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Tuesday, October 29, 2019

नमक स्वादानुसार

नाम                   -  नमक स्वादानुसार
लेखक                -  निखिल सचान
फॉर्मेट                -  पेपरबैक
पृष्ठ संख्या           -  165 पेज
मूल्य                  -  ₹78
प्रकाशक            -  हिन्दी युग्म
खरीद                -  Amazon (Buy Now)

ये पुस्तक निखिल सचान जी की लिखी कहानियों का संग्रह है। इसमें वर्णित सभी कहानियाँ बहुत ज़मीनी हैं, कई बार पढ़ते हुए आप कहानियों को स्वयं से जोड़ पायेंगे। साधारण-से-साधारण शब्द जो हम रोज़मर्रा में इस्तेमाल करते हैं उन्हें छोड़कर शायद ही कोई ऐसा शब्द इस पूरी पुस्तक में मिले जिसके लिए आपको शब्दकोश की सहायता लेनी पड़े। इसमें बच्चों के लिए भी कहानियाँ हैं परन्तु पूरी पुस्तक बच्चों के लिए नहीं है। बिना लाग-लपेट के सीधी-सादी बात कहने का लेखक के पास बढ़िया हुनर है जो इस किताब में साफ़ दिखाई देता है। वैसे किसी भी लेखक पर सिर्फ एक किताब पढ़कर टिपण्णी करना उचित होगा या नहीं ये मैं अभी नहीं कह सकता हूँ। लेकिन मैं निखिल सर की और जो किताबें मार्केट में उपलब्ध हैं उन्हें पढ़कर ये जानने को उत्सुक हूँ कि लेखक ने एक ही शैली में सब पुस्तकें लिखी हैं या सबकी शैली भिन्न-भिन्न हैं। अगर भिन्न हो तो ही ज्यादा बेहतर रहेगा। वैसे किसी ने कहा है कि "किताब की विषय-वस्तु और खाने में नमक स्वादानुसार ही अच्छा लगता है।" इसलिए मैं ये नहीं दावा कर सकता कि ये पुस्तक आपको अच्छी लगेगी या  बुरी...

वैसे तो किसी भी पुस्तक पर मेरे द्वारा लिखे गये सभी विचार मेरे व्यक्तिगत ही होते हैं, उन्हें ‘पुस्तक की समीक्षा’ समझने की जगह केवल ‘मेरा नज़रिया’ कहना ज्यादा उचित होगा, परन्तु इस निजता बावजूद मेरा थोड़ा और व्यक्तिगत मानना ये है कि "आप कितने भी अच्छे लेखक हों, आपकी कितनी भी बेस्ट सेलिंग पुस्तकें बाज़ार में छायी हों, आपकी फैन फॉलोयिंग कितनी भी भारी मात्रा में हो फिर भी यदि आपके लेखन में (खासकर यदि आप हिन्दी में लिख रहे हैं) कोई एक शब्द भी ‘अश्लील’ आता है तो मैं ये कहूँगा कि आपको लेखन में अभी और परिक्क होना बाक़ी है।" मुझे लगता है कि दुनियाँ की शायद ही ऐसी कोई स्थिति हो जिसे हिन्दी जैसी समृद्ध और विशाल शब्दकोश वाली ‘मर्यादित भाषा’ में प्रस्तुत करते हुए आपको ‘अश्लील या अमर्यादित’ शब्दों का प्रयोग करना पड़े।

इस पुस्तक का सबसे बड़ा ‘निगेटिव पॉइंट’ मेरी नज़र में यही है। लेकिन ये टिपण्णी इस लेखक के लिये नहीं है बल्कि उन लेखकों के लिए है जिन्होंने ‘अश्लीलता को सफ़लता का अधियार बना रखा है।‘ जब मैं इस लेखक (निखिल सचान सर) की और पुस्तकें पढ़ लूँगा तब निर्णय ले पाउँगा कि ये टिपण्णी इनके लिए है या नहीं, फिलहाल इस किताब में प्रयुक्त हुए अश्लील शब्द मेरे हिसाब से जबरदस्ती धोपे गये हैं उनकी ज़रूरत बिलकुल भी नहीं थी। उम्मीद है आप समझ गये होंगे कि पुस्तक के अच्छी या बुरी लगने के दावे को मैंने पहले ही क्यों खारिज़ कर दिया था। इस पुस्तक में कुल 9 कहानियाँ हैं जिनमें से मुझे जो पसन्द आयी उनकी सूची इस प्रकार है:-
  • परवाज़
  • हीरो
  • टोपाज़ (अगर ये मेरी कहानी होती तो इसका शीर्षक मैं 'लास्ट लीफ़' रखता)
  • साफ़े वाला साफ़ा लाया
  • विद्रोह
इन सबके अतिरिक्त आधुनिक प्रिंटिंग क्वालिटी के साथ मुद्रित कवर का डिजाईन सुन्दर और आकर्षक है। अन्दर के पेज साधारण हैं उसमें कोई ख़ास डिजाईन नहीं हुई है। हाँ! इसके बैक कवर पर जो कुछ लिखा है उसमें लाल रंग प्रयुक्त हुआ है और कवर का रंग काला है। यदि काले पर लाल की जगह पीला से लिखा जाता तो बैक कवर में अलग ही चमक होती जो अभी देखने को नहीं मिलती है। बैक कवर पर ही लेखक की तस्वीर और सोशल मिडिया लिंक मुद्रित है अगर इसी के साथ उनका थोड़ा व्यक्तिगत जीवन परिचय भी दिया रहता तो और बेहतर था। इस किताब को पढ़ने या न पढ़ने के लिए मैं नहीं कहूँगा ये आप ऊपर दिए विवरण और अमेज़न पर दिए गये प्रतिक्रियाओं को पढ़कर खुद निर्णय करे। हाँ! यदि आपको ज़मीन से जुड़ी कहानियों को थोड़ा मिर्च, मसाला के साथ पढ़ने का मन हो तो आप ये पुस्तक ले सकते हैं। इसमें अपनी समझ का ‘नमक स्वादानुसार’ मिलाकर आनन्दित हो सकते हैं।

