ब्लॉग के ऊपर दाहिनी तरफ दिए गये सोशल मीडिया आइकन पर क्लिक करके मेरे साथ जुड़ें, मुझे सचमुच बहुत अच्छा लगेगा।

Monday, January 15, 2018

जम्मू ट्रिप - दूसरा दिन : “शिव-खोड़ी की यात्रा”

पूरी जम्मू ट्रिप को शुरु से पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें


आज वर्ष 2017 का आखिरी दिवस है, अर्थात् आज 31 दिसम्बर 2017 है। आज हम शिव-खोड़ी की यात्रा पर निकलेंगे। जब मैं इस ट्रिप आ रहा था, तभी मैं इस बात को लेकर संतुष्ट था कि मुझे होटल में नहाने के लिये गर्म पानी मिलेगा। लेकिन आज सुबह सौरभ के नहाने के बाद गीजर में न जाने क्या दिक्कत आ गयी कि मेरे नहाने के लिये मुझे ठण्डा पानी ही मिला। क्योंकि हमें समय पर बस अड्डे तक पहुँचना था इसलिये मैंने ठण्डी को बर्दास्त किया और फ़टाफ़ट नहाकर तैयार हो गया। ये इस पूरी ट्रिप के दौरान मेरे द्वारा किया गया सबसे साहसिक कार्य रहा जो कि मेरे लिये बड़े जोखिम का होता है। खैर हमने सुबह की चाय पी और फिर बस में बैठ गये। भगवान् शिव-शंकर के जयकारों के साथ बस आगे बढ़ गयी। धीरे-धीरे बस शहर से आगे बढ़कर रणशू के रास्ते पर पहुँची। अभी कुछ ही दूरी चली थी कि बस के स्टाफ ने हमें बताया कि यहाँ ‘नौ-देवी जी’ का मन्दिर है, हम वहाँ दर्शन करके आगे चलेंगे अतः सब लोग अपने-अपने जूते बस में उतारकर तैयार हो जाओ। जब हम नीचे उतरे तो सड़क बहुत ठण्ड थी, पैर रखते ही मेरे मन से ये विचार निकल गया कि “मैं वैष्णों देवी जी के दर्शन करने बिना चप्पल/जूते के जाऊँगा।” सड़क के साथ ही लगकर एक सीढ़ी नीचे जाती है, ठीक से तो याद नहीं लेकिन शायद 100 के करीब सीढ़ियाँ उतरने के बाद एक जगह नाम-पता लिखवाकर थोड़ा आगे बढ़ते हैं फिर चार-पाँच सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर जाने पर एक गुफा का प्रवेश द्वार है। गुफा के सामने ही एक नदी बह रही है जो कि गुफा से काफी नीचे है, वहाँ तक जाने का कोई कृत्रिम मार्ग नहीं है, केवल ऊपर से देखा जा सकता है यहाँ का दृश्य बड़ा ही मनभावन हो जाता है। यहाँ पहली बार आने वाला सोंच भी नहीं सकता कि इसमें प्रवेश करके दर्शन करना है, क्योंकि उसमें प्रवेश करने के लिये आपको लगभग लेटकर या घुटनों के बल चलकर अन्दर की सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती है, 2-4 सीढियों के बाद आप झुककर खड़े हो सकते हैं, सामने ही “नव-देवी माता जी” के दर्शन नौ-पिण्डियों के रूप में होते हैं। यहाँ से दाहिने तरफ गुफा से बाहर निकलने का रास्ता है। 

साभार इंटरनेट : नौ-देवी माता जी के गुफा का प्रवेश द्वार

नौ-देवी माता मन्दिर के समीप का दृश्य
हम यहाँ दर्शन करके वापस अपनी बस में आकर बैठ गये और फिर बस शिव-खोड़ी के लिये चल पड़ी। जब तक बस चल रही है तबतक मैं आपको संक्षेप में शिव-खोड़ी के विषय में जो पौराणिक मान्यता है वो बता देता हूँ।

