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अनिरुद्ध ने डिनर ख़त्म किया फिर आराधना को उसके फ्लैट के पास छोड़ने के बाद बिना कार से उतरे ही ‘बाय’ बोलकर कार को गतिमान कर दिया। आमतौर पर ऐसा होता नहीं था इसलिए आराधना को ये बात थोड़ी अखरी जरूर पर उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। कल होली है इसलिए आराधना सोच रही थी कि अनिरुद्ध उससे कोई प्लान डिस्कस करेगा परन्तु उसे तो जैसे याद ही नहीं कि कल उन दोनों की पहली होली है। अनिरुद्ध वहाँ से दुबारा मार्केट की तरफ गया और कुछ सामान खरीदकर अपने अपने फ्लैट पर पहुँचा। सुबह उठने के बाद अनिरुद्ध ने चाय बनाई और बालकनी में खड़े होकर चुस्कियों के साथ मोबाइल पर आये मैसेज रिप्लाई करने में व्यस्त हो गया, उसी में एक मैसेज आराधना का भी था। रिप्लाई करते ही उधर से एक और मैसेज आया, आराधना ने उसे अपने घर बुलाया था क्योंकि वो चाहती थी कि अनिरुद्ध भी कुछ खा-पी ले अकेला रहता है तो क्या बनायेगा। चाय ख़त्म करके तैयार होकर अनिरुद्ध आराधना के फ्लैट पर पहुँचा, उसकी वेशभूषा से बिलकुल नहीं लग रहा था कि होली खेलने आया है। किचन में आराधना गुझिया तलने में व्यस्त थी, वहीं खड़े होकर अनिरुद्ध भी बात करने लगा। आराधना ने काम ख़त्म करके अपने मन की बात कह दी, “मैंने सोचा था कि हम ये होली बहुत अच्छे से सेलिब्रेट करेंगे पर आपने तो कोई प्लान ही नहीं बनाया और रोज से भी ज्यादा जल्दी में कल चले गये।“ अनिरुद्ध ने कोई जवाब नहीं दिया बस खड़ा होकर मुस्कुराता रहा। अब आराधना को गुस्सा लगने लगी थी पर वो जताना नहीं चाहती थी वरना होली खराब हो जाती। आराधना किचन में गयी और कुछ खाने का सामान ले आई। अनिरुद्ध ने कहा उसे अभी भूख नहीं है थोड़ी देर बाद खाते हैं। आराधना ने इशारे से ठीक है कहा और वापस में किचन में चली गयी। लौटकर उसने टीवी ऑन करना चाहा तो अनिरुद्ध ने रिमोट छीन लिया और बोला “होली नहीं खेलोगी?” आराधना अब अपना गुस्सा रोक नहीं पा रही थी उसने तुनककर कहा, “होली खेलने की बात आप न ही करो तो अच्छा रहेगा, मैं होली पर झगड़ा नहीं करना चाहती।” अनिरुद्ध ने उसके गालों को अपने हाथों से पकड़ा और कहा,
“आपने क्या प्लान बनाया था, रंग लायी हो?”
“आपको क्या फर्क पड़ता है मैं रंग लायी हूँ या नहीं?”
“खुद की गलती तो दिखती नहीं है, कल इतनी देर खरीददारी की तो रंग भी ले लेती”
जब आप कुछ प्लान करते तब तो ले लेती, लेकिन आपके लिए तो जैसे कल तक होली जैसा कुछ था ही नहीं, मैंने याद दिला दिया मैसेज करके वरना शायद पता भी नहीं चलता कि होली क्या होती है...”
