साभार इंटरनेट : चित्र और लेख में दी गयी गणनाओं की जानकारी |
“बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” योजना महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय, परिवार कल्याण मंत्रालय और मानव संसाधन विकास की एक संयुक्त पहल का नाम है। इसका प्रमुख उद्देश्य बालिकाओं को संरक्षित और सशक्त बनाना है। इसकी शुरुआत 22 जनवरी 2015 को हुयी। बड़े दुःख का विषय है कि आज भी हमारे समाज में बहुत बड़े स्तर पर लड़कियों को लड़कों से कम आँका जाता है। इसी सामाजिक बुराई के चलते भ्रूण-हत्या जैसे जघन्य अपराध आजकल बहुत बढ़ गये हैं। हालाँकि सरकार ने भ्रूण-ह्त्या रोकने के तमाम प्रयास किये लेकिन पूर्ण सफलता से वंचित रही है। क्योंकि इसकी पूर्ण सफलता तभी हो सकती जब हमारे समाज की मानसिकता में बदलाव होगा। “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” अभियान के तहत ऐसे कई जागरूकता कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं जो सुनिश्चित करते हैं कि वो हमारे समाज की मानसिकता में लगा ये लिंगानुपात का कीड़ा निकल सके।
हमारे देश में लिंगानुपात कितना चिंताजनक है ये इन आँकड़ों से समझा जा सकता है। (0 से 6) शून्य से छः वर्ष की आयुवर्ग में लिंगानुपात, सन् 1991 में हुयी जनगणना के आँकड़ों के अनुसार 1000 लड़कों पर लड़कियों का अनुपात 945 था, जो कि सन् 2001 की जनगणना में घटकर 927 पर आ गया और यह सन् 2011 की जनगणना के समय 918 ही रह गया। अर्थात् हमारे यहाँ लड़कियों की संख्या दिन-प्रति-दिन घटती जा रही है। अगर हालात यही रहे तो देश की स्थिति विषम और चिंताजनक ही रहेगी। इसलिये हमें सबसे पहले अपने स्तर पर भ्रूणह्त्या रोकना होगा। उसके बाद औरों को जागरूक करना होगा।
बड़े आश्चर्य का विषय है कि एक माँ जो कि स्वयं लड़की है वो अपने गर्भ में पल रही अपनी ही एक बेटी को मारने के लिये तैयार हो जाती है। अगर उसी माँ से कोई कहे कि जो गर्भ में है उसे रहने दो जो आपके सामने खड़ी है उस लड़की को जहर दे दो तो भी क्या वो तैयार हो जायेगी? वो ऐसा सिर्फ इसलिये कर पाती है क्योंकि गर्भ में पल रही लड़की की चीख उसके कानों तक नहीं पहुँचती, लेकिन डॉक्टर्स का कहना है कि भ्रूणहत्या के दौरान उसकी भी चीख निकलती है जिसे डॉक्टरी भाषा में “मूक-चीख” कहा जाता है। मैं आपका ध्यान विशेष रूप से इस ओर आकर्षित करना चाहता हूँ कि जब किसी भ्रूण की ह्त्या करनी होती है तो सर्वप्रथम उस भ्रूण को आधुनिक यत्रों की सहायता से काटकर उसके टुकड़े-टुकड़े किये जाते हैं फिर उसकी मृत्यु के पश्चात उसे शरीर से अलग कर दिया जाता है। अब ज़रा सोचिये कि जो बेटी पिछले कुछ सालों से आपके साथ रह रही है अगर उसकी ऊँगली भी कट जाती है तो आपको भारी दुःख होता है लेकिन आप अपनी ही दूसरी बेटी को जिन्दा कटवा देते हैं। लोग इतनी बेरहमी इतनी बेदर्दी कहाँ से लाते हैं?