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जीवन वृक्ष

नाम                   -  जीवन वृक्ष
लेखक                -  डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम
फॉर्मेट                -  पेपरबैक
पृष्ठ संख्या           -  144 पेज
मूल्य                  -  ₹105
प्रकाशक            -  प्रभात प्रकाशन
खरीद                -  Amazon (Buy Now)

इससे पहले कि मैं पुस्तक के विषय में कुछ लिखूँ आपका ध्यान कवर की तरफ आकर्षित करना चाहूँगा। इस पुस्तक की भूमिका देश के भूतपूर्व प्रधानमन्त्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी जी ने लिखी है। वे स्वयं भी लोकप्रिय राजनेता के साथ-साथ बहुत शानदार कवि थे। ये पुस्तक डॉ. अब्दुल कलाम जी की तमिल और अंग्रेजी कविताओं का हिन्दी अनुवाद है। इस पुस्तक में कविताओं के साथ-साथ उसकी विषयवस्तु और किस परिस्थिति में उनकी रचना हुई वो भी बताया गया है। डॉ. कलाम ने जीवन की तमाम घटनाओं को कविता में ढाला है, इसीलिए हर कविता से आप स्वयं का जुड़ाव महसूस कर सकते हैं। सभी कविताओं में जिस तरह के हिन्दी शब्दों का चयन किया है उसके लिए अनुवादक (श्री अरुण तिवारी जी और राकेश शर्मा जी) की और उपमाओं को जिस शानदार तरीके और नयेपन के साथ प्रयोग किया गया है उसके लिए डॉ. कलाम साहब की जितनी तारीफ़ की जाये कम होगी। डॉ. कलाम की रचना है तो सबसे बड़ी ख़ासियत यही है कि इसकी हर कविता में एक सन्देश है जो आदर्श जीवन की प्रेरणा देता है। उनका तो पूरा जीवन जी अनुकरणीय है और उसी का प्रतिबिम्ब उनकी रचनाएँ भी होती हैं। उनकी दो पुस्तकें “अग्नि की उड़ान” और “मेरी जीवन यात्रा” मैं पहले ही पढ़ चुका हूँ। अब “जीवन वृक्ष” पढ़ते हुए पिछली दोनों पुस्तकों में वर्णित कई घटनाओं का पद्य रुपान्तरण पढ़ने का आनन्द प्राप्त हुआ है। जीवन वृक्ष में कुल 49 कविताएँ हैं और ये कह पाना कि कौन-सी सबसे अच्छी है मेरे लिए तो लगभग असम्भव ही है। उनकी पहली कविता का शीर्षक है “तरूणाई” उसकी एक पंक्ति है “मैं महसूस करता हूँ कि छोटा लक्ष्य रखना एक अपराध है” ऐसे ही एक कविता जिसका शीर्षक “आँसू” है, उसकी एक पंक्ति है “ये आँसू ही तुमको बनायेंगे महान्” इसी तरह इसमें हर कविता बहुत उम्दा और प्रेरणादायक है। मैं जीवन चक्र को समझने के लिए जीवन वृक्ष को अवश्य पढ़ने का सुझाव दूँगा। 

इस पुस्तक की प्रिटिंग क्वालिटी प्रभात प्रकाशन की अन्य पुस्तकों की तरह ही बढ़िया है। इसका कवर भी बहुत सुन्दर है जिस पर लगी हुई डॉ. कलाम की तस्वीर (साभार) राष्ट्रपति भवन से ली गयी है। इसके आलावा जो इस पुस्तक के अन्दर के पेज हैं उसमें प्रत्येक के दाहिने तरफ फूलों जैसी चित्रकारी की गयी है जो इस पुस्तक को अनायास ही बहुत आकर्षक बनाते हैं। डॉ. अब्दुल कलाम जी के साथ-साथ पण्डित श्री अटल बिहारी बिहारी वाजपेयी जी की भूमिका लेखन वाली इस पुस्तक के एक बार अवश्य पढ़ें। 

