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Friday, November 30, 2018

अग्नि की उड़ान, सलाम मेरे कलाम

साभार इन्टरनेट

सबसे पहले मैं ये स्वीकार करना चाहूँगा कि ये लेख आपको थोड़ा-सा लंबा और मेरी भाषा-शैली की अयोग्यता के कारण कुछ अरुचिकर लग सकता है, परन्तु यदि आप इसे अन्त तक पढ़ते हैं तो निश्चित रूप से आप इस लेख को अत्यन्त उपयोगी और जानकारियों से भरा हुआ पायेंगे।

रोज की तरह मैं दिन भर के कामों से थककर रात के दस बजे अपने कमरे पर पहुँचा। खाना-खाने का मन नहीं था तो एक प्याली चाय लेकर चुस्कियाँ लेने लगा। मैंने महसूस किया कि पिछले 4-6 दिनों से मैं दिनभर व्यस्त भी रहता हूँ और कुछ ख़ास काम संपन्न होता नहीं दिख रहा है। चाय पीते हुए मैंने लैपटॉप पर एक ऐसी पीडीऍफ़ फाइल खोली जिसका नामकरण ठीक से नहीं हुआ था। मैं सिर्फ ये देखना चाह रहा था कि इसमें है क्या? पढ़ते-पढ़ते मैं पूरे 186 पृष्ठ पढ़ गया। पुस्तक और रात दोनों ख़त्म हो चुकी थी। मैं स्वयं को बहुत उर्जान्वित महसूस कर रहा था। मेरी सब परेशानियाँ ज्यों-की-त्यों होने के बावजूद भी मुझे परेशान नहीं कर पा रही थी। ऐसा लग रहा था सब ठीक हो चुका है, मैं सबकुछ पा चुका हूँ, एकदम शान्ति और सुकून का पल मेरी ज़िन्दगी में गुजर रहा है...
इस चमत्कारिक पुस्तक का नाम था WINGS OF FIRE अर्थात् ‘अग्नि की उड़ान’... जो कि देश के “मिसाइल-मैन” डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम साहब द्वारा लिखित पहली पुस्तक थी। मैं उसे पढ़कर बहुत प्रफुल्लित था। ऐसा लग रहा था कि कलाम सर का पूरा जीवन किसी फिल्म की तरह मेरी आँखों के सामने गुजर रहा हो।

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इस पुस्तक ने मेरे मन से ये मिथ तोड़ दिया कि विज्ञान और अध्यात्म एक-दूसरे के विपरीत हैं। इस विषय पर उन्होंने लिखा है कि “मुझे आश्चर्य हुआ कि कुछ लोग विज्ञान को इस तरह से क्यों देखते हैं, जो व्यक्ति को ईश्वर से दूर ले जाए। जैसा कि मैंने इसमें देखा कि ह्रदय के माध्यम से ही हमेशा विज्ञान तक पहुँचा जा सकता है। मेरे लिए विज्ञान हमेशा आध्यात्मिक रूप से समृद्ध होने और आत्मज्ञान का रास्ता रहा।”

कलाम साहब का जन्म एक मुस्लिम परिवार में हुआ और उनका घर हिन्दुओं के सुप्रसिद्ध तीर्थस्थल श्रीरामेश्वरम् की मन्दिर से कुछ ही दूरी पर था। उनके पिता जैनुलाबदीन एक सज्जन एवं आडम्बरहीन व्यक्ति थे। कलाम साहब का बचपन अपने पिता तथा पिता के गहरे मित्र (जो कि रामेश्वरम् के सबसे बड़े पुजारी भी थे) पक्षी लक्ष्मण शास्त्री जी के सानिध्य में गुजरा। यही कारण रहा कि उनकी किताब में हमें कई बार प्रयोग की गयी उपमाएँ हिन्दू धर्म से संबंधित देखने को मिलती हैं। जैसे वे एक स्थान पर लिखते हैं कि “हर ठोस वस्तु के भीतर एक खाली स्थान होता है और हर स्थिर वस्तु के भीतर बड़ी हलचल होती रहती है। यह ठीक उसी तरह है जैसे हमारे जीवन के प्रत्येक क्षण में पृथ्वी पर भगवान् शिव का शाश्वत नृत्य हो रहा होता है।”

कलाम साहब ने अपने जीवन में अध्ययन, अनुभव और मार्गदर्शन से जो भी सीखा उसका प्रयोग बखूबी किया। कई बार हम कुछ बातें जानते हुए भी आचरण में नहीं ला पाते हैं, परन्तु उनके साथ ऐसा नहीं था। अपनी असफलताओं और संघर्षों के दिनों की बात बताते हुए वे लिखते हैं कि “विजयी होने के लिए सबसे अच्छा तरीका यह है कि विजयी होने की जरूरत नहीं है। जब आप भ्रमों से मुक्त एवं शांतचित्त होते हैं तभी किसी काम को पूरे बेहतर ढंग से कर पाते हैं। मैंने चीजों-घटनाओं को उसी तरह लेना शुरू कर दिया जैसे वे मेरे जीवन में आईं।”

