साभार इन्टरनेट : माता श्री वैष्णों देवी जी का पिण्डी स्वरुप
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ये पन्ना मेरी जम्मू ट्रिप का ही एक हिस्सा है, यहाँ मैं माता श्री वैष्णों देवी जी के बारे में वो लिख रहा हूँ जो मैंने इंटरनेट तथा अन्य विभिन्न माध्यमों से पढ़ा और जाना है। अगर आप “जम्मू ट्रिप – पहला दिन : दिल्ली से कटरा” पढ़ चुके हैं तो ये ब्लॉग पढ़ते रहें अथवा पूरी जम्मू ट्रिप को शुरु से पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें।
माता श्री वैष्णों देवी जी का मन्दिर जम्मू और कश्मीर राज्य के कटरा नगर के पास है। माताजी का भवन 5200 फीट की ऊँचाई पर है, जो कि कटरा से लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर है। यहाँ पहुँचने के लिये देश के विभिन्न शहरों से बस और रेल द्वारा कटरा पहुँचा जा सकता है, जहाँ से आगे की चढ़ाई आप पैदल, घोड़े, पालकी, पिट्ठू, हेलीकॉप्टर या बैटरी-कार द्वार कर सकते हैं। अगर आपके शहर से कटरा तक रेल या बस नहीं चलती तो आप जम्मू तक रेल या बस से जा सकते हैं वहाँ से कटरा की दूरी लगभग पचास किलोमीटर है, जो आप बस द्वारा तय कर सकते हैं। अगर आप वायुमार्ग से पहुँचना चाहते हैं तो आप जम्मू हवाई अड्डे तक पहुँचकर वहाँ से बस या टैक्सी द्वारा कटरा पहुँच सकते हैं।
पौराणिक मान्यता:-
माता वैष्णो देवी को लेकर कई कथाएँ प्रचलित हैं। एक प्रसिद्ध प्राचीन मान्यता के अनुसार माता वैष्णों देवी जी के एक परम भक्त थे श्रीधर। एक बार ब्राह्मण श्रीधर ने अपने गाँव में माता का भण्डारा रखा और सभी गाँव वालों व साधु-संतों को भण्डारे में पधारने का निमंत्रण दिया। गाँव वालों को विश्वास ही नहीं हुआ कि निर्धन श्रीधर भण्डारा कर रहा है। श्रीधर ने भैरोंनाथ को भी उसके शिष्यों के साथ आमंत्रित किया। भण्डारे में भैरोंनाथ ने खीर-पूड़ी की जगह मांस-मदिरा का सेवन करने की बात की तब श्रीधर ने इस पर असहमति जताई। अपने भक्त श्रीधर की लाज रखने के लिए माँ वैष्णो देवी कन्या का रूप धारण करके भण्डारे में आई। भोजन को लेकर भैरोंनाथ के हठ पर अड़ जाने के कारण कन्या रूपी माता वैष्णो देवी ने भैरोंनाथ को समझाने की कोशिश की किन्तु भैरोंनाथ ने उस कन्या की बात नहीं सुनी। जब भैरोंनाथ ने उस कन्या को पकड़ना चाहा, तब वह कन्या वहाँ से त्रिकूट पर्वत की ओर भागी और उस कन्या रूपी वैष्णों देवी ने हनुमानजी को बुलाकर कहा कि मैं इस गुफा में नौ माह तक तपस्या करुँगी, तबतक तुम बाहर रहकर भैरोंनाथ को अपने साथ उलझाये रखो। इस गुफा के बाहर माता की रक्षा के लिए हनुमानजी ने भैरोंनाथ के साथ नौ माह तक खेला। आज इस पवित्र गुफा को ‘अर्द्धकुँवारी’ के नाम से जाना जाता है। अर्द्धकुँवारी के पास ही माता की चरण पादुका मन्दिर भी है। यह वह स्थान है, जहाँ माता ने भागते-भागते पीछे मुड़कर भैरोंनाथ को देखा था। कहते हैं उस वक्त हनुमानजी माँ की रक्षा के लिए माँ वैष्णो देवी के साथ ही थे। हनुमानजी