इस पूरी हत्या के लिये जिम्मेदार सिर्फ वो दो लोग नहीं हैं जिनकी वो बेटी थी बल्कि वो पूरा समाज है जिसके कारण उन्होंने ऐसा कदम उठाया। आधुनिक समाज में बेटियों पर छींटाकशी करना, उनसे छेड़छाड़ करना ऐसे-ऐसे अपराध समाज में किसी महामारी की तरह फ़ैल रहे हैं और यही कारण है कि हर माता-पिता को अपनी बेटी का भविष्य इसी अंधकार में दिखायी पड़ता है तो वो उसे जीवन देने से ही परहेज करते हैं। देखा जाये तो अगर हम समाज से छेड़छाड़, बलात्कार, दहेज़ प्रथा जैसे अपराधों को ख़त्म कर सकें तो भ्रूणह्त्या का औचित्य अपने-आप ही समाप्त हो जायेगा। इसलिये हमें हमारे समाज की बुराइयों से लड़ना है उसका विरोध करते रहना है कि यही एकमात्र तरीका है देश को उज्जवल भविष्य देने का। अगर हर किसी बेटी को पढ़ने का अवसर मिल जाये, समाज में रहने की सुरक्षा मिल जाये, जीवन में प्रतिभा दिखाने का अवसर मिल जाये, शादी के लिये एक ऐसा अच्छा रिश्ता मिल जाये जो उसके पिता के पैसों को देखकर न तय हुआ हो बल्कि लड़की के गुणों को देखकर तय किया गया हो तो किसी को भी लड़कियों के जन्मने से क्या आपत्ति होगी? इसलिये सबसे पहले भ्रूणह्त्या के कारणों को समाप्त करना है और लोगों की मानसिकता में ये बात बिठानी है कि लकड़ियाँ लड़कों की अपेक्षा में कहीं आगे हैं। आज के समय में लड़कियाँ हर क्षेत्र में, चाहे वो शिक्षा का क्षेत्र हो, सुरक्षा का क्षेत्र हो, चिकित्सा का क्षेत्र हो या खेल का क्षेत्र हो सभी क्षेत्रों में लड़कों से आगे निकलकर अपना बेहतरीन प्रदर्शन कर रही हैं। लड़कियों में कोई कमी नहीं है बस जरूरत है उन्हें एक अच्छा अवसर देने की, एक अच्छा सुरक्षित और संस्कारित माहौल देने की और इन सबसे पहले जरूरत है उन्हें जीवन देने की।
अगर एक लड़का कुछ अच्छा करता है सिर्फ उसके परिवार का नाम ऊँचा होता है लेकिन जब एक लड़की कुछ अच्छा करती है तो दो-दो परिवारों का सिर गर्व से ऊँचा हो जाता है। कभी-कभी कुछ जगहों से कुछ ऐसी ख़बरें भी आती रहती हैं जहाँ कोई लड़की अपनी स्वतंत्रता का गलत फायदा उठाकर कुछ ऐसा करती है जिससे समाज में उसके माता-पिता का, उसके सास-ससुर उसके पति की छवि पर बुरा प्रभाव पड़ता है। ऐसे अपराध भी कहीं-न-कहीं कन्या भ्रूणह्त्या को बढ़ावा देते रहते हैं। इसलिये मेरी लड़कियों से प्रार्थना है कि वो कुछ ऐसा न करें जिससे उनका और उनके परिवार का नाम ख़राब हो क्योंकि उनके ऊपर तो दो-दो घरों की जिम्मेदारी रहती है। सामाजिक परस्थितियाँ ऐसी हैं कि लड़कियों पर दोषारोपण जल्दी किया जाता है इसलिये आवश्यक है कि लड़कियाँ जो भी कार्य करें, जो भी निर्णय लें उसपर अमल करने से पहले उसके परिणाम के विषय में अवश्य सोंचे। आपको ये समझना होगा कि अपने पिता, भाई या पति की बात मानने से आपका सम्मान कम नहीं हो रहा वरन बढ़ता है। अगर किसी लड़की के साथ कुछ हो जाए तो समाज वाले उन लड़कों को दोष देने की जगह लड़कियों को ही दोष देते हैं। ये महिलायें जो अधिकार के नाम पुरुषों को तमाचा जड़ने का वीणा लेकर घूम रहीं हैं वो आज तो आपको अपनी व्यक्तिगत ज़िन्दगी के नाम पर मस्ती करने को कहकर रात को बारह बजे डिस्को ले जायेंगी लेकिन अगर कुछ हुआ तो सबसे पहले वही तुम पर थूकेंगी। आज भी अनुसाशित माँ सीता की हमारे घरों में पूजा की जाती है और स्वच्छन्द विचरण करने वाली सूपर्णखा को धिक्कारा जाता है। हमेशा याद रहे कि स्त्री पुरुष की अर्धांगिनी है तो जिस तरह बिना स्त्री के पुरुष अधूरा है उसी तरह बिना पुरुष के स्त्री भी अधूरी है। अगर कोई पुरुष कुरीतियों के नाम पर स्त्री को नीचा दिखाये तो वो गलत है इसी तरह कोई स्त्री अधिकार के नाम पर अपने पति, भाई या पिता के सम्मान को ठोकर मानकर आगे बढ़ने की कोशिश करे तो वो भी गलत है। आपको ज्ञान होना चाहिये कि कहाँ अड़ना है और कहाँ झुकना है। बड़े शायर मज़ाज़ साहब का ये शेर लड़कियों को समर्पित करता हूँ कि
“तेरे माथे पे ये आँचल बहुत ही खूब है लेकिन,
तू इसका परचम बना लेती तो अच्छा था...”
