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Saturday, November 9, 2019

श्री जवाहर लाल नेहरु जी

चित्र : गूगल से साभार


स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहर लाल नेहरु जी को आज़ादी और स्वतन्त्र भारत के विकास में उनके योगदानों के प्रति हम कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं। पण्डित जवाहर लाल नेहरु जी का जन्म 14 नवंबर सन् 1889 को इलाहाबाद में हुआ था। इनके पिता जी का नाम श्री मोतीलाल नेहरु था और माता जी का नाम श्रीमती स्वरूपरानी था। पण्डित जवाहर लाल नेहरु जी के पिता श्री मोतीलाल नेहरु जी इलाहाबाद के प्रसिद्ध वकील और धनाड्य व्यक्ति थे। पण्डित जवाहर लाल नेहरु जी की अध्ययन में रूचि होने से उन्हें अंग्रेजी, हिंदी और संस्कृत का अच्छा ज्ञान था। वो उच्च शिक्षा के लिए 1905 में विदेश चले गए और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से लॉ की डिग्री हासिल की। अपनी शिक्षा पूरी करके सन् 1912 में वो भारत लौटे और वकालत शुरू की। 1916 में उनकी शादी कमला नेहरू से हुई। पण्डित नेहरु जी की सुपुत्री का नाम इंदिरा प्रियदर्शनी था। यही प्रियदर्शिनी आगे चलकर स्वतन्त्र भारत की प्रथम महिला प्रधानमन्त्री बनीं और अपने अदम्य साहस से बड़े-बड़े निर्णय लिए तथा 'लौह-महिला' श्रीमती इन्दिरा गाँधी के नाम से प्रसिद्ध हुईं।

सन् 1917 में पण्डित जवाहर लाल नेहरू जी 'होम रुल लीग'‎ में शामिल हो गये। राजनीति में उनकी असली दीक्षा दो साल बाद सन् 1919 में हुई जब वे महात्मा गाँधी जी के संपर्क में आये। उस समय महात्मा गाँधी जी ने ‘रॉलेट अधिनियम’ के खिलाफ एक अभियान शुरू किया था। पण्डित नेहरू जी, महात्मा गाँधी जी के सक्रिय लेकिन शान्तिपूर्ण, 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' के प्रति खासे आकर्षित हुए। दिसम्बर 1929 में, 'कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन' लाहौर में आयोजित किया गया, जिसमें पण्डित जवाहरलाल नेहरू जी को कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष चुना गया। इसी सत्र के दौरान एक प्रस्ताव भी पारित किया गया जिसमें 'पूर्ण स्वराज्य' की मांग की गई। 26 जनवरी 1930 को लाहौर में पण्डित जवाहरलाल नेहरू जी ने 'स्वतंत्र भारत का झंडा' फहराया। उसके बाद 15 अगस्त 1947 को उन्होंने देश के पहले प्रधानमन्त्री के रूप में लालकिले से तिरंगा फहराया और राष्ट्र को सम्बोधित किया। अंग्रेजों ने करीब 500 देशी रियासतों को एक साथ स्वतंत्र किया था और उन्हें एक झंडे के नीचे लाना उस वक्त की सबसे बडी चुनौती थी। पण्डित जवाहरलाल नेहरू जी ने आधुनिक भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। उन्होंने 'योजना आयोग' का गठन किया, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास को प्रोत्साहित किया और तीन लगातार पंचवर्षीय योजनाओं का शुभारंभ किया। उनकी नीतियों के कारण देश में कृषि और उद्योग का एक नया युग शुरु हुआ। नेहरू ने भारत की विदेश नीति के विकास में एक प्रमुख भूमिका निभायी। पण्डित जवाहर लाल नेहरु जी ने 6 बार कांग्रेस अध्यक्ष के पद को सुशोभित किया। सन् 1942 के 'भारत छोड़ो' आंदोलन में नेहरूजी 9 अगस्त 1942 को बंबई में गिरफ्तार हुए और अहमदनगर जेल में रहे, जहाँ से 15 जून 1945 को रिहा किये गये। नेहरू ने पंचशील का सिद्धांत प्रतिपादित किया और 1954 में 'भारतरत्न' से अलंकृत हुए नेहरूजी ने तटस्थ राष्ट्रों को संगठित किया और उनका नेतृत्व किया। पंडित जवाहरलाल नेहरू जी के कार्यकाल में लोकतांत्रिक परंपराओं को मजबूत करना, राष्ट्र और संविधान के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को स्थायी भाव प्रदान करना और योजनाओं के माध्यम से देश की अर्थव्यवस्था को सुचारू करना उनके मुख्य उद्देश्य रहे। पण्डित जवाहर लाल नेहरु जी के विषय में ‘मिसाइल मैन’ वैज्ञानिक और भारत के पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम सर ने अपनी आत्मकथा 'अग्नि-की-उड़ान' में लिखा है:- “भारत में रॉकेट विज्ञान के पुनर्जन्म का श्रेय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के नई प्रौद्योगिकी के विकास की दृष्टि को जाता है। उनके इस सपने को साकार बनाने की चुनौती प्रो. साराभाई ने ली थी। हालाँकि कुछ संकीर्ण दृष्टि के लोगों ने उस समय यह सवाल उठाया था कि हाल में आजाद हुए जिस भारत में लोगों को खिलाने के लिए नहीं है उस देश में अंतरिक्ष कार्यक्रमों की क्या प्रासंगिकता है। लेकिन न तो प्रधानमंत्री नेहरु और न ही प्रो. साराभाई में इस कार्यक्रम को लेकर कोई अस्पष्टता थी। उनकी दृष्टि बहुत साफ़ थी— ‘अगर भारत के लोगों को विश्व समुदाय में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है तो उन्हें नई-से-नई तकनीक का प्रयोग करना होगा, तभी जीवन में आने वाली समस्याएँ हल हो सकेंगी।’ इनके माध्यम से उनका अपने शक्ति प्रदर्शन का कोई इरादा नहीं था।”