को प्यास लगने पर माता ने उनके आग्रह पर धनुष से पहाड़ पर एक बाण चलाकर जलधारा निकाली और उस जल में अपने केश धोये। आज यह पवित्र जलधारा “बाणगंगा” के नाम से जानी जाती है, जिसके पवित्र जल का पान या स्नान करने से भक्तों की सारी व्याधियाँ दूर हो जाती हैं। त्रिकुट पर्वत पर जिस स्थान पर माँ वैष्णों देवी जी ने भैरोंनाथ का संहार किया वहीं उनकी गुफा है, वहीँ वो पिण्डी के स्वरुप में आज भी विराजमान हैं, तथा त्रिशूल के प्रहार से उनका धड़ तो गुफा के द्वार पर पड़ा रहा लेकिन उसका सिर वहाँ से 05 किलोमीटर दूर जाकर गिरा, उसके क्षमा माँगने पर ममतामयी ह्रदय वाली माँ ने उसे अपने से भी ऊँचा स्थान दिया कहा कि, “जो मनुष्य मेरे दर्शन के पशचात् तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा उसकी यात्रा पूरी नहीं होगी।” अत: श्रद्धालु आज भी माता श्री वैष्णों देवी जी के दर्शनों के पश्चात भैरोंनाथ के दर्शन को अवश्य जाते हैं।
ऐसी मान्यता है कि माँ वैष्णों वैष्णो देवी ने रत्नाकर सागर के घर जन्म लिया था। उनके लौकिक माता-पिता लम्बे समय तक निःसंतान थे। देवी ने बालिका के जन्म से एक रात पहले, रत्नाकर से वचन लिया कि बालिका जो भी चाहे, वे उसकी इच्छा के रास्ते में कभी नहीं आयेंगे। मां वैष्णो देवी को बचपन में "त्रिकुटा" नाम से बुलाया जाता था। बाद में भगवान विष्णु के वंश से जन्म लेने के कारण वे "वैष्णवी" कहलाईं। जब त्रिकुटा 09 साल की थीं, तब उन्होंने अपने पिता से समुद्र के किनारे पर तपस्या करने की अनुमति चाही। त्रिकुटा ने राम के रूप में भगवान विष्णु से प्रार्थना की। सीता की खोज करते समय श्री राम अपनी सेना के साथ समुद्र के किनारे पहुँचे। उनकी दृष्टि गहरे ध्यान में लीन इस दिव्य बालिका पर पड़ी। त्रिकुटा ने श्री राम से कहा कि उसने उन्हें अपने पति के रूप में स्वीकार किया है। श्री राम ने उसे बताया कि उन्होंने इस अवतार में केवल सीता के प्रति निष्ठावान रहने का वचन लिया है। लेकिन भगवान ने उसे आश्वासन दिया कि कलियुग में वे “कल्कि” के रूप में प्रकट होंगे और उससे विवाह करेंगे।
इस बीच, श्री राम ने त्रिकुटा से उत्तर भारत में स्थित माणिक पहाड़ियों की त्रिकुटा श्रृंखला में अवस्थित गुफ़ा में ध्यान में लीन रहने के लिए कहा। रावण के विरुद्ध श्री राम की विजय के लिए माँ ने “नवरात्र” मनाने का निर्णय लिया। इसलिये आज भी नवरात्र के 09 दिनों की अवधि में रामायण का पाठ किया जाता है। श्री राम ने वचन दिया था कि समस्त संसार द्वारा मां वैष्णों देवी की स्तुति गायी जायेगी। त्रिकुटा, वैष्णो देवी के रूप में प्रसिद्ध होंगी और सदा के लिए अमर हो जायेंगी।
उपरोक्त लेख में मैंने सक्षिप्त माँ वैष्णों देवी जी के इतिहास की जानकारी दे दी है, अब पुनः हम अपनी यात्रा पर लौटते हैं, इसके लिये हमें यहाँ क्लिक करना है।
साभार इंटरनेट : माता श्री वैष्णों देवी जी का भवन |
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