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परमपिता परमेश्वर जी
(बैकुण्ठ-धाम)
विषय : पृथ्वी पर हो रहे नये-नये खोज के हिसाब से मनुष्य को अपग्रेड करने के सम्बन्ध में प्रार्थना-पत्र
पृथ्वी पर सब कुशल-मंगल है, बस आपकी सर्वश्रेष्ठ कृतियाँ स्वयं को सर्वश्रेष्ठ साबित करने के लिए आपस में लड़ती रहतीं हैं। खैर, ये पत्र मैं आपसे किसी और काम के लिए एक विशेष निवेदन के तौर पर लिख रहा हूँ, जो कि आप विषय पढ़कर समझ गये होंगे।
प्रभु! बात ऐसी है कि आपने जिन मानवों को पृथ्वी पर भेजा था उन सबने बहुत तरक्की कर ली है। अभी भी नित-नए खोज में जुटे रहते हैं, जो कि अच्छा भी है। परन्तु कहते हैं न ‘विकास’ और ‘विनाश’ साथ-साथ चलते हैं, वही अब यहाँ हो रहा है। जैसे:- जिस तरह आप त्रेयायुग में कहीं से भी बैठकर कहीं किसी से बात कर लेते थे वैसे ही यहाँ भी अब सुविधा हो गयी है। इस सुविधा की शुरुआत पहले तो निम्न स्तर पर थी लेकिन अब बहुत सुलभ और सस्ती हो गयी है। रोज नए-नए अपडेट करते-करते आजकल ये सुविधा स्मार्टफोन का रूप ले चुकी है। इसके अलावा हर क्षेत्र में काम करने वाले लोगों का प्रमुख सहयोगी अब कम्यूटर है। इस समय पृथ्वी पर ऐसा कोई विभाग शायद ही बचा हो जिसमें कम्यूटर का दखल न हो। कम्यूटर की तरह एक लैपटॉप भी आता है जिसने काम और आसान कर रखा है। अब दिक्कत ये है प्रभु! कि हम लोगों का काम इन सब चीजों के बिना तो चल नहीं सकता है अतः हम इसे त्याग नहीं सकते और इसके लगातार इस्तेमाल से हमें अनेकों प्रकार के रोग हो रहे हैं। जैसे स्मार्टफ़ोन/लैपटॉप की स्क्रीन से निकलने वाली किरण हमारे आँखों पर बुरा प्रभाव डाल रही हैं। इन्टरनेट के माध्यम से सब जानकारी इतनी सुलभ है कि हमें याद रखना जरूरी नहीं लगता, इसके चलते हमारी स्मरण शक्ति कमजोर होती जा रही है। विभिन्न प्रकार के उत्पादों के निर्माण में फैक्ट्री से निकलने वाला धुआँ अनेकों बीमारियों का कारण बन रहा है। ऐसे अन्य तमाम प्रकार की परेशानियाँ यहाँ हो रहीं हैं।
उपर्युक्त स्थिति को देखते हुए मेरा निवेदन है कि अगर समय हो तो एक बार आप ही चक्कर मार लें या फिर नारद जी को भेजकर पृथ्वी की यथास्थिति का सर्वेक्षण करवा लें। अगर नारदजी आ जायें तो उन्हें हम एक फ़ोन भी दें देंगे तथा उसी में विडियो बनाकर भेज देंगे जिससे आप स्वयं देखकर पूर्ण रूप से परेशानी का आंकलन कर लेंगे। इसके बाद अब जरूरत है कि आप भी पृथ्वी से कुछ सीख लेकर अपनी फैक्ट्री में कुछ बदलाव करें, नई तकनीकि का इस्तेमाल वहाँ भी शुरू करें।
मैं देख रहा हूँ कि आदिमानव के समय से आज तक धरती पर पैदा होने वाले सभी मनुष्यों में दो-हाथ, दो-पैर, चलना-फिरना, बोलना-सुनना, देखना-समझना आदि जो फीचर्स थे वही अब भी हैं। अब वक़्त आ गया है कि समय की माँग को देखते हुए आप भी “अपग्रेडेड-इंसान” प्रोड्यूज करना शुरू कर दें। इसके लिए पूरी एक टीम को आप काम पर लगायें जो सबसे पहले ये रिचर्स करे कि बदलाव क्या -क्या करने हैं? उसके बाद कैसे करने हैं उस पर काम करे। जैसे:- मोबाइल/कम्प्यूटर से होने वाले नुकसान के लिए आँखों के सॉफ्टवेर को अपग्रेड किया जाए, या कोई ऐसा एन्टीवायरस पहले से इंस्टाल कर दिया जाये जो किरण रूपी वायरस को बे-असर कर सके।
