चित्र : गूगल से साभार
उनके पास इसके लिए विभिन्न तर्क भी होते हैं जैसे- रावण सब पहले से जानता था और अपना उद्धार करने के लिए उसने ऐसा किया, अपनी बहन के सम्मान के लिए ऐसा किया, रावण ब्राह्मण और बहुत विद्वान था इसलिए उसे कुछ ग़लत नहीं कहना चाहिए और भी तमाम प्रकार के कुतर्क सुनने को मिलते हैं। कुछ लोगों जो महिलाओं के बहुत बड़े हित-चिन्तिक हैं वो कहेंगे कि रावण जैसा पति मिलना चाहिए क्योंकि उसी की अशोक वाटिका में इतनी दिन सीता जी रहीं लेकिन रावण ने हाथ नहीं लगाया...
उपर्युक्त सभी बातों पर मेरी राय ये है कि रावण सब जानता था और उद्धार के लिए उसने ऐसा किया ये तो एक अध्यात्मिक पक्ष हो गया। इस हिसाब से तो राम जी भी सब जानते थे कि सीता को कौन ले गया है? क्यों ले गया है? फिर उन्हें तो रावण की इस दरियादाली पर पुरस्कृत करके उसका सम्मान करना चाहिए था लेकिन उन्होंने युद्ध करके ही मारा। सीधी सी बात है कि मानवीय लीला में आदर्श स्थापित करने के उद्देश्य से भगवान् का अवतार हुआ था। इसलिए पूरी घटना को इस प्रकार देखना है कि उस घटना से हम साधारण मनुष्य क्या शिक्षा ले सकते हैं?
अब जो लोग कह रहे हैं कि रावण ने अपनी बहन के सम्मान की रक्षा के लिए सीता का हरण किया वो लोग ये समझ लें कि बहन के सम्मान रक्षा के लिए युद्ध भी तो कर सकता था, छल-प्रपंच करके चोरी करना एक राजा के लिए निन्दनीय है। इसकी हम निन्दा ही करेंगे और ये सीख भी लेंगे कि अगर हमें अपनी बहन के सम्मान की रक्षा करनी हो तो लड़ेंगे न कि चोरी-चमारी पर आ जायेंगे। कुछ लोग कहते हैं कि रावण बहुत विद्वान था उसे कुछ बुरा नहीं कहना चाहिए, तो भैया आज भी कई आतंकवादी जब पकड़े जाते हैं तो पता चलता है वो इंजीनियर निकलते हैं। अब क्या उन सबको सम्मान पूर्वक छोड़ दिया जाये? आप भले ही डॉक्टरेट से ही सम्मानित क्यों न हों अगर आप रेप और मर्डर जैसे अपराध करेंगे तो आपको उसी प्रकार दण्डित किया जायेगा जैसे कि अनपढ़ को किया जाता है। आपकी शिक्षा आपको यहाँ नहीं बचा पायेगी। सबसे हास्यास्पद बात कि सीता जी लम्बे समय तक लंका में थीं पर रावण ने उन्हें हाथ नहीं लगाया। इसका कारण ये नहीं है कि रावण बहुत अच्छा था बल्कि उसे नल-कूबर का श्राप था कि अगर वो किसी स्त्री को बलपूर्वक उसकी इच्छा के बिना अपने वश में करना चाहेगा तो उसके सिर के टुकड़े-टुकड़े हो जायेंगे। यहाँ आपको जो अच्छाईयाँ रावण में दिख रही हैं उसी के विपरीत ही कर्म करने पर रावण को नल-कूबर ने श्राप दिया था।
रावण का महिमामण्डन दो प्रकार के लोग करते हैं। पहले वो जिन्होंने इन घटनाओं से जुटे ग्रंथों को पढ़ा नहीं है सिर्फ कहानियों में सुना है, दूसरे वो लोग जो अपनी एक विचारधारा बना लेते हैं फिर उन्हें अगर कोई भी चीज अपनी विचारधारा के विपरीत साफ़-साफ़ दिखाई भी दे तब भी वो स्वयं को उससे सहमत नहीं करते हैं। आख़िर में आपसे इतना ही निवेदन है कि ऐसी घटनाओं को पढ़िए और विश्वास के साथ श्रीराम जी के आदर्शों पर चलने का प्रयत्न करिये। रावण के अन्दर जो अच्छाईयाँ थीं, भगवान् शिव का परम भक्ति, महान विद्वता, युद्ध कौशल में निपुणता, परमवीरता उसके लिए भगवान् श्रीराम ने भी उसे प्रणाम किया और विश्व भी सदा प्रणाम करता रहा है। परन्तु रावण में कितनी भी अच्छाइयाँ रहीं हों फिर भी वो एक अधर्मी, अत्याचारी, कामी, चोर, स्वयं के अहंकार में पूरे देश का हित परे रखने वाला मूर्ख राजा था। हम उसका पूजन नहीं कर सकते हैं। अपने बच्चों को श्रीराम बनने की शिक्षा दीजिये रावण बनने की नहीं...
[स्वस्थ चर्चा वालों का स्वागत रहेगा लेकिन कोई भी कुतर्क न करे, अगर आप उपर्युक्त बातों से असहमत हैं और फिर भी रावण की ही भक्ति करना चाहते हैं तो ठीक है, आपको जय लंकेश... ईश्वर करें आपकी सन्तान रावण के गुणों के साथ जन्म ले और बाकी सबको जय सियाराम...]
आपका अपना
- कुमार आशीष
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Saturday, October 5, 2019
राम या रावण (दशहरा-विशेष)
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