सुनो! मुझे एक बात बतानी है। आजकल मैं अपनी अधजगी रातों और अलसाये दिनों में, खुली-बंद आँखों से बहुत-से ख़्वाब देखने लगा हूँ। एक ऐसा ख़्वाब जो शायद पूरा भी हो और न भी हो। मैंने ख्वाब में देखा तुमसे बातें करते हुए मैं मुस्कुरा रहा था, मैंने खुद को इतना खुश कभी बड़ी-से-बड़ी सफलता पर भी नहीं देखा जितना खुश तुम्हारे साथ होने भर से था। मैंने ख्वाब में खुद को अकेले बैठकर तुम्हारे बारे में सोचते हुए देखा, मैंने जाना कि मैं क्या सोच रहा था... मैं सोच रहा था कि जिस लड़के को कभी अपनी पसन्द का एक परिधान तक पाने की ख्वाहिश नहीं हुई वो अचनाक इतने ख़्वाब कैसे पाल रहा है? लेकिन अब जो मेरी चाहत है वो है...
मैं चाहता हूँ कि मैं तुमसे अपने सभी सपने बता दूँ, तुम हँस भी दोगी तो बुरा नहीं लगेगा। तुमसे बता दूँ कि मैं जिन्दगी में पैसे, नाम, पद-प्रतिष्ठा के पीछे भागते हुए मरना नहीं चाहता, मैं जिन्दगी में प्यार, व्यवहार और सद्विचार के साथ यात्रा करना चाहता हूँ, मैं ईमानदार रहना चाहता हूँ, मैं चाहता हूँ कि मैं किसी की मदद का निमित्त बन सकूँ। मैं अपना बचपना और उसकी निश्चलता अपने जीवन की आख़िरी साँस तक साथ रखना चाहता हूँ, मैं बहुत समझदार बनने से बचना चाहता हूँ। मैं अपनी इस भौतिक सुविधा विहीन परन्तु स्नेह, शान्ति, सुकून और आनंद से भरे जीवन यात्रा में तुम्हें अपना सहयात्री बनाना चाहता हूँ। इस यात्रा के दौरान हम दोनों एक-दूसरे की सफलता, असफलता, हँसी-ख़ुशी, दुःख-दर्द सब में समान रूप से सहभागी रहें। कभी मैं तुम्हें प्रेरित करूँ, कभी तुम मुझे, हम दोनों मिलकर अपने परिवार, अपने गाँव-समाज, अपने देश के लिए क्या कर सकते हैं वो सोचे, उसके लिए परिश्रम करें और ईश्वर से सफलता की प्रार्थना करें। मैं तुम्हें भगवान् की आरती उतारते हुए या पूजा की थाल से जरा-सा लाल चन्दन मेरे माथे पर लगाते हुए बड़े हर्ष और सम्मान के साथ देखना चाहता हूँ। मैं पूरी दुनियाँ को बताना चाहता हूँ कि तुमने मेरा घर, मेरा जीवन सब अपने माता-पिता के दिए उच्च संस्कारों से मंदिर की तरह पवित्र कर दिया है। तुम्हें पाकर मैं ही नहीं मेरे माता-पिता, यार-दोस्त, रिश्तेदार, कुल-खानदान के लोग भी धन्य हो रहे हैं...
मैं चाहता हूँ कि कभी-कभी हम दोनों अपने व्यवसायिक जीवन से फुर्सत के कुछ दिन चुरायें और फिर बंजारों की तरह धरती का हर कोना अपनी आँखों से देखने निकल पड़ें। कभी हम रेगिस्तान में उड़ती रेत के बीच अपनी आँखों को अपने हाथों से ढाँपे आगे बढें और फिर प्यास एवं थकान से व्याकुल एक दूसरे के सूखते होंठों को देखकर कहीं थोड़ी-सी छाया खोजे और वहीं सुस्ताते हुए दुनियाँ-जहान की बातें करें। वैसे भी हम दोनों के पास कभी न ख़त्म होने वाली बातें तो हैं ही...
