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Tuesday, October 29, 2019

नमक स्वादानुसार

नाम                   -  नमक स्वादानुसार
लेखक                -  निखिल सचान
फॉर्मेट                -  पेपरबैक
पृष्ठ संख्या           -  165 पेज
मूल्य                  -  ₹78
प्रकाशक            -  हिन्दी युग्म
खरीद                -  Amazon (Buy Now)

ये पुस्तक निखिल सचान जी की लिखी कहानियों का संग्रह है। इसमें वर्णित सभी कहानियाँ बहुत ज़मीनी हैं, कई बार पढ़ते हुए आप कहानियों को स्वयं से जोड़ पायेंगे। साधारण-से-साधारण शब्द जो हम रोज़मर्रा में इस्तेमाल करते हैं उन्हें छोड़कर शायद ही कोई ऐसा शब्द इस पूरी पुस्तक में मिले जिसके लिए आपको शब्दकोश की सहायता लेनी पड़े। इसमें बच्चों के लिए भी कहानियाँ हैं परन्तु पूरी पुस्तक बच्चों के लिए नहीं है। बिना लाग-लपेट के सीधी-सादी बात कहने का लेखक के पास बढ़िया हुनर है जो इस किताब में साफ़ दिखाई देता है। वैसे किसी भी लेखक पर सिर्फ एक किताब पढ़कर टिपण्णी करना उचित होगा या नहीं ये मैं अभी नहीं कह सकता हूँ। लेकिन मैं निखिल सर की और जो किताबें मार्केट में उपलब्ध हैं उन्हें पढ़कर ये जानने को उत्सुक हूँ कि लेखक ने एक ही शैली में सब पुस्तकें लिखी हैं या सबकी शैली भिन्न-भिन्न हैं। अगर भिन्न हो तो ही ज्यादा बेहतर रहेगा। वैसे किसी ने कहा है कि "किताब की विषय-वस्तु और खाने में नमक स्वादानुसार ही अच्छा लगता है।" इसलिए मैं ये नहीं दावा कर सकता कि ये पुस्तक आपको अच्छी लगेगी या  बुरी...

वैसे तो किसी भी पुस्तक पर मेरे द्वारा लिखे गये सभी विचार मेरे व्यक्तिगत ही होते हैं, उन्हें ‘पुस्तक की समीक्षा’ समझने की जगह केवल ‘मेरा नज़रिया’ कहना ज्यादा उचित होगा, परन्तु इस निजता बावजूद मेरा थोड़ा और व्यक्तिगत मानना ये है कि "आप कितने भी अच्छे लेखक हों, आपकी कितनी भी बेस्ट सेलिंग पुस्तकें बाज़ार में छायी हों, आपकी फैन फॉलोयिंग कितनी भी भारी मात्रा में हो फिर भी यदि आपके लेखन में (खासकर यदि आप हिन्दी में लिख रहे हैं) कोई एक शब्द भी ‘अश्लील’ आता है तो मैं ये कहूँगा कि आपको लेखन में अभी और परिक्क होना बाक़ी है।" मुझे लगता है कि दुनियाँ की शायद ही ऐसी कोई स्थिति हो जिसे हिन्दी जैसी समृद्ध और विशाल शब्दकोश वाली ‘मर्यादित भाषा’ में प्रस्तुत करते हुए आपको ‘अश्लील या अमर्यादित’ शब्दों का प्रयोग करना पड़े।

इस पुस्तक का सबसे बड़ा ‘निगेटिव पॉइंट’ मेरी नज़र में यही है। लेकिन ये टिपण्णी इस लेखक के लिये नहीं है बल्कि उन लेखकों के लिए है जिन्होंने ‘अश्लीलता को सफ़लता का अधियार बना रखा है।‘ जब मैं इस लेखक (निखिल सचान सर) की और पुस्तकें पढ़ लूँगा तब निर्णय ले पाउँगा कि ये टिपण्णी इनके लिए है या नहीं, फिलहाल इस किताब में प्रयुक्त हुए अश्लील शब्द मेरे हिसाब से जबरदस्ती धोपे गये हैं उनकी ज़रूरत बिलकुल भी नहीं थी। उम्मीद है आप समझ गये होंगे कि पुस्तक के अच्छी या बुरी लगने के दावे को मैंने पहले ही क्यों खारिज़ कर दिया था। इस पुस्तक में कुल 9 कहानियाँ हैं जिनमें से मुझे जो पसन्द आयी उनकी सूची इस प्रकार है:-
  • परवाज़
  • हीरो
  • टोपाज़ (अगर ये मेरी कहानी होती तो इसका शीर्षक मैं 'लास्ट लीफ़' रखता)
  • साफ़े वाला साफ़ा लाया
  • विद्रोह
इन सबके अतिरिक्त आधुनिक प्रिंटिंग क्वालिटी के साथ मुद्रित कवर का डिजाईन सुन्दर और आकर्षक है। अन्दर के पेज साधारण हैं उसमें कोई ख़ास डिजाईन नहीं हुई है। हाँ! इसके बैक कवर पर जो कुछ लिखा है उसमें लाल रंग प्रयुक्त हुआ है और कवर का रंग काला है। यदि काले पर लाल की जगह पीला से लिखा जाता तो बैक कवर में अलग ही चमक होती जो अभी देखने को नहीं मिलती है। बैक कवर पर ही लेखक की तस्वीर और सोशल मिडिया लिंक मुद्रित है अगर इसी के साथ उनका थोड़ा व्यक्तिगत जीवन परिचय भी दिया रहता तो और बेहतर था। इस किताब को पढ़ने या न पढ़ने के लिए मैं नहीं कहूँगा ये आप ऊपर दिए विवरण और अमेज़न पर दिए गये प्रतिक्रियाओं को पढ़कर खुद निर्णय करे। हाँ! यदि आपको ज़मीन से जुड़ी कहानियों को थोड़ा मिर्च, मसाला के साथ पढ़ने का मन हो तो आप ये पुस्तक ले सकते हैं। इसमें अपनी समझ का ‘नमक स्वादानुसार’ मिलाकर आनन्दित हो सकते हैं।

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