लेखक - अमीश त्रिपाठी
फॉर्मेट - पेपरबैक
पृष्ठ संख्या - 350 पेज
मूल्य - ₹198
प्रकाशक - यात्रा-वेस्टलैण्ड
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ये पुस्तक अमीश सर द्वारा रचित “श्रीरामचन्द्र” सिरीज़ की पहली पुस्तक है। इस सिरीज़ में कुल तीन पुस्तकें हैं:-
1) राम (इक्ष्वाकु के वंशज)
2) सीता (मिथिला की योद्धा)
3) रावण (आर्यवर्त का शत्रु)
मैंने अभी तक पहली पुस्तक पढ़ी है। इसके आधार पर कह सकता हूँ कि लेखक की लेखन प्रतिभा और शोधन क्षमता निश्चित रूप से प्रशंसनीय है। इस पुस्तक को मनोरंजन के लिए किसी उपन्यास की तरह पढ़ा जाना चाहिए, इससे आपका ऐतिहासिक ज्ञान मजबूत होगा ये जरूरी नहीं है और जो होगा उसके ग़लत होने की सम्भावना बहुत प्रबल है। इस किताब की उपयोगिता कई गुना बढ़ सकती थी यदि इसमें प्रस्तुत वो तथ्य जो परम्परागत तथ्यों से बिल्कुल विपरीत हैं, उनका सन्दर्भ भी दिया गया होता। उसके बिना ऐसा लगता है कि ये विपरीत तथ्य लेखक के निजी विचार हैं या दिमाग़ी फितूर है जिसका सच्चाई से कोई लेना-देना नहीं है। ये भी हो सकता है कि मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि मैंने श्री राम जी के बारे में गिने-चुने ग्रन्थ ही पढ़े हैं। जैसे:- श्रीरामचरितमानस, रामायण, कवितावली, दोहावली आदि। इन सबको पढ़ने के बाद जो मैंने पाया उसके बहुत विपरीत कई तथ्य इस पुस्तक में है। लेखक ने निश्चित ही इस पौराणिक घटना से जुड़े तमाम भाषाओं के ग्रंथों का अध्ययन किया है। उस हिसाब से वो सही होंगे लेकिन फिर भी मेरे लिए उन सभी तथ्यों को बिना सन्दर्भ के स्वीकार कर पाना बहुत मुश्किल है, लगभग असम्भव है।
तथ्यों से हटकर बात करें तो इस पुस्तक में भाषा शैली, प्राकृतिक सौन्दर्य, भेषभूषा, नगर आदि का जो वर्णन है वो एकदम जीवन्त है। पढ़ते हुए एक रेखा चित्र जैसा खिंच जाता है। इसके अलावा प्राचीन पद्धतियों एवं सामाजिक एवं मानसिक स्थितियों का खूब बढ़िया और जानदार चित्रण है।
इस पुस्तक में जो सबसे ख़ास बात है वो इसका कवर डिजाईन है। बहुत ही आकर्षक डिजाईन है। अन्दर के पृष्ठों पर भी यदि कुछ चित्रादि होते तो अन्दर के पृष्ठ भी आकर्षक लगते परन्तु उसे डिजाईन करने में शायद हमारी परम्परागत उपन्यास शैली का अनुसरण किया गया है। मैं फिर से कहूँगा कि कवर को देखकर बहुत आकर्षण होता है।
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