शिव-खोड़ी के विषय में ऐसी मान्यता है कि भगवान् शिव ने भस्मासुर नामक दैत्य को ये वरदान दिया कि "वो जिसके शीश पर हाथ रख देगा वो भस्म हो जायेगा" वरदान पाकर उसने सबसे पहले भगवान् शिव के ही शीश पर हाथ रखने की चेष्टा की। उसकी कुचेष्टा समझकर भगवान् शिव वहाँ से भागने लगे और भस्मासुर भगवान् के पीछे-पीछे दौड़ने लगा। जब भगवान् इस जगह (वर्तमान में शिव-खोड़ी) पहुँचे तो उन्होंने अपने छिपने के लिये एक गुफा का निर्माण किया, और वहाँ जाकर बैठ गये। यहीं भगवान् विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर भस्मासुर को मोहित करके उसका हाथ उसके ही शीश पर रखवा दिया और वो भस्म हो गया। शिव-खोड़ी वही गुफा है जिसका निर्माण भगवान् शिव ने अपने त्रिशूल से किया था, और वो समस्त देवी-देवताओं के साथ आज भी यहाँ विराजमान हैं।

कटरा से शिव-खोड़ी के रास्ते में सोना नहीं चाहिये वरना आप प्रकृति की अद्वितीय सुन्दरता को देखने से वंचित ही रह जायेंगे। कुछ जगह बढ़िया सड़क भी मिली पर अधिकाँशतः इन दिनों जगह-जगह सड़क निर्माण कार्य चल रहा था इसलिये रास्ते बहुत उबड़-खाबड़ थे, लेकिन प्राकृतिक सुन्दरता देखते ही बनती है। इस रास्ते पर आप पहाड़ी ग्रामीणांचल के रहन-सहन देखने का अनुभव भी प्राप्त करते हैं। लगभग 02 घंटे बस चलने के बाद एक ढाबे पर रुकी, यहाँ जिसको जो खाना है खा सकता है। हमने भी चाय वगैरह ली। फिर जब-तक बस के बाकी यात्री भोजन इत्यादि में व्यस्त थे हम फोटो खींचने/खिंचवाने में लग गये क्योंकि यहाँ से नज़ारे बहुत ही रोमांचित करने वाले थे। वो सारी तस्वीरें मेरे इन्स्टाग्राम पर हैं, उन्हें देखने के लिये यहाँ क्लिक करें। यहाँ से क्षुधा शान्त करके सब फिर आगे बढ़े। आगे की सड़कें और खराब तथा पतली थीं, कई बार जब सामने से ट्रक आता तो लगता था कि ये बस अब आगे कैसे जायेगी? लेकिन यहाँ के चालक बहुत निपुण होते हैं और बहुत आराम से एक-दूसरे को ओवरटेक कर लेते हैं। इस तरह करीब 01 घंटे बाद हम “रणशू” बस अड्डे पर पहुँच गये। यहाँ से आगे एक-से-डेढ़ किलोमीटर हमें ऑटो में जाना होता है, कुछ लोग पैदल भी चल पड़ते हैं। एक बात और बता दूँ कि ऑटो का मतलब वो नहीं जो त्रि-चक्रीय वाहन अपने दिल्ली में चलता बल्कि यहाँ ऑटो उस चार-चक्रीय वाहन को बोलते हैं जिसे हम 'छोटा-हाथी' कहते हैं। हम भी ऑटो से उस जगह पहुँच गये जहाँ से शिव-खोड़ी की चढ़ाई शुरू होती है, यहाँ तक का किराया 10/- रूपये एक व्यक्ति का होता है।