जैसा कि लगभग हर नेता के जीवन में विवाद अक्सर जुड़े रहते हैं, ऐसे ही पण्डित नेहरु जी भी इससे बच नहीं पाये। पण्डित नेहरू जी को महात्मा गाँधी जी के राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर जाना जाता है। गाँधी जी पर यह आरोप भी लगता है कि उन्होंने राजनीति में नेहरू जी को आगे बढ़ाने का काम सरदार वल्लभभाई पटेल समेत कई सक्षम नेताओं की कीमत पर किया। जब आजादी के ठीक पहले कांग्रेस अध्यक्ष बनने की बात थी और माना जा रहा था कि जो कांग्रेस अध्यक्ष बनेगा वही आजाद भारत का पहला प्रधानमन्त्री होगा, तब भी गाँधी जी ने प्रदेश कांग्रेस समितियों की सिफारिशों को अनदेखा करते हुए नेहरू को ही अध्यक्ष बनाने की दिशा में सफलतापूर्वक प्रयास किया। इससे एक आम धारणा यह बनती है कि पण्डित नेहरू ने न सिर्फ महात्मा गाँधी जी के विचारों को आगे बढ़ाने का काम किया होगा बल्कि उन्होंने उन कार्यों को भी पूरा करने की दिशा में अपनी पूरी कोशिश की होगी जिन्हें खुद गाँधी जी नहीं पूरा कर पाए। लेकिन सच्चाई इसके उलट है। यह बात कोई और नहीं बल्कि कभी पण्डित नेहरू जी के साथ एक टीम के तौर पर काम करने वाले श्री जयप्रकाश नारायण ने 1978 में आई पुस्तक ‘गाँधी टूडे’ की भूमिका में कही थी। जेपी ने नेहरू के बारे में कुछ कहा है तो उसकी विश्वसनीयता को लेकर कोई संदेह नहीं होना चाहिए क्योंकि नेहरू से जेपी की नजदीकी भी थी और मित्रता भी। लेकिन इसके बावजूद जेपी ने 'नेहरू मॉडल' की खामियों को उजागर किया।

समस्त राजनीतिक विवादों से हटकर बात करें तो राजनीतिक क्षेत्र में लोकमान्य तिलक के बाद सक्रीय रूप से लिखने वाले नेताओं में नेहरु जी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। नेहरू जी ने व्यवस्थित रूप से अनेक पुस्तकों की रचना की है। राजनीतिक जीवन के व्यस्ततम संघर्षपूर्ण दिनचर्या के चलते उन्हें लेखन का समय बहुत कम मिल पाता था, इसका हल उन्होंने यह निकाला कि वो अपने जेल के लम्बे दिनों को लेखन में बिताने लगे। उन्होंने अपनी अधिकाँश पुस्तकों की रचना जेल में ही की है। एक लेखक के रूप में उनमें एक साहित्यकार के साथ एक भाव प्रधान व्यक्ति भी दिखाई देता है। इसके साथ ही उन्हें ऐतिहासिक खोजी लेखक की तरह भी देखा जा सकता है। पण्डित नेहरु जी अपनी पुत्री इन्दिरा गाँधी को पत्र लिखा करते थे, ये पत्र वास्तव में कभी भेजे नहीं गये। परन्तु इससे विश्व इतिहास की झलक जैसा सुसंबद्ध ग्रंथ तैयार हो गया। 'भारत की खोज' (डिस्कवरी ऑफ इण्डिया) की लोकप्रियता के चलते उस पर आधारित 'भारत एक खोज' नाम से एक धारावाहिक भी बनाया गया था। उनकी आत्मकथा 'मेरी कहानी' के बारे में सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का मानना है कि उनकी आत्मकथा, जिसमें जीवन और संघर्ष की कहानी बयान की गयी है, हमारे युग की सबसे अधिक उल्लेखनीय पुस्तकों में से एक है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकें की सूची इस प्रकार है:-
  1. पिता के पत्र : पुत्री के नाम - 1929
  2. विश्व इतिहास की झलक - 1933
  3. मेरी कहानी - 1936
  4. भारत की खोज/हिन्दुस्तान की कहानी (दि डिस्कवरी ऑफ इंडिया) - 1945
  5. राजनीति से दूर
  6. इतिहास के महापुरुष
  7. राष्ट्रपिता
  8. जवाहरलाल नेहरू वाङ्मय (11 खंडों में)
चार बार पण्डित नेहरू जी की हत्या का प्रयास किया गया था। पहली बार 1947 में विभाजन के दौरान, दूसरी बार 1955 में एक रिक्शा चालक ने, तीसरी बार 1956 और चौथी बार 1961 में मुंबई में। 27 मई, सन् 1964 को हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया। भारतीय बच्चे उन्हें प्यार से ‘चाचा नेहरू’ के रूप में जानते हैं। यही कारण है कि उनके जन्मदिवस को आज भी भारत में ‘बाल-दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

- कुमार आशीष
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