पृथ्वी पर ही बसे एक शहर न्यूयॉर्क के स्पाइन सर्जरी एंड रिहैबिलिटेशन हॉस्पिटल के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध में सामने आया है कि मैसेज पढऩे के लिए सिर आगे की ओर जितना अधिक गर्दन झुकाते हैं, उस पर उतना ज्य़ादा भार पड़ता है। गर्दन और रीढ़ की हड्डी पर पडऩे वाला यह दबाव 4 से 27 किलोग्राम तक होता है। यानी जब हम मोबाइल फोन पर कोई मैसेज देखने के लिए 60 डिग्री एंगल पर गर्दन झुकाते हैं तो गर्दन और रीढ़ की हड्डी पर इतना दबाव पड़ता है कि जैसे कि हमारी गर्दन पर सात साल का बच्चा बैठा हो। अब इसके हिसाब से जरूरत है कि आप रीढ़ की हड्डी बनाने के लिए जो रॉ-मटेरियल इस्तेमाल कर रहे हैं उसमें तब्दीली की जाये। इसी तरह से और भी कई समस्याएँ हैं जिनका निराकरण आवश्यक है। हालाँकि इनके कुछ-कुछ हल हमारी पृथ्वी पर भी वैज्ञानिकों ने ढूँढ लिए हैं जैसे, आँख कमजोर हो जाये तो चश्मा पहनो या लेंस इस्तेमाल करो। परन्तु यदि वहाँ से ही इंसानों को अपग्रेड करके भेजेंगे तो यहाँ चश्मा पहने का झंझट नहीं रहेगा। ये सब तो वो बातें हुईं जो हार्डवेयर से जुड़ी हैं। अब कुछ सॉफ्टवेर सम्बन्धी भी समस्याएँ हैं:-
सॉफ्टवेर से सम्बन्धित जो पहली समस्या है वो मोबाइल से जुड़ी है। देर रात तक मोबाइल के इस्तेमाल से अनिद्रा की शिकायत बढ़ती जा रही है। वैज्ञानिकों का कहना है हमारे दिमाग में एक घड़ी जैसी कोई ग्रंथि है जो हमें दिन-रात के हिसाब से सुलाने और जगाने का काम करती है। जब हम देर रात तक मोबाइल में लगे रहते हैं तो वो घड़ी अपना काम ठीक से नहीं कर पाती है जिससे हमारे सोने-जागने का समय बदल जाता है। ऐसे में हमारी नींद नहीं पूरी हो पाती फिर गाड़ी चलाते हुए या ऑफिस में काम करते हुए सोने का खतरा बना रहता है। ऑफिस में सोये तो नौकरी गयी, गाड़ी चलाते हुए सोये तो ज़िन्दगी। अर्थात् ये भी भीषण समस्या है। इसके लिए आप घड़ी को नए सॉफ्टवेर से अपडेट करिये जिससे हम उसमें अपने हिसाब से सोने और जागने का अलार्म सेट कर सकें।
दूसरी समस्या है तनाव। यहाँ पैदा होते टाइम कौन ज्यादा रोया से लेकर मरते टाइम कौन कैसा था तक तगड़ा कम्पटीशन है प्रभु! इसी क्रम में, पढ़ाई में नम्बर, पार्टी में पैसा, ऑफिस में पोजीशन, सोसायटी में पावर सब जगह होड़ मची है। कहीं जरा-सी असफलता मिली तो हो गया तनाव। नम्बर कम आये-तनाव, पड़ोसी का लड़का पास हो जाये-तनाव, उसको प्रोमोशन मिल गया-तनाव, लड़की ने न कह दिया-तनाव। ऐसे ही पूरी ज़िन्दगी में हम सबसे ज्यादा कुछ कमाते हैं तो वो है-तनाव। इस स्थिति में सबसे बड़ी जरूरत है कि दिमाग में ‘क्लीन’ वाला और ‘फॉर्मेट’ वाला सिस्टम जोड़ा जाये। जिससे हम उस पल को, उस घटना को दिमाग से डिलीट कर सकें जो हमें तनाव दे सकता है। साथ ही फाइल मेनेजर जैसी सुविधाएँ जोड़ी जायें, ताकि जब हम कभी निराश होने लगें तो मोटिवेशन वाला फोल्डर जल्दी से ढूँढ सकें।
