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परम आदरणीय डॉ कलाम साहब!
चरणस्पर्श
सर्वप्रथम आपके जन्मदिवस पर आपको बहुत-बहुत बधाई कलाम साहब! मेरे लिए तो आपका कद और किरदार ईश्वर के समकक्ष ही है। हमारे धरा-धाम पर सब कुशल मंगल है, आशा है आप भी परमपिता के सानिध्य में सानन्द होंगे। आज आपके जन्मदिवस पर आपके सभी चाहने वाले आपको अपनी-अपनी तरह से याद कर रहे हैं और मैं ये कल्पना करने में व्यस्त हूँ कि आप अब अपना जन्मदिवस कैसे मानते होंगे? क्या आप देवराज इन्द्र की सभा में उपस्थित सभी देवताओं के बीच विशेष आसन पर विराजमान होकर अपने जीवन के अनुभवों से सबको आश्चर्यचकित कर रहे होंगे या फिर बैकुण्ठनाथ के साथ क्षीरसागर के किनारे उसी प्रकार ऊँगली पकड़े चल रहे होंगे जैसे बचपन में धरती पर अपने पिता जी की ऊँगली पकड़कर समुद्र किनारे टहला करते थे। आप स्वयं साहित्यकार भी हैं और हिन्दी के प्रतिभाशाली पुत्रों का जमावड़ा तो स्वर्ग में पहले से ही लगा है। बहुत हद तक सम्भव है आज महाप्राण निराला आपको “राम की शक्तिपूजा” सुना रहे हों, दिनकर जी अपनी “रश्मिरथी” से माहौल को नई दिशा दे रहे हों, आपके निकटतम मित्र पण्डित अटल बिहारी वाजपेयी जी अपनी “इक्यावन कविताओं” से आपको सराबोर कर रहे हों या फिर डॉ. हरिवंश राय बच्चन जी अपनी “मधुशाला” के सस्वर वाचन से माहौल को नई उमंग और तरंग देने में व्यस्त हों। विक्रम साराभाई, प्रो. सतीश धवन और ब्रम्हप्रकाश जैसे महान वैज्ञानिक इस महफ़िल में उपस्थित रहते होंगे। उन्हें भी पता चलता होगा कि जिस कलाम नाम के पौधे का रोपण उन्होंने धरती पर किया था वो बड़ा होकर पेड़ के रूप में पूरे देश-दुनियाँ को छाया बाँटने की सामर्थ्य रखने वाला बन गया। अहा! कवियों, लेखकों और वैज्ञानिकों का क्या अद्भुत संगम हो रहा होगा। अगर ऐसी महफ़िल जमी होगी तो मुझे पूरा विश्वास है कि पण्डित अटल बिहार वाजपेयी जी पोखरण में हुए परमाणु परीक्षण के दौरान आपने जो अदम्य साहस और कार्य-कुशलता का परिचय दिया था उसकी चर्चा करके अपनी प्रशंसा भरी प्रतिक्रियाओं और स्नेहिल मधुर मुस्कान से आपको गदगद जरूर कर रहे होंगे।
उन्हें ऐसा करना भी चाहिए क्योंकि पोखरण में अमेरिकी सेटलाइट्स से बचते हुए जो आपने इतना बड़ा चमत्कार किया था न उसी का प्रतिफल कि आज कोई भी दुश्मन देश भारत की तरफ भृकुटी तक तिरछी करके देखने की हिम्मत नहीं रखते हैं। आपके अथक प्रयासों से जिन शक्तियों का जन्म हुआ उसी से सुसज्जित भारत की छवि देखकर कोई भी देश भारत से सिर्फ दोस्ती ही करना चाहता है। जिस तरह श्वेत सप्त अश्वों से जुते रथ पर भगवान् श्रीकृष्ण को सारथि और अर्जुन को रथी के रूप में बैठे देखकर भगवान् शिव के अतिरिक्त कोई भी भयभीत हो जाता था उसी तरह आज बड़े-से-बड़े शक्तिशाली देशों की हिम्मत नहीं है कि वो भारत के साथ दुश्मनी करने की सोचे भी... पोखरण में प्राण-पीने वाली गर्मी और बार-बार उठने वाले रेत के बवंडरों से जूझते हुए आपने जिस तरह से परमाणु-परीक्षण के काम को अंज़ाम दिया था वो तो कदाचित् देवलोक वालों को भी अचरज में डाल देता होगा, वैसे भी देवलोक वासी परिश्रम और संघर्ष करना क्या जाने ये तो केवल मनुष्यों का विशेषाधिकार है। आपकी काम की लगन और निष्ठा के कारण ही ‘भारत’ परमाणु शक्ति से संपन्न राष्ट्रों की सूची में स्थान प्राप्त कर सका।