ऑटो से उतरने के बाद करीब 100 मीटर पैदल चलना पड़ता है, इस रास्ते में बाजार है, बहुत से लोग खाना-पानी खाकर आगे बढ़ते हैं। फिर वहाँ के “यात्रा पर्ची काउंटर” से यात्रा-पर्ची लेनी होती है। अगर आप पर्ची नहीं लेंगे तो प्रवेश द्वार से 500 मीटर आगे जाने पर आपको वापस होना पड़ेगा। इस प्रक्रम में बहुत भीड़ लगी होने से हमें लगा शायद हम पर्ची प्राप्त नहीं कर पायेंगे क्योंकि हमारे पास सिर्फ साढ़े तीन घंटे थे। अब आये थे तो दर्शन करने का प्रयास तो करना ही चाहिये इस वजह मैं और सौरभ दोनों पंक्ति में खड़े हुये। बड़े सुकून की बात ये है कि जैसा हमने सोंचा था वैसा कुछ हुआ नहीं और हम अगले बीस मिनट में ही पर्ची काउंटर तक पहुँच गये। यहाँ एक अद्भुत बात ये भी है कि पुरुषों को जिस खिड़की से पर्ची प्राप्त करनी थी वहाँ पर पर्ची देने के लिये एक महिला बैठी थी और जिस खिड़की से महिलाओं को पर्ची प्राप्त हो रही थी वहाँ एक पुरुष बैठा था। मुझे ज्ञात नहीं ऐसा क्यों?

यहीं से शिव-खोड़ी की चढ़ाई शुरू होती है

शिव-खोड़ी मार्ग

श्री गणेश पर्वत

शिव-खोड़ी गुफ़ा का मुख्य प्रवेश द्वार
हमने पर्ची प्राप्त करने के बाद दर्शनों के लिये चढ़ाई शुरू कर दी। यहाँ से तीन किलोमीटर की चढ़ाई करनी है। हाँ-हाँ, भ्रमित न होइये, महज तीन किलोमीटर न सोचियें, क्योंकि ये चढ़ाई वैष्णों देवी जी से कहीं अधिक खड़ी है, तो ये रास्ते बहुत थकाऊ हो जाते हैं। इसलिये इस चढ़ाई को आराम से धीरे-धीरे चलकर पूरी करना चाहिये साथ-साथ भगवान् भूतभावन का ध्यान करते रहना चाहिये, प्रभु का ध्यान थकान का रास्ता रोककर खड़ा रहेगा। जहाँ से चढ़ाई शुरू होती है वहाँ से प्राकृतिक सुन्दरता इतनी अच्छी है कि आप हर कदम पर एक तस्वीर लेना चाहेंगे। हमारा फोटो खींचने हेतु समय बचा रहे इसलिये हम बहुत जल्दी-जल्दी चढ़ाई चढ़ने लगे। करीब 500 मीटर बाद यात्रा-पर्ची चेक पोस्ट आया वहाँ पर पर्ची चेक होती है फिर आगे जाने पर एक “श्री गणेश पर्वत” है। अर्थात् रास्ते पर चलते हुये सामने देखने से आपको पर्वत का आकार ऐसा लगेगा जैसे स्वयं श्री गणेश भगवान् ने विराट् रूप धारण किया हो। इसके दर्शन करके आगे बढ़ते जाना है। करीब 30 मिनट बाद हम मन्दिर के बिलकुल करीब पहुँच गये, यहाँ तक पहुँचते-पहुँचते हम बहुत थक गये थे इसलिये हम एक वृक्ष की छाया में बैठ गये। हमारी धड़कने सामान्य से काफी तेज हो चुकी