अब हमारी पृथ्वी हमारे रहने के तरीके में बहुत बदलाव आ गया है। मनुष्य यूँ तो किताबों में अभी भी सामाजिक प्राणी ही है, लेकिन कोई किसी के सुख-दुःख में भागीदार बनकर अपना समय जाया नहीं करना चाहता है। आधुनिकता की दौड़ में मनुष्यता लगभग मर चुकी है या कोमा में है। जानवरों में अभी कुछ एकता देखने को मिल जाती है लेकिन प्रभु! वो तो जानवर हैं उन्हें समय के महत्व क्या पता? हम लोग अब प्राचीन सभ्यता के नाम पर पूजा-पाठ करना, यज्ञ इत्यादि करना जिससे वातावरण शुद्ध हो, इन सब ढकोसलों में भरोसा नहीं रखते। हालाँकि कुछ लोग हैं जो अभी भी ऐसा करते हैं पर वो सब गँवार, अनपढ़ और बेवकूफ हैं। पढ़े-लिखे होकर के हम पूजा करने बैठ जायें ऐसे में कोई दोस्त या रिश्तेदार घर आ जाये तो क्या इज्ज़त रह जायेगी हमारी? समाज में पता चल जाये कि दूबे जी का लड़का पढ़ा लिखा होकर रोज माला जपने बैठ जाता है तब तो नाक कट जायेगी। लोग कहेंगे बाप ने मेहनत से पैसा कमाया, लड़के को पढ़ाया-लिखाया लेकिन लड़का नालायक निकला। अभी भी पूजा-पाठ में समय नष्ट कर रहा है। कुछ ऐसे भी लोग हैं जो अध्यात्म को जीवित रखने के लिये आधुनिक तकनीकि का खूब सहारा ले रहे हैं। ऐसे लोग मनोकामना आदि पूरा करने के लिए 108 बार ॐ लिखे मैसेज को 51 लोगों को फॉरवर्ड करवाकर लोगों की मदद कर रहे हैं। इसमें सबसे अच्छी बात ये है कि आप किसी भी जगह बैठकर ये मैसेज फॉरवर्ड कर सकते हैं, इसमें स्नानादि कोई पंगा नहीं है, न ही खाने-पीने को लेकर किसी विशेष नियम का पालन करना होता है।
पृथ्वी पर रहने के लिए आपके पास जिस एक चीज की सबसे ज्यादा आवश्यकता है, वो है—पैसा। जब आपको पुनः पृथ्वी पर आना होगा तो वन जाने का प्लान लेकर मत आना क्योंकि जिस तरह से हम तरक्की कर रहे हैं आने वाले कुछ दिनों में पृथ्वी पर वन तो क्या बगीचा नहीं बचेगा। यदि फिर भी कहीं जाना ही पड़े तो पैसा साथ लेकर जाइयेगा। अगर आपके पास पैसा नहीं रहेगा तो कोई पानी नहीं पूछेगा, उल्टा आपको लोग चोर या डाकू समझ सकते हैं।
खैर, ऐसी बहुत-सी बातें हैं जो आपको बतानी हैं लेकिन फिर कभी। अब बंद कर कर रहे हैं एक दूसरी चिट्ठी वेटिंग में आ रही है। लेकिन हे दयासिन्धु! मैंने जो निवेदन किया है उसके हिसाब से आप सर्वे करवा लीजियेगा। इन बदलावों के बिना मनुष्य का पृथ्वी पर जीना दुर्लभ हो रहा है। अगर मनुष्य ही नहीं रहेगा तो आपने जो सृष्टि बसाई है वो उजड़ जायेगी। आशा है आप परिस्थिति की गम्भीरता को देखते हुए जल्द ही “अपग्रेडेड-इंसान” बनाने का काम शुरू करेंगे।
सधन्यवाद!
आपका बनाया हुआ
पृथ्वी का एक जिम्मेदार वासी
- कुमार आशीष
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ये लिखी हृदय की बात
ReplyDeleteशुक्रिया भैया!
Deleteवाह वाह
ReplyDeleteआभार आपका
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