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Tuesday, January 16, 2018

जम्मू ट्रिप - चौथा दिन : "कटरा से दिल्ली तथा यात्रा टिप्स"

पूरी जम्मू ट्रिप को शुरु से पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें

दिनाँक 02 जनवरी 2018, कल इतना थक गये थे कि सुबह कब हुयी पता ही नहीं चला। सुबह लगभग 08:00 बजे एक बार नींद अवश्य खुली लेकिन उठा नहीं गया, फिर लगभग 11:00 बजे जब पापा की कॉल आयी तब उठे। बिस्तर से उतरने के बाद आगे नहीं बढ़ा जा रहा, पैर में बहुत दर्द हो रहा था। खैर किसी तरह ब्रश इत्यादि करके चाय पीया। मेरे जागने के लगभग आधे घंटे बाद सौरभ भी उठे। वैसे तो आज हमें सुबह 10:00 बजे पटनीटॉप जाना था लेकिन उठे ही नहीं तो जाते कहाँ? आज ही रात को हमारी दिल्ली की ट्रेन थी और प्रयास करने पर भी अगले दिन का टिकट नहीं मिल पाने के कारण हमने पटनीटॉप जाने का विचार त्याग दिया। वहाँ पर कुछ लोगों ने बताया कि इस समय वहाँ बर्फ़बारी भी नहीं हो रही तो जाने का मन भी ज्यादा नहीं हुआ। पूरा दिन लगभग आराम करने में गया फिर शाम को कटरा घूमने निकले, थोड़ा खाया-पिये फिर वहाँ की बाजार और दुकानें देखते-देखते घूम-फिरकर वापस होटल आ गये। अब बारी थी पूरे कमरे में बिखरे सामान को समेटकर बैग में रखने की, हाँ-हाँ सिर्फ अपना सामान, होटल का नहीं। हमने अपना सामान पैक किया फिर रात को करीब 11:00 बजे हम चेकआउट करके कटरा स्टेशन की तरफ चल पड़े, यहाँ 11:50 बजे हमारी गाड़ी थी। ट्रेन के चलते ही हम सो गये और फिर सुबह आँख खुली तब से दिल्ली पहुँचने में बहुत ऊब गये क्योंकि ट्रेन जगह-जगह बहुत देर-देर तक रुक रही थी। आखिर में 06:00 घंटे की देरी से ट्रेन आनन्द विहार रेलवे स्टेशन पर पहुँची, हमने यहीं से अपने घर जाने के लियी मेट्रो पकड़ी।

माँ वैष्णों देवी जी एवं शिव जी का आशीर्वाद, मोबाइल और कैमरा मिलाकर 600 से अधिक तस्वीरें, बहुत से नये लोगों के साथ का संपर्क, होटल के अच्छे स्टाफ का व्यवहार, और भी बहुत-सारी सोमंचित करने वाली यादें तथा ढेर सारी थकान अपने दामन में समेटे अपने निवास स्थान पर पहुँचा। उन सभी का आभार जिन्होंने मेरी यात्रा के शुभ होने में दुआओं से सहयोग दिया। कुल मिलाकर बहुत-ही यादगार सफ़र रहा, मैं बार-बार जाना चाहूँगा। इस बार जो देखना रह गया है वो फिर कभी जाकर पूरा करूँगा, अपने अगले जम्मू-ट्रिप में दुबारा जब भी जाऊँगा तो पटनीटॉप, नत्थाटॉप और मानतलाई जाने की बड़ी तीव्र इच्छा है। देखते हैं अब ईश्वर अपने कौन-से नये स्वरुप के दर्शन करवाते हैं...


|| जय माता दी ||


जम्मू यात्रा के टिप्स :-

  1. सबसे पहले श्री वैष्णों देवी श्राइन बोर्ड की अधिकारिक वेबसाइट से वहाँ के मौसम और यात्रियों की संख्या देखकर वहाँ जाने की योजना बनाना चाहिये। वेबसाइट पर पहुँचने के लिये यहाँ क्लिक करें।
  2. अपने आने-जाने के लिये बस/ट्रेन/विमान का टिकट और वहाँ ठहरने के लिये होटल इत्यादि का आरक्षण कर लेना चाहिये। होटल की बुकिंग आप यहाँ क्लिक करके करेंगे तो आपको पूरे 700/- रूपये की छूट मिलेगी।
  3. श्राइन बोर्ड की वेबसाइट से उस दिन की यात्रा-पर्ची ले लेनी चाहिये जिस दिन आप चढ़ाई करना चाहते हैं।
  4. अगर आप हेलीकॉप्टर द्वारा कटरा से साँझीछत तक जाना चाहते हैं तो उसका भी आरक्षण करवा लेना चाहिये। इसकी सुविधा भी श्राइन बोर्ड की वेबसाइट पर उपलब्ध है।
  5. यात्रा के दौरान जरूरी दवाएँ अपने साथ रखना न भूलें।
  6. जम्मू में प्रीपेड की सिम नहीं चलती, इसलिये आप वहाँ पोस्टपेड सिम लेकर जायें अथवा आप वहाँ पहुँचकर यात्री-सिम अवश्य खरीदें जिससे आप अपने स्वजनों के संपर्क में रहें। इंटरनेट के माध्यम से आप वहाँ के अधिकारीयों के संपर्क-सूत्र देखकर अपने मोबाइल में सुरक्षित कर लें, जिससे आपात स्थिति में आप सहायता ले सकें।
  7. चढ़ाई के दौरान बिलकुल जल्दबाजी न करें, अथवा बाद में परेशानी हो सकती है। जो गलती मैंने की मैं नहीं चाहता आप भी करें। अच्छा रहेगा कि भवन पहुँचकर वहाँ कमरा लेकर आराम कर लें फिर नहा-धोकर तब दर्शन के लिये जायें। मेरी तरफ नहाने से परहेज न करें।
  8. भैरोंनाथ पर आपको सांस लेने में दिक्कत हो सकती है, अतः वहाँ की चढ़ाई के दौरान जल्द-जल्दी रुककर विश्राम करें फिर आगे बढ़ें। अगर स्वास्थ्य साथ न दे तो सीढ़ियों से चढ़ाई करने से बचें।
  9. अपने साथ चढ़ाई के दौरान जितना कम-सामान रखेंगे उतना ही आपका सफ़र आसान रहेगा।
  10.  प्रसाद इत्यादि भवन पर मिलते हैं, इसलिये नीचे से लेकर न चढ़ें। वहाँ आपको हर दुकानदार यही कहता मिलेगा कि आगे प्रसाद नहीं मिलता।
  11.  जहाँ-जहाँ पत्थर खिसकने की आशंका है, वहाँ बोर्ड लगा होता है, उसके आसपास रुकने की गलती न करें।
  12.  नशीले पदार्थ तथा अति तैलीय खाद्य-पदार्थों के सेवन से बचें।
  13.  उलटी हो, जी मचलाये तो तुरन्त नजदीकी स्वास्थ्य सहायता केंद्र से संपर्क करें।
  14.  वहाँ बहुत-से लोग अकेले यात्रा करने आते हैं, लेकिन अकेले यात्रा न करें तो ज्यादा अच्छा रहेगा।
  15.  अगर आप सर्दियों में जा रहे हैं, तो कटरा के तामपान को देखते हुये, गर्म कपडे ऊपर न जाने की भूल न करें। कटरा की अपेक्षा ऊपर बहुत अधिक ठण्डी रहती है।
  16.  अगर क्लॉकरूम पर अधिक भीड़ मिले तो मेरा वाला आईडिया अपनायें, अर्थात् बाहर से प्रसाद लेकर वहीं रखें।
  17.  गुफा के अन्दर माता जी पिण्डी स्वरुप में हैं, अतः ऐसा न हो आप मूर्ति ढूँढते रहें और दर्शनों से वंचित रह जायें।
  18.  पूरी यात्रा में कहीं-भी अनुशासनहीनता न करें, इससे आपके साथ यात्रियों को भी असुविधा होगी और आप भी कानूनी पचड़े में पड़ सकते हैं।
  19.  अगर वैष्णों-देवी के साथ-साथ और कहीं जैसे शिव-खोड़ी इत्यादि घूमने की योजना के साथ जा रहे हैं तो एक जगह घूमने के बाद एक दिन या एक रात का आराम लेकर ही अगली यात्रा शुरू करें। थके हुये शरीर से न यात्रा का आनन्द आयेगा न फोटो अच्छी आयेगी।
  20.  चढ़ाई पूरी श्रद्धा और जयकारों के साथ करें, कि यही एकमात्र रास्ता है जो आपको थकने नहीं देगा, और आपका आनन्द कई गुना बढ़ायेगा।

आशा करता हूँ मेरी पूरी यात्रा पढ़ने के बाद आपको अपनी यात्रा में काफी मदद मिलेगी। पूरे ट्रिप के दौरान ली गयी तस्वीरें देखने के लिये तथा प्रश्न पूछने के लिये नीचे दिये गये किसी भी सोशल साईट पर क्लिक करके मुझसे संपर्क कर सकते हैं...


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फिर मिलते हैं एक नयी यात्रा के साथ...