इससे पहले भी इसरो की तमाम उपग्रह प्रक्षेपण परियोजना में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए देश के पहले सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SLV-III) को विकसित करने के लिए मिशन डायरेक्टर के रूप में महत्वपूर्ण योगदान दिया। एसएलवी-3 ने जुलाई 1980 में पृथ्वी की कक्षा के निकट में रोहिणी उपग्रह को सफलतापूर्वक इंजेक्ट किया, जिसके बाद भारत स्पेस क्लब का विशेष सदस्य बना। इसके अलावा पृथ्वी, अग्नि, नाग, ब्रम्होस और त्रिशूल आदि प्रोजेक्ट्स पर काम करते हुए भारत को बैलेस्टिक मिसाइल और लॉन्चिंग टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भर बनाने के कारण आप “मिसाइल मैन” के नाम से अलंकृत हुए। वैज्ञानिक जीवन के अलग हटकर आपने देश की सेवा में महत्वपूर्ण योगदान, देश के 11वें राष्ट्रपति के रूप में दिया। ज़मीनी स्तर से जुड़कर काम करने की अद्भुत कला ने आपको “जनता का राष्ट्रपति” बना दिया। अपने वैज्ञानिक जीवन में तमाम अलग-अलग परियोजनाओं पर काम करते हुए आपने बहुत संघर्ष झेला। किस तरह आपके जीवन के महत्वपूर्ण 3 वर्षों में (जबकि आपका काम पर ध्यान देना बहुत महत्वपूर्ण था तभी) जीजा जी, पिता जी फिर माता जी का इंतकाल हुआ। इससे आप भावात्मक रूप से काफी व्यथित हुए। “एसएलवी-3” की असफ़लता ने आपको कितना कष्ट दिया होगा? एक प्रतिभाशाली वैज्ञानिक जो यदि चाहता तो देश के बाहर जाकर काम करता और धनाड्य वैज्ञानिकों में शामिल हो सकता था उसने सिर्फ देश की सेवा करने के लिए उस लग्ज़री ज़िन्दगी और अपार धन-दौलत को ठोकर मार दी थी। फिर यही वैज्ञानिक “अग्नि” की असफलता पर रोज़ कैसे-कैसे व्यंग-बाणों से घायल होता था, कितने कार्टून बना दिए गये उसे चिढ़ाने के लिए... आपके कार्यों के दौरान प्रकृति ने भी आपकी खूब परीक्षा ली, कभी उमस, कभी तेज़ आँधी ने सदा ही आपको परेशान किया। परन्तु इन सब से लड़कर, जीतकर आप आगे बढ़े और अपने सपनों को साकार करते हुए देश को महाशक्ति बनाने में सहायता की। श्रम और प्रकृति का ये संघर्ष कितना अद्भुत रहा होगा।
आपके अद्भुत कारनामों के परिणाम स्वरुप ही आपको लगभग चालीस विश्वविद्यालयों द्वारा मानद डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्राप्त हुईं, भारत सरकार द्वारा 1981 में पद्म भूषण और 1990 में पद्म विभूषण से आपको सम्मानित किया गया। वैसे तो ये सम्मान व्यक्ति को सम्मानित करते हैं परन्तु कभी-कभी इनके भाग्य में कुछ ऐसे लोग भी आते हैं जो इन सम्मानों को सम्मानित करते हैं। इसी क्रम में 1997 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान “भारत-रत्न” आपको पाकर सम्मानित और गौरवान्वित हुआ।