कभी किसी समन्दर के किनारे जाएँ, वहाँ लगातार उठती लहरों के आरोहों-अवरोहों के बीच दिन भर अठखेलियाँ करें। समन्दर की लहरें हमें सिखायेंगी कि प्यार कैसा होना चाहिए? जैसे समन्दर में लहरों का वेग कभी धीमा नहीं पड़ता, जैसे उसकी लहरें हर बार नई-सी लगती हैं, जैसे उसकी लहरों में अनेकों बहुमूल्य खजाने होते हैं, ठीक वैसे ही हमारा प्यार भी हो। रोज़ एकदम नया, रोज़ बीते हुए कल से थोड़ा और गहरा, हम दूर रहें या पास हमारे प्यार की तरंगे उन्हीं लहरों की तरह हमेशा एक-दूसरे के दिलों को भिगोती रहें। हमारे प्यार की प्रत्येक लहर भी खजानों से भरी हुईं हों, खजाना; हीरा-मोती-माणिक्य आदि नहीं बल्कि विश्वास, सुकून, सम्मान और आत्मीयता का... इन्हीं खज़ानों के साथ हमारे प्रेम समन्दर को अनन्त काल तक के लिए एक प्यास का एहसास भी रहे। ये प्यास हो, कभी न समाप्त होने वाली हमारी बातों की, असीमित स्नेह की, अविश्वसनीय विश्वास की और जीवन भर साथ रहने के चाहत की और इसी तरह हम एक-दूसरे पर सदैव खुद को न्यौछावर करते रहें। यहाँ से प्यार करना सीखकर हम दोनों एक ऊँची जगह ढूँढे जहाँ से समन्दर की लहरें सिर्फ दिखाई दें वो हमें छू न सकें। क्योंकि यहाँ मैं किसी का स्पर्श नहीं चाहता, बस तुम्हें महसूस करना चाहता हूँ। उस ऊँचाई पर बैठे हुए दोनों सामने लहरों पर नज़र गड़ाए, समन्दर में एक-दूसरे का चेहरा बनायें, देर तक ख़ामोश बैठे रहें, फिर अचानक एक-दूसरे की तरफ देखें, मुस्कुराये और अगले पड़ाव के लिए उठकर चल दें।
हम वहाँ से उठें और कहीं दूर, बहुत दूर किसी पहाड़ की दुर्गम चोटी पर एक-दूसरे का हाथ थामे चढ़ते जाएँ। जैसे हमने अपने सपनों के आकाश की यात्रा की हो, जैसे हम जीवन के उतार-चढ़ाव में एक-दूसरे का संबल रहे हों वैसे ही इस पहाड़ी के दुर्गम रास्तों पर चलते रहें। जब तुम थक जाओ तो मैं सहारा दूँ, जब मैं थक जाऊँ तो तुम सहारा दो और जब दोनों थक जाए तो किसी पत्थर के सहारे बैठकर देर तक हाँफते-हँसते हुए एक दूसरे से बातें करें और फिर एक-दूसरे की ऊर्जा बनकर उठें और आगे बढ़ें... थकना, गिरना, उठना अपना जीवन हो, बस उसमें रुकना न हो। जब इतनी मेहनत से आगे बढ़ेंगे तो प्रकृति के कुछ मन चुराने वाले दृश्यों को भी देखेंगे, वहाँ तुम्हारी तस्वीरें उतारते हुए मेरी नज़र कैमरे पर कम और तुम्हारे चेहरे पर ज्यादा होगी। तुम्हें एक बार और मुस्कुराता हुआ देखने की लालच में ये प्यारा झूठ बार-बार बोलेंगे कि वो फोटो अच्छी नहीं है, फिर से खींचते हैं... हालाँकि मैं अपने और तुम्हारे बीच कैमरे को उतना ही आने देना चाहता हूँ जितना यादें सहेजने के लिए जरूरी हो, बाकी मैं पूरा वक़्त जीकर सब अपने दिल में सहेज लेना चाहता हूँ।