Monday, January 15, 2018

जम्मू ट्रिप - तीसरा दिन : "माता श्री वैष्णों देवी जी की यात्रा"

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|| सबसे पहले आप सभी को नव-वर्ष की अनन्त शुभकामनाएँ ||

आज 01 जनवरी 2018 की पहली सुबह है। इस बार हमारा सौभाग्य है कि हम अपने नव-वर्ष 2018 के पहले दिन ही माँ वैष्णों देवी जी के दर्शन करेंगे, इससे अच्छी शुरुआत किसी नव-वर्ष पर नहीं हुई। जैसा कि आपने पढ़ा कि शिव-खोड़ी जाने के लिये मुझे ठण्डे पानी से नहाना पड़ा था, आज मैं ऐसी कोई गलती नहीं करने वाला। मैं सुबह 06 बजे उठा और इससे पहले कि सौरभ उठते मैं नहा-धोकर तैयार हो गया। इसके बाद मैंने सौरभ को हैप्पी न्यू ईयर बोलते हुये जगाया। वो भी तैयार होने लगा तब तक मैंने चाय ऑर्डर कर दी। मैंने चाय पी और सौरभ ने कॉफी ली। इसके बाद हम दोनों पैदल ही बाण-गंगा चेक पोस्ट की तरफ चल पड़े, जो कि हमारे होटल से यानी बस-अड्डे से महज 01 किलोमीटर की दूरी पर है। चेक पोस्ट पर सुबह के समय काफी लम्बी लाइन लगी होती है, क्योंकि आगे वो मुख्य प्रवेश-द्वार है जहाँ हमारी यात्रा-पर्ची चेक होती है और हमारा सामान चेक होता है। इन सबके बाद ही आप आगे चढ़ाई कर सकते हैं। यात्रा-पर्ची काउंटर बस-अड्डे के पास ही है, वहाँ से ले सकते हैं अथवा सुविधा के लिये आप माता श्री वैष्णों देवी श्राइन बोर्ड की अधिकारिक वेबसाइट से भी डाउनलोड कर सकते हैं। वेबसाइट पर पहुँचने के लिये यहाँ क्लिक करें।

यहाँ पंक्ति लम्बी अवश्य होती है लेकिन समय ज्यादा नहीं लगता, हमने भी चेकिंग करवायी और फिर चढ़ाई शुरू कर दी। यहाँ से कुछ भक्त घोड़े अथवा पालकी से जाते हैं। बच्चों के लिये यहाँ पिट्ठू मिलते हैं। अब यहाँ से साँझीछत तक हेलीकॉप्टर जाने लगे हैं लेकिन उसके लिये पहले टिकट लेना पड़ता है। सुविधाएँ खूब हैं लेकिन सबसे ज्यादा मजा पैदल चलने में आता है, अगर सम्भव हो तो पैदल ही चढ़ाई करनी चाहिये। यहाँ दोनों तरफ बाजार है, खाने/पीने की अच्छी व्यवस्था रहती है। चलते-चलते हम प्रमुख-प्रवेश द्वार से 01 किलोमीटर आगे वहाँ पहुँचे जहाँ माता जी ने बाण चलाकर जल का स्रोत उत्पन्न किया था और अपने केश धोये थे, तथा जहाँ पर हनुमानजी ने प्यास बुझायी थी— बाण-गँगा। रास्ते से ही कुछ सीढ़ियाँ नीचे उतरने के बाद आप बाण-गँगा पर पहुँचते हैं। यहाँ भक्तगण स्नान करते हैं फिर आगे जाते हैं। यहाँ का जल बहुत ही धवल है। इस यात्रा वृन्तात को पढ़ते हुये अभी तक आप समझ गये होंगे कि “न तीर से, न तलवार से, बन्दा डरता है तो सिर्फ ठण्ड की फुहार से...” इसलिये हमने यहाँ हाथ-मुँह धोया थोड़ा जल पिया, कुछ फोटो खिंचवायी और फिर आगे बढ़े। आप कटरा से और भैरोनाथ तक सड़क मार्ग से भी जा सकते हैं और सीढियों की भी व्यवस्था है। लेकिन सीढ़ियाँ चढ़ना ज्यादा कठिन होता है इसलिये सड़क मार्ग से ही चलना ठीक है।

प्रमुख प्रवेश द्वार (दर्शनी दरवाजा)

बाण-गँगा चेक पोस्ट

बाण-गँगा चेक पोस्ट से त्रिकूट पर्वत का नज़ारा

बाण-गँगा

बाण-गँगा से करीब डेढ़ किलोमीटर आगे जाने पर “चरण-पादुका मन्दिर” है। जब कन्या रूपी वैष्णों माता को पकड़ने के लिये भैरौनाथ पीछे दौड़ा था तब इसी जगह से माता जी एक बार पीछे मुड़कर देखा था कि भैरोनाथ आ रहा या नहीं। माताजी के रुकने से उनके चरण-चिन्ह यहाँ बन गये। आजकल यहाँ बहुत ही खूबसूरत मन्दिर है, जहाँ पर माताजी के चरण-चिन्ह और उनके एक स्वरुप का दर्शन होता है, जिसमें वो शेर पर बैठी हैं। मन्दिर के अन्दर अन्य कई देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ भी हैं उनका दर्शन करके आशीर्वाद लेते हैं और आगे बढ़ते हैं। यहीं पास में “गीता-भवन मन्दिर” भी है, उसके दर्शन करना न भूलें। 

एक सेल्फी चरण-पादुका मन्दिर के पास

साभार इंटरनेट : माता श्री वैष्णों देवी जी के चरण-चिन्ह

साभार इंटरनेट : चरण-पादुका मन्दिर का प्रमुख दर्शन

साभार इंटरनेट : चरण-पादुका भवन

गीता-भवन मन्दिर

गीता-भवन मन्दिर के बाहर का दृश्य

दर्शन करते और फोटो खिंचवाते हम आगे बढ़ने लगे। शिव-खोड़ी की चढ़ाई करके मुझे एहसास हो गया था कि बिना खाना खाये चढ़ाई करना कितना मुश्किल होता है, इसलिये मैंने सबसे पहले खाने को प्राथमिकता दी। इस रास्ते पर खाने-पीने की बहुत-सी दुकानें हैं। हमने भी एक होटल पर आलू-पराठे का आनन्द लिया और फिर आगे चल पड़े। दोनों तरफ बाजारें सजी थीं, और दूर कहीं नज़र डालो तो पहाड़ों की सुन्दरता थकान भुला देती थी। हम प्राकृतिक सुन्दरता का आनन्द लेते चलते जा रहे थे। कुछ दूर जाने पर हम उस दो-राहे पर आ गये जहाँ से एक रास्ता (जो पुराना मार्ग है) साँझी-छत होते हुये माता जी के भवन जाता है, तथा दूसरा रास्ता (जो नया मार्ग है) हिमकोटि होते हुये माता के भवन जाता है। नया वाला मार्ग आसान है, अतः यहाँ से अधिकतर भक्त नये मार्ग पर मुड़ जाते हैं, नये मार्ग पर घोड़े नहीं जाते हैं वो सिर्फ पुराने मार्ग से चलते हैं। लेकिन क्योंकि हमें अभी ‘अर्द्धकुँवारी’ में दर्शन की पर्ची लेनी है इसलिये हम पुराने मार्ग पर थोड़ी दूर चलेंगे।

साभार इंटरनेट : यहाँ से रास्ते अलग-अलग होते हैं

धीरे-धीरे चलते और जोर-जोर से माताजी के जयकारे करते हम अर्द्धकुँवारी पहुँच गये। अर्द्धकुँवारी प्रमुख प्रवेश द्वार से 06 किलोमीटर की दूरी पर है तथा चरण-पादुका मन्दिर से साढ़े तीन किलोमीटर। यहाँ पर गर्भजून गुफा है, जहाँ माताजी ने नौ माह तपस्या की थी। यहाँ भी दर्शन के लिये पर्ची लेनी पड़ती है। मैंने जाकर पर्ची ली। आमतौर पर यात्री यहाँ आराम करते हैं, यहाँ 100/- में एक कम्बल मिलता है, जिसे वापस करने पर आपको पैसे दे दिये जाते हैं अर्थात् निःशुल्क व्यवस्था। लेकिन हमें तो आज ही यानी नव-वर्ष के दिन ही माता जी के दर्शन करने थे, इसलिये हम नहीं रुके। पर्ची काउन्टर से बायीं तरफ एक छोटी सुरंग जैसा रास्ता है, इधर से चलकर हम फिर नये वाले रास्ते पर आ गये जो कि हिमकोटि होते हुये भवन जाता है। ये रास्ता पुराने मार्ग की अपेक्षा कम चढ़ाई वाला और सुगम है। अब तक हम काफी थक चुके थे, लेकिन बैठने से थकान ज्यादा हावी होती इसलिये धीरे-धीरे बढ़ते रहना ठीक लगा। अचानक हमें याद आया कि हमने बहुत देर से कुछ खाया-पिया नहीं है, इसलिये अब हमें चाय/कॉफी की तलाश थी। बीच-बीच में कई जगह ऐसी सुविधाएँ मिली, लेकिन वहाँ सब जगह भीड़ थी। हम खोज करते-करते इस नये मार्ग पर करीब 02 किलोमीटर चल चुके थे। फिर एक जगह चाय/कॉफी मिली जहाँ भीड़ भी कम थी, हमने चाय लिया और बेंच खाली न होने के कारण पहाड़ के एक टीले पर बैठ गये। सुबह 09:00 बजे के चले अब बैठे थे, कितना सुकून और आनन्द मिला यहाँ लिखकर बता पाना मुश्किल है।