इसलिये अपनी सभ्यता, अपने संस्कार की राह पर चलते हुये आगे बढ़िये, अनुशासित रहिये और कुछ ऐसा करिये कि हर माता-पिता ईश्वर से न केवल बेटी पाने की प्रार्थना करे बल्कि आपके जैसी बेटी पाने की चेष्टा करे। ऐसा करके आप अपना, अपने परिवार का, अपने समाज का, अपने देश का नाम भी रौशन करेंगी और साथ ही आपका भ्रूणहत्या रोकने में भी अभूतपूर्व योगदान होगा।
साथ ही मैं यहाँ बैठे सभी अभिभावकों से भी निवेदन करता हूँ कि वो सभी अपने-अपने घर से एक मुहीम शुरू करके उसे आगे बढ़ायें और समाज में अपनी बेटियों को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करें। इसके लिये सबसे पहले तो वो अपनी बेटियों को जन्म लेने दें फिर उन्हें अच्छे संस्कार, अच्छी शिक्षा, आगे बढ़ने के अच्छे अवसर प्रदान करें। उनके साथ स्वतंत्रता और अनुसाशन का तालमेल रखें, उन पर भरोसा भी करें और पैनी दृष्टि से उनपर नियंत्रण भी रखें, उन्हें बार-बार यह एहसास दिलायें कि वो आपका भरोसा न तोड़ें। इस तरह उन्हें एक बेहतरीन और शानदार ज़िन्दगी दें, फिर अपनी बेटियों की ज़िन्दगी को उदाहरण स्वरुप समाज के सामने प्रस्तुत करें औरों को भी ऐसे नेक कामों के लिये प्रेरित करें और एक सुदृढ़ समाज, सुदृढ़ देश का निर्माण करें। आप अपने कर्तव्य को इस नज़रिये से देखें, कि आपको अपनी बेटियों को एक अच्छी ज़िन्दगी देना है न कि सिर्फ शादी कर दिया बस हो गया कर्तव्य पालन। आपकी बेटी सिर्फ आपकी अमानत नहीं है बल्कि पूरे समाज की बेटी है इसलिये आप उसे कैसे संस्कार देते हैं, कैसी शिक्षा देते हैं, इसका प्रभाव न केवल उसके जीवन में पड़ेगा बल्कि पूरे समाज पर तथा समाज की अन्य तमाम लड़कियों के जीवन पर पड़ेगा। इसलिये आप अपनी बेटी को अच्छी ज़िन्दगी देने का काम बड़ी ज़िम्मेदारी के साथ करें।
आप क्या करते हैं यह तय करेगा कि कन्या भ्रूणह्त्या होगी कि नहीं होगी? हो सकता है कि आपकी बेटी को अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते देखकर किसी और पिता को लालच आये कि वो भी अपनी बेटी को ऐसी ही ज़िन्दगी देगा, वो भी अपनी बेटी को उसके लक्ष्य तक पहुँचायेगा। हो सकता है आपकी बेटी को देखकर किसी एक के मन से ये बात निकल जाये कि उसे बेटी नहीं चाहिये, हो सकता है कोई एक व्यक्ति अस्पताल में बैठकर आपकी लड़की के बारे में सोचे और वो बिना भ्रूणह्त्या का अपराध किये ही अपनी पत्नी को वापस घर ले आये, हो सकता है कोई एक और माँ अपनी ही बेटी की ह्त्या के अपराध से बच जाये। केवल एक आपके प्रयास से कितने लोग अपराध से बच जायेंगे कितनी ही बेटियों को ज़िन्दगी मिल जायेगी, देश को न जाने कितनी पी. वी. सिंधु मिल जायेगी, न जाने कितनी कल्पना चावला मिल जायेगी। न जाने कितने पिताओं को एक अच्छी बहू मिल जायेगी जो उनके बुढ़ापे की लाठी बनेगी, फिर वो वृद्ध पिता आपको कितना आशीर्वाद देगा, जिन बेटियों की जान आपकी वजह से बच जायेगी, जो माता-पिता ह्त्या के अपराध से बच जायेंगे उन सबका पुण्य आपको मिलेगा। केवल और केवल आपके एक प्रयास से आप देश को, समाज को बहुत कुछ दे सकते हैं। मैं अपेक्षा करता हूँ कि सब अपने-अपने स्तर पर सहयोग करिये, लड़कियाँ अच्छी बेटियाँ बन जायें, अभिवादकगण अच्छे माता-पिता बन जायें, समाज सामूहिक रूप से उन बुराइयों के विनाश के लिये वचनबद्ध हो जाये जो भ्रूणह्त्या के कारण हैं। अपनी बात के समापन पर मैं आप सबसे प्रार्थना करना चाहता हूँ कि “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” देश का भविष्य उज्जवल बनाओ...