थीं। थोड़ी देर आराम करके हमने अपना मोबाइल और कैमरा क्लॉक रूप में जमा किया, जूते आप कहीं भी रख सकते हैं कोई नहीं लेता। प्रसाद लेकर जब हम पंक्ति में खड़े होने गये तो हमने देखा कि पंक्ति से दर्शन करने में बहुत वक़्त लगेगा इसलिये हमने गेट नम्बर-2 से गुफा में प्रवेश किया। गुफ़ा के द्वार पर एक चेक-पॉइंट है, जहाँ नारियल जमा करके आगे जाना होता है। बाहर ठण्डी थी और गुफा के भीतर गर्मी लग रही थी। यहाँ गुफा बहुत ऊँची नहीं है, संभवतः आपको झुककर चलना पड़े। गुफा के भीतर तमाम लाईट लगाये गये हैं लेकिन वहाँ अँधेरा इतना अधिक है कि उनकी रौशनी छिटकती नहीं है। हालाँकि आप आराम से दर्शन कर सकें इतना प्रकाश रहता है। जैसे ही अन्दर पहुँचते हैं, आपको कई जगह अनेक ईश्वरीय स्वरूपों के दर्शन होते हैं। इसमें जो भगवान् श्री शिव का जो स्वरुप स्वनिर्मित है, उसके ऊपर पहाड़ में श्रीगंगा की आकृति उभरी है उसी से बूँद-बूँद जल से निरन्तर भगवान् शिव का अभिषेक होता रहता है। वहाँ पर हमें बिठा दिया गया फिर हमारे प्रसाद चढ़ाये गये, तथा एक टार्च द्वारा पहाड़ों पर उभरी आकृतियों से हमारा परिचय करवाया गया। पुजारी जी ने बताया कि शिव-लिंग के ऊपर छत पर गाय की जो आकृति बनी है उसके थन से पहले दूध गिरता था और भगवान् शिव का अभिषेक दूध से होता था। अब भी सावन और अन्य कही विशेष त्यौहारों में कभी-कभी दूध निकलता है। हालाँकि मैंने कई लोगों के ब्लॉग पर पढ़ा था कि जो दुधिया जल निरन्तर गिरता है वो उसी थन से ही निकलता है। इस गुफा में तैतीस कोटि देवता, श्रीरामचन्द्र जी सीता सहित, हनुमान जी, श्रीशेषनाग जी फण फैलाये, भगवान् शिव सपरिवार, भगवान् का शंख, चक्र, पाँचों पांडव, सप्तऋषि, नारद जौर अन्य कई देवताओं का वास है। टॉर्च के माध्यम से आपको सबका दर्शन और परिचय जाता है। इसी गुफा में जहाँ से हमने प्रवेश किया था वही से एक तरफ और रास्ता है। उस रास्ते पर कुछ दूर तक लाईट लगी है लेकिन वो आगे से पट रखकर बन्द किया हुआ है, उधर किसी को जाने नहीं देते क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि ये रास्ता अमरनाथ जी की गुफा तक जाता है। द्वापर में ऋषि-मुनि इसी रास्ते से अमरनाथ जी के दर्शनों को जात थे। गुफा के ऊपर छत की तरफ एक रास्ता जैसा बना है, लोकश्रुति के अनुसार इसी रास्ते से देवता भगवान् शिव के दर्शनों के लिये स्वर्ग से आते-जाते रहते हैं।