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Monday, October 28, 2019

टोपी शुक्ला

नाम                   -  टोपी शुक्ला
लेखक                -  डॉ. राही मासूम रज़ा
फॉर्मेट                -  पेपरबैक
पृष्ठ संख्या           -  114 पेज
मूल्य                  -  ₹100
प्रकाशक            -  राजकमल प्रकाशन
खरीद                -  Amazon (Buy Now)

बी. आर. चोपड़ा जी द्वार निर्देशित ‘महाभारत’ धारावाहिक के अमर संवादों का लेखन करने वाले ‘डॉ. राही मासूम रज़ा’ द्वारा रचित उपन्यास ‘टोपी शुक्ला’ वास्तव में बलभद्र नारायाण शुक्ला उर्फ़ टोपी शुक्ला का जीवन परिचय है। पुस्तक की भूमिका में लिखा है कि “टोपी शुक्ला में एक भी गाली नहीं है। परन्तु शायद यह पूरा उपन्यास एक गन्दी गाली है। यह उपन्यास अश्लील है- जीवन की तरह। ‘यह कहानी इस देश, बल्कि इस संसार की कहानी का एक स्लाइस है।‘

हिन्दू-मुस्लिम रिश्तों पर करारे व्यंगात्मक शैली में लिखा गया ये उपन्यास सचमुच आज की परिस्थिति को आईना दिखा रहा है जिसकी सूरत बहुत ही ख़राब है। इसी में एक जगह लिखा है कि “हिन्दू-मुसलमान अगर भाई-भाई हैं तो कहने की ज़रूरत नहीं। यदि नहीं हैं तो कहने से क्या फ़र्क पड़ेगा?" इस कहानी का जो प्रमुख पात्र टोपी शुक्ला है, उसे कुछ जगह नौकरी इसलिए नहीं मिलती क्योंकि वह हिन्दू है और कुछ जगह इसलिए नहीं मिलती क्योंकि वह मुस्लिम है। इस पुस्तक के अनुसार इस देश में सभी जातियों के लिए थोड़ा या ज्यादा जगह की गुंजाइश है पर जो हिन्दुस्तानी है वो कहाँ जाये? यह उपन्यास जहाँ हिन्दू-मुस्लिम सम्बन्धों की सच्चाई उजागर करता है वहीं एक तीखा प्रश्न भी समाज के सामने लाकर रख देता है, जिस पर बड़े-बड़े सामाजिक ठेकेदारों को सोचने और उत्तर खोजने की ज़रूरत है। उपन्यास के अन्त में टोपी शुक्ला उन लोगों से कंप्रोमाइज नहीं कर पाता है जो समाज के तथाकथित ठेकेदार हैं, जो टोपी शुक्ला से इसीलिए नफरत करते हैं क्योंकि वो हिन्दू होकर भी मुसलमानों से हमदर्दी रखता है, उनके साथ रहता है। इसीलिए  जब टोपी शुक्ला को नौकरी मिलती है तो वो आत्महत्या कर लेता है। ‘आत्महत्या’ वाली बात लिखकर मैं इस पुस्तक के क्लाइमैक्स का उजागर नहीं कर रहा हूँ क्योंकि ये पूरी पुस्तक हर पन्ने पर क्लाइमैक्स है। उसे उजागर करने के लिए मुझे पूरी किताब ही यहाँ लिखनी पड़ेगी। परन्तु मैं ऐसा करने वाला नहीं हूँ क्योंकि मैं चाहता हूँ कि एक बार आप इस पुस्तक को जरूर पढ़ें। इस पुस्तक के लगभग सभी किरदार मुख्य भूमिका में नज़र आते हैं, केवल कुछ को छोड़कर (जो मुख्य पात्र में नहीं है) सभी पात्र में आप स्वयं को पायेंगे। ऐसा लगेगा कि ये कहानी आपकी ही है। जैसे-जैसे पन्ने पलटते जायेंगे आप अपना भी किरदार बदलते जायेंगे और यही बात मुझे इस पुस्तक की सबसे ख़ास लगी। इसी पुस्तक में कथाकार कहता है कि “कोई कहानी कभी बिलकुल किसी एक की नहीं हो सकती। कहानी सबकी होती है और फिर भी उसकी ईकाई नहीं टूटती है।“

इस पुस्तक की प्रिंटिंग क्वालिटी आधुनिकता के हिसाब से ठीक है। परन्तु इसके कवर में बहुत हल्का पेपर इस्तेमाल हुआ है जो कि अब प्रचलन में बहुत कम देखने को मिलता है। इसका फ्रंट कवर कहानी की गाथा से मैचिंग करता नहीं लग रहा है। (ये मेरा व्यक्तिगत मत ही है क्योंकि बनाने वाले ने जरूर कुछ सोचा होगा।) परन्तु कवर पर कुछ पात्र हैं जो आपस में बातचीत करते दिखाये गये हैं वो सभी मुस्लिम भेषभूषा में हैं जबकि कहानी हिन्दू-मुस्लिम रिश्ते पर है तो कवर में दोनों का उल्लेख इसे शायद और बेहतर बनाता। बैक कवर पर ‘राही मासूम रज़ा’ साहब की तस्वीर के पुस्तक का उपसंहार और भूमिका की एक पंक्ति इसे पढ़ने को लालायित करती है। इन सब के अतिरिक्त मैं फिर से कहना चहूँगा कि पुस्तक की विषयवस्तु और लेखन बहुत उम्दा है। भाव अतिउत्तम हैं, आपको ये  पुस्तक जरूर पढ़नी चाहिए।  


