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Sunday, December 16, 2018

क्या वो भी ख़्वाबों का आदी है



क्या वो भी ख़्वाबों का आदी है,
जिससे हुई तुम्हारी शादी है।
क्या उसकी बातें भी तुमको कुछ नया ख्वाब दिखलाती हैं
और फिर उन ख्वाबों को पूरा करना भी सिखलाती हैं
क्या वो भी अक्सर बातों का ढेर लगाता है,
और बातें करते-करते कोई अच्छा शेर सुनाता है।

क्या वो भी ऑफिस की बातों से रातें बोरिंग करता है,
क्या वो भी सिर्फ तुम्हारे पेन से अपनी साइन करता है।
क्या कभी तुम्हारे गालों पर वो ऑटोग्राफ बनाता है,
या तुम्हें मनाने की खातिर कोई फोटोग्राफ सजाता बनाता है।

जब वो ऑफिस के कामों में बहुत बिजी हो जाता है,
“कॉल यू लेटर” वाला मैसेज पास तुम्हारे आता है।
क्या उसका मोबाईल भी सौ-सौ मिसकालों से भरती हो,
जब शाम को वो घर आता है क्या उससे भी झगड़ा करती हो।

क्या उसके किये बहानों पर भी तुम्हें भरोसा होता है,
क्या जैसे मेरे संग होता था सबकुछ वैसा होता है।
दिन भर क्या-क्या किया आज क्या सबकुछ उसे बताती हो,
या “थके हुए हो सो जाओ” ये कहकर प्यार जताती हो।

क्या सर्दी में बाइक से घर आने पर उसका भी हाथ रगड़ती हो,
और फिर काली चाय पिलाने की खातिर कभी अकड़ती हो।
क्या उससे भी अपने बचपन वाली सब बातों को बता दिया,
जितना अधिकार जताती थी क्या सब उस पर भी जता दिया।

निभा रही हो तुम जिसके संग जीवन की सब रस्मों को,
क्या वो भी निभा रहा है अपने सब वादों, सब कसमों को।
क्या वो भी तुमसे कहता है, “विस्तार तुम्हारा अम्बर तक,
दुनियाँ क्या रोकेगी तुमको, इसकी औकात महज आडम्बर तक”

जिन आँखों के खालीपन में कुछ ख़्वाब सजाये थे मैंने,
जिन अधरों की मुस्कानों पर कुछ गीत बनाये थे मैंने।
जिन अभिलाषाओं के पूजन में मेरे दिन-रात कटा करते,
जिनकी प्यारी बातों से मन के सब दोष छटा करते।
क्या उन आँखों, उन अधरों पर मेरी छुअन अभी भी है,
क्या मुझको न पाने की खातिर कोई चुभन अभी भी है।

मैं नहीं तुम्हारा हो पाया, पर गीत मेरे सब तेरे हैं,
मेरा प्यार, दुआ मेरी, एहसास, शब्द जो मेरे हैं,
सब तुम्हें समर्पित करता हूँ, तुम रखना अब इन्हें सम्भाल,
जीवन हँसकर जी लेना, आगे बढ़ना, करना कमाल।

मेरा क्या है, मैं तो शायर हूँ, ख़्वाबों के संग जी लूँगा,
जीवन मंथन के विष को मैं महादेव बन पी लूँगा।
मैं बस्ती-बस्ती, द्वारे-द्वारे अपना गीत सुनाऊँगा,
कभी किया था जो मोहन ने वो सबको प्रेम सिखाऊँगा।

- कुमार आशीष
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