साभार गूगल |
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हमारे सनातन हिन्दू धर्म के सभी तीज-त्यौहार किसी-न-किसी कारण से शुरू हुए होते हैं। उनके पीछे एक इतिहास होता है, मनाने के कारण एवं समय में एक वैज्ञानिकता होती है। परन्तु आज तक किसी भी त्यौहार के मूल में नफरत नहीं दिखाई पड़ती है। हमेशा सत्य, न्याय, धर्म, सद्भावना, वसुधैव कुटुम्बकं की सार्थकता को और सुदृढ़ करने के लिए ही हमारे यहाँ त्यौहार मनाये जाते रहे हैं।
25 दिसंबर को कुछ लोग “तुलसी पूजन दिवस” मना रहे हैं। मैंने कई लोगों से जानना चाहा कि आज ये दिवस क्यों मनाया जा रहा है? मुझे अभी तक सिर्फ “तुलसी विवाह” का ही पता था। मुझे आश्चर्य हुआ कि तुलसी पूजन दिवस का पोस्टर गूगल से डाउनलोड करके लगाने वाले जितने लोगों से मैंने पूछा किसी को भी इस बारे में जानकारी नहीं थी। मैंने गूगल किया तो पाया कि इसकी शुरुआत 2014 में कुछ संतों के साथ आसाराम बापू ने की थी। समय के साथ तमाम संतों एवं राजनितिक लोगों द्वारा इस दिवस का खूब प्रचार हुआ। जब-जब इस दिवस की बात आयी तो एक और बात इसके पहले लिखी मिली कि “हम ईसाई नहीं हैं हम क्रिसमस नहीं मनायेंगे इसलिए कि हम तुलसी पूजन दिवस मना रहे हैं।”
यहाँ अब मैं आसाराम बापू के बारे में ये बात याद दिला देना चाहता हूँ कि उन्हें एक नाबालिग लड़की (जिसे नवरात्रि में कन्या पूजन में देवी स्वरूपा कहा जाता है) के यौन उत्पीड़न अपराध में कोर्ट ने दोषी पाया और उन्हें पॉक्सो एक्ट के तहत 2018 में अन्तिम साँस तक कारावास की सजा सुना दी। तब से वो जेल में हैं। (यहाँ मैं ये महज जानकारी साझा कर रहा हूँ। ये आसाराम बापू या कोर्ट पर टिप्पणी नहीं है)।
अब असल मुद्दे पर आते हैं। जैसा कि मैंने पहले भी जिक्र किया हमारे यहाँ सभी त्यौहारों का एक विशेष समय निर्धारित होता है और उस काल की गणना हमारे धर्म के विशेषज्ञ पञ्चांग में देखकर करते हैं। यही कारण है कि हमारे लगभग सभी त्यौहार होली, दीपावली, रक्षाबंधन, कजरीतीज, एकदशी, शिवरात्रि, नवरात्रि, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, श्रीराम नवमी आदि अंग्रेजी कलेण्डर में देखने पर हर वर्ष अलग-अलग दिनाँक को पड़ते हैं। लेकिन ये “तुलसी पूजन दिवस” तो हर बार 25 दिसंबर को ही पड़ेगा और 25 दिसम्बर तो हर साल अलग-अलग दिन में पड़ेगा। जैसे इस वर्ष 25 दिसंबर 2022 को दिन ‘रविवार’ है। पिछले साल किसी और दिन पड़ा होगा अगले साल किसी और दिन पड़ेगा। हमारे धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, तुलसी जी अपने पति शालिग्राम जी के लिए हर रविवार एवं एकादशी को व्रत रखती हैं। इसलिए रविवार के दिन तुलसी जी को न जल चढ़ाना चाहिए न ही उनके पत्ते उतारने चाहिए। अब बिना जल चढ़ाए कौन-सी पूजा होती है जी?
