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Thursday, March 8, 2018

महिला-दिवस

साभार इन्टरनेट 

आज के महिला-दिवस पर मैंने हजारों पोस्ट्स महिलाओं के सम्मान में पढ़ीं। जहाँ अधिकतर पुरुष, महिलाओं के सम्मान की बातें करते मिले भले ही वो खोंखली हीं हों, वहीँ अधिकतर महिलायें अपने अधिकारों को लेकर पुरुषों के मुँह पर तमाचा लगाती मिलीं। पता नहीं क्यों महिलाओं को ये लगता है कि अगर उनके घर वाले उन्हें देर रात बाहर अकेले जाने से मना कर रहे हैं तो वो कोई ज़ुल्म कर रहे हैं? हो सकता है उन्हें आपकी सुरक्षा की चिन्ता हो, क्योंकि कोई भी पुरुष शक्तिमान तो है नहीं कि अपनी पत्नी या बहन की रक्षा के लिये घर से तुरंत उस जगह पहुँच जाये जहाँ वो है। आज के समय मैं आपको ये वचन दे सकता हूँ कि रात को ग्यारह बजे सूनसान सड़क पर अगर कोई अकेली लड़की मुझे मिली तो उसे मुझसे कोई ख़तरा नहीं है, लेकिन मैं ये वचन नहीं दे सकता कि बहन तुम रात को ग्यारह बजे कहीं जाओ तुम्हें कोई ख़तरा नहीं। क्योंकि मैं नहीं जानता वहाँ कौन लोग हो सकते हैं? उनकी मानसिकता कैसी होगी? और मैं उन लोगों से लड़ने में न तो सक्षम हूँ न ही खुद शक्तिमान की तरह तुम्हारे पास आकर तुम्हारी रक्षा कर पाउँगा। तुम इसे मेरी कमजोरी भी कह सकती हो, परन्तु शक्तिमान की बातें धारावाहिकों में अच्छी लगती है, वास्तविक धरातल पर ऐसा सम्भव नहीं है। तुम्हारी इज्ज़त की रक्षा के लिये मैं जान भी दे सकता हूँ लेकिन शायद जान देकर भी तुम्हें न बचा सकूँ जो लोग मुझे मार सकते हैं वो तुम्हारे साथ भी कुछ भी कर सकते हैं।

तुम्हें ये समझना होगा कि अपने पिता, भाई या पति की बात मानने से तुम्हारा सम्मान कम नहीं हो रहा वरन बढ़ता है। अगर किसी लड़की के साथ कुछ हो जाए तो समाज उन लड़कों को दोष देने की जगह लड़कियों को ही देते हैं। ये महिलायें जो अधिकार के नाम पुरुषों को तमाचा जड़ने का वीणा लेकर घूम रहीं हैं वो आज तो तुम्हें अपनी व्यक्तिगत ज़िन्दगी के नाम पर मस्ती करने को कहकर रात को बारह बजे डिस्को ले जायेंगी लेकिन अगर कुछ हुआ तो सबसे पहले वही तुम पर थूकेंगी। याद रखो बहन! जब सीता का विवाह हुआ था तब उन्हें भी लगता है मेरे पति सबसे बड़े हैं मैं अयोध्या जैसे बड़े साम्राज्य की होने वाली महारानी हूँ। अगर वनवास के समय वो पति को उकसातीं कि “मैं तुम्हारे पैर की जूती नहीं हूँ कि जो तुम करो मैं भी करूँ तुम्हें जाना है वन तो जाओ मैं यहाँ अपना अधिकार लेना जानती हूँ” तो शायद आज उन्हें जिस त्याग के लिये सम्मान दिया जाता है या पूजा जाता है वो उसकी अधिकारी न रहतीं। आज सीता को इसलिये पूजा जाता है क्योंकि उन्हें पता है किसके सामने झुकना है किसके सामने अड़ना है। स्त्री वो है जो अपने स्वाभिमान को ज़िंदा रखे। यही कारण आज अनुशाशित सीता माँ को पूजा जाता है और स्वच्छन्द विचरण करने वाली सूपर्णखा को धिक्कारा जाता है। हमेशा याद रहे कि स्त्री पुरुष की अर्धांगिनी है तो जिस तरह बिना स्त्री के पुरुष अधूरा है उसी तरह बिना पुरुष के स्त्री भी अधूरी है। अगर कोई पुरुष कुरीतियों के नाम पर स्त्री को नीचा दिखाये तो वो गलत है इसी तरह कोई स्त्री अधिकार के नाम पर अगर पति, भाई या पिता के सम्मान को ठोकर मानकर आगे बढ़ने की कोशिश करे तो वो भी गलत है।

- कुमार आशीष
+91 8586082041
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