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Tuesday, July 11, 2023

मेरी उत्तराखण्ड यात्रा (दिन-2, भाग-1 : अल्मोड़ा से जागेश्वर और दण्डेश्वर)

इस यात्रा को आरम्भ से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये

अल्मोड़ा की सुबह बहुत लुभावनी लगी। थोड़ी देर बालकनी में खड़े होकर पर्वत श्रृंखलाओं को निहारा और फिर उस किताब की कुछ तस्वीरें क्लिक की जिसमें अल्मोड़ा के विषय में पढ़ा था। लेखक श्री अनुराग पाठक जी ने एक सच्ची घटना के आधार पर ‘ट्वेल्थ फेल’ नाम की एक किताब लिखी है। जिसमें उस किताब का नायक नव-वर्ष पर नायिका से एक बार बात करने के लिए उसके पैत्रिक घर अल्मोड़ा जाता है। उसी की यात्रा के दौरान अल्मोड़ा का थोड़ा-सा वर्णन उस किताब में आता है। हालाँकि वो बहुत कम था फिर भी अल्मोड़ा तब से मेरे मन से नहीं निकला। अल्मोड़ा आना मेरे लिए सपने के सच होने जैसा ही था। खैर, हम आज की यात्रा शुरू करते हैं।

होटल की बालकनी से अल्मोड़ा

आज हमें श्री जागेश्वर धाम की तरफ जाना था। आज मैंने होशियार बच्चे की तरह मोशन-सिकनेस की दवा सुबह ही खा ली थी जिससे दिन भर में कोई दिक्कत न हो। मेरे एक मित्र ने मुझे जागेश्वर धाम के विषय में बताया था। मैंने उनसे कहा था मुक्तेश्वर जाना है तो उन्होंने जागेश्वर का भी जिक्र कर दिया। हालाँकि पहले ये मेरी योजना में नहीं था परन्तु भोलेनाथ की कृपा से इधर भी चल पड़े। अल्मोड़ा से थोड़ी दूर ही ‘श्री चितई गोलू देवता’ का मंदिर है। हमारा आज का पहला पड़ाव यही है। जब तक हम मंदिर में दर्शन करके आते हैं तब तक आप इस मंदिर के विषय में पढ़ लीजिये।

श्री चितई गोलू देवता मंदिर:

ये स्थान अल्मोड़ा से आठ किलोमीटर दूर पिथौरागढ़ हाईवे पर है। मन्दिर के अंदर सफेद घोड़े पर बैठे, सिर में सफेद पगड़ी बाँधे गोलू देवता की प्रतिमा है, जिनके हाथों में धनुष बाण है। स्थानीय संस्कृति में सबसे बड़े और त्वरित न्याय के राजवंशी देवता के इस मन्दिर में विदेशों से भी श्रद्धालु पहुँचते हैं, ऐसा मुझे बताया गया। यहाँ आपको लाखों की संख्या में चिट्ठियाँ और स्टाम्प लटके मिलेंगे और उतनी ही घंटियाँ और बड़े घंटे भी दिखेंगे। लोकमान्याता अनुसार लोग अपनी मनोकामनाएँ यहाँ चिट्ठी में लिखकर टांग देते हैं और फिर जब वो कामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं तो घंटी चढ़ाने आते हैं। बढ़िया प्रांगण और सुन्दर मन्दिर निश्चित दर्शनीय है। इसके बाहर प्रसाद और खाने-पीने की तमाम दुकानें भी हैं।

चितई गोलू देवता मन्दिर

यहाँ पर हम चितई गोलू देवता की पूजा और अपनी पेट पूजा करके आगे बढ़े। आज नाश्ते में आलू के पराठे के साथ दही और सलाद मिला था। जबकि मैं आमतौर पर चाय-पराठे को प्राथमिकता देता हूँ। सुबह से एक भी चाय नहीं मिलने से आगे के खूबसूरत नज़ारे पूरा आनन्द नहीं दे पा रहे थे। मैं मंजिल से भी ज्यादा सफर का आनन्द उठाने में विश्वास रखता हूँ। इसलिए एक अल्प-विराम लिया और ‘दुग्ध शर्करा मिश्रित पेय पदार्थ’ से अपने गले को सिंचित करके हम जागेश्वर की तरफ बढ़ते जा रह थे। रास्ता मेरे अनुमान से अधिक सुन्दर था। इधर के तमाम विडियो मैंने विभिन्न ट्रेवल व्लोग्स में देख रखे थे। आज उसी खूबसूरत रास्ते पर अपने बाइक चलाने के सपने को पूरा कर रहा था। पहाड़ों की सबसे बड़ी दिक्कतों में से एक ये भी है कि हर 15 मिनट पर रुककर फोटो खिंचवाने का मन करता है। मेरे साथ हितेश भैया जैसे ‘उत्तराखण्ड यात्रा विशेषज्ञ एवं धैर्यवान फोटोग्राफर’ भी थे। उन्होंने कई जगह चिन्हित करके खुद भी स्कूटी रुकवाई और कई जगह मैंने रोकी। हम दोनों ने खूब सारी तस्वीरें ली, हालाँकि उनकी कम मेरी ज्यादा होती थी। हितेश भैया जो नज़ारों को कैद करते हैं उसके फैन्स तो विभिन्न यात्रा समूहों में तमाम लोग हैं ही, मैंने उन्हें तस्वीरें लेते हुए देखा। कैसे उसी जगह मुझे कुछ और दिख रहा होता और जब वो क्लिक करके दिखाते तो वही जगह एकदम ही अलग लगती। कई बार मैंने भी उनके एंगल से क्लिक करने का असफल प्रयास भी किया। इस यात्रा में उनके साथ होने से बहुत सहूलियत रही और फोटोग्राफी का थोड़ा-थोड़ा तरीका उनसे सिखने को मिल रहा था।

अल्मोड़ा से जागेश्वर धाम के रास्ते में कहीं

फोटो/विडियो निकालते, चाय पीते, सफ़र का आनन्द उठाते हम जागेश्वर धाम पहुँच गये। सबसे पहले हितेश भैया के एक सूत्र के पास अपने बैग और हेलमेट रखे और फिर हाथ-पाँव धोकर श्री शंकर जी के प्रथम शिवलिंग स्वरुप के दर्शनों के लिए चल पड़े। यहीं से 200मी की दूरी पर इन्हीं मंदिर समूहों में से एक हैं श्री दण्डेश्वर महादेव जी हम वहाँ भी दर्शन करेंगे। जब तक हम सब जगह के दर्शन करके आते हैं तब तक आप इस स्थान की विशेषताओं से परिचित हो लीजिये।

श्री जागेश्वर धाम एवं दण्डेश्वर महादेव: 

जागेश्वर धाम उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँमण्डल में पड़ने वाले एक खूबसूरत जनपद अल्मोड़ा में समुद्रतल से 1890 मीटर की ऊँचाई पर स्थित कई मंदिरों का समूह है। यहाँ कुल 124 मंदिर एक ही स्थान बने हैं। कुछ जगह इनकी गिनती 250 बताई जाती है परन्तु वो शायद दण्डेश्वर और वृद्धजागेश्वर आदि जोड़कर लिखी जाती होगी। मंदिर समूह से लगकर ही एक धारा भी बहती है, जिसे ‘जटागँगा’ कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी स्थान पर भगवान् शिव ने माता सती के जीवनसमाप्ति के बाद तपस्या की थी। ये स्थान सप्तऋषियों की भी तपःस्थली भी है। इससे जुड़ी एक कथा आप डंडेश्वर मंदिर के सन्दर्भ में पढेंगे। यहाँ भगवान् शिव के बालरूप एवं तरुणावस्था की पूजा होती है। जागेश्वर धाम में स्थित शिवलिंग ही ब्रम्हाण्ड का प्रथम शिवलिंग है। लोकमान्यताओं के अनुसार पुराणों में जो द्वादश ज्योतिर्लिंग की चर्चा आती है उसमें से 8वां ज्योतिर्लिंग यही जागेश्वर धाम स्थित नागेश भगवान् ही हैं। “नागेशं दारुकावने” इसी स्थान के लिए लिखा गया है। कुछ लोग ‘दारुकावने’ का अर्थ देवदार के वन से लगते हैं उनके अनुसार ये स्थान 8वां ज्योतिर्लिंग है और कुछ लोग इसका अर्थ द्वारिका से निकालते हैं तो वो गुजरात स्थित नागेश को 8वां ज्योतिर्लिंग मानते हैं। इस स्थान को उत्तराखण्ड के चार धामों (केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री) के बाद 5वाँ धाम माना जाता है। लोकश्रुतियों की माने तो यहाँ माँगी गयी हर मनोकामना उसी स्वरुप में पूर्ण हो जाती थी, जिससे कई बार इसका दुरूपयोग भी होता था। फिर आदिगुरू शंकराचार्य जी ने यहाँ स्थित मृत्युंजय शिव स्वरुप को कीलित करके उसके दुरूपयोग को रोका अर्थात् अब ये स्थान आपकी सद्इच्छाओं की पूर्ति के लिए है। 

श्री जागेश्वर धाम मंदिर समूह

इसी से 200मी. की दूरी है श्री दण्डेश्वर महादेव जी की मंदिर है। कहते हैं एक बार जब सप्तऋषियों की पत्नियाँ यहाँ से अपने आश्रमों की तरफ जा रही थी। उन्होंने भगवान् शिव को तपस्या करते देखा और मोहित होकर रुक गयी। उनके आश्रम विलम्ब से पहुँचने का कारण सप्तऋषियों ने शिव को समझा और उन्हें दण्डित करते हुए श्राप दे दिया। उसी स्थान पर अब श्री दण्डेश्वर महादेव जी का शिवलिंग स्वरुप लेते हुए अवस्था पूजित होता है। 

पुरातव विभाग के सर्वेक्षणों और इतिहासकारों को माने तो इन मंदिर समूहों का निर्माणकाल तीन अलग-अलग कालों में विभाजित है। कल्युरीकाल, उत्तरकत्युरीकाल एवं चंद्रकाल। कत्यूरीवंशी राजाओं ने ही अल्मोड़ा जनपद में जागेश्वर मंदिर समूहों सहित अन्य 400 मंदिरों का भी निर्माण करवाया था। मंदिरों का निर्माण लकड़ी या सीमेंट की जगह बड़े-बड़े पत्थर स्लैब से किया गया है। यहाँ की वास्तुकला के अनुसार इनके निर्माणकाल खण्ड का अनुमान 7वीं से 12वीं शताब्दी लगाया जाता है। इन विषयों पर कोई मतेक्य नहीं है, सभी के अपने-अपने तथ्य एवं तर्क हैं। देवदार के घने वन प्रदेश में, बड़े देवदार वृक्षों और ऊँची पहाड़ियों से घिरा हुआ ये परम पवित्र स्थान नयनाभिराम दृश्यों से अलंकृत तो है ही, इसके साथ आपको यहाँ मन की शान्ति और सुकून का जो एहसास मिलेगा उसका अनुभव यहाँ पहुँचकर ही किया जा सकता है। अल्मोड़ा से इस स्थान की दूरी लगभग 40 किलोमीटर है। जहाँ आप बस, टैक्सी या निजी वाहन द्वारा आसानी से पहुँच सकते हैं, सडक मार्ग से बढ़िया जुड़ा हुआ है और रास्ते भी अच्छे हैं। नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम और हवाई अड्डा पन्त नगर है।