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Tuesday, October 22, 2019

रश्मिरथी

नाम                   -  रश्मिरथी
लेखक                -  श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’
फॉर्मेट                -  पेपरबैक
पृष्ठ संख्या           -  176 पेज
मूल्य                  -  ₹105
प्रकाशक            -  लोकभारती प्रकाशन प्रा. लि.
खरीद                -  Amazon (Buy Now)

श्री दिनकर जी की अद्भुत रचना शैली का आनन्द लेने और महाभारत के प्रमुख पात्रों में एक 'कर्ण'  को जानने के लिए सबसे अच्छी पुस्तक है। इस पुस्तक के माध्यम से कर्ण को लेकर आपके सोचने का नज़रिया एकदम स्पष्ट हो जायेगा, उस महान व्यक्तित्व के आगे स्वयं देवराज नतमस्तक हैं। इस पुस्तक में हस्तिनापुर के राज्यसभा में भगवान् कृष्ण जी ने जो विराट् स्वरुप दिखाया था और उसके बाद किस तरह से कर्ण-कृष्ण संवाद हुआ वो बहुत शानदार शैली में चित्रित किया गया है। इसके बाद कुन्ती-कर्ण संवाद पढ़ते हुए कोई भी भावुक हो सकता है। पुस्तक में ये भी बताया गया है कि महाभारत की घटनाओं से समस्त मनुष्य जाति के लोगों को क्या सीखना चाहिए... अगर आप काव्यप्रेमी हैं तो निश्चित ही ये पुस्तक आपको बहुत बढ़िया लगेगी।

इसकी प्रिंटिंग क्वालिटी आधुनिकता के हिसाब से उतनी चमकदार नहीं लगी जितनी होनी चाहिए।  पुस्तक की कवर बहुत बढ़िया है लेकिन अन्दर के पेज की डिजाईन बहुत साधारण बनाया है, उसमें कुछ छोटे-छोटे चित्र आदि जोड़े जाते तो अलग ही आकर्षण उत्पन्न होता। लेकिन पुस्तक की प्रस्तुति कैसी भी हो रचना शैली बहुत शानदार है। आख़िर एक बड़े कवि श्रीरामधारी सिंह दिनकर जी की रचना है, तो दिनकर जी का नाम ही काफी है। उनके पास पाठकों को बाँधे रखने की अद्भुत कला है।


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Monday, October 21, 2019

राम (इक्ष्वाकु के वंशज)

नाम                   -   राम (इक्ष्वाकु के वंशज)
लेखक                -  अमीश त्रिपाठी
फॉर्मेट                -  पेपरबैक
पृष्ठ संख्या           -  350 पेज
मूल्य                  -  ₹198
प्रकाशक            -  यात्रा-वेस्टलैण्ड
खरीद                -  Amazon (Buy Now)

ये पुस्तक अमीश सर द्वारा रचित “श्रीरामचन्द्र” सिरीज़ की पहली पुस्तक है। इस सिरीज़ में कुल तीन पुस्तकें हैं:-

1) राम (इक्ष्वाकु के वंशज)
2) सीता (मिथिला की योद्धा)
3) रावण (आर्यवर्त का शत्रु)

मैंने अभी तक पहली पुस्तक पढ़ी है। इसके आधार पर कह सकता हूँ कि लेखक की लेखन प्रतिभा और शोधन क्षमता निश्चित रूप से प्रशंसनीय है। इस पुस्तक को मनोरंजन के लिए किसी उपन्यास की तरह पढ़ा जाना चाहिए, इससे आपका ऐतिहासिक ज्ञान मजबूत होगा ये जरूरी नहीं है और जो होगा उसके ग़लत होने की सम्भावना बहुत प्रबल है। इस किताब की उपयोगिता कई गुना बढ़ सकती थी यदि इसमें प्रस्तुत वो तथ्य जो परम्परागत तथ्यों से बिल्कुल विपरीत हैं, उनका सन्दर्भ भी दिया गया होता। उसके बिना ऐसा लगता है कि ये विपरीत तथ्य लेखक के निजी विचार हैं या दिमाग़ी फितूर है जिसका सच्चाई से कोई लेना-देना नहीं है। ये भी हो सकता है कि मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि मैंने श्री राम जी के बारे में गिने-चुने ग्रन्थ ही पढ़े हैं। जैसे:- श्रीरामचरितमानस, रामायण, कवितावली, दोहावली आदि। इन सबको पढ़ने के बाद जो मैंने पाया उसके बहुत विपरीत कई तथ्य इस पुस्तक में है। लेखक ने निश्चित ही इस पौराणिक घटना से जुड़े तमाम भाषाओं के ग्रंथों का अध्ययन किया है। उस हिसाब से वो सही होंगे लेकिन फिर भी मेरे लिए उन सभी तथ्यों को बिना सन्दर्भ के स्वीकार कर पाना बहुत मुश्किल है, लगभग असम्भव है। 