इस पुस्तक को पढ़कर जो तमाम बातें सीखने वाली हैं, उनमें से मुझे सबसे अच्छी बात ये लगी कि हम युवा कई बार आधुनिकता के रेस में भागते हुए अपने आध्यात्मिक व्यक्तित्व को कहीं बहुत पीछे छोड़ देते हैं। हमें लगता है पूजा-पाठ करना हमारा काम नहीं है वो सब बुजुर्गों का काम है। परन्तु प्रार्थना की शक्ति बताते हुए कलाम साहब ने लिखा है कि “प्रार्थना का एक जो मुख्य काम है, जैसा कि मैं मानता हूँ, वह है मनुष्य के भीतर नए-नए विचार उत्पन्न करना। विचार सचेतावस्था में मौजूद रहते हैं और जब ये विचार उत्सर्जित होते हैं, निकलते हैं तो वास्तविकता जन्म लेती है तथा निष्कर्ष सफल घटनाओं के रूप में सामने आते हैं। ईश्वर, हमारे रचयिता, ने हमारे मस्तिष्क के भीतर अपार ऊर्जा एवं योग्यता दी है। प्रार्थना हमें इन शक्तियों को प्रयोग में लाने में मदद करती हैं।”

अब्दुल कलाम साहब एक उत्कृष्ठ नेतृत्वकर्ता भी थे। इसका एक अच्छा उदाहरण हमें उनकी पुस्तक में तब पढ़ने को मिलता है जब वो मिशन एस.एल.वी-3 की असफ़लता का जिक्र करते हैं। इस असफ़लता पर सब लोग एकमत थे कि किसी का कोई दोष नहीं है जो हुआ वो तकनीकि की समस्या थी। परन्तु इस बात से कलाम साहब सन्तुष्ट नहीं थे, वो स्वयं को जिम्मेदार मानकर एक बेचैनी महसूस कर रहे थे। उन्होंने अपनी पुस्तक में इस घटना का जिक्र करते हुए लिखा है, “मैं खड़ा हुआ और प्रो. धवन से बोला, 'सर, हालाँकि इस असफलता के लिए मेरे साथियों ने तकनीकी गड़बड़ी को दोषी ठहराया है, तो भी अंतिम चरण की उलटी गिनती के दौरान नाइट्रिक एसिड रिसाव को अनदेखा करने की जिम्मेदारी मैं अपने ऊपर लेता हूँ। अन्य देशों में ऐसी स्थिति में मिशन डायरेक्टर को अपने काम से हाथ धोना पड़ जाता है। इसलिए एस.एल.वी-3 की असफ़लता का जिम्मा मैं अपने ऊपर लेता हूँ।' थोड़े समय के लिए पूरे हाल में सन्नाटा छा गया। प्रो. धवन खड़े हुए और बोले, ‘मुझे कलाम को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करके ही छोड़ना है।’ यह कहते हुए वह उठे और बैठक ख़त्म करने का संकेत देते हुए बाहर चले गए।”

वे जब भी असफ़ल होते थे तो इतिहास से कोई और असफ़लता का उदाहरण अपने सामने रखकर ख़ुद को पुनः सक्रीय कर लेते थे। एस.एल.वी-3 की असफ़लता से निराश होने पर उन्होंने लिखा है कि “विज्ञान के लक्ष्य हमें बड़ी ख़ुशी तो देते ही हैं, साथ ही दुःख, तकलीफ एवं ह्रदय-विदारक क्षण भी हमारे सामने आते हैं। मेरे मस्तिष्क में ऐसी कई घटनाएँ दर्ज हैं। जॉन केपलर को सूर्य के चारों ओर ग्रहों की गति के बारे में दो नियम बनाने के बाद तीसरा नियम प्रतिपादित करने में करीब सत्रह साल लग गए थे। इस दौरान उसे न जाने कितनी बार असफ़लताओं का सामना करना पड़ा होगा। मानव का चन्द्रमा पर कदम रखने का विचार सर्वप्रथम रूस के गणितज्ञ कोंस्तेतिन तिस्लोकोस्की ने दिया था, जो कि चार दशक बाद साकार हो पाया और वह भी अमेरिकनों के हाथों। प्रो. चन्द्रशेखर को अपनी खोज 'चंद्रशेखर लिमिट' के बाद नोबल पुरस्कार के लिए पचास साल इंतज़ार करना पड़ा। सन् 1930 के दशक में कैम्बिज विश्वविद्यालय में जब उन्होंने स्नातक किया था, तभी यह खोज कर ली थी। अगर उसी समय उनकी खोज को मान्यता दे दी जाती तो 'ब्लैक होल' की खोज कई दशक पहले ही सामने आ जाती। झटकों से उबरने के लिए मुझे इन सब विचारों ने काफी मदद की।”