श्री दण्डेश्वर महादेव मंदिर

श्री दण्डेश्वर महादेव मंदिर

उपर्युक्त परिचय वहाँ के स्थानीय लोगों  और इन्टरनेट आदि के माध्यम से प्राप्त जानकारी के आधार पर है। मैं इतिहास का विद्यार्थी भी नहीं हूँ तो मेरी अल्पज्ञता का ध्यान रखकर तथ्यात्मक त्रुटियों को अपनी प्रतिक्रियाओं में ठीक करते रहिएगा, आपकी बड़ी कृपा होगी।

श्रीजागेश्वर धाम और श्रीदण्डेश्वर धाम जी के दर्शनों के बाद हम वापस अल्मोड़ा की तरफ चल पड़े। यहाँ से वृद्ध जागेश्वर की दूरी अधिक नहीं है परन्तु हमारी योजना किसी और तरफ होने तथा अगली बार यहाँ आने के बहाने के नाम पर हम श्री वृद्ध जागेश्वर नहीं जा रहे हैं। इस यात्रा में ये दूसरा दिन आधा बीत रहा है। बाकी का आधा दिन एक ऐसे स्थान पर बीतेगा जो अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस स्थान की एक अनोखी विशेषता है। ये स्थान भारत में इकलौता और विश्व में केवल 3 है। बाकी विस्तृत हम वहाँ पहुँचकर बतायेंगे। तब तक आप फोटो देख लीजिये, हम मिलते हैं इस यात्रा-वृत्तांत के अगले भाग में...

अल्मोड़ा का एक दृश्य

जटागँगा की पवित्र धारा

- कुमार आशीष
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Sunday, July 9, 2023

मेरी उत्तराखण्ड यात्रा (दिन-1 : लखनऊ से अल्मोड़ा)

देवभूमि उत्तराखण्ड की ख़ूबसूरती और अध्यात्मिक चेतना का तलबगार हर कोई रहता ही है। मेरा भी हमेशा से उत्तराखण्ड जाने का बहुत मन था। कई बार हरिद्वार, ऋषिकेश की योजनायें बनी भी और निरस्त भी हुईं। तमाम असफल प्रयासों के बाद अंततः मेरी उत्तराखण्ड यात्रा 24 जून 2023 को लखनऊ से आरम्भ हुई। सुबह उनींदी आँखों से बाहर देखा तो पहाड़ नहीं दिख रहे थे और जो दिख रहा था उसे वर्षा रानी ने अपना विकराल रूप लेकर देखने नहीं दिया। खिड़की का सटर बंद करके हम रेलगाड़ी की खटर-पटर सुनते, अपने मोबाइल में टिकिर-टिकिर करते हुए रेलगाड़ी के गंतव्य तक पहुँचने का इंतज़ार कर रहे थे।

इस यात्रा में सब कुछ ठेठ घुमक्कड़ी की तरह था। कुछ पता नहीं कि स्टेशन से उतरकर कहाँ जाना हैं, कहाँ रुकना है, कहाँ घूमना है? बस 2-4 दिन पहाड़ों में कहीं भटकना है और बाबा नीब करोली जी का दर्शन लाभ लेना है। मेरी इस यात्रा के एक-दो दिन पहले मैंने कई फेसबुक घुमक्कड़ी समूहों में उस तरफ की यात्राओं से जुड़ी पोस्ट पढ़ी और कुछ पर उत्तर-प्रतिउत्तर से थोड़ी जानकारी जुटाई। लेकिन इतना सब मेरे लिए पर्याप्त नहीं था। मुझे हितेश भैया ने खुद से कॉल करने को कहा तो मैंने उन्हें निकलने से पहले फ़ोन कर दिया। मुझे उन्होंने रास्ते, रुकने आदि की कुछ जानकारी फ़ोन पर समझा दी। बाकी का मैंने कहा आकर देखते हैं। इसी बीच हमारी ‘लौहपथ गामिनी’ हल्द्वानी नामक ‘लौहपथ गामिनी गतिमान शून्य स्थल’ पर पहुँच गयी। स्टेशन पर उतरकर देखा तो अब पहाड़ दिखने लगे थे। एक दो तस्वीरें ली और स्टेशन से बाहर आया तो रिमझिम बारिश हो रही थी। बारिश में भीगना शौक़ है तो भीगते हुए करीब 300मी की पदयात्रा और वहाँ के कुछ भले लोगों की मार्गदर्शन से मैं एक बस के पास पहुँचा जो मुझे धानाचूली तक ले जाने वाली थी। फिर वहाँ से कोई टैक्सी लेकर मुझे (मुक्तेश्वर के पास) भटियाली पहुँचना था। बस धानाचूली की तरफ बढ़ चली और मैं उत्तराखण्ड की खूबसूरत वादियों का आनन्द लेने में व्यस्त हो गया। ‘मुझे पहाड़ बहुत प्रिय हैं’ ये बात आज पक्का कर रहा था। ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि जब तक मैंने सिर्फ पहाड़ देखे थे तब तक वो प्रिय थे, परन्तु लग रहा था कि शायद समंदर और प्यारे होंगे। पिछले साल जब गोवा जाने का मौक़ा मिला तो समंदर भी अच्छे लगे लेकिन पहाड़ पहले प्यार की तरह ज्यादा ही प्यारे रहे।

हल्द्वानी रेलवे स्टेशन 

कानों में मिश्री घोलती हुई जगजीत सिंह जी की मखमली आवाज़, हल्की-हल्की बरसात और उत्तराखण्ड के खूबसूरत पहाड़ों के लगातार पीछे छूटते जा रहे शानदार नज़ारे आँखों के सामने दिखाई दे रहे थे। इससे अच्छा सफ़र क्या ही हो सकता है... कहते हैं ख़ूबसूरती ख़तरनाक भी होती है, मतलब पहाड़ों में मोशनसिकनेस का खतरा तो रहता ही है। मेरे जैसे मैदानी ईलाके में रहने वाले लड़के के लिए भी मोशन सिकनेस एक समस्या है। जिसकी दवाई मैंने इन्हीं समूहों में पढ़कर अपने साथ पहले से रखी हुई थी। परन्तु क्या है न कि दवाई कितनी भी अच्छी क्यों न हो, जब तक आप बैग में रखें रहेंगे वो जरा भी असर नहीं कर पाती है। मेरी भी दवा बैग में होने के बावजूद असर नहीं कर पाई और मैं नजारों में खोया दवाई खाना ही भूल गया था। परन्तु शरीर के कुछ रासायनिक अभिक्रियाओं ने याद दिलाया तो दवाई खा ली। कुछ खास दिक्कत नहीं हुई और मैं धानाचूली पहुँच गया। वहाँ से एक कार टैक्सी से भटेलिया के लिए चल पड़ा, आगे के नज़ारे और भी प्यारे होते जा रहे थे और बरसात मुसलसल जारी थी। भटेलिया पहुँचे तो वहाँ बारिश नहीं हो रही थी। उतरकर सबसे पहले हितेश भाई से कॉल पर बात की उन्होंने एक मित्र का नम्बर भेजा जिनसे मुझे स्कूटी रेंट करनी थी। मैंने बात की और उनकी दूकान की तरफ पहुँचा तब तक हितेश भैया भी पहुँच चुके थे। हमें बात करते हुए अभी ठीक से 24 घंटे भी नहीं हुए थे, परन्तु किसी पुराने मित्र के मिलने जैसा एहसास ही उनके साथ की पहली मुलाक़ात में हुआ।

स्कूटी रेंट पर लेकर हमने पास की एक दूकान पर चाय की चुस्की ली और फिर हितेश भैया के साथ अलगे 3 दिन की योजना पर एक सार्थक चर्चा हुई। चाय ख़त्म होते-होते हमारी कैबिनेट में ये प्रस्ताव पास हो चुका था कि हम आज रात अल्मोड़ा में विश्राम करेंगे। सबसे पहले हितेश भैया मुझे अपने घर ले गये। जो कि वहाँ से थोड़ी ही दूर था। जो लोग उनके घर जा चुके हैं वो जानते हैं कि किसी मैदानी ईलाके में रहने वाले वाले लड़के के लिए एक शुद्ध पहाड़ी गाँव का रास्ता उतरना कितना बेहतरीन एहसास होता है। लेकिन उतरने के दौरान पर्याप्त सावधानी की आवश्यकता भी होती है। घर जाकर उन्होंने हमें सेब के बगीचे दिखाए। मैं जीवन में पहली बार सेब के पेड़ देख रहा था। सेब अभी अधपके थे परन्तु खुमानी एकदम तैयार थी। उन्होंने कुछ खुमानी लाकर हमें दिया। मेरा इस फल से प्रथम परिचय था। मैंने उनसे खाने के तरीके पूछे और दो घुमानी निपटा दी। बाकी इस घर की बातें आगे की पोस्ट में करेंगे, अभी यहाँ से वापस स्कूटी की तरफ चलते हैं। उनके घर से सड़क तक पहुँचना मुझे बहुत बड़ा टास्क लगा। एकदम खड़ी चढ़ाई ने थका दिया, इतना कि मुझे 500मी. की दूरी में भी एक जगह अल्प-विराम लेना पड़ा। हम स्कूटी तक पहुँचे फिर वहाँ से मैं और हितेश भैया अल्मोड़ा की तरफ चल पड़े। रास्तें में देश-दुनियाँ और अपनी तमाम बातें करते हुए, सुन्दर नजारों का आनन्द उठाते हम अल्मोड़ा की तरफ बढ़ रहे थे। पहाड़ों पर बाइक चलाना मेरे कई सपनों में से एक था। परन्तु कभी ऐसा मौक़ा नहीं मिलने के कारण आत्मविश्वास कम था। इसलिए अभी के लिए स्कूटी हितेश भैया के हाथ में थी। अल्मोड़ा पहुँचते-पहुँचते मैं बहुत थक चुका था। मेरा एक कल का पूरा दिन बहुत व्यस्त रहा था। पहले ऑफिस, फिर घर जाकर तैयारी करना, ट्रेन रात में 12:15 की थी, इसलिए नींद भी ठीक से नहीं ली थी। फिर आज जब से हल्द्वानी उतरे थे पूरा दिन सफ़र में बीत रहा था। ठीक से नाश्ता भी नहीं हुआ था और लंच का तो मौक़ा ही नहीं लगा। मेरा बहुत तेज सिर दर्द कर रहा था। मैं किसी होटल में जाकर लेट जाना चाहता था। हितेश भैया ने अल्मोड़ा पहुँचते ही अपने सूत्रों के माध्यम से एक होटल बुक किया और वहाँ जाकर मैंने एक दवाई ली और थोड़ी देर लेट गया। रात करीब 08:00 बजे उठा तो थोड़ा फ्रेश लग रहा था। बालकनी से जगमगाते अल्मोड़ा को देखा, कुछ बिस्कुट वगैरह खाये और फिर से सो गया। जब तक मैं नींद पूरी करता हूँ आप नीचे दी गयी तस्वीरें देख लीजिये

अल्मोड़ा को मैंने एक किताब से जाना था। उसके बाद अल्मोड़ा के बहुत से फोटो/विडियो देखे और यहाँ आने का बहुत मन था। इस विषय में बाकी बातें अगली पोस्ट में... तब तक के लिए धन्यवाद!