साभार इंटरनेट : सुकून देने वाला बोर्ड

यहाँ करीब पन्द्रह मिनट रुककर हम फिर आगे बढ़ चले। जब हम चले थे तो जैकेट पहन के निकले थे और स्वेटर बैग में रख चुके थे, लेकिन यहाँ तो जैकेट भी कमर में बाँधकर चलना पड़ रहा था क्योंकि गर्मी लग रही थी। रास्ते में ही एक जगह देवी-द्वार पड़ता है, यहाँ सेल्फी लेना हमने अपना कर्तव्य समझा तो ले लिया। इस जगह को देवी-द्वार शायद इसलिये कहा जाता है क्योंकि यहाँ एक तरफ तो पहाड़ रहता है दूसरे तरफ भी पहाड़ के ही अवशेष है तो इस तरह यहाँ प्राकृतिक द्वार बन जाता है, और देवी माँ के रास्ते हैं इसलिये देवी-द्वार कहलाता है। रास्ते में दो-तीन चेक पोस्ट पड़ते हैं यहाँ आपको स्कैन मशीन से गुजरना पड़ता है, इन जगहों पर अक्सर पंक्ति लम्बी लग जाती है बहुत ज्यादा तो नहीं लेकिन थोड़े वक़्त का नुकसान हो जाता है। क्योंकि बहुत से लोग पंक्ति में नहीं लगते बस आगे बढ़ते जाते हैं फिर वहाँ चेक पोस्ट पर बीच में घुसकर निकलते हैं तो पंक्ति वाले खड़े रह जाते हैं। हालाँकि हमने ऐसा कभी नहीं किया और अच्छा होगा आप भी न करें। इसके आगे जाने पर एक चेक पोस्ट पर यात्रा पर्ची पर मुहर लगती है और दर्शन के लिये ग्रुप नम्बर मिलता है, इसके क्या इस्तेमाल होता है मुझे नहीं पता क्योंकि जब हमने पर्ची पर मुहर लगवायी तो ग्रुप नम्बर क्या था वो पढ़ने में नहीं आ रहा था और न ही कभी भी, कहीं पर हमसे हमारा ग्रुप नम्बर पूछा गया।

सुन्दर दृश्य

साभार इंटरनेट : माता जी का भवन

चलते-चलते हम भवन के काफी समीप पहुँच गये, दोपहर के लगभग 01 बज चुके थे। यहाँ पर जगह-जगह कई क्लॉक रूम बने हैं, जहाँ आप अपना सामान जमा करते हैं, तथा कई श्राइन बोर्ड की दुकानें हैं जहाँ से आप भेंट-प्रसाद खरीदते हैं। यहाँ पर स्नान आदि की समुचित व्यवस्था है, बहुत से लोग यहाँ स्नान करके फिर सामान जमा करते हैं। कहने की जरूरत नहीं आप समझ ही चुके होंगे कि मैंने यहाँ भी स्नान नहीं किया। हम दो बार सामान जमा करने के लिये पंक्ति में खड़े हुये लेकिन वहाँ बहुत सारा वक़्त लग रहा था। इसके बाद भेंट-प्रसाद लेने के लिये और दर्शन के लिये बहुत लम्बी लाइन लगी थी इसलिये हम किसी वैकल्पिक व्यवस्था की खोज में लग गये। जहाँ दर्शन की लाइन लगी थी वहीं बहुत-सी प्रसाद बेंचने की दुकाने थीं, वो मनमाना पैसा लेकर प्रसाद देते थे और आपका सामान रख लेते थे। हमने वहीं से प्रसाद खरीदना ठीक समझा, क्योंकि ऐसा करके हमारा प्रसाद खरीदने और सामान जमा करने का वक़्त बच जाता। उन्हें जब हमने बताया कि हम दो लोग हैं तो उन्होंने एक का प्रसाद 250/- रूपये का तैयार किया, हमने सामान जमा किया और प्रसाद लेकर पंक्ति में जाकर खड़े गये। घड़ी में 03:00 बज चुके थे। यहाँ कटरा के मुकाबले काफी ठण्डी थी— तापमान लगभग 01 या 02 डिग्री के आसपास। मैंने अपना जैकेट पहन लिया और सौरभ ने निकाल कर बैग में रख दिया था तो उनकी हालत तो वही जानते होंगे। पंक्ति में उम्मींद के मुकाबले काफी कम समय लगा। मुझे लग रहा था कि कम-से-कम 04/05 घंटे लगेंगे लेकिन पंक्ति तेजी से बढ़ रही थी तो एक-डेढ़ घंटे में ही हम मन्दिर के समीप पहुँच गये। यहाँ सबसे पहले एक जगह पर नारियल जमा करके टोकन लेना पड़ता है फिर आगे बढ़ना होता है। वहाँ दो-तीन जगह सीढियाँ चढ़नी पड़ती है, अत्यधिक भीड़ के कारण पता नहीं चला कि कितनी-कितनी सीढ़ियाँ हैं। फिर कुछ-कुछ लोगों को मन्दिर के अन्दर भेज रहे थे। पिछली बार जब मैं आया था तब ये नया वाला मन्दिर नहीं था सिर्फ माता जी की गुफा ही थी, लेकिन अब बहुत भव्य मन्दिर बन गया था। उसी मन्दिर में से माता जी के प्राचीन गुफा के दर्शन होते हैं। यूँ तो यहाँ चलते-चलते दर्शन करने होते हैं, लेकिन पता नहीं कैसे हमारे पीछे ज्यादा भीड़ नहीं थी तो हमें कुछ क्षण वहाँ ठहरने का अवसर मिला। ठीक 04 बजकर 20 मिनट पर हम उस भवन में थे, 01/02 मिनट रुक कर फिर आगे बढ़े। वहाँ से निकलकर आगे जाने पर थोड़ा ऊपर चढ़ना होता है फिर आगे निकास द्वार की सीढ़ियाँ शुरू होती है। मेरी जानकारी के अनुसार सामान्यतः माता जी की प्राचीन गुफा के दर्शन इसी भवन से करने होते है प्रमुख गुफा का द्वार बन्द रहता है, लेकिन सर्दियों में उनकी प्राचीन गुफा (जिसका दर्शन भवन से करते हैं) भी खोल दी जाती है। हमारा सौभाग्य ही कहा जाना चाहिये कि वो गुफा भी खुली थी, तो जैसे ही हम भवन से बाहर निकले वहीँ पर बायीं तरफ माता जी की गुफा का प्रवेश द्वार खुला मिला। सभी भक्त पंक्तिबद्ध होकर उधर जा रहे थे कुछ आगे बढ़कर निकास द्वार की सीढियों से बाहर भी निकल रहे थे। हम भी गुफा के दरवाजे तक पहुँच गये लेकिन आगे भीड़ बहुत अधिक होने के कारण पंक्ति रुक गयी। मुझे लगा शायद यहाँ तक पहुँचकर भी गुफा में प्रवेश नहीं मिलेगा क्योंकि आरती का समय हो रहा था और आरती के समय गुफा का द्वार बंद कर दिया जाता है फिर लगभग 02 घंटे बाद दर्शन शुरू होता है। भीड़ में खड़े होकर मैं आस-पास देख रहा था तो लगा कि अब बहुत कुछ बदल गया है। जब ग्यारह वर्ष पूर्व आया था तो गुफा के भीतर चट्टान ही थी और वहाँ गँगाजी की तीव्र धारा बहती रहती थी लेकिन अब संगमरमर लग गया था। माता जी की गुफा के प्रवेश द्वार पर दो दरवाजे और लगे हैं जो कि सोने के हैं। अब तक शाम के 04 बजकर 40 मिनट हो चुके थे और शायद 05:00 बजे द्वार बंद होना था, इसलिये मैं चिंतित था और प्रार्थना भी कर रहा था कि प्रवेश मिल जाये। मेरी प्रार्थना सुनी भी गयी और मुझे अगले 05 मिनट बाद प्रवेश मिल गया। ठीक 04 बजकर 45 मिनट पर मैं अपने जीवन के बहु-प्रतीक्षित स्थान पर खड़ा था, अर्थात् माता जी के ठीक सामने। यही वो स्थान है जिसके एक साक्षात्कार के लिये दुनियाँ भर के करोड़ों श्रद्धालु कई परेशानियों का सामना करके भी आने को आतुर रहते हैं। यहाँ रुकना संभव नहीं था क्योंकि भीड़ बहुत थी। मस्तक झुकाया, दर्शन किया और आगे बढ़ गये। वहाँ से बाहर निकलकर हमने वहाँ मिलने वाले मिश्री प्रसाद को प्राप्त किया, मेरे हिसाब यही यहाँ का प्रमुख प्रसाद माना जाना चाहिये। वैसे तो यहाँ का मुख्य प्रसाद माता जी का दर्शन और वो तिलक है जो गुफा में पुजारी जी सबके मस्तक पर लगाते हैं। मुझे नहीं लगता कोई श्रद्धालु इस तिलक से वंचित रहता होगा।