आपकी पुस्तक “अग्नि की उड़ान” में लेखक श्री अरुण तिवारी जी ने पाठको को संबोधित करते हुए लिखा है, “इस पुस्तक के माध्यम से आप उनके (डॉ कलाम सर) सानिध्य का आनन्द प्राप्त करेंगे और वे आपके आत्मीय मित्र बन जायेंगे।“ इस बात से मैं अक्षरशः सहमत हूँ। मुझे सचमुच ऐसा लगा जैसे आप मेरे बगल में बैठकर अपने जीवन-वृत्तांत सुना रहे हों। जैसे-जैसे मैं आपके विषय में पढ़ता जाता हूँ मेरी ये धारणा और दृढ़ हो जाती है कि आप कभी इस धरती पर थे ही नहीं, आपमें जितनी क्षमता, कुशलता, साहस और सादगी थी वो मनुष्यों में किसी में भी नहीं देखने को मिलती है। हालाँकि इस धारणा में सच्चाई तो नहीं है क्योंकि मुझे खुद ही आपके जीवन काल में धरती पर रहने का सौभाग्य प्राप्त रहा है। अब ये सौभाग्य देवलोक वाले उठा रहे हैं। वहाँ तो कोई काम भी नहीं रहता होगा, परमपिता की इच्छा मात्र से सब कार्य संचालित होते हैं। भूख, प्यास जैसे रोग तो मानवीय हैं तो निश्चित ही वहाँ के लोग इन सब से मुक्त होंगे। आप पूरा समय अपने अनुभवों और प्रेरक विचारों से देवलोक वालों को आनंदित करते होंगे। अभी लिखने से मन नहीं भरा है परन्तु अब आगे फिर कभी... आज आपका दिवस है आपको पुनः बहुत-बहुत बधाई, जब तक धरती पर थे तब तक काम और देश सेवा के अतिरिक्त आपने स्वयं का कोई अस्तित्व रखा ही नहीं था। अब आपके सपनों का भारत बन रहा है, हमारे प्रतिभाशाली वैज्ञानिक देश को टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अग्रसर कर रहे हैं। अब आप आनन्द से अपना जन्मदिवस मनाइये और भगवान् से बात करके पुनः धरती पर आने का कुछ इंतज़ाम करिए। ये भी है कि शायद आप अपनी तरह के एक ही थे, आप जैसे लोग हर शताब्दी के भाग्य में नहीं होते वो तो युग-युगान्तर में एक बार ही धरती पर आते हैं। आपकी पुस्तक के अनुसार, आपने प्रेम की पीड़ा को रॉकेट बनाने के मुक़ाबले में कहीं अधिक कठिन समझा इसलिए स्वयं का जीवन एकाकी रखा परन्तु मैं तो जितना आपको पढ़ता जाता हूँ उतना ही आपसे मेरा इश्क़ गाढ़ा होता जा रहा है। आपकी पुस्तक में पढ़ी एक कविता पढ़कर अक्सर खुद को उर्जान्वित करता रहता हूँ:-
‘क्यों है चिंतित
सहमा, डरा, उदास, कापुरुष।
अभी कहाँ आया है अवसर,
अभी कहाँ खोया है कुछ भी।’
अन्त में आपके लिए आपकी ही एक कविता की कुछ पंक्तियाँ लिख रहा हूँ...
‘सुन्दर हैं वे हाथ
सृजन करते जो सुख से
धीरज से
सच से
साहस से
हर क्षण, हर पल
हर दिन, हर युग।’
आई मिस यू कलाम साहब! आई लव यू....
आपका अपना
- कुमार आशीष
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Bahut hi khoob beta ji
ReplyDeleteGod bless you
Bhagwan isi tarah apko nishpaksh lekhani ka sahas hamesha de ..
God bless you Bache...
आप हमेशा मेरे प्रेरणा और प्रोत्साहन के प्रमुख घटक रहे हैं सर! स्नेह बना रहे... बहुत-बहुत आभार...
Deleteये तो इतना प्यारा है कि क्या कहें..... बाकी, कलाम सर को बधाइयाँ, प्रणाम, कृतज्ञता🙏🙏
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार भैया!
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