मुक्तेश्वर से अल्मोड़ा जाते हुए रास्ते में कहीं 
 
दो बैलों की कथा 

- कुमार आशीष
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मैं प्रेमी भी हूँ और लेखक भी

मैं प्रेमी भी हूँ और लेखक भी, इसलिए मैं करना चाहता हूँ एक सफल प्रेम और फिर उस पर लिखना चाहता हूँ, एक किताब। एक ऐसी किताब जिसके प्रत्येक पृष्ठ पर प्रेम हो, कुछ में उसे पाने का संघर्ष और बाकी में उसी प्रेम की सफलता के किस्से...

असफल प्रेम कहानियाँ तो बहुत बार लिखी गयीं, सुनी गयी, सराही भी गयी बस महसूस नहीं की गयी। उन दो बिछड़ चुके या कहें सामाजिक ढोंग-ढकोसलों के रूप में राहु-केतु द्वारा ग्रसित सूरज-चंदा जैसे शाश्वत प्रेम को ग्रहण लगा कर अलग कर दिए गये, उन दो सुकोमल हृदयों से निकले रक्त की हर बूँद और नयनों से बहे आँसू के हर एक कण पर हमने बार-बार कविताएँ और कहानियाँ लिखीं और जिन सामाजिक ठेकेदारों ने निर्दयता से उन्हें दूर कर दिया था उन्होंने भी बड़े चाव से सुना और 'वाह-वाह' किया। किसी का बिछड़ना भी समाज ने आनन्द का कारण बना लिया और उससे आपना मनोरंजन किया। उस पर भी मन नहीं भरा तो समाज ने उसे श्रृंगार रस के संयोग श्रृंगार और वियोग श्रृंगार के रूप में व्याख्यायित किया, जबकि मैं कहूँगा कि ये सब बहुत विभत्स है, ऐसे लेखों, कविताओं और कहानियों में विभत्स रस प्रधान है।

खैर! समाज मेरे हिसाब से व्याख्याएँ नहीं करेगा। इसलिए मेरी किताब में हमारी सफल प्रेम की गाथाएँ होंगी। नितान्त मौलिक, अनुभव आधारित, सहजता, सम्मान, स्नेह, विश्वास से परिपूर्ण, आधुनिक भी और पारंपरिक भी... 

यहाँ मैं किसी को जवाब देने, नीचा दिखाने अथवा गलत ठहराने की कोशिश नहीं कर रहा हूँ। क्योंकि प्रेम का उद्देश्य इतना ओछा हो भी नहीं सकता और मैं इतनी छोटी सोच रखकर प्रेम का अपमान करना भी नहीं चाहता। मैं ऐसी किताब सिर्फ इसलिए लिखना चाहता हूँ कि आने वाली पीढ़ी और उससे निर्मित होने वाले समाज को ये बता सकूँ कि वो "कुछ वर्षों बाद प्रेम कम या खत्म क्यों हो जाता है?" "विवाह के बाद पहले जैसा प्रेम क्यों नहीं रहता?" जैसे प्रश्नों का उत्तर लिखकर इंटरनेट का भार बढ़ाने वाले कीबोर्ड वीरों से बचकर रहें। जो कम-ज्यादा की मापनी में उतरे, विश्वास-अविश्वास के धरातल पर परखा जाए वो प्रेम नहीं महज आकर्षण होता है। ये आकर्षण कभी शरीर की खूबसूरती से उत्पन्न हुआ, कभी सैलरी पैकेज से, कभी बड़े पदनाम से, कभी बड़ी सामाजिक प्रतिष्ठा से, कभी चाल-ढाल से, कभी हाव-भाव से, कभी काम-काज से और कभी-कभी आवश्यकताओं से... इन केंद्रबिंदुओं की धुरी से बँधा हुआ आकर्षण इनके कम ज्यादा होने से प्रभावित होता है। जैसे-जैसे खूबसूरती उम्र की चपेट में ढलेगी, पैसा-प्रॉपर्टी परिस्थितियों की मार में कम या अधिक होगा तो आकर्षण भी उसी अनुपात में घटता-बढ़ेगा रहेगा। परन्तु अखिल ब्रम्हाण्ड नायक चराचर परब्रम्ह भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी स्वरूप प्रेम इन बिंदुओं से बहुत ऊपर, बहुत अलग केवल दो आत्माओं के एकीकृत हो जाने का नाम है। अब जो आकर्षण उत्पन्न होगा उसका कारण प्रेम है और प्रेम हर परिस्थिति में बीते हुये कल से आज कुछ और गाढ़ा होता है तो आकर्षण भी बढ़ता जाएगा। इस आकर्षण का केंद्रबिंदु प्रेम है और प्रेम शाश्वत है तो उससे जुड़ी हर चीज सदा शाश्वत ही रहेंगी। मसलन वो चेहरा, उसकी खूबसूरती, उसके हाव-भाव और अन्य तमाम भौतिक चीजें भी... 

मैं इन सब बातों को किताब में लिख देना चाहता हूँ। जिससे आने वाले लोग ये समझ सकें कि कैसे एक लंबे कालखण्ड तक समाज ने प्रेम करने से ज्यादा प्रेम लिखने को प्राथमिकता दी। प्रेम लिखने वाले तो सराहे जाते रहे, परंतु प्रेम करने वाले हमेशा हाशिये पर रह गए। उन्हें न ही इस क्रूर समाज ने स्वीकृति दी और न वो सम्मान ही जिसके वो हकदार थे और जो सम्मान दिया भी, वो उनके मरने के बाद किताबों में अपने मनोरंजन के लिए दिया। यही समाज का वीभत्स स्वरूप है। 

मैं इस व्यथा को परिवर्तित करना चाहता हूँ। इसलिये मैं भगवान श्रीकृष्ण और माँ राधा की उपासना मानकर प्रेम करना चाहता हूँ और अपने सफल प्रेम के किस्से समाज को सौंपकर इस संसार से जाना चाहता हूँ। (लेख समाप्त) 

मेरी किताब की प्रमुख नायिका पात्र हेतु मेरा हृदय आपको वरण कर रहा है और मैं आपसे सहयोग और सार्थक मार्गदर्शन की अभिलाषा रखता हूँ। यदि ये ख्वाब मेरी हैसियत से बहुत आगे का नहीं है तो इसे अपनी स्वीकृति से सम्मानित कीजिये। मेरे जीवन में मेरी सहधर्मिणी और मेरे कविताओं, कहानियों और लेखों की रानी बनने के लिए आपका स्वागत है... 


मेरा जीवन है शापित दुपहरी कोई, मेरी शामें-ए-सुहानी बनोगी क्या?
मैंने लेखों में तुमको ही लिखा सदा, अब उनकी निशानी बनोगी क्या?
मैं ये जीवन लुटा दूँ तुम्हारे लिए, और धर दूँ मेरा यश तेरी देहरी,
बस मुझे तुम बता दो जरा सोचकर, मेरे गीतों की रानी बनोगी क्या?
- कुमार आशीष

Saturday, March 25, 2023

तुम्हारे साथ मेरे ख़्वाब

सुनो! मुझे एक बात बतानी है। आजकल मैं अपनी अधजगी रातों और अलसाये दिनों में, खुली-बंद आँखों से बहुत-से ख़्वाब देखने लगा हूँ। एक ऐसा ख़्वाब जो शायद पूरा भी हो और न भी हो। मैंने ख्वाब में देखा तुमसे बातें करते हुए मैं मुस्कुरा रहा था, मैंने खुद को इतना खुश कभी बड़ी-से-बड़ी सफलता पर भी नहीं देखा जितना खुश तुम्हारे साथ होने भर से था। मैंने ख्वाब में खुद को अकेले बैठकर तुम्हारे बारे में सोचते हुए देखा, मैंने जाना कि मैं क्या सोच रहा था... मैं सोच रहा था कि जिस लड़के को कभी अपनी पसन्द का एक परिधान तक पाने की ख्वाहिश नहीं हुई वो अचनाक इतने ख़्वाब  कैसे पाल रहा है? लेकिन अब जो मेरी चाहत है वो है...

मैं चाहता हूँ कि मैं तुमसे अपने सभी सपने बता दूँ, तुम हँस भी दोगी तो बुरा नहीं लगेगा। तुमसे बता दूँ कि मैं जिन्दगी में पैसे, नाम, पद-प्रतिष्ठा के पीछे भागते हुए मरना नहीं चाहता, मैं जिन्दगी में प्यार, व्यवहार और सद्विचार के साथ यात्रा करना चाहता हूँ, मैं ईमानदार रहना चाहता हूँ, मैं चाहता हूँ कि मैं किसी की मदद का निमित्त बन सकूँ। मैं अपना बचपना और उसकी निश्चलता अपने जीवन की आख़िरी साँस तक साथ रखना चाहता हूँ, मैं बहुत समझदार बनने से बचना चाहता हूँ। मैं अपनी इस भौतिक सुविधा विहीन परन्तु स्नेह, शान्ति, सुकून और आनंद से भरे जीवन यात्रा में तुम्हें अपना सहयात्री बनाना चाहता हूँ। इस यात्रा के दौरान हम दोनों एक-दूसरे की सफलता, असफलता, हँसी-ख़ुशी, दुःख-दर्द सब में समान रूप से सहभागी रहें। कभी मैं तुम्हें प्रेरित करूँ, कभी तुम मुझे, हम दोनों मिलकर अपने परिवार, अपने गाँव-समाज, अपने देश के लिए क्या कर सकते हैं वो सोचे, उसके लिए परिश्रम करें और ईश्वर से सफलता की प्रार्थना करें। मैं तुम्हें भगवान् की आरती उतारते हुए या पूजा की थाल से जरा-सा लाल चन्दन मेरे माथे पर लगाते हुए बड़े हर्ष और सम्मान के साथ देखना चाहता हूँ। मैं पूरी दुनियाँ को बताना चाहता हूँ कि तुमने मेरा घर, मेरा जीवन सब अपने माता-पिता के दिए उच्च संस्कारों से मंदिर की तरह पवित्र कर दिया है। तुम्हें पाकर मैं ही नहीं मेरे माता-पिता, यार-दोस्त, रिश्तेदार, कुल-खानदान के लोग भी धन्य हो रहे हैं...