साभार इंटरनेट : नये भवन से माता जी का प्रमुख दर्शन

इसके बाद हमें नारियल प्राप्त करना था जो कि हमने भवन में प्रवेश करते समय जमा करके टोकन प्राप्त किया था। यहाँ भी बहुत भीड़ होती है, इसलिये सिर्फ सौरभ ने अपना टोकन देकर नारियल वापस लिया मैंने नहीं। फिर सीढियों के रास्ते नीचे उतरने पर, 200 मीटर बाद दाहिनी तरफ भगवान् शिव जी की भी एक गुफा है। वहाँ पर लगे बोर्ड के अनुसार ये स्थल भी प्राचीन है लेकिन पहले इसकी जानकारी केवल कुछ स्थानीय लोगों को थी पर जबसे ये मन्दिर श्राइन बोर्ड के अधिकार में आया है इसका प्रचार बहुत तेजी से हुआ है। यहाँ दर्शन करने के लिये हमें लगभग 100 सीढ़ियाँ नीचे उतरना होता है। जैसा कि मैंने पहले भी लिखा कि यहाँ ठण्ड बहुत अधिक हो रही थी, और हमने जूते भी नहीं पहने थे इसलिये हमारे पैर बिलकुल सुन्न हो रहे थे। खैर हम सीढ़ियों से नीचे पहुँचे, यहाँ पर भी एक छोटी-सी गुफा है जिसमें झुक कर जाना होता है, वहाँ अन्दर भगवान् शिव का स्वरुप बहुत ही सुन्दर शिवलिंग स्थापित है। यहाँ दर्शन करके हम वापस आये और उस दुकान पर पहुँच गये जहाँ अपना सामान रखा था। यहाँ जूते पहनने के बाद का जो आनन्द मिला उसका तो पूछिये मत। फिर हमने थोड़ा नाश्ता किया और अब वहीं पर लगे भैरो-घाटी बोर्ड का अनुसरण किया। अब तक शाम के 05 बजकर 30 मिनट हो चुके थे।

भैरोंनाथ यात्रा :-


पहले यहाँ से भैरो-घाटी जाने के लिये भक्तों को साँझीछत तक वापस जाना पड़ता था फिर वहाँ से भैरो-घाटी की चढ़ाई करनी होती थी। तब ये दूरी शायद 05 किलोमीटर की होती थी। लेकिन अब भवन के पास से ही भैरोंनाथ की चढ़ाई शुरू होती है इसलिये अब भवन से भैरो घाटी मन्दिर पहुँचने के लिये सिर्फ डेढ़ किलोमीटर की चढ़ाई करनी होती है। क्योंकि हम बहुत थक चुके थे और फिर लगा कि वहाँ भी मन्दिर में भीड़ होगी पंक्ति में जाने कितनी देर लगे इसलिये एक बार मन हुआ कि वापस चलते हैं, वहाँ दर्शन नहीं करेंगे। लेकिन हम सोंचते हुये चल रहे थे तो कुछ ऊपर चढ़ गये फिर हमने निर्णय लिया कि चलते हैं वरना यात्रा अधूरी रह जायेगी। यहाँ से रास्ता बहुत पतला और अधिक चढ़ाई वाला है, अभी तक एक ही मार्ग है लेकिन अब वैकल्पिक व्यवस्था की जा रही है। इस रास्ते पर ज्यादातर लोग घोड़े से जाते हैं। इसलिये कई बार तो रुक कर घोड़ों को निकलने का मार्ग देना पड़ता है। इधर पैदल चलने वालों की संख्या कम ही होती है। खैर हम तो पैदल ही चल रहे थे। अभी तक हमने चढ़ाई के लिये किसी भी जगह सीढियों का प्रयोग नहीं किया (जहाँ तक सड़क का मार्ग था) । यहाँ मैंने सौरभ से सीढ़ियों से चलने को कहा तो वो मान गये। लेकिन ये हमारा निर्णय गलत था, क्योंकि इतना थकने के बाद सीढियों पर चढ़ना बहुत मुश्किल था। 300 से कुछ अधिक सीढ़ियाँ थीं और हमने लगभग तीन बार विश्राम किया तब वो सीढ़ियाँ पूरी कर सके। इसके बाद हमने कभी भी सीढियों से चढ़ने की गलती नहीं की। हम फिर सड़क मार्ग से ही आगे बढ़ने लगे, कुछ आगे जाने पर हमने चाय पिया, और पास के बेंच पर बैठ गये। अब हम त्रिकूट पर्वत की लगभग सबसे ऊँची चोटी के पास थे। आस-पास की सभी चोटियाँ जो पहले हमें सर उठाने पर दिखायी देती थीं अब हमारे बराबर लग रही थीं। यहाँ ठण्ड भवन की अपेक्षा और भी अधिक थी। हाथ जैकेट से बहार निकलते ही सुन्न हो जाते थे। यूँ तो बर्फ नहीं पड़ी थी लेकिन लग ऐसा ही रहा था जैसे हम बर्फीली हवाओं के बीच में खड़े हों। मेरे अनुमान के अनुसार इस स्थान पर तापमान शून्य से कुछ नीचे रहा होगा। थोड़ा विश्राम करके हम फिर आगे बढ़े और भैरोनाथ जी के मन्दिर पहुँच गये। भवन से यहाँ तक पहुँचने में हमने डेढ़ किलोमीटर की दूरी करीब 01 घंटे में तय की जबकि हमने शिव-खोड़ी में तीन किलोमीटर की चढ़ाई सिर्फ आधे घंटे में पूरी कर की थी, वहाँ की भी चढ़ाई ऐसी ही थी। हमने प्रसाद लिया और फिर भैरोनाथ जी के मन्दिर के पास पहुँच गये। घड़ी में शाम के 06 बजकर 30 मिनट हो चुके थे। यहाँ भी 07:00 बजे आरती के लिये मन्दिर बन्द होना था इसलिय आवश्यक था कि जल्दी-से दर्शन कर लें। यहाँ भीड़ नहीं थी सिर्फ पाँच मिनट में मन्दिर के अन्दर पहुँचा जा सकता था, हमने वहीं एक जगह जूते निकाले और तभी एक बन्दर ने सौरभ का प्रसाद ले लिया। वो भोग लगाने लगा और सौरभ जी दूसरा प्रसाद खरीदने चले लगे। इसमें हमारा 10-12 मिनट चला गया। मन्दिर में लगे क्यू में प्रवेश करने के लिये कुछ दूर से आना पड़ता लेकिन जल्दबाजी में हम बीच में ही क्यू के ऊपर लगे एंगल से अन्दर कूद गये और फिर कुछ सीढ़ियाँ चढ़कर भैरोनाथ जी के दर्शन किये। सौरभ तो वैष्णों देवी कभी नहीं आये थे मैं एक बार आया तो लेकिन तब भैरोनाथ जी के दर्शन करने नहीं आया था। मैं भैरोनाथ जी के दर्शन पहली बार कर रहा था। यहाँ भैरोनाथ जी का सिर ही है दर्शन करने के लिये क्योंकि जब माता ने त्रिशूल से प्रहार किया था तो धड़ वहीँ गुफा के द्वार पर रह गया था और सिर यहाँ आकर गिरा था। यहाँ से दर्शन करके हम फिर बाहर आये।

भैरोंनाथ मन्दिर के पास लगा बोर्ड

अगर दिन होता तो हम भी यहाँ का आनन्द लेते

 ठण्डी भी बहुत लग रही थी, थकान भी बहुत ज्यादा लगी थी इसलिये अब हमें कहीं कम्बल और एक कमरा मिल जाता तो हम सो जाते। लेकिन हमें अगले दिन पटनीटॉप जाना था तो रुकना संभव नहीं था, इसलिये कुछ खाने की तलाश में नीचे उतरने लगे। यहाँ से कटरा जाने के लिये दो रास्ते हैं। पहला जिस रास्ते से हम ऊपर आये थे जो कि भवन तथा हाथीमत्था से होते हुये कटरा जाता वो, और दूसरा जो यहाँ का पुराना मार्ग है— साँझीछत होते हुये कटरा जाता है। नये मार्ग पर जाने के लिये वापस भवन जाना पड़ता तो दूरी लगभग साढ़े चौदह किमीटर पड़ती इसलिये पुराने मार्ग से उतरना ठीक था जो कि साँझीछत होते होकर जाता है, इस तरफ से दूरी सिर्फ 11 किलोमीटर पड़ती है। हमने इसी का अनुसरण किया। जब मैं पहली बार अपने माता-पिता जी के साथ आया था तो मैं इसी रास्ते से चढ़ा भी था और उतरा भी, क्योंकि तब यही एक रास्ता था। पहले जब पुराना मार्ग ही था तब श्रद्धालु इस रास्ते से ही आते थे और साँझीछत से भैरोनाथ की चढ़ाई करने के बजाय सीधे चलकर माता जी के भवन पहुँचते थे, वहाँ से दर्शन करके वापस साँझीछत आते थे और फिर भैरोनाथ जी की चढ़ाई शुरू करते थे। ऐसे में उन्हें भवन और भैरोनाथ जी दोनों का रास्ता लम्बा पड़ता था। नये मार्ग के निर्माण से दूरी भी कम हुई है और चढ़ाई भी आसन हो गयी है तथा भीड़-भाड़ भी काबू में रहती है। जिन विपरीत प्राकृतिक परिस्थितियों में यहाँ नित-नयी सुविधाएँ हमें मिल रही है उनके लिये श्राइन बोर्ड निश्चित रूप से साधुवाद की अधिकारी है।

