने वाली सूपर्णखा को धिक्कारा जाता है। हमेशा याद रहे कि स्त्री पुरुष की अर्धांगिनी है तो जिस तरह बिना स्त्री के पुरुष अधूरा है उसी तरह बिना पुरुष के स्त्री भी अधूरी है। अगर कोई पुरुष कुरीतियों के नाम पर स्त्री को नीचा दिखाये तो वो गलत है इसी तरह कोई स्त्री अधिकार के नाम पर अगर पति, भाई या पिता के सम्मान को ठोकर मानकर आगे बढ़ने की कोशिश करे तो वो भी गलत है।

- कुमार आशीष
+91 8586082041
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Saturday, October 28, 2017

कविता की राम कहानी


तुम मुझे देखकर सोंच रहे ये गीत भला क्या गायेगा
जिसकी खुद की भाषा गड़बड़ वो कविता क्या लिख पायेगा
लेकिन मुझको नादान समझना ही तेरी नादानी है
तुम सोंच रहे होगे बालक ये असभ्य, अभिमानी है

मैं तो दिनकर का वंशज हूँ तो मैं कैसे झुक सकता हूँ
तुम चाहे जितना जोर लगा लो मैं कैसे रुक सकता हूँ
मेरी कलम वचन दे बैठी मजलूमों, दुखियारों को 
दर्द लिखेगी जीवर भर ये वादा है निज यारों को 
मेरी भाषा पूर्ण नहीं औ' इसका मुझे मलाल नहीं
अगर बोल न पाऊँ तो क्या हिन्दी माँ का लाल नहीं

पीकर पूरी "मधुशाला" मैं "रश्मिरथी" बन चलता हूँ
"द्वन्दगीत" का गायन करता "कुरुक्षेत्र" में पलता हूँ
तुम जिसे मेरा अभिमान कह रहे वो मेरा "हुँकार" मात्र है
मुझे विरासत सौंपी कवि ने वो मेरा अधिकार मात्र है
गर मैं अपने स्वाभिमान से कुछ नीचे गिर जाऊँगा
तो फिर स्वर्ग सुशोभित कवि से कैसे आँख मिलाऊँगा

इसलिए क्षमा दो धनपति नरेश! मैं कवि हूँ व्यापार नहीं करता
गिरवी रख अपना स्वाभिमान धन पर अधिकार नहीं करता
हिन्दी तो मेरी माता है इसलिए जान से प्यारी है
मैंने जीवन इस पर वारा और ये भी मुझ पर वारी है
देखो तो मेरा भाग्य मुझे मानवता का है दान मिला
हिन्दी माँ का वरद-हस्त औ कविता का वरदान मिला

मेरा दिल बच्चे जैसा है मैं बचपन की नादानी हूँ
हिन्दी का लाड़-दुलार मिला इस कारण मैं अभिमानी हूँ
हरिवंश, सूर, तुलसी, कबीर, दिनकर की मिश्रित बानी हूँ
कुछ और नहीं मैं तो केवल कविता की राम कहानी हूँ

- कुमार आशीष
+91 8586082041
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