मैं चाहता हूँ कि कभी-कभी हम दोनों अपने व्यवसायिक जीवन से फुर्सत के कुछ दिन चुरायें और फिर बंजारों की तरह धरती का हर कोना अपनी आँखों से देखने निकल पड़ें। कभी हम रेगिस्तान में उड़ती रेत के बीच अपनी आँखों को अपने हाथों से ढाँपे आगे बढें और फिर प्यास एवं थकान से व्याकुल एक दूसरे के सूखते होंठों को देखकर कहीं थोड़ी-सी छाया खोजे और वहीं सुस्ताते हुए दुनियाँ-जहान की बातें करें। वैसे भी हम दोनों के पास कभी न ख़त्म होने वाली बातें तो हैं ही...

कभी किसी समन्दर के किनारे जाएँ, वहाँ लगातार उठती लहरों के आरोहों-अवरोहों के बीच दिन भर अठखेलियाँ करें। समन्दर की लहरें हमें सिखायेंगी कि प्यार कैसा होना चाहिए? जैसे समन्दर में लहरों का वेग कभी धीमा नहीं पड़ता, जैसे उसकी लहरें हर बार नई-सी लगती हैं, जैसे उसकी लहरों में अनेकों बहुमूल्य खजाने होते हैं, ठीक वैसे ही हमारा प्यार भी हो। रोज़ एकदम नया, रोज़ बीते हुए कल से थोड़ा और गहरा, हम दूर रहें या पास हमारे प्यार की तरंगे उन्हीं लहरों की तरह हमेशा एक-दूसरे के दिलों को भिगोती रहें। हमारे प्यार की प्रत्येक लहर भी खजानों से भरी हुईं हों, खजाना; हीरा-मोती-माणिक्य आदि नहीं बल्कि विश्वास, सुकून, सम्मान और आत्मीयता का... इन्हीं खज़ानों के साथ हमारे प्रेम समन्दर को अनन्त काल तक के लिए एक प्यास का एहसास भी रहे। ये प्यास हो, कभी न समाप्त होने वाली हमारी बातों की, असीमित स्नेह की, अविश्वसनीय विश्वास की और जीवन भर साथ रहने के चाहत की और इसी तरह हम एक-दूसरे पर सदैव खुद को न्यौछावर करते रहें। यहाँ से प्यार करना सीखकर हम दोनों एक ऊँची जगह ढूँढे जहाँ से समन्दर की लहरें सिर्फ दिखाई दें वो हमें छू न सकें। क्योंकि यहाँ मैं किसी का स्पर्श नहीं चाहता, बस तुम्हें महसूस करना चाहता हूँ। उस ऊँचाई पर बैठे हुए दोनों सामने लहरों पर नज़र गड़ाए, समन्दर में एक-दूसरे का चेहरा बनायें, देर तक ख़ामोश बैठे रहें, फिर अचानक एक-दूसरे की तरफ देखें, मुस्कुराये और अगले पड़ाव के लिए उठकर चल दें।

हम वहाँ से उठें और कहीं दूर, बहुत दूर किसी पहाड़ की दुर्गम चोटी पर एक-दूसरे का हाथ थामे चढ़ते जाएँ। जैसे हमने अपने सपनों के आकाश की यात्रा की हो, जैसे हम जीवन के उतार-चढ़ाव में एक-दूसरे का संबल रहे हों वैसे ही इस पहाड़ी के दुर्गम रास्तों पर चलते रहें। जब तुम थक जाओ तो मैं सहारा दूँ, जब मैं थक जाऊँ तो तुम सहारा दो और जब दोनों थक जाए तो किसी पत्थर के सहारे बैठकर देर तक हाँफते-हँसते हुए एक दूसरे से बातें करें और फिर एक-दूसरे की ऊर्जा बनकर उठें और आगे बढ़ें... थकना, गिरना, उठना अपना जीवन हो, बस उसमें रुकना न हो। जब इतनी मेहनत से आगे बढ़ेंगे तो प्रकृति के कुछ मन चुराने वाले दृश्यों को भी देखेंगे, वहाँ तुम्हारी तस्वीरें उतारते हुए मेरी नज़र कैमरे पर कम और तुम्हारे चेहरे पर ज्यादा होगी। तुम्हें एक बार और मुस्कुराता हुआ देखने की लालच में ये प्यारा झूठ बार-बार बोलेंगे कि वो फोटो अच्छी नहीं है, फिर से खींचते हैं... हालाँकि मैं अपने और तुम्हारे बीच कैमरे को उतना ही आने देना चाहता हूँ जितना यादें सहेजने के लिए जरूरी हो, बाकी मैं पूरा वक़्त जीकर सब अपने दिल में सहेज लेना चाहता हूँ।

पहाड़ों पर चलकर, पसीने से नहाये हुए, हम वसुधारा या दूध-धारा जैसे दिखने वाले किसी पवित्र झरने तक पहुँचेंगे। लेकिन ये जलप्रपात ऐसी जगह होगा जहाँ भीड़ नहीं होगी, सिर्फ मैं और तुम होंगे। उसी झरने के पास कुछ तस्वीरें उतारने के बाद कैमरा ऑफ़ करके अलग रख देंगे और फिर दोनों साथ खड़े होकर झरने की रफ़्तार और अपने प्यार का स्पंदन महसूस करेंगे। वहीं झरने की कुछ फुहारों से भीग रहे तुम्हारे बालों को मैं सुलझाना चाहूँगा, तुम्हारा क्लेचर निकालकर किसी खाई में फेंक दूँगा कि तुम खुले बालों में ज्यादा सुन्दर लगती हो। तुम्हारे सौन्दर्य को प्रकृति का आशीष उन्हीं धवलधारा की कुछ बूंदों से प्राप्त होगा, तुम्हारे चेहरे पर बिखरी तुम्हारी हल्की भीग चुकी जुल्फों को हटाते हुए मैं देर तक तुम्हारी आँखों में देखूँगा। मैं उस समय प्रकृति की सारी सुन्दरता तुम्हारी आँखों से देख लेने को उतावला रहूँगा, मैं तुम्हें हर चीज बता-बताकर दिखाऊँगा। जितना ज्यादा वहाँ के बारे में जानकारी होगी सब साझा कर दूँगा। फिर अचानक मुझे लगेगा कि सब बातें तुमने भी पढ़ रखी हैं, सब दृश्य तुम खुद भी देख रही हो, इसमें बताने जैसा क्या है? लेकिन सब जानकर भी केवल मेरी ख़ुशी के लिए धैर्य से सुनती हुई तुम, अचनाक मेरे चुप होने पर मेरी तरफ देखोगी और हम दोनों मेरी इस बेवकूफी पर जब साथ में मुस्कुरायेंगे तब मेरा ध्यान तुम्हारे अधरों की लालिमा पर ठहर जाएगा। मेरी पसन्द की लिपस्टिक से लाल हुए तुम्हारे होंठ मुस्कुराते हुए वैसे ही सुन्दर लगते हैं जैसे ब्रम्हा जी की सृष्टि में पहला कमल खिला हो। इन मुस्कुराते होंठो की कोमलता पर झरने की फुहारों से बिछुड़ी श्वेतरंगी मोती समान कुछ बूँदें उसकी खूबसूरती को कई गुना बढ़ा रही हैं। अब मैं सब भूलकर बस इन्हीं मोतियों को तुम्हारे मुस्कराहट की मुद्रा में हुए अधरों पर देखते रहना चाहता हूँ। मेरी देखने की अभिलाषा इतनी है कि मैं इन अधरों और मोतियों को स्पर्श नहीं करना चाहता कि कहीं ये मोती बिखर न जाये, कहीं नीचे न गिर जाए।

रुको! बस, अब आगे न पढ़ो, आगे पढ़ोगी तो ये होंठ हिलेंगे और होंठ हिले तो ये बूँद का मोती छिटक सकता है, जो कि मैं नहीं चाहता। मैं बस इन्हें ऐसे तुम्हारे लाल अधरों पर सजा हुआ देखते रहना चाहता हूँ, तुम बस ऐसे ही मुस्कुराती रहो...

- कुमार आशीष
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Wednesday, December 28, 2022

क्रिसमिस डे या तुलसी पूजन दिवस

साभार गूगल

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हमारे सनातन हिन्दू धर्म के सभी तीज-त्यौहार किसी-न-किसी कारण से शुरू हुए होते हैं। उनके पीछे एक इतिहास होता है, मनाने के कारण एवं समय में एक वैज्ञानिकता होती है। परन्तु आज तक किसी भी त्यौहार के मूल में नफरत नहीं दिखाई पड़ती है। हमेशा सत्य, न्याय, धर्म, सद्भावना, वसुधैव कुटुम्बकं की सार्थकता को और सुदृढ़ करने के लिए ही हमारे यहाँ त्यौहार मनाये जाते रहे हैं।


25 दिसंबर को कुछ लोग “तुलसी पूजन दिवस” मना रहे हैं। मैंने कई लोगों से जानना चाहा कि आज ये दिवस क्यों मनाया जा रहा है? मुझे अभी तक सिर्फ “तुलसी विवाह” का ही पता था। मुझे आश्चर्य हुआ कि तुलसी पूजन दिवस का पोस्टर गूगल से डाउनलोड करके लगाने वाले जितने लोगों से मैंने पूछा किसी को भी इस बारे में जानकारी नहीं थी। मैंने गूगल किया तो पाया कि इसकी शुरुआत 2014 में कुछ संतों के साथ आसाराम बापू ने की थी। समय के साथ तमाम संतों एवं राजनितिक लोगों द्वारा इस दिवस का खूब प्रचार हुआ। जब-जब इस दिवस की बात आयी तो एक और बात इसके पहले लिखी मिली कि “हम ईसाई नहीं हैं हम क्रिसमस नहीं मनायेंगे इसलिए कि हम तुलसी पूजन दिवस मना रहे हैं।”