लगभग 02 किलोमीटर उतरने के बाद हम साँझीछत के करीब आ गये, और वही एक होटल पर हमने चाय-समोसे का आनन्द लिया। सुबह 09:00 बजे से लगातार घुमावदार रास्ते पर चढ़ाई करने के कारण उल्टी सी लग रही थी हालाँकि हम दोनों का में किसी को भी उल्टी हुई नहीं लेकिन उसी वजह से हम खाना नहीं खा सके। इस रास्ते पर उतरते समय आपको स्वयं पर काबू रखना पड़ता है वरना आप न चाहते हुये दौड़ते रहेंगे और ऐसा करने से आपके पैरों में मोच आने की आशंका अधिक रहती है। हम बस बढ़ते ही जा रहे थे सामने से कुछ लोग घोड़े द्वारा इधर से चढ़ाई करते हैं बाकी पैदल वाले अधिकतर नये मार्ग से जाते हैं। रात्रि में ऊपर से देखने पर जगह-जगह जल रही बिजलियों से पहाड़ की शोभा और भी अधिक बढ़ जाती है। चलते-चलते हम अर्द्धकुँवारी आ गये। यहाँ मैंने जाकर पता किया तो जानकारी मिली कि दर्शन के लिये हमारा नम्बर कल शाम तक आयेगा अर्थात लगभग 20 घंटे बाद। अगले ही दिन हमें पटनीटॉप जाना था और हमारी ट्रेन भी थी। दुर्भाग्यवश हमें यहाँ का दर्शन नहीं मिला। हम नीचे की तरफ बढ़ने लगे। यहाँ जगह-जगह लोग दुकानों से सामान की खरीददारी करते हैं, लेकिन हम इतना थक चुके थे कि हम जल्दी से होटल पहुँचना चाहते थे। इसलिये बिना किसी खरीददारी के हम बाण-गँगा के चेक पोस्ट पर पहुँच गये।

दर्शनी दरवाजा, रात का दृश्य

कहा जा सकता है कि हमारी पैदल-यात्रा पूर्ण हो चुकी थी क्योंकि यहाँ से होटल जाने के लिये ऑटो मिल सकता था। हमने ऑटो से कहा बस-अड्डे जाना है तो उसने 01 किलोमीटर का 400 रूपये माँगा। हम पैदल ही आगे बढ़ चले। बाण-गँगा से होटल तक पैदल ही आये। रात को 11:00 बजे होटल में पहुँचते ही गर्म-पानी से पैर धुले तो बड़ी राहत मिली। थकान बहुत थी लेकिन माता जी दर्शनों के आनन्द के आगे फीकी थी। मेरी यात्रा बहुत-ही यादगार और सुखद रही, मेरा तो नया-वर्ष बन गया। कल क्या करना है, क्या नहीं कुछ सोंचने की शक्ति नहीं बची थी बस सोने का मन हो रहा था इसलिये हम तुरन्त बिस्तर पर गिरे और सो गये।

|| जय माता दी ||


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जम्मू ट्रिप - दूसरा दिन : “शिव-खोड़ी की यात्रा”

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आज वर्ष 2017 का आखिरी दिवस है, अर्थात् आज 31 दिसम्बर 2017 है। आज हम शिव-खोड़ी की यात्रा पर निकलेंगे। जब मैं इस ट्रिप आ रहा था, तभी मैं इस बात को लेकर संतुष्ट था कि मुझे होटल में नहाने के लिये गर्म पानी मिलेगा। लेकिन आज सुबह सौरभ के नहाने के बाद गीजर में न जाने क्या दिक्कत आ गयी कि मेरे नहाने के लिये मुझे ठण्डा पानी ही मिला। क्योंकि हमें समय पर बस अड्डे तक पहुँचना था इसलिये मैंने ठण्डी को बर्दास्त किया और फ़टाफ़ट नहाकर तैयार हो गया। ये इस पूरी ट्रिप के दौरान मेरे द्वारा किया गया सबसे साहसिक कार्य रहा जो कि मेरे लिये बड़े जोखिम का होता है। खैर हमने सुबह की चाय पी और फिर बस में बैठ गये। भगवान् शिव-शंकर के जयकारों के साथ बस आगे बढ़ गयी। धीरे-धीरे बस शहर से आगे बढ़कर रणशू के रास्ते पर पहुँची। अभी कुछ ही दूरी चली थी कि बस के स्टाफ ने हमें बताया कि यहाँ ‘नौ-देवी जी’ का मन्दिर है, हम वहाँ दर्शन करके आगे चलेंगे अतः सब लोग अपने-अपने जूते बस में उतारकर तैयार हो जाओ। जब हम नीचे उतरे तो सड़क बहुत ठण्ड थी, पैर रखते ही मेरे मन से ये विचार निकल गया कि “मैं वैष्णों देवी जी के दर्शन करने बिना चप्पल/जूते के जाऊँगा।” सड़क के साथ ही लगकर एक सीढ़ी नीचे जाती है, ठीक से तो याद नहीं लेकिन शायद 100 के करीब सीढ़ियाँ उतरने के बाद एक जगह नाम-पता लिखवाकर थोड़ा आगे बढ़ते हैं फिर चार-पाँच सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर जाने पर एक गुफा का प्रवेश द्वार है। गुफा के सामने ही एक नदी बह रही है जो कि गुफा से काफी नीचे है, वहाँ तक जाने का कोई कृत्रिम मार्ग नहीं है, केवल ऊपर से देखा जा सकता है यहाँ का दृश्य बड़ा ही मनभावन हो जाता है। यहाँ पहली बार आने वाला सोंच भी नहीं सकता कि इसमें प्रवेश करके दर्शन करना है, क्योंकि उसमें प्रवेश करने के लिये आपको लगभग लेटकर या घुटनों के बल चलकर अन्दर की सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती है, 2-4 सीढियों के बाद आप झुककर खड़े हो सकते हैं, सामने ही “नव-देवी माता जी” के दर्शन नौ-पिण्डियों के रूप में होते हैं। यहाँ से दाहिने तरफ गुफा से बाहर निकलने का रास्ता है। 

साभार इंटरनेट : नौ-देवी माता जी के गुफा का प्रवेश द्वार

नौ-देवी माता मन्दिर के समीप का दृश्य
हम यहाँ दर्शन करके वापस अपनी बस में आकर बैठ गये और फिर बस शिव-खोड़ी के लिये चल पड़ी। जब तक बस चल रही है तबतक मैं आपको संक्षेप में शिव-खोड़ी के विषय में जो पौराणिक मान्यता है वो बता देता हूँ।

शिव-खोड़ी के विषय में ऐसी मान्यता है कि भगवान् शिव ने भस्मासुर नामक दैत्य को ये वरदान दिया कि "वो जिसके शीश पर हाथ रख देगा वो भस्म हो जायेगा" वरदान पाकर उसने सबसे पहले भगवान् शिव के ही शीश पर हाथ रखने की चेष्टा की। उसकी कुचेष्टा समझकर भगवान् शिव वहाँ से भागने लगे और भस्मासुर भगवान् के पीछे-पीछे दौड़ने लगा। जब भगवान् इस जगह (वर्तमान में शिव-खोड़ी) पहुँचे तो उन्होंने अपने छिपने के लिये एक गुफा का निर्माण किया, और वहाँ जाकर बैठ गये। यहीं भगवान् विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर भस्मासुर को मोहित करके उसका हाथ उसके ही शीश पर रखवा दिया और वो भस्म हो गया। शिव-खोड़ी वही गुफा है जिसका निर्माण भगवान् शिव ने अपने त्रिशूल से किया था, और वो समस्त देवी-देवताओं के साथ आज भी यहाँ विराजमान हैं।

कटरा से शिव-खोड़ी के रास्ते में सोना नहीं चाहिये वरना आप प्रकृति की अद्वितीय सुन्दरता को देखने से वंचित ही रह जायेंगे। कुछ जगह बढ़िया सड़क भी मिली पर अधिकाँशतः इन दिनों जगह-जगह सड़क निर्माण कार्य चल रहा था इसलिये रास्ते बहुत उबड़-खाबड़ थे, लेकिन प्राकृतिक सुन्दरता देखते ही बनती है। इस रास्ते पर आप पहाड़ी ग्रामीणांचल के रहन-सहन देखने का अनुभव भी प्राप्त करते हैं। लगभग 02 घंटे बस चलने के बाद एक ढाबे पर रुकी, यहाँ जिसको जो खाना है खा सकता है। हमने भी चाय वगैरह ली। फिर जब-तक बस के बाकी यात्री भोजन इत्यादि में व्यस्त थे हम फोटो खींचने/खिंचवाने में लग गये क्योंकि यहाँ से नज़ारे बहुत ही रोमांचित करने वाले थे। वो सारी तस्वीरें मेरे इन्स्टाग्राम पर हैं, उन्हें देखने के लिये यहाँ क्लिक करें। यहाँ से क्षुधा शान्त करके सब फिर आगे बढ़े। आगे की सड़कें और खराब तथा पतली थीं, कई बार जब सामने से ट्रक आता तो लगता था कि ये बस अब आगे कैसे जायेगी? लेकिन यहाँ के चालक बहुत निपुण होते हैं और बहुत आराम से एक-दूसरे को ओवरटेक कर लेते हैं। इस तरह करीब 01 घंटे बाद हम “रणशू” बस अड्डे पर पहुँच गये। यहाँ से आगे एक-से-डेढ़ किलोमीटर हमें ऑटो में जाना होता है, कुछ लोग पैदल भी चल पड़ते हैं। एक बात और बता दूँ कि ऑटो का मतलब वो नहीं जो त्रि-चक्रीय वाहन अपने दिल्ली में चलता बल्कि यहाँ ऑटो उस चार-चक्रीय वाहन को बोलते हैं जिसे हम 'छोटा-हाथी' कहते हैं। हम भी ऑटो से उस जगह पहुँच गये जहाँ से शिव-खोड़ी की चढ़ाई शुरू होती है, यहाँ तक का किराया 10/- रूपये एक व्यक्ति का होता है।

