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चल पड़े हैं कदम उस दिशा की तरफ,
ज़िन्दगी भी वहीं, मौत भी है वहीं...
दुनियाँ मुझको भी सुनने को बेताब है,
जब से गीतों में तुम आ के रहने लगे।
जब भी कोई लगा पूछने हाल-ए-दिल,
हम तुम्हारी ही बातों को कहने लगे।
हमने सोचा छुपाने से क्या फायदा,
ये भी बातें थीं होनी कभी-न-कभी।
चल पड़े हैं कदम...
जब प्रणय के समर में उतर ही गये,
बात क्या अब करूँ जीत की, हार की।
जो कहो तुम वही अब करूँगा प्रिय!
हारना भी तो है जीत ही प्यार की।
कोई दुविधा न रख अपने मन ज़िन्दगी!
हारना है जहाँ, जीत भी है वहीं।
चल पड़े हैं कदम...
एक सपना ही है मेरी आँखों का ये,
तुम मेरी ज़िन्दगी में भी आओ कभी।
मैंने गीतों में अक्सर तुम्हें ही लिखा,
गीत मेरे ही मुझको सुनाओ कभी।
प्रेम के इस नगर, बात ये है ग़ज़ब,
मौन भी हैं यहीं, गान भी है यहीं...
चल पड़े हैं कदम...