यहाँ अब मैं आसाराम बापू के बारे में ये बात याद दिला देना चाहता हूँ कि उन्हें एक नाबालिग लड़की (जिसे नवरात्रि में कन्या पूजन में देवी स्वरूपा कहा जाता है) के यौन उत्पीड़न अपराध में कोर्ट ने दोषी पाया और उन्हें पॉक्सो एक्ट के तहत 2018 में अन्तिम साँस तक कारावास की सजा सुना दी। तब से वो जेल में हैं। (यहाँ मैं ये महज जानकारी साझा कर रहा हूँ। ये आसाराम बापू या कोर्ट पर टिप्पणी नहीं है)।


अब असल मुद्दे पर आते हैं। जैसा कि मैंने पहले भी जिक्र किया हमारे यहाँ सभी त्यौहारों का एक विशेष समय निर्धारित होता है और उस काल की गणना हमारे धर्म के विशेषज्ञ पञ्चांग में देखकर करते हैं। यही कारण है कि हमारे लगभग सभी त्यौहार होली, दीपावली, रक्षाबंधन, कजरीतीज, एकदशी, शिवरात्रि, नवरात्रि, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, श्रीराम नवमी आदि अंग्रेजी कलेण्डर में देखने पर हर वर्ष अलग-अलग दिनाँक को पड़ते हैं। लेकिन ये “तुलसी पूजन दिवस” तो हर बार 25 दिसंबर को ही पड़ेगा और 25 दिसम्बर तो हर साल अलग-अलग दिन में पड़ेगा। जैसे इस वर्ष 25 दिसंबर 2022 को दिन ‘रविवार’ है। पिछले साल किसी और दिन पड़ा होगा अगले साल किसी और दिन पड़ेगा। हमारे धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, तुलसी जी अपने पति शालिग्राम जी के लिए हर रविवार एवं एकादशी को व्रत रखती हैं। इसलिए रविवार के दिन तुलसी जी को न जल चढ़ाना चाहिए न ही उनके पत्ते उतारने चाहिए। अब बिना जल चढ़ाए कौन-सी पूजा होती है जी?


“तुलसी विवाह” जो कि देवउठनी एकादशी को मनाया जाता है, जिन लोगों को ये भी नहीं खबर कि कब वो दिन आया और चला गया वो लोग भी “तुलसी पूजन दिवस”पर 10-10 पोस्ट कॉपी-पेस्ट किये जा रहे हैं। और पूछ लो कि “तुलसी पूजन दिवस” क्यों मनाया जा रहा है तो “तुलसी विवाह” की कहानी कहने लगते हैं। 


दरअसल धर्म के ठेकेदार बने कुछ आत्ममुग्ध लोग एवं छुटभैये नेता जितना सत्य सनातन धर्म को कमजोर समझ रहे हैं उतना वो है नहीं। अगर कमजोर होता तो मुग़ल, अंग्रेज, हूण, शक, यवन लोग मिलकर अब तक निपटा दिए होते। अब तक शायद इतिहास के पन्नों में भी सनातन नहीं दिखता। परन्तु बात ये है कि इतिहास भी सनातन धर्म से जन्म लेता है इसलिए सनातन की लौ कभी नहीं बुझने वाली है। 


देख रहा हूँ, किसी को केक काटने से दिक्कत है, किसी को सेंटा वाला कपड़ा पहना देने से दिक्कत है। इस पोस्ट के साथ संलग्न फोटो देखिये, बच्चे ने सेंटा वाला कपड़ा पहना हुआ है और उसके बाद भी भोलेनाथ जी को प्रणाम कर रहा है। अब आप बताइये इस बच्चे को माता-पिता को कैसे गाली दी जाये कि उन्होंने इसको ये कपड़ा क्यों पहना दिया? क्योंकि उन्होंने तो ये भी सिखाया कि भोलेनाथ का मंदिर दिखे तो प्रणाम करो।


इसका मतलब ये है कि “आत्मा को अपने सनातन संस्कार के आवरण से सजा लोगे तो शरीर पर कौन-सा आवरण है उससे फ़र्क नहीं पड़ेगा।“ सनातन का नुकसान इससे नहीं है कि कुछ हिन्दू लोग अपने बच्चों को सेंटा वाला कपड़ा पहना दिए हैं बल्कि सनातन का नुकसान आपके ये भूलने से हो रहा है कि तुलसी विवाह पर तुलसी पूजन करना चाहिए। उस दिन आप पूजा कीजिये बच्चे देखेंगे और पूछेंगे कि आप ये पूजा क्यों कर रहे हैं तो आप उन्हें बतायेंगे कि आज तुलसी जी का विवाह हुआ था। लेकिन आप 25 दिसंबर को क्या कहेंगे कि इस दिन एक धर्म के लोग अपनी आस्था के अनुसार त्यौहार मना रहे थे और कुछ हिन्दू लोग भी उसका आनन्द लेने लगे तो इसलिए हमें उनके धर्म और उनकी आस्था से नफरत हो गयी। उसी नफरत को संतुष्ट करने के लिए हम आज पूजा करने बैठ गये हैं। बच्चा भी सोचेगा कि ऐसी पूजा से क्या लाभ जो नफरत सिखाये? इस तरह आप अगली पीढ़ी को सनातन से वंचित कर देंगे। 


जब ईसाईयों के देश में कोई अंग्रेज “हरे रामा, हरे कृष्णा” करता हुआ दिख जाए तो हम लहालोट हो जाते हैं। उसका विडियो मिल जाये तो फेसबुक और व्हाट्सएप्प पर हर किसी को फॉरवर्ड करके अपने धर्म पर गर्व करते हैं। फिर उसी ईसाई के सेंटा की भेषभूषा पहने लोगों को कूट देना चाहते हैं। सोचिये इसमें किसी का क्या फायदा हुआ?


कल्पना कीजिये, आप एक नए शहर में गये हैं। एक व्यक्ति जो सनातन से बिलकुल परिचित नहीं है उससे आपकी मित्रता होती है और वो ईसाई है। उसने आपको क्रिसमस पर बुलाया। आप गये केक खाये, उसके परिधान पहनें, आनन्द लिए। (यदि आप शाकाहारी हैं और शराब नहीं पीते तो जब तक क्रिसमस की उस पार्टी में आप पीते नहीं है, अंडा नहीं खाते हैं तब तक तो आपके धर्म का कोई नुकसान नहीं हो रहा है न?) अब श्रीराम नवमी या श्रीकृष्ण जन्माष्टमी अपने घर पर अखण्ड/कीर्तन का आयोजन कर दीजिये और उसको भी बुलाइये। “हमारे साथ श्रीरघुनाथ तो किस बात की चिंता और सीताराम-सीताराम, सीताराम कहिये...” सुनकर वो पागलों की तरह न थिरकने लगे तो बताना... वो घर जाकर ऐसे भजनों को सुनना शुरू कर सकता है, सनातन को जानना चाहेगा और एक बार रूचि जग गयी तो बिना धर्म परिवर्तन किये भी वो ह्रदय से सनातनी ही हो जाएगा। सनातक बहुत शक्तिशाली है, इसका आकर्षण भी बहुत शक्तिशाली है। अतः सनातन के कृपापात्र लोगों को छोटी सोच रखना शोभा नहीं देता। जैसे एक सर्प के किसी झुण्ड को देखकर गरुड़ जी भयभीत नहीं होते वैसे ही सनातनियों को भी अपने प्रभु पर विश्वास रखना चाहिए। हमें सिर्फ अपना काम करते रहना चाहिए बाकी अभी तक सृष्टि में उस धर्म या पंथ की सृष्टि नहीं हुई जो सनातन को प्रभावहीन कर सके। बस सच्चे सनातनी लोग अपना और इसका नुकसान न करें। जितना समय वो औरों को कोसने में लगाते हैं, उतना वो अपने सनातन की सुदृढ़ता में लगाते रहें तो सब मंगल ही मंगल होता रहेगा... 

जय हिन्द-जय सनातन

- कुमार आशीष
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Saturday, April 16, 2022

करतारपुर साहिब कॉरिडोर, पाकिस्तान

पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश करने के बाद

बेबसी, उदासी, निराशा को छोड़कर,
अपने सफर पर निकले तो ज़िंदगी पाई...
- कुमार आशीष

करतारपुर साहिब, पाकिस्तान (विश्व का सबसे पहला गुरुद्वारा):
मैं 09 अप्रैल 2022 को करतारपुर साहिब दर्शन करने पाकिस्तान गया था। यात्रा के विषय में लिखने से पहले उस स्थान का संक्षिप्त परिचय देना चाहूँगा।

संक्षिप्त परिचय:
करतारपुर साहिब पाकिस्तान के नारोवाल जिले में रावी नदी के पास स्थित है। इसकी स्थापना सिख धर्म के संस्थापक श्री गुरु नानक देव जी ने की थी। इसका इतिहास 500 वर्ष से भी पुराना है। इसी स्थान पर गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के आखिरी 18 वर्ष व्यतीत किये और यहीं से अपना भौतिक शरीर त्यागकर परमात्मा में लीन हो गये थे। इसी महत्वपूर्ण स्थान पर अब एक बहुत बड़ा गुरुद्वारा है, जिनकी स्थापना गुरुनानक जी ने स्वयं की थी। इसी कारण इसे विश्व का पहला गुरुद्वारा कहा जाता है। इस स्थान के प्रति सिखों के अलावा हिन्दुओं और मुस्लिमों की भी खूब श्रद्धा है।

नवम्बर, 2019 में दोनों देशों (भारत-पाकिस्तान) की सहमति से एक भव्य कॉरिडोर का उद्घाटन किया गया और फिर उसे आम जनता के लिए खोल दिया गया है। यदि आप जाना चाहते हैं तो आपके पास भारतीय पासपोर्ट होना अति आवश्यक है। यहाँ एक बात जो सबसे महत्वपूर्ण है कि कभी भी कहीं भी करतारपुर जाने पर आपके पासपोर्ट पर किसी तरह का भारतीय या पाकिस्तानी स्टाम्प नहीं लगता है। यात्रा पर जाने के लिए आपको सबसे पहले अपनी यात्रा तिथि से लगभग 15-20 दिन पहले एक ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करना होगा।

