इन्टरनेट से साभार |
डॉ. कुमार विश्वास आधुनिक साहित्य जगत में एक बड़ा और विवादित नाम है। इनकी बुराई ज्यादतर ऐसे कवियों के मुँह से सुनने को मिलती है जो स्वयं कविता की वाचिक परम्परा से दूर हैं। काव्य-मंचों की भी बुराई ज्यादातर वही लोग करते हैं जो स्वयं काव्य-मंच से दूर हैं। लोग कुमार विश्वास के मुक्तक पढ़कर कहते हैं कि उन्हें गीत लिखना नहीं आता। मुझे कविता की समझ नहीं है तो हो सकता है कि कुमार विश्वास की कमियों को मैं नहीं पकड़ पा रहा हूँ। लेकिन मुझे कोई ये तो समझाये कि आपकी नज़रों में ‘अच्छा-गीत’ किसे कहा जा सकता है? अगर कुमार विश्वास को पसन्द करने वालों की संख्या करोड़ों में है तो आप कहते हैं ये कोई मानक नहीं हुआ कि उनकी रचनाएँ बेहतरीन हैं, मार्केटिंग करके कोई भी फेमस हो सकता है। अगर कुमार विश्वास का मानदेय थोड़ा ज्यादा है तो आप कहते हैं पैसों से तय नहीं किया जा सकता है कि उनकी रचनाएँ बेहतरीन हैं। अगर हिन्दी कविता से दूर रहने वाले युवा पीढ़ी के लोग अपने कॉलेज के फेस्टिवल में कवि-सम्मलेन करवाते हैं और ख़ुद भी कुछ लिखने/सुनाने की कोशिश करते हैं और इसका श्रेय वो कुमार विश्वास को देते हैं तो आप कहते हैं ये जुमलेबाजी का कमाल है तो आपकी नज़र में गीत किसे कहा जाता है? आपके अनुसार जो आप लिख रहे हैं वो कविता है बाकी सब तुकबंदी है? लेकिन कैसे? इसका कोई मापन नहीं दे रहे हैं आप? मैं समझता था जो जन-साधारण लोग हैं जिन्हें व्याकरण का इतना ज्ञान नहीं है जिनके शब्दकोश में अधिकतर दैनिक-जीवन में प्रयोग होने वाले शब्दों के अतिरिक्त शब्द नहीं है ऐसे लोग भी जिस कविता को समझकर उसका आनन्द उठा सकें उसे अच्छा कहा जाये। जो जन-सामान्य को स्वीकार्य हो लेकिन लग रहा है मैं गलत हूँ। मुझे ये तो हजारों लोग कहते हैं कि कुमार विश्वास के पास गीत का शिल्प नहीं है लेकिन क्यों नहीं है, ये कोई नहीं बताता। एक वक़्त था जब सोशल मिडिया नहीं थी, अखबारों का भी इतना बोल-बाला नहीं था, सब लोग पत्रिकाएँ नहीं खरीद पाते थे, उस वक़्त में भी लोगों की ज़बान पर चढ़कर श्री हरिवंश राय बच्चन, श्रीरामधारी सिंह दिनकर जी की रचनाएँ मीलों का सफ़र तय करती थीं उस युग में स्वीकार्य रचनाओं को हम आज भी बड़े चाव से पढ़ते/सुनते हैं। इस हिसाब से अगर मैं ये धारणा बना लूँ कि जो अच्छा लिखा जा रहा है वो लोगों को पसन्द आ रहा है तब तो कुमार विश्वास को भी करोड़ों लोग पसन्द करते हैं।
कविता की वाचिक परम्परा में एक वक़्त ऐसा भी था कि जब कुमार विश्वास कवि-सम्मेलनों से रात को घर आते थे तो उनके पिताजी नाराज़ होते थे। मैंने और भी कई काव्य-प्रेमियों से सुना है कि वो किशोरावस्था में भी लिखते थे लेकिन घर वालों से छुपाते थे उन्हें डर लगता था कि कोई क्या कहेगा? जबकि आज हम लोग जो भी टूटा-फूटा लिखते हैं अपने घर वालों को भी पढ़ाते हैं और बिना डरे किसी से बताते हैं बल्कि कई बार तो ‘बहुत ज्यादा’ बताते हैं, तो मुझे लगता है ये धरातल जिस पर खड़े होकर मेरी उम्र के लड़के/लड़कियाँ कविता लिखने की कोशिश बिना डरे कर सकते हैं वो हमें कुमार विश्वास और आशीष देवल जैसे गीतकारों से मिला है।
‘कुमार विश्वास के पास गीत नहीं है, उन्हें लिखना नहीं आता, वो तो भांड हैं’ ऐसी टिपण्णी करने वाले कवियों ने अपनी रचनाओं पर कहाँ से सर्टिफिकेट लिया है कि वो बहुत अच्छा लिख रहे हैं, उन्होंने किस मापन से समझा है कि वो कुमार विश्वास से बेहतर हैं जबकि न ऐसे लोग मंच पर हैं, न प्रकाशक इनके पीछे पड़ा है कि अपनी किताब छपवा लो, न श्रोता/पाठक परेशान हैं इनके लिये तो इन्हें कैसे पता कि ये बहुत बेहतरीन लिख रहे हैं? कोई मापन है या ख़ुद ही अपने मन में मानकर बैठे हैं कि उनके जैसा रचनाकार अब इस धरती पर और कोई नहीं है।
[कुमार विश्वस मुझे नहीं जानते हैं, न मुझे वो मंच देंगे न मुझे वो पैसा भेजने वाले हैं, न मेरी तारीफ़ में अपने पेज पर कुछ लिखने वाले हैं ये सब मेरे मन के उद्गार हैं, पूरे लेख का स्वार्थ इतना है कि मैं समझ सकूँगा कि ‘अच्छी कविता’ का मापन क्या है? ये पोस्ट किसी के पोस्ट से प्रेरित नहीं है कोई अपने ऊपर लेता है तो इसका मतलब सूरज ख़ुद जुगनू से रोशनी में प्रतियोगिता करना चाहता है, किसी को भी इस पोस्ट से दिक्कत हो तो रिपोर्ट कर सकता है डिलीट हो जायेगी]
धन्यवाद!
- कुमार आशीष
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सहमत हूँ आशीष जी आपसे लोगों के अंदर से जब कविता सुनने की ललक जा रही थी तब कुमार जी ने अपने आपको युवा हृदय सम्राट या युवावों के दिल की धड़कन बन कर अपने आपको प्रूव किया ...
ReplyDeleteमुझे नहीं लगता कुमार जी को सर्टिफिकेट की जरूरत है की वो अच्छे लेखक या अच्छे कवी है या नहीं उनके चाहने वालों की संख्या बल ही सब कह रही है ...
खैर छोड़ो आशीष जी आज कुमार सर का बड्डे है आज हम सिर्फ उनके दीर्घायु की कामना करेंगें बस...
सुन्दर और सार्थक प्रतिक्रिया के ह्रदय से आभार...
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