सन् 1962 में कलाम साहब इसरो पहुँचे, इन्हीं के प्रोजेक्ट डायरेक्टर रहते भारत ने अपना पहला स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान एस.एल.वी.-3 बनाया। सन् 1980 में रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा के समीप स्थापित किया गया और भारत अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष क्लब (International Space Club) का सदस्य बन गया। वो कलाम साहब ही थे जिनके डायरेक्शन में देश को पहली स्वदेशी मिसाइल मिली। कलाम साहब के नेतृत्व में पृथ्वी, त्रिशूल, आकाश और नाग नाम के मिसाइल बनाए गए। इसके बाद सन् 1998 में रूस के साथ मिलकर भारत ने सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल बनाने पर काम शुरू किया और ‘ब्रह्मोस प्राइवेट लिमिटेड’ की स्थापना की गई। ब्रह्मोस धरती, आकाश और समुद्र कहीं भी दागी जा सकती है। कलाम साहब को बैलेस्टिक मिसाइल और प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी के विकास के कार्यों के चलते “मिसाइल मैन” के रूप में प्रसिद्धि मिली। जुलाई 1992 में वे भारतीय रक्षा मंत्रालय में वैज्ञानिक सलाहकार नियुक्त हुये। उनकी देख-रेख में भारत ने सन् 1998 में पोखरण में अपना दूसरा सफल परमाणु परीक्षण किया और परमाणु शक्ति से संपन्न राष्ट्रों की सूची में शामिल हुआ। (इससे पहले 1974 में भारत ने अपना मूल परमाणु परीक्षण किया था।)

अब्दुल कलाम साहब पर उनकी उपलब्धियाँ कभी हावी नहीं हो पायीं। उन्हें कभी-भी अपने ज्ञान और कार्यों का अहंकार नहीं हुआ। वो जब अपने मिशन की सफलता के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्द्रिरा गाँधी जी से मिले तो वो इस बात को लेकर कहीं नर्वस थे कि प्रधानमंत्री जी के सामने क्या बोलें? इस घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने लिखा है कि “अचानक मैंने देखा कि श्रीमती गाँधी मेरी ओर मुसकराती हुई बोलीं, ‘कलाम! हम तुम्हें यहाँ सुनना पसंद करेंगे।’ प्रो. धवन पहले ही बोल चुके थे। प्रधानमंत्री की ओर से ऐसे अनुरोध की मुझे तो कल्पना तक नहीं थी। हिचकिचाते हुए मैं उठा और बोला, ‘राष्ट्र निर्माताओं की उपस्थिति के बीच मैं अपने को वाकई सम्मानित महसूस कर रहा हूँ। मैं सिर्फ यही जानता हूँ कि हम देश में एक रॉकेट प्रणाली किस तरह तैयार कर सकते हैं, जिसे पच्चीस हजार किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से छोड़ा जा सके।’ कमरा तालियों की आवाज से गूँज उठा।”

कलाम साहब ने अपने पुस्तक में श्री जवाहरलाल नेहरु जी के बारे में लिखा है कि, “भारत में रॉकेट विज्ञान के पुनर्जन्म का श्रेय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के नई प्रौद्योगिकी के विकास की दृष्टि को जाता है। उनके इस सपने को साकार बनाने की चुनौती प्रो. साराभाई ने ली थी। हालाँकि कुछ संकीर्ण दृष्टि के लोगों ने उस समय यह सवाल उठाया था कि हाल में आजाद हुए जिस भारत में लोगों को खिलाने के लिए नहीं है उस देश में अंतरिक्ष कार्यक्रमों की क्या प्रासंगिकता है। लेकिन न तो प्रधानमंत्री नेहरु और न ही प्रो. साराभाई में इस कार्यक्रम को लेकर कोई अस्पष्टता थी। उनकी दृष्टि बहुत साफ़ थी— ‘अगर भारत के लोगों को विश्व समुदाय में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है तो उन्हें नई-से-नई तकनीक का प्रयोग करना होगा, तभी जीवन में आने वाली समस्याएँ हल हो सकेंगी।’ इनके माध्यम से उनका अपने शक्ति प्रदर्शन का कोई इरादा नहीं था।