रजिस्ट्रेशन वेबसाइट: https://prakashpurb550.mha.gov.in/kpr/

इस रजिस्ट्रेशन में आपसे कुछ व्यक्तिगत जानकारियों के अलावा आधार कार्ड, पैन कार्ड, पासपोर्ट नम्बर, ब्लड ग्रुप, आदि की जानकारी देनी होती है। साथ ही आपका हस्ताक्षर, आईडी प्रूफ, पता का प्रूफ आदि अपलोड करना होता है। इसके लिए फॉर्म भरने हेतु एक निर्देश पुस्तिका की पीडीऍफ़ वहीँ डाउनलोड करके देख सकते हैं। जिसमें अपलोड होने वाले कागजात की साइज़ आदि की जानकारी आपको पहले से हो जायेगी। इस रजिस्ट्रेशन के कुछ दिनों बाद आपका पुलिस वेरिफिकेशन होगा। (ठीक वैसे जैसे पासपोर्ट बनवाते समय होता है)। इस प्रोसेस के बाद आपके पास गृहमंत्रालय से कॉल आएगी और फ़ोन पर सब जानकारी पुनः जाँच की जायेगी। फिर आपकी यात्रा तिथि के लगभग 4-5 दिन पहले उसी वेबसाइट से आपका ETA (Electronic Travel Authorization) डाउनलोड होगा। इस विषय में आपको आपके रजिस्टर्ड नम्बर और ईमेल आईडी पर मैसेज और इमेल करके सूचना दी जायेगी। (यहाँ मेरा निजी अनुभव ये रहा है कि मेरा ETA एक दिन पहले डाउनलोड हो गया था और मैसेज बाद में आया। इसलिए आप भी स्वयं 4 दिन पहले स्टेट्स चेक कर लें तो ज्यादा ठीक रहेगा।)

ETA ही आपका पाकिस्तान की सीमा प्रवेश करने हेतु सरकार की तरफ से अनुमति पत्र है। ये वीजा नहीं है इसलिए आप इसके प्रयोग से केवल उस कॉरिडोर के अन्दर ही रहने के लिए योग्य है उसके अलावा पाकिस्तान में कहीं भी जाना गैर-कानूनी है। वहाँ की सुरक्षा व्यवस्था भी ऐसी है कि कोई जा भी नहीं सकता है।

आवश्यक दस्तावेज:
जब से कोरोना के बाद कॉरिडोर खुला है तब से आपको निम्नलिखित डॉक्यूमेंट अपने साथ रखने होते हैं:

  • Indian Passport
  • ETA (Electronic Travel Authorization)
  • Covid19 Vaccination Certificate (Fully Vaccination Mandatory)
  • Covid19 RT-PCR Negative Report (Within 72 Hrs.)
  • $20 (20 US Dolor Cash)

ETA (Electronic Travel Authorization)

कैसे पहुँचे?
करतारपुर जाने के लिए सबसे पहले आपको अमृतसर, पंजाब पहुँचना होगा। इसके लिए देश के विभिन्न कोने से ट्रेन, बस और हवाई-जहाज की व्यवस्था है। (इसके विषय ज्यादा जानकारी आपको गूगल से आराम से मिल जायेगी)।

अमृतसर से आपको “डेरा बाबा नानक” तक पहुँचना होगा। ये भारत का इस दिशा में आखिरी छोटा-सा कस्बा है और इसी नाम से यहाँ एक रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड भी है। अमृतसर बस स्टैंड से आपको पंजाब रोडवेज की कई बसें मिल जायेंगी या फिर आप सुबह 04:20AM बजे अमृतसर से एक डेमू ट्रेन भी पकड़ सकते हैं। यदि आप बस से नहीं जाना चाहते हैं और सुबह 04 बजे की डेमू भी नहीं पकड़ पा रहे हैं तो आप अमृतसर बस स्टैंड के बाहर से ऑटो करके 8 किमी. दूर ‘वेरका जंक्शन’ पहुँच जाइए। वेरका जंक्शन से कई ट्रेन अलग-अलग समय पर मिलती हैं, उससे भी आप डेरा बाबा नानक तक पहुँच सकते हैं। (ट्रेन की समय सारणी की एक तस्वीर मैं जोड़ दे रहा हूँ, जो मैंने खुद खींची थी। इसके अलावा आप ऑनलाइन देखकर समय पुनः जाँच लेंगे तो अच्छा रहेगा।) रेलवे स्टेशन के पास ही डेरा बाबा नानक गुरुद्वारा भी है, जिसकी दूसरी रेलवे स्टेशन से लगभग 2.5 किमी. और बस अड्डे से महज 500 मी. है।

यदि आप चाहें तो रात में डेरा बाबा नानक पहुँचकर वहीँ के गुरूद्वारे में रुक भी सकते हैं। इसके लिए गुरूद्वारे में ही आपको निःशुल्क और पैसे वाले कमरे उपलब्ध करवाये जाते हैं। क्योंकि ये बहुत छोटा-सा कस्बा जैसा है इसलिए यहाँ कोई बहुत लग्जरी होटल नहीं मिलेगा मेरे हिसाब से गुरुद्वारा ही सबसे उत्तम विकल्प रहेगा। रात में रुकने वाले यात्री भी सूर्यास्त तक गुरुद्वारे पहुँच जाएँ तो बेहतर रहेगा। (ये बात किसी असुरक्षा के कारण नहीं बल्कि सामान्य सुरक्षा और सतर्कता के लिहाज से कह रहा हूँ।) भोजन की व्यवस्था गुरूद्वारे में चल रहे लंगर से आराम से हो जायेगी।
भारत का आखिरी क़स्बा
यहाँ से बमुश्किल 01 किलोमीटर पर करतारपुर कॉरिडोर शुरू हो जाता है। इसलिए आप गुरूद्वारे से पैदल भी निकल सकते हैं या फिर अपनी गाड़ी से भी जा सकते हैं। इमिग्रेशन बिल्डिंग के बाद बहुत बड़ी पार्किंग सुविधा उपलब्ध है। सुबह 8 बजे से पहले-पहले इमिग्रेशन बिल्डिंग तक पहुँचना सही रहेगा क्योंकि इससे आप अनावश्यक लाइन लगाने से भी बचेंगे और आपके पास गुरुद्वारे में बिताने के लिए दिन भर का समय भी होगा। (आप इस ETA से केवल एक बार और सिर्फ सुबह से शाम 04 तक ही गुरूद्वारे में रहने के लिए अधिकृत हैं। अर्थात् शाम 04 बजे तक आपको बॉर्डर पारकर भारत आ जाना रहेगा।)
मुख्य गुरुद्वारा (दर्शन ड्योढ़ी)
भारत-पाकिस्तान बॉर्डर गेट
कॉरिडोर पहुँचने पर सबसे पहले आपका दस्तावेज जाँच किया जायेगा। फिर आपको पोलियो की ख़ुराक पिलाई जायेगी। (पाकिस्तान में अभी भी पोलियो वायरस है और आप वहाँ पाकिस्तानियों से भी मिलते-जुलते हैं इसलिए आपकी सुरक्षा के मद्देनज़र आपको पोलियो वाली “2 बूँद ज़िन्दगी की” पिलाकर भेजा जाता है।) यहाँ आपके ETA पर पोलियो वैक्सीनेशन की मुहर लगेगी और फिर आगे आपका सब सामान जाँच किया जायेगा और आपकी भी जाँच होगी। (नकारात्मक सामानों की एक लिस्ट आपको वेबसाइट पर मिलेगी वो देख लीजिये कि वो सब आप नहीं ले जा सकते हैं। इसके आलावा आप वहाँ सिर्फ 11 किलो सामान और 11000 नकद भारतीय मुद्रा ले जा सकते हैं।) इसके आगे बढ़ने पर एक पीले कलर का फॉर्म भरना रहेगा जिसमें नाम, नम्बर, पासपोर्ट नम्बर और क्या-क्या सामान ले जा रहे हैं ये सब सामान्य जानकारी देना रहता है। आगे ये फॉर्म जमा होगा और फिर उसके बाद आप पहुँच जाते हैं इमिग्रेशन काउंटर। वहाँ आपके आँखों की और दोनों हाथों की सब उँगलियों की प्रिंट लेते हैं और फिर यहाँ से आप इस बिल्डिंग से बाहर निकल जाते हैं। बाहर निकलते ही एक ई-रिक्शा आपको लेकर ‘जीरो लाइन’ की तरफ बढ़ जाता है। जीरो लाइन से तुरंत पहले एक आखिरी बार भारतीय सीमा सुरक्षा के सजग प्रहरी आपका पासपोर्ट और ETA देखते हैं फिर रिक्शा आपको गेट पर उतार देता है। यहाँ से आपको पाकिस्तानी झन्डा नजर आने लगता है। यहाँ 2 गेट हैं एक भारत में लगा है और 1 पाकिस्तान में इसी के बीच में एक सफ़ेद पट्टी खींची हुई है। यही जीरो लाइन है। यहाँ आप दोनों तरफ पैर रखकर फोटो लीजिये और सबसे कहिए आप एक साथ 2 देशों में खड़े हैं। इसे आपको पैदल ही पार करना होता है। जैसे ही आप पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश करते हैं वहाँ की आर्मी आपका स्वागत करती है और आपसे कुछ हाल-चाल लेती है। फिर उनके ई-रिक्शे में बैठकर आपको पाकिस्तान की इमिग्रेशन बिल्डिंग तक जाना होता है। इसी रास्ते पर ‘Welcome To Pakistan’ वाला बोर्ड मिलता है। यहाँ रिक्शा वाला स्वयं भी रोक देता है नहीं तो आप रुकवा भी सकते हैं और फोटो-शोटो खिंचवाकर फिर से रिक्शे में बैठकर पाकिस्तानी इमिग्रेशन बिल्डिंग तक पहुँच जाइये।
भारतीय इमिग्रेशन बिल्डिंग
इस समय मैं दो देशों में एक साथ खड़ा हूँ
पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश करने के बाद
रिक्शे से उतरकर सबसे पहले आपको एक करेंसी एक्स्जेंस काउंटर मिलेगा। यहाँ लिखा है कि आप अन्दर बाजारों में केवल पाकिस्तानी रूपये में खरीदारी करें लेकिन ऐसा कुछ अन्दर होता नहीं है। वहाँ भारतीय मुद्रा और यूएस डॉलर सब ले लेते हैं। यहाँ से आप अपनी करेंसी बदलवाकर $20 कैश ले लें। (अच्छा रहेगा आप भारत से ही ये कैश लेकर आये क्योंकि यहाँ आपको थोड़ा मँहगा पड़ेगा।) अगले काउंटर पर आपको $20 कैश देना है और साथ अपना पासपोर्ट देना होगा। उधर से आपको $20 डॉलर की कैश रिसीव वाली पर्ची मिल जाएगी। इसी पर आपका वीजा स्टाम्प लग जाता है और इस तरह आपका पासपोर्ट सुरक्षित रहता है।