ऑटो से उतरने के बाद करीब 100 मीटर पैदल चलना पड़ता है, इस रास्ते में बाजार है, बहुत से लोग खाना-पानी खाकर आगे बढ़ते हैं। फिर वहाँ के “यात्रा पर्ची काउंटर” से यात्रा-पर्ची लेनी होती है। अगर आप पर्ची नहीं लेंगे तो प्रवेश द्वार से 500 मीटर आगे जाने पर आपको वापस होना पड़ेगा। इस प्रक्रम में बहुत भीड़ लगी होने से हमें लगा शायद हम पर्ची प्राप्त नहीं कर पायेंगे क्योंकि हमारे पास सिर्फ साढ़े तीन घंटे थे। अब आये थे तो दर्शन करने का प्रयास तो करना ही चाहिये इस वजह मैं और सौरभ दोनों पंक्ति में खड़े हुये। बड़े सुकून की बात ये है कि जैसा हमने सोंचा था वैसा कुछ हुआ नहीं और हम अगले बीस मिनट में ही पर्ची काउंटर तक पहुँच गये। यहाँ एक अद्भुत बात ये भी है कि पुरुषों को जिस खिड़की से पर्ची प्राप्त करनी थी वहाँ पर पर्ची देने के लिये एक महिला बैठी थी और जिस खिड़की से महिलाओं को पर्ची प्राप्त हो रही थी वहाँ एक पुरुष बैठा था। मुझे ज्ञात नहीं ऐसा क्यों?

यहीं से शिव-खोड़ी की चढ़ाई शुरू होती है

शिव-खोड़ी मार्ग

श्री गणेश पर्वत

शिव-खोड़ी गुफ़ा का मुख्य प्रवेश द्वार
हमने पर्ची प्राप्त करने के बाद दर्शनों के लिये चढ़ाई शुरू कर दी। यहाँ से तीन किलोमीटर की चढ़ाई करनी है। हाँ-हाँ, भ्रमित न होइये, महज तीन किलोमीटर न सोचियें, क्योंकि ये चढ़ाई वैष्णों देवी जी से कहीं अधिक खड़ी है, तो ये रास्ते बहुत थकाऊ हो जाते हैं। इसलिये इस चढ़ाई को आराम से धीरे-धीरे चलकर पूरी करना चाहिये साथ-साथ भगवान् भूतभावन का ध्यान करते रहना चाहिये, प्रभु का ध्यान थकान का रास्ता रोककर खड़ा रहेगा। जहाँ से चढ़ाई शुरू होती है वहाँ से प्राकृतिक सुन्दरता इतनी अच्छी है कि आप हर कदम पर एक तस्वीर लेना चाहेंगे। हमारा फोटो खींचने हेतु समय बचा रहे इसलिये हम बहुत जल्दी-जल्दी चढ़ाई चढ़ने लगे। करीब 500 मीटर बाद यात्रा-पर्ची चेक पोस्ट आया वहाँ पर पर्ची चेक होती है फिर आगे जाने पर एक “श्री गणेश पर्वत” है। अर्थात् रास्ते पर चलते हुये सामने देखने से आपको पर्वत का आकार ऐसा लगेगा जैसे स्वयं श्री गणेश भगवान् ने विराट् रूप धारण किया हो। इसके दर्शन करके आगे बढ़ते जाना है। करीब 30 मिनट बाद हम मन्दिर के बिलकुल करीब पहुँच गये, यहाँ तक पहुँचते-पहुँचते हम बहुत थक गये थे इसलिये हम एक वृक्ष की छाया में बैठ गये। हमारी धड़कने सामान्य से काफी तेज हो चुकी थीं। थोड़ी देर आराम करके हमने अपना मोबाइल और कैमरा क्लॉक रूप में जमा किया, जूते आप कहीं भी रख सकते हैं कोई नहीं लेता। प्रसाद लेकर जब हम पंक्ति में खड़े होने गये तो हमने देखा कि पंक्ति से दर्शन करने में बहुत वक़्त लगेगा इसलिये हमने गेट नम्बर-2 से गुफा में प्रवेश किया। गुफ़ा के द्वार पर एक चेक-पॉइंट है, जहाँ नारियल जमा करके आगे जाना होता है। बाहर ठण्डी थी और गुफा के भीतर गर्मी लग रही थी। यहाँ गुफा बहुत ऊँची नहीं है, संभवतः आपको झुककर चलना पड़े। गुफा के भीतर तमाम लाईट लगाये गये हैं लेकिन वहाँ अँधेरा इतना अधिक है कि उनकी रौशनी छिटकती नहीं है। हालाँकि आप आराम से दर्शन कर सकें इतना प्रकाश रहता है। जैसे ही अन्दर पहुँचते हैं, आपको कई जगह अनेक ईश्वरीय स्वरूपों के दर्शन होते हैं। इसमें जो भगवान् श्री शिव का जो स्वरुप स्वनिर्मित है, उसके ऊपर पहाड़ में श्रीगंगा की आकृति उभरी है उसी से बूँद-बूँद जल से निरन्तर भगवान् शिव का अभिषेक होता रहता है। वहाँ पर हमें बिठा दिया गया फिर हमारे प्रसाद चढ़ाये गये, तथा एक टार्च द्वारा पहाड़ों पर उभरी आकृतियों से हमारा परिचय करवाया गया। पुजारी जी ने बताया कि शिव-लिंग के ऊपर छत पर गाय की जो आकृति बनी है उसके थन से पहले दूध गिरता था और भगवान् शिव का अभिषेक दूध से होता था। अब भी सावन और अन्य कही विशेष त्यौहारों में कभी-कभी दूध निकलता है। हालाँकि मैंने कई लोगों के ब्लॉग पर पढ़ा था कि जो दुधिया जल निरन्तर गिरता है वो उसी थन से ही निकलता है। इस गुफा में तैतीस कोटि देवता, श्रीरामचन्द्र जी सीता सहित, हनुमान जी, श्रीशेषनाग जी फण फैलाये, भगवान् शिव सपरिवार, भगवान् का शंख, चक्र, पाँचों पांडव, सप्तऋषि, नारद जौर अन्य कई देवताओं का वास है। टॉर्च के माध्यम से आपको सबका दर्शन और परिचय जाता है। इसी गुफा में जहाँ से हमने प्रवेश किया था वही से एक तरफ और रास्ता है। उस रास्ते पर कुछ दूर तक लाईट लगी है लेकिन वो आगे से पट रखकर बन्द किया हुआ है, उधर किसी को जाने नहीं देते क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि ये रास्ता अमरनाथ जी की गुफा तक जाता है। द्वापर में ऋषि-मुनि इसी रास्ते से अमरनाथ जी के दर्शनों को जात थे। गुफा के ऊपर छत की तरफ एक रास्ता जैसा बना है, लोकश्रुति के अनुसार इसी रास्ते से देवता भगवान् शिव के दर्शनों के लिये स्वर्ग से आते-जाते रहते हैं।

कटरा से शिव-खोड़ी के रास्ते में एक क्लिक

यहाँ से दर्शन करके हम बाहर आये और फिर नीचे उतरने लगे। रास्ते में “दूध-गंगा” पड़ती है वहाँ दर्शन किये, और फिर जिन-जिन जगहों पर जाते समय फोटो खिंचवाना चाहते थे वहाँ फोटो खिंचवाते-खिंचवाते तीन-किलोमीटर की दूरी तय करके नीचे आ गये। ऑटो करके हम ठीक 4 बजे अपने बस के पास पहुँचे तो पता चला अभी कोई और लौट के नहीं आया है। हमने पास के एक ढाबे पर कुछ खाया-पीया क्योंकि भूख बहुत लग रही थी। फिर करीब छः बजे जब सब आ गये तो हमारी बस कटरा के लिये चली। अब तो अँधेरा हो चुका है तो बाहर कुछ विशेष दिखायी नहीं देता, और रास्ता भी करीब 3 घंटे का है, जब तक बस कटरा पहुँचती है मैं आपको शिव-खोड़ी का इतिहास बता देता हूँ।