जय हिंदी
जय भारत
साथ ही मैं यहाँ बैठे सभी अभिभावकों से भी निवेदन करता हूँ कि वो सभी अपने-अपने घर से एक मुहीम शुरू करके उसे आगे बढ़ायें और समाज में अपनी बेटियों को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करें। इसके लिये सबसे पहले तो वो अपनी बेटियों को जन्म लेने दें फिर उन्हें अच्छे संस्कार, अच्छी शिक्षा, आगे बढ़ने के अच्छे अवसर प्रदान करें। उनके साथ स्वतंत्रता और अनुसाशन का तालमेल रखें, उन पर भरोसा भी करें और पैनी दृष्टि से उनपर नियंत्रण भी रखें, उन्हें बार-बार यह एहसास दिलायें कि वो आपका भरोसा न तोड़ें। इस तरह उन्हें एक बेहतरीन और शानदार ज़िन्दगी दें, फिर अपनी बेटियों की ज़िन्दगी को उदाहरण स्वरुप समाज के सामने प्रस्तुत करें औरों को भी ऐसे नेक कामों के लिये प्रेरित करें और एक सुदृढ़ समाज, सुदृढ़ देश का निर्माण करें। आप अपने कर्तव्य को इस नज़रिये से देखें, कि आपको अपनी बेटियों को एक अच्छी ज़िन्दगी देना है न कि सिर्फ शादी कर दिया बस हो गया कर्तव्य पालन। आपकी बेटी सिर्फ आपकी अमानत नहीं है बल्कि पूरे समाज की बेटी है इसलिये आप उसे कैसे संस्कार देते हैं, कैसी शिक्षा देते हैं, इसका प्रभाव न केवल उसके जीवन में पड़ेगा बल्कि पूरे समाज पर तथा समाज की अन्य तमाम लड़कियों के जीवन पर पड़ेगा। इसलिये आप अपनी बेटी को अच्छी ज़िन्दगी देने का काम बड़ी ज़िम्मेदारी के साथ करें।
आप क्या करते हैं यह तय करेगा कि कन्या भ्रूणह्त्या होगी कि नहीं होगी? हो सकता है कि आपकी बेटी को अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते देखकर किसी और पिता को लालच आये कि वो भी अपनी बेटी को ऐसी ही ज़िन्दगी देगा, वो भी अपनी बेटी को उसके लक्ष्य तक पहुँचायेगा। हो सकता है आपकी बेटी को देखकर किसी एक के मन से ये बात निकल जाये कि उसे बेटी नहीं चाहिये, हो सकता है कोई एक व्यक्ति अस्पताल में बैठकर आपकी लड़की के बारे में सोचे और वो बिना भ्रूणह्त्या का अपराध किये ही अपनी पत्नी को वापस घर ले आये, हो सकता है कोई एक और माँ अपनी ही बेटी की ह्त्या के अपराध से बच जाये। केवल एक आपके प्रयास से कितने लोग अपराध से बच जायेंगे कितनी ही बेटियों को ज़िन्दगी मिल जायेगी, देश को न जाने कितनी पी. वी. सिंधु मिल जायेगी, न जाने कितनी कल्पना चावला मिल जायेगी। न जाने कितने पिताओं को एक अच्छी बहू मिल जायेगी जो उनके बुढ़ापे की लाठी बनेगी, फिर वो वृद्ध पिता आपको कितना आशीर्वाद देगा, जिन बेटियों की जान आपकी वजह से बच जायेगी, जो माता-पिता ह्त्या के अपराध से बच जायेंगे उन सबका पुण्य आपको मिलेगा। केवल और केवल आपके एक प्रयास से आप देश को, समाज को बहुत कुछ दे सकते हैं। मैं अपेक्षा करता हूँ कि सब अपने-अपने स्तर पर सहयोग करिये, लड़कियाँ अच्छी बेटियाँ बन जायें, अभिवादकगण अच्छे माता-पिता बन जायें, समाज सामूहिक रूप से उन बुराइयों के विनाश के लिये वचनबद्ध हो जाये जो भ्रूणह्त्या के कारण हैं। अपनी बात के समापन पर मैं आप सबसे प्रार्थना करना चाहता हूँ कि “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” देश का भविष्य उज्जवल बनाओ...
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- कुमार आशीष
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