“अब झगड़ा ही करोगी या रंग भी लगाओगी?” इस बार अनिरुद्ध की मुस्कुराहट की जगह उसकी गंभीरता ने ले लिए थे। आराधना को लगा कि उसकी भी गलती है, वो भी तो प्लान कर सकती थी। उसने बेड के नीचे से एक कटोरी निकाली और थोड़ा-सा रंग अनिरुद्ध के गालों पर लगा दिया, इसके साथ ही कटोरी आगे बढ़ा दी कि वो भी रंग लगा सके। परन्तु अनिरुद्ध ने रंग लगाने के बजाय आराधना के बाल खोल दिए और उन्हें अपनी उगालियों से सहलाने लगा तभी आराधना के ऊपर रंग गिरने लगा। वो आश्चर्य से थोड़ा पीछे हटी और मुस्कुराते हुए पूछा, “ये रंग कहाँ से आया और आपने मेरे बालों में कब डाल दिया?’ अनिरुद्ध ने विजेता ही तरह मुस्कुराते हुए कहा, “जब आप खाना बना रही थीं तभी रंग आपके बालों में डाल दिया था, लेकिन बताया नहीं था। बस थोड़े से गुस्से का रंग भी देखना चाहता था, क्योंकि लाल रंग के बिना सब बेकार ही लगता।” आराधना बहुत खुश हुई उसने प्यार से अनिरुद्ध की तरफ देखा और एक मुट्ठी रंग लेकर उसके ऊपर फेंक दिया। जब रंग गाल में लगाया तो मनमुताबिक प्लान न कर पाने का मलाल भी था पर इस बार जो रंग फेंका उसमें कोई ‘मलाल’ नहीं सिर्फ उसके प्यार का रंग ‘लाल’ था। इसके बाद दोनों ने एक दूसरे को खूब रंगों से सराबोर कर दिया। इसके बाद अनिरुद्ध फ्लैट से नीचे जाकर अपनी कार से एक वलून निकाला और लाकर आराधना को दिया। आराधना ने थैंक यू बोलकर पूछा, “मैं कोई बच्ची हूँ जो इस वलून से खेलूँगी?” अनिरुद्ध ने जवाब दिया “ये आपके खेलने के लिए नहीं फोड़ने के लिए है।” जैसे ही आराधाना ने वलून फोड़ा गुलाब की पंखुड़ियाँ अपने रंग और सुगंध के साथ पूरे कमरे में फ़ैल गयीं। दोनों ने साथ में बहुत सारी फोटो खींची और खूब मन से होली सेलिब्रेट किया, आख़िर उनकी ये पहली होली थी। अभी वो दोनों होली खेल ही रहे थे तब तक कुछ कॉमन फ्रेंड भी आ गये। फिर तो डबल धमाल शुरू हो गया। सबने एक-दूसरे को खूब रंग लगाये, गले मिले, साथ में कुछ खाये-पिये और लगभग 2 घंटे तक उधम मचाने के बाद सब दोस्त वापस चले गये। दोस्तों को फ़ोन करके अनिरुद्ध ने बुलाया था ये सब उसने आराधना से इसलिए नहीं डिस्कस किया ताकि वो सरप्राइज दे सके। सबको फ्लैट की लिफ्ट तक छोड़ने के बाद अनिरुद्ध वापस कमरे में आया तो आराधना बोली “अब मैं नहाने जा रही हूँ, तुम भी नहा लो फिर कुछ खाते-पीते हैं।” अनिरुद्ध ने पीछे से आराधना का हाथ पकड़ा तो वो एक कदम आगे बढ़ने के बाद रुक गयी। अनिरुद्ध ने आराधना को ऐसे देखा जैसे आज पहली बार देख रहा हो। आराधना ने पूछा क्या हुआ तो बोला कुछ नहीं बस ऐसे ही। उसने हाथ छोड़ दिया और वो नहाने चली गयी। उसके बाद अनिरुद्ध एक कागज़ पर कुछ लिखने में व्यस्त हो गया। जब आराधना नहाकर आयी तो अनिरुद्ध ने पूछा कि “इतना गुस्सा कर रही थी आप, जबकि मैंने इतना कुछ प्लान भी किया था। अब आप बताओ आपने क्या प्लान किया था।” आराधना अन्दर गयी और एक गिफ्ट पैक बॉक्स लाकर अनिरुद्ध को दे दिया। अनिरुद्ध ने पूछा ये क्या है तो बोली ये होली का गिफ्ट है। अनिरुद्ध ने तुरंत खोलकर देखा उसमें वही मैकबुक था जो अनिरुद्ध काफी दिनों से खरीदना चाहता था। वो बहुत खुश हुआ। उसने भी आराधना के लिए एक नेकलेस लिया था जिसने अपने हाथों से पहना दिया। आराधना पूजा करने लगी और अनिरुद्ध नहाने चला गया। थोड़ी देर तक दोनों साथ रहे, खाना खाया बातें की और फिर लगभग 5 बजे अनिरुद्ध अपने फ्लैट के लिए चल पड़ा। जैसे ही आराधना ने अपना दरवाजा बंद किया उसकी नज़र बेड पर पड़े एक कागज़ पर गयी। ये वही कागज़ था जिस पर अनिरुद्ध कुछ लिख रहा था। उसने लिखा था, “आराधना! तुम्हारे गोरे गालों पर लगे लाल, पीले, नीले, हरे रंग मानों बरसात के बाद आकाश पर बने हुए इंद्रधनुष जैसे लग रहे हैं। तुम्हारी आँखें आज रोज से अधिक नशीली लग रहीं हैं। तुम्हारे गुलाबी होंठों पर पड़े रंग के छीटें उसकी शोभा में चार चाँद लगा रहे हैं। तुम्हारे गालों पर रंग से बने मेरी उँगलियों के निशान हमारे प्यार के गवाह हैं। हमारी मोहब्बत के बवंडरों में उड़े सब रंग तुम्हारे बालों में भर गये हैं। और जब तुम नहाकर बाहर आयी तो ऐसा लगा मानो वर्षा के बाद बादल और स्वच्छ, सुन्दर और उज्ज्वल लगने लगे हैं। हैप्पी होली माय लव!”