तथ्यों से हटकर बात करें तो इस पुस्तक में भाषा शैली, प्राकृतिक सौन्दर्य, भेषभूषा, नगर आदि का जो वर्णन है वो एकदम जीवन्त है। पढ़ते हुए एक रेखा चित्र जैसा खिंच जाता है। इसके अलावा प्राचीन पद्धतियों एवं सामाजिक एवं मानसिक स्थितियों का खूब बढ़िया और जानदार चित्रण है। 

इस पुस्तक में जो सबसे ख़ास बात है वो इसका कवर डिजाईन है। बहुत ही आकर्षक डिजाईन है। अन्दर के पृष्ठों पर भी यदि कुछ चित्रादि होते तो अन्दर के पृष्ठ भी आकर्षक लगते परन्तु उसे डिजाईन करने में शायद हमारी परम्परागत उपन्यास शैली का अनुसरण किया गया है। मैं फिर से कहूँगा कि कवर को देखकर बहुत आकर्षण होता है।


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एवरेस्ट की बेटी

नाम                   -   एवरेस्ट की बेटी
लेखक                -  अरुणिमा सिन्हा
फॉर्मेट                -  पेपरबैक
पृष्ठ संख्या           -  168 पेज
मूल्य                  -  ₹112
प्रकाशक            -  प्रभात प्रकाशन
खरीद                -  Amazon (Buy Now)

जब ये पुस्तक मुझे मिली तो मैंने बस भूमिका पढ़ने के लिए खोला था। बाकी शायद मैं बाद में पढ़ता परन्तु मुझे इतना जुड़ाव हो गया कि पूरी पुस्तक एक बार में पढ़ गया और पढ़ते हुए रोता रहा। ‘अरुणिमा सिन्हा’ की आत्मकथा हमें विषम-से-विषम क्षणों में में भी हार न मानने की प्रेरणा देती है। राष्ट्रीय स्तर की वॉलीबॉल खिलाड़ी अरुणिमा सिन्हा के आगे एक सुनहरा भविष्य था। अपनी नौकरी के जब वो लखनऊ से दिल्ली जा रही थीं तभी कुछ राक्षसों ने उन पर हमला कर दिया। कोच में खूब भीड़ थी पर दुर्भाग्य से सब कायरों की भीड़ थी तो किसी ने सहायता नहीं की। काफी देर तक कई लोगों से अकेले ही अरुणिमा लड़ती रहीं और फिर एक धक्का लगा जिससे वो चलती ट्रेन से बाहर गिर गयीं। गिरते हुए सामने की पटरी पर आ रही ट्रेन से भी टकराई जिसके कारण बहुत बुरी तरह घयाल होकर पटरी के किनारे पड़ी थीं। उनका एक पैर ट्रेन के नीचे आ जाने से कट गया था। कड़ाके की ठण्डी और भीषण दर्द सहते हुए अपनी मौत से पंजा लड़ा रही थीं। उन्हें ये तक नहीं पता था कि अगली आने वाली ट्रेन वो देख पायेंगी या उससे पहले मर जायेंगी। सात-आठ घंटे तक मौत के पंजे से अपनी ज़िन्दगी बचाये रखने वाली अरुणिमा को सुबह आसपास के गाँव वालों की कुछ सहायता मिली। उन्हें बरेली के सरकारी अस्पताल में ले जाया गया जहाँ बेहोशी की दवा उपलब्ध न होने के कारण पूरे होशो-हवाश में अरुणिमा ने अपना कटा हुआ पैर सर्जरी के माध्यम से अपने शरीर से अलग करवाया। डॉक्टर्स ये करने को तैयार नहीं थे पर अरुणिमा के जोर देने पर उन्हें ऐसा करना पड़ा। अरुणिमा ने अपने सेना-नायक पिता को बहुत कम उम्र में खो दिया था। उनकी संदिग्ध हालत में डूबकर मौत हो गयी थी और उसका इल्ज़ाम अरुणिमा की माँ और बड़े भैया पर आया। उस षडयंत्र से किसी तरह बाहर निकलने के बाद उनके बड़े भैया का खून हो गया। अब उनकी माँ, एक बड़ी बहन और एक छोटा भाई उनके परिवार में हैं। 

इस पुस्तक में अरुणिमा ने अपने पूरे जीवन की घटित घटनाओं का वर्णन किया है। इसमें पता चलता है कि अगर प्रशासन के लोग मेहरबान होते हैं तब क्या होता है और विपरीत होते हैं तब क्या होता है? भारत में महिलाओं की सुरक्षा पद्धति और किसी असहाय से फायदा उठाने वाले लोग कितने गिरे हुए हो सकते हैं वो आपको इस पुस्तक में देखने को मिल जायेगा। ‘एक सरकारी विभाग अपनी शाख बचाने के लिए उसी के चरित्र और व्यव्हार पर हमला कर सकती है जो स्वयं पीड़ित है’ इसका सबसे बड़ा उदाहरण इस पुस्तक में है। हर किसी से अरुणिमा के कटे अंगों को बार-बार काटकर अपना-अपना हित साधने की खूब कयावद की... 