"खोड़ी" पहाड़ी शब्द है जिसका अर्थ होता है "गुफा" और शिव की गुफा है इसलिये इसे "शिव-खोड़ी" कहते हैंलोक श्रुतियों के अनुसार स्यालकोट (अब पाकिस्तान में) के राजा सालवाहन ने शिव खोड़ी में शिवलिंग के दर्शन किये थे और इस क्षेत्र में कई मंदिर भी निर्माण करवाए थे, जो बाद में सालवाहन मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुये। इस गुफा में दो कक्ष हैं। यह स्थान रियासी-राजोरी सड़कमार्ग पर है। जम्मू से रणसू नामक स्थान लगभग सौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां पहुंचने के लिए जम्मू से बस मिल जाती है। गुफा का बाह्‌य भाग बड़ा ही विस्तृत है। इस भाग में हजारों यात्री एक साथ खड़े हो सकते हैं। बाह्‌य भाग के बाद गुफा का भीतरी भाग आरंभ होता है। यह बड़ा ही संकीर्ण है। यात्री सरक-सरक कर आगे बढ़ते जाते हैं। कई स्थानों पर घुटनों के बल भी चलना पड़ता है। गुफा के भीतर एक स्थान पर सीढ़ियां भी चढ़नी पड़ती हैं, तदुपरांत थोड़ी सी चढ़ाई के बाद शिवलिंग के दर्शन होते हैं। शिवलिंग गुफा की प्राचीर के साथ ही बना है। यह प्राकृतिक लिंग है। इसकी ऊंचाई लगभग 1 मीटर है। शिवलिंग के आसपास गुफा की छत से पानी टपकता रहता है। यह पानी दुधिया रंग का है। उस दुधिया पानी के जम जाने से गुफा के भीतर तथा बाहर सर्पाकार कई छोटी-मोटी रेखाएं बनी हुई हैं, जो बड़ी ही विलक्षण किंतु बेहद आकर्षक लगती हैं। गुफा के भीतर से ही एक रास्ता अमरनाथ जी को जाता है जो कि अब बन्द कर दिया गया है।

शिव-खोड़ी की ये मेरी प्रथम यात्रा थी, और मैं आग्रह पूर्वक कहना चाहूँगा कि जब भी आप जम्मू जायें या वैष्णों देवी जायें तो शिव-खोड़ी भी जरूर जायें, वहाँ की यात्रा में जो आनन्द मुझे मिला है उसका अंश मात्र भी मैं यहाँ लिख नहीं पा रहा हूँ । उसका स्वाद वहाँ जाकर ही लिया जा सकता है।

रात को साढ़े नौ बजे हम वापस होटल में आ गये। थकान बहुत अधिक लगी थी और नींद भी इसलिये जल्दी ही सो गये क्योंकि हमें अगली सुबह माता श्री वैष्णों देवी जी के दर्शनों के लिये चढ़ाई शुरू करनी थी। हमारा परम सौभाग्य रहा कि हमारे वर्ष 2017 समापन, अन्त के स्वामी अनन्त भगवान् श्रीशिव के चरणों में हुआ।

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एक मिनट ! क्लिक करने से पहले यहाँ कुछ तस्वीरें देख लेते हैं :-

पहाड़ी इलाके में रहने वाली महिलायें पुरुषों से अधिक मेहनती होती हैं 


रणशू बस-अड्डे के पास


शिव-खोड़ी  के रास्ते में

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माता श्री वैष्णों देवी जी

साभार इन्टरनेट : माता श्री वैष्णों देवी जी का पिण्डी स्वरुप

ये पन्ना मेरी जम्मू ट्रिप का ही एक हिस्सा है, यहाँ मैं माता श्री वैष्णों देवी जी के बारे में वो लिख रहा हूँ जो मैंने इंटरनेट तथा अन्य विभिन्न माध्यमों से पढ़ा और जाना है। अगर आप “जम्मू ट्रिप – पहला दिन  : दिल्ली से कटरा” पढ़ चुके हैं तो ये ब्लॉग पढ़ते रहें अथवा पूरी जम्मू ट्रिप को शुरु से पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें।

माता श्री वैष्णों देवी जी का मन्दिर जम्मू और कश्मीर राज्य के कटरा नगर के पास है। माताजी का भवन 5200 फीट की ऊँचाई पर है, जो कि कटरा से लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर है। यहाँ पहुँचने के लिये देश के विभिन्न शहरों से बस और रेल द्वारा कटरा पहुँचा जा सकता है, जहाँ से आगे की चढ़ाई आप पैदल, घोड़े, पालकी, पिट्ठू, हेलीकॉप्टर या बैटरी-कार द्वार कर सकते हैं। अगर आपके शहर से कटरा तक रेल या बस नहीं चलती तो आप जम्मू तक रेल या बस से जा सकते हैं वहाँ से कटरा की दूरी लगभग पचास किलोमीटर है, जो आप बस द्वारा तय कर सकते हैं। अगर आप वायुमार्ग से पहुँचना चाहते हैं तो आप जम्मू हवाई अड्डे तक पहुँचकर वहाँ से बस या टैक्सी द्वारा कटरा पहुँच सकते हैं।

पौराणिक मान्यता:-

माता वैष्णो देवी को लेकर कई कथाएँ प्रचलित हैं। एक प्रसिद्ध प्राचीन मान्यता के अनुसार माता वैष्णों देवी जी के एक परम भक्त थे श्रीधर। एक बार ब्राह्मण श्रीधर ने अपने गाँव में माता का भण्डारा रखा और सभी गाँव वालों व साधु-संतों को भण्डारे में पधारने का निमंत्रण दिया। गाँव वालों को विश्वास ही नहीं हुआ कि निर्धन श्रीधर भण्डारा कर रहा है। श्रीधर ने भैरोंनाथ को भी उसके शिष्यों के साथ आमंत्रित किया। भण्डारे में भैरोंनाथ ने खीर-पूड़ी की जगह मांस-मदिरा का सेवन करने की बात की तब श्रीधर ने इस पर असहमति जताई। अपने भक्त श्रीधर की लाज रखने के लिए माँ वैष्णो देवी कन्या का रूप धारण करके भण्डारे में आई। भोजन को लेकर भैरोंनाथ के हठ पर अड़ जाने के कारण कन्या रूपी माता वैष्णो देवी ने भैरोंनाथ को समझाने की कोशिश की किन्तु भैरोंनाथ ने उस कन्या की बात नहीं सुनी। जब भैरोंनाथ ने उस कन्या को पकड़ना चाहा, तब वह कन्या वहाँ से त्रिकूट पर्वत की ओर भागी और उस कन्या रूपी वैष्णों देवी ने हनुमानजी को बुलाकर कहा कि मैं इस गुफा में नौ माह तक तपस्या करुँगी, तबतक तुम बाहर रहकर भैरोंनाथ को अपने साथ उलझाये रखो। इस गुफा के बाहर माता की रक्षा के लिए हनुमानजी ने भैरोंनाथ के साथ नौ माह तक खेला। आज इस पवित्र गुफा को ‘अर्द्धकुँवारी’ के नाम से जाना जाता है। अर्द्धकुँवारी के पास ही माता की चरण पादुका मन्दिर भी है। यह वह स्थान है, जहाँ माता ने भागते-भागते पीछे मुड़कर भैरोंनाथ को देखा था। कहते हैं उस वक्त हनुमानजी माँ की रक्षा के लिए माँ वैष्णो देवी के साथ ही थे। हनुमानजी को प्यास लगने पर माता ने उनके आग्रह पर धनुष से पहाड़ पर एक बाण चलाकर जलधारा निकाली और उस जल में अपने केश धोये। आज यह पवित्र जलधारा “बाणगंगा” के नाम से जानी जाती है, जिसके पवित्र जल का पान या स्नान करने से भक्तों की सारी व्याधियाँ दूर हो जाती हैं। त्रिकुट पर्वत पर जिस स्थान पर माँ वैष्णों देवी जी ने भैरोंनाथ का संहार किया वहीं उनकी गुफा है, वहीँ वो पिण्डी के स्वरुप में आज भी विराजमान हैं, तथा त्रिशूल के प्रहार से उनका धड़ तो गुफा के द्वार पर पड़ा रहा लेकिन उसका सिर वहाँ से 05 किलोमीटर दूर जाकर गिरा, उसके क्षमा माँगने पर ममतामयी ह्रदय वाली माँ ने उसे अपने से भी ऊँचा स्थान दिया कहा कि, “जो मनुष्य मेरे दर्शन के पशचात् तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा उसकी यात्रा पूरी नहीं होगी।” अत: श्रद्धालु आज भी माता श्री वैष्णों देवी जी के दर्शनों के पश्चात भैरोंनाथ के दर्शन को अवश्य जाते हैं।