पढ़ने के बाद आराधना ने तुरंत बाहर जाकर देखा तो गेट पर अभी भी अनिरुद्ध सेक्यूरिटी वाले अंकल जी को होली विश कर रहा था। आराधना ने तुरंत कॉल करके अनिरुद्ध को वापस बुलाया और वो चिट छुपा दिया। अनिरुद्ध ने वापस बुलाने का कारण पूछा क्योंकि उसे तो याद भी नहीं कि उसने जो लिखा था वो कहाँ है, किसके पास है? आराधना ने कहा कि “बैठो एक काम है।” अनिरुद्ध बैठते ही आराधना भी उसके बगल बैठ गयी। आराधना ने कहा “क्या तुम मेरे लिए शायरी कर सकते हो?” अनिरुद्ध ने जवाब दिया, “मैं सॉफ्टवेर इंजीनियर हूँ, शायर नहीं।” “फिर भी इतना अच्छा लिख लेते हो...?” आराधना ने बिना देरी के प्रतिउत्तर में प्रश्न कर दिया। अनिरुद्ध ने कुछ न समझ पाने जैस मुँह बनाया। तभी आराधना ने उसे चिट दिखाई और थोड़ी शरारती अंदाज़ में कहा, “मेरे पीठ पीछे ही तारीफ करोगे कि कभी मुँह पर भी कुछ बोलोगे...” जब तक अनिरुद्ध को कुछ ज्यादा समझ आता आराधना ने उसके बालों को पीछे पकड़ा और उसका चेहरा अपने सामने लाकर अपने होठ अनिरुद्ध के होठो पर ऐसे रख दिया जैसे भगवान् कृष्ण ने अपने होठों पर वंशी रख दी हो। अनिरुद्ध अब कुछ सोचना-समझना चाहता भी नहीं था, वो संसार भुलाकर अपनी दुनियाँ में खो जाना चाहता था। प्रेम का सूर्य कमरे में चमक उठा था, मोहब्बत की सुगन्धित वायु का वेग तीव्र हो गया, दुनियाँ भर की ख़ुशी उन दोनों के लिए उस एक कमरे में ठहर गयी थी। कमरे के बाहर बहुत दूर कहीं सूर्यदेव के अश्व सरगम के ताल पर चलते अस्तांचल की तरफ बढ़ रहे थे, पक्षी अपने घोसलों की तरफ हर्षोल्लास के साथ लौट रहे थे, गायें गौशालों की तरफ दौड़ रही थीं और बछड़ों को स्नेह कर रही थीं। बच्चे होली के रंग में रंगे नदी की तरफ स्नान के लिए जा रहे थे। दूर कहीं किसी टीले पर खड़े भगवान् कृष्ण मुस्कुराते हुए वंशी बजा रहे थे। प्यार, सौहार्द और मिलन के त्यौहार होली पर मोहब्बत के रंग में रँगी अपनी सृष्टि को देखकर आत्मुग्ध हो रहे थे... होलिकोत्सव की अनन्त शुभकामनाएँ...
मेरी आने वाली पुस्तक “अनकहा अनसुना प्यार” से...
- कुमार आशीष
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शानदार आशीष जी।
ReplyDeleteयूँ ही लिखते रहिये।
उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया सर!
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