परन्तु, जो मौत से लड़ने का साहस रखती हो उसके लिए दुनियाँ से लड़ना कौन-सी बड़ी बात है? उसने सभी आलोचकों और विरोधियों के गाल पर करारा तमाचा उस वक़्त जड़ दिया जब वो बिना किसी का हाथ पकड़े अपने नकली पैरों के सहारे ठीक से चल भी नहीं पा रही थी और फिर भी निर्णय लिया कि उसे दुनियाँ की सबसे ऊँची चोटी “एवरेस्ट” पर चढ़ना है। अनेक परेशानियों का सामना करते हुए, बर्फ की श्वेत चादर को अपने पैरों से निकलते हुए खून से लाल करके... आगे-आगे कदम बढ़ाते हुए वो दुनियाँ की सबसे ऊँची चोटी पर पहुँचती है और इस तरह वो एवरेस्ट पर चढ़ने वाली प्रथम विकलांग महिला और (प्रथम भारतीय विकलांग) का विश्वकीर्तिमान अपने नाम कर लेती है। पर्वतारोहण के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्मश्री’ तथा ‘तेनजिंग नोर्गे अवार्ड’ से सम्मानित किया है। आजकल अरुणिमा सिन्हा जी गरीब और अशक्त जनों के लिए निःशुल्क स्पोर्ट्स अकादमी के लिए प्रयासरत हैं। 

एक लड़की जो शारीरिक रूप से दिव्यांग है, गरीब परिवार से है उसने किस तरह अपने मानसिक बल से और संघर्ष से एवरेस्ट की पहली महिला विजेता के पास पहुँची? कैसे उनसे मिलने का जरिया बनाया? क्या-क्या सीखा? कैसे-कैसे चुनातियों से लड़कर आगे बढ़ी? कौन-कौन उनके साथ आया? कौन सहयोगी रहा, किसने टांग पीछे खींची? कैसे धन इत्यादि की व्यवस्था की? कब-कब चढ़ाई के दौरान मरते-मरते बची? ऑक्सीजन ख़त्म होने को था फिर भी एवरेस्ट पर फोटो खिंचवाई और विडियो भी बनवाया... इस सब को जानने के लिए आपको ये पुस्तक “एवरेस्ट की बेटी” पढ़नी चाहिए। बहुत ही प्रेरणादायक है और दुनियाँ की लड़ाई के मैदान में कैसे डटकर खड़े रहना है इसका बहुत बड़ा उदाहरण आपको मिलेगा।

पुस्तक की प्रिंटिंग क्वालिटी सही है पर अच्छा रहता अगर इसके अन्दर के पेज एकदम सफेद होते। इसमें कुछ ख़ास-ख़ास तस्वीरें हैं जो कलर प्रिंट की गयी हैं और फोटोजेनिक पेपर के इस्तेमाल से उनकी चमक भी बढ़ गयी है। कवर की डिजाईन और उस पर लिखे अंश पर्याप्त हैं कि किसी को भी इस पुस्तक की लालसा हो।

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मेरी मेरी याद

नाम                   -   मेरी मेरी याद
लेखक                -  डॉ. कुमार विश्वास
फॉर्मेट                -  पेपरबैक
पृष्ठ संख्या           -  176 पेज
मूल्य                  -  ₹159
प्रकाशक            -  राजकमल प्रकाशन
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‘डॉ. कुमार विश्वास’ कवि का नाम ही इतना महत्त्वपूर्ण है कि पुस्तक के नाम का महत्व कुछ कम हो जाता है। लोग इनकी पुस्तक को उसके नाम से नहीं बल्कि रचनाकार के नाम से ही खरीदना और पढ़ना चाहेंगे। कुमार सर की एक और पुस्तक मैंने पढ़ी है “कोई दीवाना कहता है”- मुझे “फिर मेरी याद” में पिछली बार की अपेक्षा कुछ कम गीत लग रहे हैं, और सबसे ख़ास बात ये है कि उनकी एक रचना है “फिर मेरी याद आ रही होगी, फिर वो दीपक बुझा रही होगी..., इसकी कमी बहुत ज्यादा लगी। मेरे हिसाब से इस रचना को तो जरूर इस पुस्तक में होना चाहिए था। खैर, इसमें बाक़ी रचनाएँ बहुत कमाल की है। इसमें विशेषतः मुक्तक, क़ता और आज़ाद अशआर जो हैं वो इसकी उपयोगिता बढ़ा देते हैं। कुछ विशेष रचनाएँ जो मुझे ज्यादा पसन्द आयी उनकी सूची इस प्रकार है:-
  • तुम से कौन कहेगा आकर?
  • चंदा रे! गुस्सा मत होना!
  • वंश नहीं चलता कान्हा
  • सार्त्र!
  • लाख भीगे ज़मीन का आँचल
  • जब छुआ साथ तुलसी चौरा
  • बोलो रानी क्या नाम करूँ?
इसकी प्रिंटिंग क्वालिटी तो बढ़िया है ही साथ ही इसके अन्दर के पेज के डिज़ाइन बहुत रोचक हैं। कवर पर कुमार सर की फोटो और ऑटोग्राफ के साथ डिजाईन का थीम और कलर बहुत सुन्दर लग रहा है। जिन लोगों को गीत और कविता पढ़ने की लालसा रखते हैं वो इसे पढ़ सकते हैं। इसमें ज़िन्दगी के विभिन्न रंगों को अलग-अलग चित्रित रचनाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है।