ऐसी मान्यता है कि माँ वैष्णों  वैष्णो देवी ने रत्नाकर सागर के घर जन्म लिया था। उनके लौकिक माता-पिता लम्बे समय तक निःसंतान थे। देवी ने बालिका के जन्म से एक रात पहले, रत्नाकर से वचन लिया कि बालिका जो भी चाहे, वे उसकी इच्छा के रास्ते में कभी नहीं आयेंगे। मां वैष्णो देवी को बचपन में "त्रिकुटा" नाम से बुलाया जाता था। बाद में भगवान विष्णु के वंश से जन्म लेने के कारण वे "वैष्णवी" कहलाईं। जब त्रिकुटा 09 साल की थीं, तब उन्होंने अपने पिता से समुद्र के किनारे पर तपस्या करने की अनुमति चाही। त्रिकुटा ने राम के रूप में भगवान विष्णु से प्रार्थना की। सीता की खोज करते समय श्री राम अपनी सेना के साथ समुद्र के किनारे पहुँचे। उनकी दृष्टि गहरे ध्यान में लीन इस दिव्य बालिका पर पड़ी। त्रिकुटा ने श्री राम से कहा कि उसने उन्हें अपने पति के रूप में स्वीकार किया है। श्री राम ने उसे बताया कि उन्होंने इस अवतार में केवल सीता के प्रति निष्ठावान रहने का वचन लिया है। लेकिन भगवान ने उसे आश्वासन दिया कि कलियुग में वे “कल्कि” के रूप में प्रकट होंगे और उससे विवाह करेंगे।
इस बीच, श्री राम ने त्रिकुटा से उत्तर भारत में स्थित माणिक पहाड़ियों की त्रिकुटा श्रृंखला में अवस्थित गुफ़ा में ध्यान में लीन रहने के लिए कहा। रावण के विरुद्ध श्री राम की विजय के लिए माँ ने “नवरात्र” मनाने का निर्णय लिया। इसलिये आज भी नवरात्र के 09 दिनों की अवधि में रामायण का पाठ किया जाता है। श्री राम ने वचन दिया था कि समस्त संसार द्वारा मां वैष्णों देवी की स्तुति गायी जायेगी। त्रिकुटा, वैष्णो देवी के रूप में प्रसिद्ध होंगी और सदा के लिए अमर हो जायेंगी।

उपरोक्त लेख में मैंने सक्षिप्त माँ वैष्णों देवी जी के इतिहास की जानकारी दे दी है, अब पुनः हम अपनी यात्रा पर लौटते हैं, इसके लिये हमें यहाँ क्लिक करना है।

साभार इंटरनेट : माता श्री वैष्णों देवी जी का भवन

जम्मू ट्रिप - पहला दिन : "दिल्ली से कटरा"

|| जय माता दी ||

माता श्री वैष्णों देवी जी का ध्यान मन में आते ही ऊपर लिखे ये तीन शब्द (जय माता दी) अनायास ही मुँह से निकल जाता है। जम्मू और कश्मीर राज्य में स्थित त्रिकूट पर्वत की चोटियों पर निवास करने वाली माता श्री वैष्णों देवी जी का धाम बहुत ही पावन, प्रसिद्ध, सुन्दर और सुरम्य है। इस विषय में अधिक पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

पहली बार मुझे श्री वैष्णों देवी जी के दर्शनों का सौभाग्य सन् 2006 में मिला। मैं पाँचवीं कक्षा की परीक्षा देकर गर्मी की छुट्टियों में अपने माता-पिता जी के साथ वैष्णों देवी गया था। उस समय की यादें अब काफी हद तक धुँधली हो चुकी हैं, लेकिन उस यात्रा में मुझे बहुत आनन्द मिला था। शायद यही कारण रहा कि मैं वहाँ से वापस आने के पश्चात निरन्तर ही पुनः माता श्री वैष्णों देवी जी के दर्शनों का आकाँक्षी रहा। मैंने कई बार वहाँ जाने की योजना भी बनायी लेकिन किसी-न-किसी कारणवश जा नहीं पाया।
ग्यारह वर्ष व्यतीत हो गये पर मैं दुबारा माता जी के दर्शन नहीं कर सका। दिसंबर 2017 में एक दिन यूँ ही मेरे मन में विचार आया कि इस बार नये वर्ष की शुरुआत माता जी के दर्शनों से की जाये, अतः मैंने झटपट 29 दिसम्बर 2017 की अपनी एक टिकट बुक करवा ली। जब इसकी जानकारी मैंने अपने घर पर दी, तो ये हुआ कि इतनी दूर अकेले नहीं जाना है किसी और को भी साथ ले जाओ। मैंने अपने एक पुराने सहकर्मी सौरभ जी को अपने जम्मू ट्रिप की जानकारी दी और उन्हें साथ चलने का निमन्त्रण दिया, वो तुरन्त तैयार हो गये। फिर मैंने उनकी टिकट और कटरा में ठहरने के लिये एक होटल भी बुक किया। अब बस बहुत ही बेसब्री से मैं 29 दिसम्बर का इंतज़ार करने लगा। इसी बीच मैंने इन्टरनेट पर बहुत-से यात्रा ब्लॉग पढ़े तो उससे प्राप्त जानकारी के बाद मैंने माता जी के दर्शनों के साथ-साथ शिव खोड़ी और पटनीटॉप जाने का भी कार्यक्रम बना लिया।

इंतज़ार के पल बहुत लम्बे होते हैं— खैर दिन-रात बीतते-बीतते वो तारीख़ भी आ गयी जिसका हमें इंतज़ार था। 29 दिसम्बर 2017 को सुबह-ही-सुबह मैंने अपने सामान पैक किये और फिर जय माता दी बोलकर मेट्रो स्टेशन की तरफ निकल पड़ा। बाटा चौक मेट्रो स्टेशन पर ही मुझे सौरभ मिले और फिर वहाँ से हम दोनों साथ-साथ आनन्द विहार टर्मिनल रेलवे स्टेशन पहुँचे, वहाँ पहुँचकर हम ट्रेन में अपने-अपने स्थान पर बैठ गये और फिर समय पर गाड़ी चल पड़ी। यूँ तो मैं घर से भोजन करके आया था लेकिन ट्रेन ने अभी दिल्ली भी नहीं पार किया कि मुझे भूख लग गयी। मैंने देरी न करते हुये बैग से आलू-पराठे और आचार निकाल लिया जो चाची जी ने बनाकर रास्ते के लिये दिया था। मुझे खाता देखकर सौरभ को भूख लगना स्वाभाविक था दोनों ने मजे से खाकर अपनी क्षुधा शान्त की फिर सो गये। जब हम सुबह उठे तो ट्रेन लुधियाना पहुँचने वाली थी, मोबाइल में देखा तो पता चला कि ट्रेन 03 घंटे की देरी से चल रही है। मुझे पंजाब घूमने का बहुत मन करता है, अभी तक कभी गया नहीं हूँ, तो ट्रेन में बैठकर जितना पंजाब दिख रहा था उतने का आनन्द लेने लगा। यहाँ दिल्ली के मुकाबले ठण्डी बहुत अधिक थी, और कई जगह धुंध के कारण बाहर देखना भी मुश्किल हो रहा था। जब पिछली बार मैं वैष्णों देवी आया था तब ट्रेन की सुविधा केवल जम्मू तक ही थी, वहाँ से आगे बस द्वारा जाना पड़ता था। लेकिन अब तो सीधे कटरा तक ट्रेन जाती है। जम्मू और कटरा के बीच उधमपुर के आसपास मुझे ऐसे कई पहाड़ दिखे जहाँ मैं ट्रेन से उतरकर जाना चाहता था, लेकिन ये संभव नहीं था क्योंकि वहाँ तक पहुँचने का कोई रास्ता ही नहीं बनाया गया था, वहाँ शायद पर्वतारोही ही जा सकें। खैर खाते-पीते, पर्वत-पहाड़ देखते, पहाड़ी रहन-सहन को उत्सुकता से निहारते-निहारते शाम हो चली, ट्रेन 05 घंटे 30 मिनट की देरी से कटरा स्टेशन पहुँच गयी। जैसा हमारा पूर्वानुमान था उस हिसाब से यहाँ कुछ खास ठण्डी नहीं लग रही थी।

हम स्टेशन से बाहर आये और ऑटो से होटल ईशान पहुँचे जो कि कटरा बस अड्डे से पचास कदम की दूरी पर है। हमने अपने कमरे में अपना सामान रखा और फिर पास के बस अड्डे पर पहुँचकर वहाँ से एक प्राइवेट ट्रेवल एजेंट द्वारा अगले दिन शिव-खोड़ी जाने के लिये बस में टिकट बुक करवा ली। ट्रेवल एजेंट ने बताया कि बस यहाँ से सुबह ठीक 09:00 बजे शिव-खोड़ी जायेगी, वहाँ पर आपको 04 घंटे घूमने के लिये दिये जायेंगे और फिर वही बस शाम को वापस ले आयेगी। दोनों तरफ का किराया 200/- रूपये प्रति व्यक्ति था। शिव-खोड़ी पहुँचने की व्यवस्था बनाकर हम वापस अपने होटल आये हाथ-मुँह धोकर आराम करने लगे। ट्रेन में ही कुछ-न-कुछ खाने की वजह से रात्रिभोज की इच्छा न मेरी हुई न सौरभ की। हमने अपने शिव-खोड़ी यात्रा की तैयारी बनायी और फिर सो गये।

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एक मिनट ! क्लिक करने से पहले यहाँ कुछ तस्वीरें देख लेते हैं :-

कटरा रेलवे स्टेशन

ट्रेन से ऐसे दृश्य खूब देखने को मिलेंगे 

पंजाब में भोर का एक दृश्य

साभार इंटरनेट : हमारे होटल का कमरा (होटल ईशान, कटरा जम्मू)


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