कटरा से शिव-खोड़ी के रास्ते में एक क्लिक

यहाँ से दर्शन करके हम बाहर आये और फिर नीचे उतरने लगे। रास्ते में “दूध-गंगा” पड़ती है वहाँ दर्शन किये, और फिर जिन-जिन जगहों पर जाते समय फोटो खिंचवाना चाहते थे वहाँ फोटो खिंचवाते-खिंचवाते तीन-किलोमीटर की दूरी तय करके नीचे आ गये। ऑटो करके हम ठीक 4 बजे अपने बस के पास पहुँचे तो पता चला अभी कोई और लौट के नहीं आया है। हमने पास के एक ढाबे पर कुछ खाया-पीया क्योंकि भूख बहुत लग रही थी। फिर करीब छः बजे जब सब आ गये तो हमारी बस कटरा के लिये चली। अब तो अँधेरा हो चुका है तो बाहर कुछ विशेष दिखायी नहीं देता, और रास्ता भी करीब 3 घंटे का है, जब तक बस कटरा पहुँचती है मैं आपको शिव-खोड़ी का इतिहास बता देता हूँ।

"खोड़ी" पहाड़ी शब्द है जिसका अर्थ होता है "गुफा" और शिव की गुफा है इसलिये इसे "शिव-खोड़ी" कहते हैंलोक श्रुतियों के अनुसार स्यालकोट (अब पाकिस्तान में) के राजा सालवाहन ने शिव खोड़ी में शिवलिंग के दर्शन किये थे और इस क्षेत्र में कई मंदिर भी निर्माण करवाए थे, जो बाद में सालवाहन मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुये। इस गुफा में दो कक्ष हैं। यह स्थान रियासी-राजोरी सड़कमार्ग पर है। जम्मू से रणसू नामक स्थान लगभग सौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां पहुंचने के लिए जम्मू से बस मिल जाती है। गुफा का बाह्‌य भाग बड़ा ही विस्तृत है। इस भाग में हजारों यात्री एक साथ खड़े हो सकते हैं। बाह्‌य भाग के बाद गुफा का भीतरी भाग आरंभ होता है। यह बड़ा ही संकीर्ण है। यात्री सरक-सरक कर आगे बढ़ते जाते हैं। कई स्थानों पर घुटनों के बल भी चलना पड़ता है। गुफा के भीतर एक स्थान पर सीढ़ियां भी चढ़नी पड़ती हैं, तदुपरांत थोड़ी सी चढ़ाई के बाद शिवलिंग के दर्शन होते हैं। शिवलिंग गुफा की प्राचीर के साथ ही बना है। यह प्राकृतिक लिंग है। इसकी ऊंचाई लगभग 1 मीटर है। शिवलिंग के आसपास गुफा की छत से पानी टपकता रहता है। यह पानी दुधिया रंग का है। उस दुधिया पानी के जम जाने से गुफा के भीतर तथा बाहर सर्पाकार कई छोटी-मोटी रेखाएं बनी हुई हैं, जो बड़ी ही विलक्षण किंतु बेहद आकर्षक लगती हैं। गुफा के भीतर से ही एक रास्ता अमरनाथ जी को जाता है जो कि अब बन्द कर दिया गया है।

शिव-खोड़ी की ये मेरी प्रथम यात्रा थी, और मैं आग्रह पूर्वक कहना चाहूँगा कि जब भी आप जम्मू जायें या वैष्णों देवी जायें तो शिव-खोड़ी भी जरूर जायें, वहाँ की यात्रा में जो आनन्द मुझे मिला है उसका अंश मात्र भी मैं यहाँ लिख नहीं पा रहा हूँ । उसका स्वाद वहाँ जाकर ही लिया जा सकता है।

रात को साढ़े नौ बजे हम वापस होटल में आ गये। थकान बहुत अधिक लगी थी और नींद भी इसलिये जल्दी ही सो गये क्योंकि हमें अगली सुबह माता श्री वैष्णों देवी जी के दर्शनों के लिये चढ़ाई शुरू करनी थी। हमारा परम सौभाग्य रहा कि हमारे वर्ष 2017 समापन, अन्त के स्वामी अनन्त भगवान् श्रीशिव के चरणों में हुआ।

जम्मू ट्रिप - तीसरे दिन (श्री वैष्णों देवी जी) की यात्रा करने के लिये यहाँ क्लिक करें।

एक मिनट ! क्लिक करने से पहले यहाँ कुछ तस्वीरें देख लेते हैं :-

पहाड़ी इलाके में रहने वाली महिलायें पुरुषों से अधिक मेहनती होती हैं 


रणशू बस-अड्डे के पास


शिव-खोड़ी  के रास्ते में

जम्मू ट्रिप - तीसरे दिन (श्री वैष्णों देवी जी) की यात्रा करने के लिये यहाँ क्लिक करें।


6 comments:

  1. Waah waah man khus ho gya yatra virtant sun kr kyuki mujhe lga tha ki aap mere paas aakar btayenge lekin ye to mujhe sakshaat darshan karva diye

    ReplyDelete
    Replies
    1. शब्द की आवाज़ सबसे तेज होती है, इसलिए ये माध्यम चुना।
      पढ़ते रहिये, औरों को पढ़ाते रहिये...
      जय माता दी

      Delete
  2. सादर धन्यवाद आशीष भैया

    ReplyDelete