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मेरी जीवन-यात्रा

नाम                  -   मेरी जीवन यात्रा
लेखक               -  डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम
फॉर्मेट                -  पेपरबैक
पृष्ठ संख्या           -  144 पेज
मूल्य                  -  ₹102
प्रकाशक            -  प्रभात प्रकाशन
खरीद                -  Amazon (Buy Now)

डॉ. कलाम साहब की इस पुस्तक “मेरी जीवन-यात्रा” को पढ़ने से पहले मैंने उन्हीं की आत्मकथा “अग्नि की उड़ान” पढ़ी थी। मैं विशेष रूप से सुझाव दूँगा कि आप भी इसी क्रम का अनुसरण करें। इसका मुख्य कारण ये है कि इस पुस्तक में डॉ. कलाम ने अग्नि की उड़ान के कई सन्दर्भों को छुआ है। जो उस पुस्तक में संक्षिप्त में थे वो यहाँ विस्तार में हैं और जो वहाँ विस्तार में थे वो यहाँ संक्षिप्त में हैं। “मेरी जीवन-यात्रा” एक तरह से “अग्नि की उड़ान” का निचोड़ है, साथ ही इसमें आपको ये भी खुलकर पढ़ने को मिलेगा कि अग्नि की उड़ान में वर्णित घटनाक्रमों से हम क्या सीख सकते हैं और डॉ. कलाम ने ख़ुद अपने जीवन की उन घटनाओं से क्या सीखा है? जिनका जीवन की प्रेरणादायक हो उनके जीवन से जुड़ी हर छोटी-बड़ी बात हमें बहुत कुछ सिखाती है। इसलिए आपको “अग्नि की उड़ान” के पश्चात “मेरी जीवन-यात्रा” जरूर पढ़नी चाहिए जिससे आप दोनों पुस्तकों के उद्देश्य और सारांश को ठीक ढंग से समझ सकेंगे और उनका अनुसरण करके आप स्वयं को सफलता के मार्ग पर अग्रसर कर सकेंगे।

दोनों ही पुस्तक प्रभात प्रकाशन से है तो प्रिंट क्वालिटी और पेपर एक ही तरह का है। “मेरी जीवन-यात्रा” पुस्तक की अन्दर के पृष्ठों की डिजाईन में एक बात ये ख़ास ई कि इसमें हर नये अध्याय से पहले डॉ. कलाम और उनसे जुड़े कुछ लोगों के स्केच मुद्रित किये हैं जो इसे आकर्षक भी बनाते हैं और हमें भावात्मक रूप से भी डॉ. कलाम से जोड़ते हैं।


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Saturday, October 19, 2019

अग्नि की उड़ान

नाम                  -   अग्नि की उड़ान
लेखक               -  डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम
लेखन सहयोगी    -  श्री अरुण तिवारी
फॉर्मेट                -   पेपरबैक
पृष्ठ संख्या           -  196 पेज
मूल्य                  -   ₹132
प्रकाशक            -  प्रभात प्रकाशन
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“अग्नि की उड़ान” पुस्तक डॉ. कलाम की आत्मकथा “विंग्स ऑफ़ फायर” [Wings of Fire] की हिन्दी एडिशन है। डॉ. कलाम का पूरा जीवन जी हर आयुवर्ग के लोगों को प्रेरणा देने वाला रहा है। उन्होंने एक ऐसा आदर्श जीवन जिया है कि हर गरीब-से-गरीब व्यक्ति और अमीर-से-अमीर व्यक्ति उन्हें पढ़कर उनसे बहुत कुछ सीख सकता है। इस पुस्तक को मुख्यतः युवाओं को ध्यान में रखकर लिखा गया है। इस पुस्तक में अभावों से लड़कर, परिश्रम से सफ़लता के बड़े-बड़े कीर्तिमान गढ़ने की प्रेरणा प्रदान करने की शक्ति निहित है, साथ ही ये पुस्तक वैज्ञानिक आत्मनिर्भरता एवं प्रद्यौगिकी दक्षता हासिल करने के लिए भारत के संघर्षशील प्रयासों की भी गाथा है। इस पुस्तक में उन वैज्ञानिक प्रतिष्ठाओं का इतिहास समाहित है जो स्वयं को तकनीकि क्षेत्र में स्थापित करने के लिए प्रयासरत हैं। इस पुस्तक के लेखन सहयोगी श्री अरुण तिवारी जी का कहना है कि “इस पुस्तक को पढ़ते हुए आप डॉ. कलाम का सानिध्य अनुभव करेंगे और वे आपके आत्मीय मित्र बन जायेंगे।” इस किताब को पढ़कर मेरा जो अनुभव रहा है उसके आधार पर कह सकता हूँ कि श्री अरुण तिवारी जी ने अक्षरशः सत्य कहा है। मैं सभी लोगों को यह किताब पढ़ने की सलाह दूँगा। इसको पढ़कर आप निश्चित ही अपने जीवन की सभी समस्याओं को हल करके उसे एक नयी दिशा देने के लिए प्रेरित होंगे। इस पुस्तक को पढ़ने के बाद मैंने दो लेख लिखे थे, दोनों ही लेख आपको इस पुस्तक को अच्छे से समझने में मदद करेंगे। आप टाइटल पर क्लिक करके लेख पढ़ सकते हैं-