पहाड़ों पर चलकर, पसीने से नहाये हुए, हम वसुधारा या दूध-धारा जैसे दिखने वाले किसी पवित्र झरने तक पहुँचेंगे। लेकिन ये जलप्रपात ऐसी जगह होगा जहाँ भीड़ नहीं होगी, सिर्फ मैं और तुम होंगे। उसी झरने के पास कुछ तस्वीरें उतारने के बाद कैमरा ऑफ़ करके अलग रख देंगे और फिर दोनों साथ खड़े होकर झरने की रफ़्तार और अपने प्यार का स्पंदन महसूस करेंगे। वहीं झरने की कुछ फुहारों से भीग रहे तुम्हारे बालों को मैं सुलझाना चाहूँगा, तुम्हारा क्लेचर निकालकर किसी खाई में फेंक दूँगा कि तुम खुले बालों में ज्यादा सुन्दर लगती हो। तुम्हारे सौन्दर्य को प्रकृति का आशीष उन्हीं धवलधारा की कुछ बूंदों से प्राप्त होगा, तुम्हारे चेहरे पर बिखरी तुम्हारी हल्की भीग चुकी जुल्फों को हटाते हुए मैं देर तक तुम्हारी आँखों में देखूँगा। मैं उस समय प्रकृति की सारी सुन्दरता तुम्हारी आँखों से देख लेने को उतावला रहूँगा, मैं तुम्हें हर चीज बता-बताकर दिखाऊँगा। जितना ज्यादा वहाँ के बारे में जानकारी होगी सब साझा कर दूँगा। फिर अचानक मुझे लगेगा कि सब बातें तुमने भी पढ़ रखी हैं, सब दृश्य तुम खुद भी देख रही हो, इसमें बताने जैसा क्या है? लेकिन सब जानकर भी केवल मेरी ख़ुशी के लिए धैर्य से सुनती हुई तुम, अचनाक मेरे चुप होने पर मेरी तरफ देखोगी और हम दोनों मेरी इस बेवकूफी पर जब साथ में मुस्कुरायेंगे तब मेरा ध्यान तुम्हारे अधरों की लालिमा पर ठहर जाएगा। मेरी पसन्द की लिपस्टिक से लाल हुए तुम्हारे होंठ मुस्कुराते हुए वैसे ही सुन्दर लगते हैं जैसे ब्रम्हा जी की सृष्टि में पहला कमल खिला हो। इन मुस्कुराते होंठो की कोमलता पर झरने की फुहारों से बिछुड़ी श्वेतरंगी मोती समान कुछ बूँदें उसकी खूबसूरती को कई गुना बढ़ा रही हैं। अब मैं सब भूलकर बस इन्हीं मोतियों को तुम्हारे मुस्कराहट की मुद्रा में हुए अधरों पर देखते रहना चाहता हूँ। मेरी देखने की अभिलाषा इतनी है कि मैं इन अधरों और मोतियों को स्पर्श नहीं करना चाहता कि कहीं ये मोती बिखर न जाये, कहीं नीचे न गिर जाए।
रुको! बस, अब आगे न पढ़ो, आगे पढ़ोगी तो ये होंठ हिलेंगे और होंठ हिले तो ये बूँद का मोती छिटक सकता है, जो कि मैं नहीं चाहता। मैं बस इन्हें ऐसे तुम्हारे लाल अधरों पर सजा हुआ देखते रहना चाहता हूँ, तुम बस ऐसे ही मुस्कुराती रहो...
- कुमार आशीष
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वाह वाह बहुत खूब!
ReplyDeleteमजा आ गया❤️
बहुत-बहुत धन्यवाद
Deleteवाह! उम्दा 👌👌👌
ReplyDeleteकल्पना उस सच्चाई को उजागर करती है, जो वास्तविकता अस्पष्ट करती है।👍🤗🤗
अरे वाह! इस प्यारी प्रतिक्रिया के दिल से शुक्रिया 🙏
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