“तुलसी विवाह” जो कि देवउठनी एकादशी को मनाया जाता है, जिन लोगों को ये भी नहीं खबर कि कब वो दिन आया और चला गया वो लोग भी “तुलसी पूजन दिवस”पर 10-10 पोस्ट कॉपी-पेस्ट किये जा रहे हैं। और पूछ लो कि “तुलसी पूजन दिवस” क्यों मनाया जा रहा है तो “तुलसी विवाह” की कहानी कहने लगते हैं।
दरअसल धर्म के ठेकेदार बने कुछ आत्ममुग्ध लोग एवं छुटभैये नेता जितना सत्य सनातन धर्म को कमजोर समझ रहे हैं उतना वो है नहीं। अगर कमजोर होता तो मुग़ल, अंग्रेज, हूण, शक, यवन लोग मिलकर अब तक निपटा दिए होते। अब तक शायद इतिहास के पन्नों में भी सनातन नहीं दिखता। परन्तु बात ये है कि इतिहास भी सनातन धर्म से जन्म लेता है इसलिए सनातन की लौ कभी नहीं बुझने वाली है।
देख रहा हूँ, किसी को केक काटने से दिक्कत है, किसी को सेंटा वाला कपड़ा पहना देने से दिक्कत है। इस पोस्ट के साथ संलग्न फोटो देखिये, बच्चे ने सेंटा वाला कपड़ा पहना हुआ है और उसके बाद भी भोलेनाथ जी को प्रणाम कर रहा है। अब आप बताइये इस बच्चे को माता-पिता को कैसे गाली दी जाये कि उन्होंने इसको ये कपड़ा क्यों पहना दिया? क्योंकि उन्होंने तो ये भी सिखाया कि भोलेनाथ का मंदिर दिखे तो प्रणाम करो।
इसका मतलब ये है कि “आत्मा को अपने सनातन संस्कार के आवरण से सजा लोगे तो शरीर पर कौन-सा आवरण है उससे फ़र्क नहीं पड़ेगा।“ सनातन का नुकसान इससे नहीं है कि कुछ हिन्दू लोग अपने बच्चों को सेंटा वाला कपड़ा पहना दिए हैं बल्कि सनातन का नुकसान आपके ये भूलने से हो रहा है कि तुलसी विवाह पर तुलसी पूजन करना चाहिए। उस दिन आप पूजा कीजिये बच्चे देखेंगे और पूछेंगे कि आप ये पूजा क्यों कर रहे हैं तो आप उन्हें बतायेंगे कि आज तुलसी जी का विवाह हुआ था। लेकिन आप 25 दिसंबर को क्या कहेंगे कि इस दिन एक धर्म के लोग अपनी आस्था के अनुसार त्यौहार मना रहे थे और कुछ हिन्दू लोग भी उसका आनन्द लेने लगे तो इसलिए हमें उनके धर्म और उनकी आस्था से नफरत हो गयी। उसी नफरत को संतुष्ट करने के लिए हम आज पूजा करने बैठ गये हैं। बच्चा भी सोचेगा कि ऐसी पूजा से क्या लाभ जो नफरत सिखाये? इस तरह आप अगली पीढ़ी को सनातन से वंचित कर देंगे।
जब ईसाईयों के देश में कोई अंग्रेज “हरे रामा, हरे कृष्णा” करता हुआ दिख जाए तो हम लहालोट हो जाते हैं। उसका विडियो मिल जाये तो फेसबुक और व्हाट्सएप्प पर हर किसी को फॉरवर्ड करके अपने धर्म पर गर्व करते हैं। फिर उसी ईसाई के सेंटा की भेषभूषा पहने लोगों को कूट देना चाहते हैं। सोचिये इसमें किसी का क्या फायदा हुआ?
कल्पना कीजिये, आप एक नए शहर में गये हैं। एक व्यक्ति जो सनातन से बिलकुल परिचित नहीं है उससे आपकी मित्रता होती है और वो ईसाई है। उसने आपको क्रिसमस पर बुलाया। आप गये केक खाये, उसके परिधान पहनें, आनन्द लिए। (यदि आप शाकाहारी हैं और शराब नहीं पीते तो जब तक क्रिसमस की उस पार्टी में आप पीते नहीं है, अंडा नहीं खाते हैं तब तक तो आपके धर्म का कोई नुकसान नहीं हो रहा है न?) अब श्रीराम नवमी या श्रीकृष्ण जन्माष्टमी अपने घर पर अखण्ड/कीर्तन का आयोजन कर दीजिये और उसको भी बुलाइये। “हमारे साथ श्रीरघुनाथ तो किस बात की चिंता और सीताराम-सीताराम, सीताराम कहिये...” सुनकर वो पागलों की तरह न थिरकने लगे तो बताना... वो घर जाकर ऐसे भजनों को सुनना शुरू कर सकता है, सनातन को जानना चाहेगा और एक बार रूचि जग गयी तो बिना धर्म परिवर्तन किये भी वो ह्रदय से सनातनी ही हो जाएगा। सनातक बहुत शक्तिशाली है, इसका आकर्षण भी बहुत शक्तिशाली है। अतः सनातन के कृपापात्र लोगों को छोटी सोच रखना शोभा नहीं देता। जैसे एक सर्प के किसी झुण्ड को देखकर गरुड़ जी भयभीत नहीं होते वैसे ही सनातनियों को भी अपने प्रभु पर विश्वास रखना चाहिए। हमें सिर्फ अपना काम करते रहना चाहिए बाकी अभी तक सृष्टि में उस धर्म या पंथ की सृष्टि नहीं हुई जो सनातन को प्रभावहीन कर सके। बस सच्चे सनातनी लोग अपना और इसका नुकसान न करें। जितना समय वो औरों को कोसने में लगाते हैं, उतना वो अपने सनातन की सुदृढ़ता में लगाते रहें तो सब मंगल ही मंगल होता रहेगा...
जय हिन्द-जय सनातन
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