कलाम साहब ने अपने दृढ़-इच्छाशक्ति से वो कारनामा कर दिखाया जो लगभग असम्भव जैसा था। जिस समय भारत अपनी शक्तियों को मजबूत कर रहा था और कलाम साहब जैसे अनेक भारतीय वैज्ञानिक इस कार्य में प्राण-प्रण से लगे हुए थे, उसी समय विदेशी ताकतों ने भारत पर तमाम प्रकार के दबाव भी बनाये। अमेरिका ने उन तमाम सामानों के निर्यात पर रोक लगा दी जिनसे मिसाइल बनाई जा सकती थी। इसका परिणाम ये हुआ कि हमारे वैज्ञानिकों को अपने ही देश में वो सब सामान तैयार करना पड़ा इसमें तकरीबन दो वर्ष लग गये। परन्तु कभी हार न मानने वाले अदम्य साहसी कलाम साहब ने अनेकों मिसाइलें बनाई, उनका सफल परीक्षण करवाया और ऐसा करके उन तमाम देशों के मुँह पर तमाचा जड़ दिया जो भारत को कमजोर ही देखना चाहते थे। कलाम साहब ने भारत को इतनी शक्ति दी है कि अब कोई भी देश भारत की तरफ आँख उठाने से पहले सौ बार सोचेगा। कलाम साहब का मानना था कि जितनी शक्ति हमारे अन्दर होगी उतनी ही मजबूती से हम शांति स्थापित कर पायेंगे, उनकी एक बात मुझे याद आ रही है कि “2000 वर्षों के इतिहास में भारत पर 600 वर्षों तक अन्य लोगों ने शासन किया है। यदि आप विकास चाहते हैं तो देश में शांति की स्थिति होना आवश्यक है और शांति की स्थापना शक्ति से होती है। इसी कारण प्रक्षेपास्त्रों को विकसित किया गया ताकि देश शक्ति सम्पन्न हो।”

अगर हम उन्हें अधिक-से-अधिक पढ़ सकें, समझ सकें और उनकी बातों पर आचरण कर सकें तो निश्चित रूप से हम अपने लिए, अपने समाज के लिए, अपने देश के लिए कुछ अच्छा कर सकेंगे। उनकी पुस्तक की हिन्दी प्रति खरीदने से के लिए यहाँ क्लिक करें और अंग्रेजी के लिए यहाँ क्लिक करें। इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फ्री डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें। अगर किसी लिंक से सम्बन्धित कोई समस्या है तो यहाँ क्लिक करके हमें सूचित करें या नीचे Comment Box में लिखकर बतायें।

सलाम मेरे कलाम


- कुमार आशीष
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11 comments:

  1. जो बातें लिखनी मुझसे रह गयी थीं वो आपकी प्रतिक्रया से पूर्ण हुईं, बहुत-बहुत धन्यवाद मैम!

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  2. I have read this book earlier.It mesmerize me always. Dr Kalam is my role model and i try to follow his"never give off" formula. You presented the summary of the book very beautifully. Good job. Loved it.

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    1. Thank you mam! I am very happy to read your comment on my blog.

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  3. एक अतिआवश्यक, और अति विशेष लेख, जिससे सभी को निस्संदेह असीम प्रेरणा मिलेगी। गलतियों से सीखने, खुद का उत्साहवर्द्धन करने, नए काम करने की प्रेरणा..... इन सबका सार आपने रखा है। एक अद्भुत व्यक्तित्व से परिचय करवाने के लिए बेहद शुक्रिया आशीष भैया।

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    1. आपकी प्रतिक्रया बता रही है कि आपने पूरा लेख मन से पढ़ा है, शुक्रिया भैया! Paid-Readers का यही फायदा है... :)

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  4. अगर आप देश के लिए अपने स्तर से कुछ छोटा-बड़ा करना चाहते हैं तो इस पुस्तक को जरूर पढ़ें. सिस्टम को बदलने की सकारात्मक सोच को नई ऊर्जा मिलेगी. आपको लगता है कि चाहे जो कर लो सिस्टम नहीं बदलने वाला, तब भी एक बार हिम्मत करके पूरी पढ़ जाएं. मेरी राय में तो हर जनप्रतिनिधि को भी यह किताब पढ़नी चाहिए.

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    1. बिलकुल सही कहा आपने, हर किसी को ये पुस्तक पढ़नी चाहिए और उससे प्राप्त शिक्षाओं को जीवन में उतारने का प्रयास करना चाहिए।
      धन्यवाद!

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  5. ये मेरा दुर्भाग्य है कि मै इसे अभी नही पढ़ पाया ,पर आपके इस लेख को पढ़कर जैसे अपराध बोध हो रहा है |मैं शीघ्र ही पढूंगा ...बस आपके इस लेख की वजह से

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    1. बहुत-बहुत आभार आपका...
      जरूर पढ़िये ये किताब और इसके साथ उनकी और भी किताबें पढ़िये निश्चित रूप से आपको अच्छा लगेगा। जैसे:- जीवन वृक्ष, मेरी जीवन यात्रा आदि...

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