1) अग्नि की उड़ान, सलाम मेरे कलाम
2) डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के नाम पत्र 

किताब की प्रिंट क्वालिटी अच्छी है। परन्तु इसके अन्दर के पृष्ठ की डिज़ाइन बहुत साधारण रखी है उसे और बेहतर किया जा सकता था और यदि वो चमकदार सफ़ेद पेपर पर मुद्रित होता तो बात ही अलग होती। अच्छी बात ये है कि पूरे पुस्तक के हर अध्याय की शुरुआत पर डॉ. कलाम की तस्वीर इसके आकर्षण में वृद्धि करती है। इस पुस्तक का कवर डिज़ाइन बहुत यूनिक है, सामने और पीछे दोनों की तरफ कवर अन्दर की तरफ मोड़कर एक फ्लैप जैसा बनाया गया है। फ्रंट कवर के फलैप पर पुस्तक के ही कुछ अंश जो “त्रिशूल” परियोजना से सबंधित है वो संक्षित में मुद्रित है तथा बैक के फ्लैप पर डॉ. कलाम और  श्री अरुण तिवारी के बारे में संक्षित जानकारी मुदित है। प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित इस पुस्तक पर एक 3D होलोग्राम भी लगाया है जिससे नकली पुस्तकों से बचा जा सके। इसलिए कृपया होलोग्राम देखकर ही खरीदें।


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रिच डैड पूअर डैड


नाम            -  रिच डैड पूअर डैड
लेखक         -  रॉबर्ट टी. कियोसाकी
फॉर्मेट         -  पेपरबैक
पृष्ठ संख्या    -  320 पेज
मूल्य           -  118
प्रकाशक     -  मंजुल पब्लिशिंग हाउस
खरीद         -  Amazon (Buy Now)

बेस्टसेलिंग रही इस किताब में अमीर बनने के परम्परागत तरीकों हटकर कुछ नया सिखाया गया है। इस पुस्तक ने ये मिथ तोड़ा कि मकान आपकी संपत्ति है। इस पुस्तक के अनुसार नौकरी करो, मेहनत करो पैसा बचाओ ये तरीका बहुत पुराना हो गया है। पैसे बचाकर अमीर बनने का तरीक़ा तब का है जब मानव गुफाओं में रहा करते थे। अब नया दौर है और तरीके भी नये हैं। उन्हीं तरीकों को जानने-समझने तथा वित्तीय-बुद्धि विकसित करने के लिए इस पुस्तक को कम-से-कम एक बार हर इंसान को पढ़नी चाहिए। विशेष रूप से ऐसे लोग जिन्होंने हाल में नौकरी या बिजनेस शुरू किया हो वो लोग ज़रूर पढ़ें। वैसे ये किताब उससे पहले पढेंगे तो शायद आपको नौकरी और बिजनेस में से विकल्प चुनने में आसानी रहेगी और आप ऐसा विकल्प चुनेंगे जो आपकी ज़िन्दगी के लिए सही रहेगा। इस पुस्तक में मुख्यतः ये बात समझाई गयी है कि “पैसे के लिए काम न करके पैसे से अपने लिए कैसे काम करवाया जाये” ये बात अभी अचरज भरी लग सकती है परन्तु पुस्तक पढ़ने पर समझ आयेगा कि ये करना न केवल आवश्यक ही है बल्कि बहुत आसान भी है। अमीर लोगों के सोचने और गरीब लोगों के सोचने में मुख्य अंतर क्या होता है वो इस पुस्तक में कई उदाहरणों से समझाया गया है। हर बात बहुत सरल और उदारहरण के साथ लिखी जाने से हमें बहुत आसानी से और जल्दी समझ आ जाती है।

किताब की प्रिंट क्वालिटी भी बहुत कमाल की है, सभी पृष्ठ ऐसे डिजाईन किये गये हैं कि पढ़ते की रोचकता कई गुना बढ़ जाती है और इसका कवर की डिज़ाइन भी बहुत सुन्दर है।


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