यहाँ से आप जब इमिग्रेशन बिल्डिंग में प्रवेश करते हैं तो यहाँ पाकिस्तानी इमिग्रेशन ऑफिसर आपका दस्तावेज देखते हैं, ऊँगली और आँखों की प्रिंट के बाद उसी $20 यूएस डॉलर वाली पर्ची पर प्रवेश की स्टाम्प लगा देते हैं। आगे चलकर आपको गले में लटकाने के लिए करतारपुर का एक आई कार्ड मिलेगा फिर आगे अब कहीं कोई कागज़ नहीं जाँच किया जायेगा। इस बिल्डिंग से बाहर निकलते ही आपको करतारपुर की बस मिल जायेगी और उसमें बैठकर आपको गुरूद्वारे के गेट तक जाना है। (ये दूरी लगभग 4.5 किमी के आसपास है।)
मुख्य गुरुद्वारा (दर्शन ड्योढ़ी)

मुख्य गुरुद्वारा (दर्शन ड्योढ़ी)
गेट से अन्दर जाने पर वहाँ के सुरक्षा कर्मी आपका स्वागत करते हैं और गुरूद्वारे से परिचित करवाते हैं। आप पूरा दिन यहाँ बिता सकते हैं या पहले भी वापस आ सकते हैं। अन्दर मुख्य गुरूद्वारे के साथ-साथ निशान साहिब, सरोवर साहिब, नानक जी के बाग़ आदि अवश्य देखें। गुरुद्वार में लंगर न छके ये कैसे हो सकता है... फिर आप वहाँ के बाज़ारों से कुछ ख़रीदारी भी कर सकते हैं। फिर शाम को उधर से वापसी में भी लगभग यही सब प्रोसेस होता है।

खर्च विवरण:
लखनऊ से अमृतसर ट्रेन स्प्लीपर        :    500
अमृतसर से वेरका जंक्शन ऑटो         :    20
वेरका जं. से डेरा बाबा नानक ट्रेन        :    30
अमृतसर से डेरा बाबा नानाक बस       :    60
डेरा बाबा नानक गुरूद्वारे में कमरे       :    200, 300 और 500/रात्रि
$20 भारतीय मुद्रा से                        :    1950 (09 अप्रैल 2022)
अमृतसर से लखनऊ ट्रेन स्लीपर         :    500
*भारत के इमिग्रेशन पॉइंट से पाकिस्तान गुरूद्वारे तक जाने और आने के लिए जो भी ई-रिक्शा और बस मिलती है वो सब निःशुल्क होती है।

(इस पूरी यात्रा में मैं अमृतसर भी रुका था पर उसका खर्च इसमें नहीं जोड़ रहा हूँ। खाने का खर्च सामान्य रहेगा क्योंकि अधिकाँश आपको लंगर प्रसाद ही मिलता रहेगा। मैंने ये पूरी यात्रा 07-11 अप्रैल के बीच की थी और उस समय मेरा नवरात्र व्रत चल रहा था इसलिए मैं पंजाब के लजीज व्यंजनों के स्वाद से वंचित रह गया। इसकी भरपाई फिर कभी करेंगे।)

पूरी यात्रा में आपको हर पाकिस्तानी बहुत ही प्रेमभाव से मिलेगा। जब मुझे जाना हुआ तो सबको लग रहा था कि पाकिस्तना जाना है, अकेले जा रहे हैं, कभी गये भी नहीं और जाने क्या-क्या? मुझे ये विश्वास था कि भारतीय सेना मेरी पहुँच से सिर्फ 5 किलोमीटर दूरी पर रहेगी और मेरे आने-जाने का ट्रेकिंग भी उनके पास है तो मुझे कोई दिक्कत नहीं होगी। सच कहूँ तो एक मिनट के लिए भी किसी प्रकार की असुरक्षा महसूस नहीं हुई। सब बहुत आराम से हो जाता है और सबसे मिलकर आपको भी अच्छा लगेगा। मैं ये बात पाकिस्तान की प्रशंसा में नहीं कह रहा हूँ लेकिन इमरान सरकार ने जो कॉरिडोर एरिया की व्यवस्था और सुरक्षा सुनिश्चित की है वो निश्चित ही काबिल-ए-तारीफ है। बॉर्डर पार करने से लेकर और गुरूद्वारे पहुँचने तक के लगभग 5 किमी रास्ते पर दोनों तरफ मजबूत लोहे वाले कटीले तार की दीवार बनाई गयी है, कुछ-कुछ दूरी पर आपको पाकिस्तानी आर्मी के जवान खड़े दिखेंगे। इस पूरी सड़क केवल आप जैसे यात्रियों की बस या आर्मी की गाड़ियाँ दिखेंगी और किसी सामान्य व्यक्ति को इधर आने की अनुमति नहीं है। गुरूद्वारे के भी हर तरफ उसी तरह के कटीले तार की दीवार और हर तरफ पाकिस्तानी सुरक्षा के प्रहरी मुस्तैद रहते हैं। जो पाकिस्तानी लोग गुरुद्वारे में आना चाहते हैं वो शिनाख्ती कार्ड (जैसे अपने यहाँ आधार कार्ड होता है वैसे ही उनका आईडी कार्ड) जाँच करवाकर ही आ सकते हैं। उनके गले में भी एक हरे कलर का करतारपुर वाला आईडी कार्ड आपको दिख जायेगा। यही हमारे और उनके बीच की प्रमुख पहचान भी है। वहाँ और प्रवेश और वापस आने के लिए जो प्रोसेस है उसे बहुत ठीक से अनुसरण भी किया जाता है, कहीं कोई जल्दबाजी या गलती की गुंजाइश जैसा मुझे नहीं लगा। मैं कह सकता हूँ कि उधर जाना एकदम सुरक्षित और मजेदार अनुभवों वाला निर्णय रहा।

मैं राय देने की काबिलियत तो नहीं रखता हूँ लेकिन ये आग्रह अवश्य करना चाहूँगा कि जब आप ऐसी जगहों पर जाएँ तो वो हमारा दुश्मन देश है जैसा पूर्वाग्रह न पालकर केवल गुरुनानक देव जी महाराज को याद रखें। अपना व्यवहार हर आम पाकिस्तानी और वहाँ की आर्मी के प्रति बहुत विनम्र और खुशमिज़ाजी वाला रखें। क्योंकि आपकी कोई बात यदि उन्हें न अच्छी लगी तो यही होगा कि एक भारत वाला आया था ऐसा बोल रहा था, वैसा कर रहा था। इसलिए आप ये मानकर चलें कि आप अपने देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और आपका व्यवहार ही आपके देश की छवि उनके मन में अंकित करेगा। उसी से पता चलेगा कि भारत वाले अच्छे हैं या नहीं...

मिलते हैं फिर किसी और यात्रा के साथ तब तक आप इन स्थिरचित्रों का आनन्द लीजिये-
20 डॉलर जमा करने की रसीद, इसी पर वीजा स्टाम्प लग जाती है

पाकिस्तान की वीजा स्टाम्प

हमारे करतारपुर बस के पाकिस्तानी चालक महोदय

रावी नदी, पाकिस्तान

दो लोग भारत में मिले थे, पाकिस्तान में साथ घूमे और अब अच्छे दोस्त हैं

श्री गुरु नानक जी के चमत्कार का दर्शन कीजिए

भारत के इमिग्रेशन बिल्डिंग के पार्किंग में लगा अपना प्यारा तिरंगा

यही बम 1971 में भारतीय सेना ने गिराया था

पाकिस्तानी सेवादार दोस्त

कटार साहिब, करतारपुर पाकिस्तान

पाकिस्तानी सेवादार हैं, इन्होंने हमें 5 पाकिस्तनी रूपये का सिक्का दिया 

गुरुद्वारा से लौटते हुए

ये बस पाकिस्तानी इमिग्रेशन से गुरुद्वारा तक ले जाती है

डेरा बाबा नानक से कॉरिडोर की तरफ जाने का रास्ता

कॉरिडोर के अन्दर ये एक छोटी-सी बाजार

कॉरिडोर के अन्दर ये एक छोटी-सी बाजार

पाकिस्तान में यही आपका आईडी कार्ड है

पवित्र निशान साहिब

गुरु नानक जी के खेत, बाग़

वो स्थान जहाँ नानक जी की चद्दर और फूल रखे गये

- कुमार आशीष
सोशल मीडिया पर मिलते हैं : Instagram, Facebook

Wednesday, March 11, 2020

होली वाला दिन (अनकहा-अनसुना प्यार)

