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Saturday, September 28, 2019

पूजनीय-स्त्री

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एक स्त्री थी मय की पुत्री, एक सूपर्णखा भी नारी थी।
एक संस्कार में पली बढ़ी, एक अहंकार की मारी थी।।
एक सीता का आतिथ्य करे, वस्त्र भेंट सम्मान करे।
एक सीता पर बन्धन डाले, और महाघोर अपमान करे।।

दोनों में खून का रिश्ता है लेकिन कर्मों से हैं अलग-अलग।
एक हँसती सीता का विलाप सुन, एक रोती थी विलख-विलख।।
एक यत्न करे प्रतिशोध हेतु, एक सोंचे मैं देश बचा लूँ।
एक सोंचे पति का गौरव, एक सोंचे मैं काम बना लूँ।।

एक कहे कि पत्नी ले लो, एक कहे कि भक्ति ले लो।
एक कहती है सर्वनाश और एक कहे कि यूँ न खेलो।।
एक है जो पति को समझाए, एक है भाई को भड़काये।
एक चाहे है सबका मंगल, एक मन को विनाश ही भाये।।

पर हे मय दानव की पुत्री! तू शान बन गयी दो कुल की।
तेरे कर्मों पर आभारी है देखो रानी रघुकुल की।।
"आशीष" तुम्हें है नमन कर रहा तुमने ऐसा कर्म किया।
रानी, पत्नी और माँ बनकर निबाह अपना सब धर्म दिया।।

लेकिन तेरे इस कुकृत्य से राक्षस कुल का उद्धार हुआ।
लंका में राम राज्य आया समग्र राम जयकार हुआ।।
इसलिये नमन है तुझको भी तेरे नयनों में राम दिखें।
तेरा भी क्या दोष कहूँ जब सृष्टि सभी भगवान् लिखें।।

पूरी कविता का सार अंश बस इतनी बातें याद रखो।
कुछ भी हो बस साहस से श्रीराम प्रभु को साथ रखो।।
मैंने ग्रन्थों से सीखा है लज्जा स्त्री का गहना है।
वो ही स्त्री है पूजनीय कि जिसने इसको पहना है।।

आपका अपना
- कुमार आशीष
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