चित्र : गूगल से साभार
होली वाला दिन
अनिरुद्ध ने डिनर ख़त्म किया फिर आराधना को उसके फ्लैट के पास छोड़ने के बाद बिना कार से उतरे ही ‘बाय’ बोलकर कार को गतिमान कर दिया। आमतौर पर ऐसा होता नहीं था इसलिए आराधना को ये बात थोड़ी अखरी जरूर पर उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। कल होली है इसलिए आराधना सोच रही थी कि अनिरुद्ध उससे कोई प्लान डिस्कस करेगा परन्तु उसे तो जैसे याद ही नहीं कि कल उन दोनों की पहली होली है। अनिरुद्ध वहाँ से दुबारा मार्केट की तरफ गया और कुछ सामान खरीदकर अपने अपने फ्लैट पर पहुँचा। सुबह उठने के बाद अनिरुद्ध ने चाय बनाई और बालकनी में खड़े होकर चुस्कियों के साथ मोबाइल पर आये मैसेज रिप्लाई करने में व्यस्त हो गया, उसी में एक मैसेज आराधना का भी था। रिप्लाई करते ही उधर से एक और मैसेज आया, आराधना ने उसे अपने घर बुलाया था क्योंकि वो चाहती थी कि अनिरुद्ध भी कुछ खा-पी ले अकेला रहता है तो क्या बनायेगा। चाय ख़त्म करके तैयार होकर अनिरुद्ध आराधना के फ्लैट पर पहुँचा, उसकी वेशभूषा से बिलकुल नहीं लग रहा था कि होली खेलने आया है। किचन में आराधना गुझिया तलने में व्यस्त थी, वहीं खड़े होकर अनिरुद्ध भी बात करने लगा। आराधना ने काम ख़त्म करके अपने मन की बात कह दी, “मैंने सोचा था कि हम ये होली बहुत अच्छे से सेलिब्रेट करेंगे पर आपने तो कोई प्लान ही नहीं बनाया और रोज से भी ज्यादा जल्दी में कल चले गये।“ अनिरुद्ध ने कोई जवाब नहीं दिया बस खड़ा होकर मुस्कुराता रहा। अब आराधना को गुस्सा लगने लगी थी पर वो जताना नहीं चाहती थी वरना होली खराब हो जाती। आराधना किचन में गयी और कुछ खाने का सामान ले आई। अनिरुद्ध ने कहा उसे अभी भूख नहीं है थोड़ी देर बाद खाते हैं। आराधना ने इशारे से ठीक है कहा और वापस में किचन में चली गयी। लौटकर उसने टीवी ऑन करना चाहा तो अनिरुद्ध ने रिमोट छीन लिया और बोला “होली नहीं खेलोगी?” आराधना अब अपना गुस्सा रोक नहीं पा रही थी उसने तुनककर कहा, “होली खेलने की बात आप न ही करो तो अच्छा रहेगा, मैं होली पर झगड़ा नहीं करना चाहती।” अनिरुद्ध ने उसके गालों को अपने हाथों से पकड़ा और कहा, 
“आपने क्या प्लान बनाया था, रंग लायी हो?” 
“आपको क्या फर्क पड़ता है मैं रंग लायी हूँ या नहीं?”
“खुद की गलती तो दिखती नहीं है, कल इतनी देर खरीददारी की तो रंग भी ले लेती”
जब आप कुछ प्लान करते तब तो ले लेती, लेकिन आपके लिए तो जैसे कल तक होली जैसा कुछ था ही नहीं, मैंने याद दिला दिया मैसेज करके वरना शायद पता भी नहीं चलता कि होली क्या होती है...”
“अब झगड़ा ही करोगी या रंग भी लगाओगी?” इस बार अनिरुद्ध की मुस्कुराहट की जगह उसकी गंभीरता ने ले लिए थे। आराधना को लगा कि उसकी भी गलती है, वो भी तो प्लान कर सकती थी। उसने बेड के नीचे से एक कटोरी निकाली और थोड़ा-सा रंग अनिरुद्ध के गालों पर लगा दिया, इसके साथ ही कटोरी आगे बढ़ा दी कि वो भी रंग लगा सके। परन्तु अनिरुद्ध ने रंग लगाने के बजाय आराधना के बाल खोल दिए और उन्हें अपनी उगालियों से सहलाने लगा तभी आराधना के ऊपर रंग गिरने लगा। वो आश्चर्य से थोड़ा पीछे हटी और मुस्कुराते हुए पूछा, “ये रंग कहाँ से आया और आपने मेरे बालों में कब डाल दिया?’ अनिरुद्ध ने विजेता ही तरह मुस्कुराते हुए कहा, “जब आप खाना बना रही थीं तभी रंग आपके बालों में डाल दिया था, लेकिन बताया नहीं था। बस थोड़े से गुस्से का रंग भी देखना चाहता था, क्योंकि लाल रंग के बिना सब बेकार ही लगता।” आराधना बहुत खुश हुई उसने प्यार से अनिरुद्ध की तरफ देखा और एक मुट्ठी रंग लेकर उसके ऊपर फेंक दिया। जब रंग गाल में लगाया तो मनमुताबिक प्लान न कर पाने का मलाल भी था पर इस बार जो रंग फेंका उसमें कोई ‘मलाल’ नहीं सिर्फ उसके प्यार का रंग ‘लाल’ था। इसके बाद दोनों ने एक दूसरे को खूब रंगों से सराबोर कर दिया। इसके बाद अनिरुद्ध फ्लैट से नीचे जाकर अपनी कार से एक वलून निकाला और लाकर आराधना को दिया। आराधना ने थैंक यू बोलकर पूछा, “मैं कोई बच्ची हूँ जो इस वलून से खेलूँगी?” अनिरुद्ध ने जवाब दिया “ये आपके खेलने के लिए नहीं फोड़ने के लिए है।” जैसे ही आराधाना ने वलून फोड़ा गुलाब की पंखुड़ियाँ अपने रंग और सुगंध के साथ पूरे कमरे में फ़ैल गयीं। दोनों ने साथ में बहुत सारी फोटो खींची और खूब मन से होली सेलिब्रेट किया, आख़िर उनकी ये पहली होली थी। अभी वो दोनों होली खेल ही रहे थे तब तक कुछ कॉमन फ्रेंड भी आ गये। फिर तो डबल धमाल शुरू हो गया। सबने एक-दूसरे को खूब रंग लगाये, गले मिले, साथ में कुछ खाये-पिये और लगभग 2 घंटे तक उधम मचाने के बाद सब दोस्त वापस चले गये। दोस्तों को फ़ोन करके अनिरुद्ध ने बुलाया था ये सब उसने आराधना से इसलिए नहीं डिस्कस किया ताकि वो सरप्राइज दे सके। सबको फ्लैट की लिफ्ट तक छोड़ने के बाद अनिरुद्ध वापस कमरे में आया तो आराधना बोली “अब मैं नहाने जा रही हूँ, तुम भी नहा लो फिर कुछ खाते-पीते हैं।” अनिरुद्ध ने पीछे से आराधना का हाथ पकड़ा तो वो एक कदम आगे बढ़ने के बाद रुक गयी। अनिरुद्ध ने आराधना को ऐसे देखा जैसे आज पहली बार देख रहा हो। आराधना ने पूछा क्या हुआ तो बोला कुछ नहीं बस ऐसे ही। उसने हाथ छोड़ दिया और वो नहाने चली गयी। उसके बाद अनिरुद्ध एक कागज़ पर कुछ लिखने में व्यस्त हो गया। जब आराधना नहाकर आयी तो अनिरुद्ध ने पूछा कि “इतना गुस्सा कर रही थी आप, जबकि मैंने इतना कुछ प्लान भी किया था। अब आप बताओ आपने क्या प्लान किया था।” आराधना अन्दर गयी और एक गिफ्ट पैक बॉक्स लाकर अनिरुद्ध को दे दिया। अनिरुद्ध ने पूछा ये क्या है तो बोली ये होली का गिफ्ट है। अनिरुद्ध ने तुरंत खोलकर देखा उसमें वही मैकबुक था जो अनिरुद्ध काफी दिनों से खरीदना चाहता था। वो बहुत खुश हुआ। उसने भी आराधना के लिए एक नेकलेस लिया था जिसने अपने हाथों से पहना दिया। आराधना पूजा करने लगी और अनिरुद्ध नहाने चला गया। थोड़ी देर तक दोनों साथ रहे, खाना खाया बातें की और फिर लगभग 5 बजे अनिरुद्ध अपने फ्लैट के लिए चल पड़ा। जैसे ही आराधना ने अपना दरवाजा बंद किया उसकी नज़र बेड पर पड़े एक कागज़ पर गयी। ये वही कागज़ था जिस पर अनिरुद्ध कुछ लिख रहा था। उसने लिखा था, “आराधना! तुम्हारे गोरे गालों पर लगे लाल, पीले, नीले, हरे रंग मानों बरसात के बाद आकाश पर बने हुए इंद्रधनुष जैसे लग रहे हैं। तुम्हारी आँखें आज रोज से अधिक नशीली लग रहीं हैं। तुम्हारे गुलाबी होंठों पर पड़े रंग के छीटें उसकी शोभा में चार चाँद लगा रहे हैं। तुम्हारे गालों पर रंग से बने मेरी उँगलियों के निशान हमारे प्यार के गवाह हैं। हमारी मोहब्बत के बवंडरों में उड़े सब रंग तुम्हारे बालों में भर गये हैं। और जब तुम नहाकर बाहर आयी तो ऐसा लगा मानो वर्षा के बाद बादल और स्वच्छ, सुन्दर और उज्ज्वल लगने लगे हैं। हैप्पी होली माय लव!”
पढ़ने के बाद आराधना ने तुरंत बाहर जाकर देखा तो गेट पर अभी भी अनिरुद्ध सेक्यूरिटी वाले अंकल जी को होली विश कर रहा था। आराधना ने तुरंत कॉल करके अनिरुद्ध को वापस बुलाया और वो चिट छुपा दिया। अनिरुद्ध ने वापस बुलाने का कारण पूछा क्योंकि उसे तो याद भी नहीं कि उसने जो लिखा था वो कहाँ है, किसके पास है? आराधना ने कहा कि “बैठो एक काम है।” अनिरुद्ध बैठते ही आराधना भी उसके बगल बैठ गयी। आराधना ने कहा “क्या तुम मेरे लिए शायरी कर सकते हो?” अनिरुद्ध ने जवाब दिया, “मैं सॉफ्टवेर इंजीनियर हूँ, शायर नहीं।” “फिर भी इतना अच्छा लिख लेते हो...?” आराधना ने बिना देरी के प्रतिउत्तर में प्रश्न कर दिया। अनिरुद्ध ने कुछ न समझ पाने जैस मुँह बनाया। तभी आराधना ने उसे चिट दिखाई और थोड़ी शरारती अंदाज़ में कहा, “मेरे पीठ पीछे ही तारीफ करोगे कि कभी मुँह पर भी कुछ बोलोगे...” जब तक अनिरुद्ध को कुछ ज्यादा समझ आता आराधना ने उसके बालों को पीछे पकड़ा और उसका चेहरा अपने सामने लाकर अपने होठ अनिरुद्ध के होठो पर ऐसे रख दिया जैसे भगवान् कृष्ण ने अपने होठों पर वंशी रख दी हो। अनिरुद्ध अब कुछ सोचना-समझना चाहता भी नहीं था, वो संसार भुलाकर अपनी दुनियाँ में खो जाना चाहता था। प्रेम का सूर्य कमरे में चमक उठा था, मोहब्बत की सुगन्धित वायु का वेग तीव्र हो गया, दुनियाँ भर की ख़ुशी उन दोनों के लिए उस एक कमरे में ठहर गयी थी। कमरे के बाहर बहुत दूर कहीं सूर्यदेव के अश्व सरगम के ताल पर चलते अस्तांचल की तरफ बढ़ रहे थे, पक्षी अपने घोसलों की तरफ हर्षोल्लास के साथ लौट रहे थे, गायें गौशालों की तरफ दौड़ रही थीं और बछड़ों को स्नेह कर रही थीं। बच्चे होली के रंग में रंगे नदी की तरफ स्नान के लिए जा रहे थे। दूर कहीं किसी टीले पर खड़े भगवान् कृष्ण मुस्कुराते हुए वंशी बजा रहे थे। प्यार, सौहार्द और मिलन के त्यौहार होली पर मोहब्बत के रंग में रँगी अपनी सृष्टि को देखकर आत्मुग्ध हो रहे थे... होलिकोत्सव की अनन्त शुभकामनाएँ... 
मेरी आने वाली पुस्तक “अनकहा अनसुना प्यार” से...

- कुमार आशीष
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