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आज का विषय है - “भारत की अखण्डता और सरदार पटेल” इससे पहले कि मैं भारत की अखण्डता या उसमें सरदार पटेल जी के योगदानों की चर्चा शुरू करूँ, एक संक्षिप्त परिचय सरदार पटेल जी का प्राप्त कर लेते हैं।
‘सरदार पटेल’ के नाम से प्रसिद्ध भारतीय राजनीति के अति-महत्वपूर्ण व्यक्तित्व का पूरा नाम वल्लभ भाई झावेर भाई पटेल था। पटेल जी का जन्म गुजरात राज्य के नडियाद नामक स्थान पर 31 अक्टूबर 1875 को हुआ था। वे झवेरभाई पटेल एवं लाडबा देवी की चौथी संतान थे। मुख्यतः स्वाध्याय से अपनी शिक्षा की शुरुआत करने वाले सरदार पटेल जी ने लन्दन जाकर बैरिस्टर की पढ़ाई की। पढ़ाई ख़त्म होने के अगले दिन वो स्वदेश लौटे और अहमदाबाद में वक़ालत करने लगे। लन्दन में अध्ययन और निवास के दौरान सुबह से लेकर रात लाइब्रेरी बन्द होने तक वो पढ़ते रहते थे। एक दिन में सत्रह-सत्रह घंटे पढ़ाई करने का ही चमत्कार था कि छात्रवृत्ति के साथ फीस माफ़ी का भी फायदा पाते थे। उसके बाद जब वक़ालत शुरू की तो विपक्षी अधिवक्ता क्या कई बार तो जज तक को अपने ज्ञान और वाक्पटुता से आश्चर्यचकित कर देते थे। हर मुकदमें में पूरा समय और जी-जान लगाने का फायदा ये होता था कि वो लगभग हर मुकदमा जीत जाते थे, जिससे उन्हें खूब काम, धन और यश प्राप्त हुआ। कहते हैं एक बार जब वो किसी मुकदमें को लेकर अदालत में बहस कर रहे थे तभी उन्हें एक तार प्राप्त हुआ, उन्होंने उसे पढ़कर टेबल पर रख दिया और केस जारी रखा। जब बहस समाप्त हुई और वो केस जीत गये तो उन्होंने अपने सहयोगियों को बताया कि तार में लिखा है कि उनकी पत्नी का देहान्त हो गया है। केस के बीच में ही ये जानकार भी जिस धैर्य के साथ वो अपने काम में लगे रहे वो सचमुच अद्भुत था और वहाँ उपस्थित सभी लोगों को आश्चर्यचकित करने वाला था।
सरदार पटेल जी ने जब अपना व्यवसायिक जीवन शुरू किया तो वो बहुत शान-ओ-शौकत से रहते थे। परन्तु धीरे-धीरे गाँधी जी के विचारों और व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उनका भी झुकाव भारतीय स्वतन्त्रता के आन्दोलनों में होने लगा। स्वतन्त्रता आन्दोलन में सरदार पटेल जी ने सबसे पहला और बड़ा योगदान खेडा संघर्ष में दिया। गुजरात का खेडा खण्ड उन दिनो भयंकर सूखे की चपेट में था। किसानों ने अंग्रेज सरकार से भारी कर में छूट की माँग की, जो कि जाहिर है अंग्रेज कभी पूरी नहीं करते। परन्तु तब सरदार पटेल जी ने उन किसानों का नेतृत्व किया तथा लोगों को कर न देने के लिए प्रेरित किया, परिणामस्वरुप सरकार झुकी और उस वर्ष करों में राहत दी गयी।
इस तरह सार्वजानिक जीवन में प्रवेश के बाद सरदार पटेल बस देश के होकर रह गये। खेडा सत्याग्रह के अलावा नागपुर झण्डा सत्याग्रह, बोरसद सत्याग्रह, रॉलेट एक्ट का विरोध, बारदोली सत्याग्रह, असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन, त्रिपुरी सम्मलेन, क्रिप्स मिशन, भारत छोड़ो आन्दोलन, शिमला आन्दोलन कैबिनेट मिशन, आंतरिक सरकार में भी उनका योगदान अत्यन्त महत्वपूर्ण रहा। सविनय अवज्ञा आन्दोलन के समय चौरी-चौरा हत्याकाण्ड के फलस्वरूप जब गाँधी जी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन को स्थगित करने की घोषणा कर दी तो देश की सामान्य जनता के साथ-साथ अनेक चोटी के नेताओं को भी बहुत निराशा हुई। पण्डित लाला लाजपत राय जी और पण्डित मोतीलाल नेहरु जी जो कि उन दिनों जेल में थे, उन्हें भी गाँधी जी के इस निर्णय से बहुत आघात लगा था और उन्होंने एक असहमति का पत्र भी गाँधी जी को लिख भेजा था। ऐसे समय में भी बड़े नेताओं में केवल दो नेता श्री राजेन्द्र बाबू और वल्लभ भाई पटेल जी बिना किसी नुक्ताचीनी के, बिना चेहरे पर निराशा का भाव लाये, पूरे अनुराग और श्रद्धा से गाँधी जी के निर्णय में साथ खड़े रहे।
अपने साहसिक निर्णयों, देश सेवा की सच्ची भावनाओं और ज़मीनी स्तर से जुड़कर काम करने की लगन के चलते जल्दी ही सरदार पटेल जी काँग्रेस के कद्दावर नेता बन गये। काँग्रेस के सभी कार्यकर्ता पण्डित जवाहर लाल नेहरु जी से भी अधिक सरदार पटेल को प्यार करते थे और सम्मान देते थे। इसका सबसे बड़ा उदाहरण ये है कि जब स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री के चुनाव की बात आई तो अधिकाँश प्रान्तीय काँग्रेस समितियों ने अपना मत सरदार पटेल के पक्ष में दिया। क्योंकि सब जानते थे कि नेहरु जी और पटेल जी दोनों ने वक़ालत की डिग्री लन्दन से प्राप्त की है मगर फिर भी वक़ालत में पटेल जी नेहरु जी से बहुत आगे थे। नेहरु जी अन्तराष्ट्रीय ख्याति के भूखे थे जबकि सरदार पटेल जी भारत के गरीब किसानों को लेकर चिंतित रहते थे। नेहरु जी से अधिक मत हासिल करने के बावजूद भी सरदार पटेल जी ने गाँधी जी की इच्छा का सम्मान करते हुए स्वयं को प्रधानमन्त्री की दौड़ से बाहर ही रखा और स्वतन्त्र भारत के प्रथम उप-प्रधानमन्त्री तथा गृह-मन्त्री बने।
5 जुलाई 1947 को एक ‘रियासत विभाग’ की स्थापना की गई थी। सरदार पटेल जी उप-प्रधानमन्त्री के साथ-साथ गृह और रियारत मन्त्री भी बनाये गये थे। उनका प्रथम दायित्व टुकड़े-टुकड़े में बिखरे भारत का एकीकरण करके उसे अखण्डता प्रदान करना था। इस अभियान में सरदार पटेल जी ने अपना महत्वपूर्ण योगदान आज़ादी से ठीक पहले (संक्रमण काल में) देना शुरू कर दिया था। उन्होंने वीपी मेनन के साथ मिलकर देसी राजाओं को समझाया कि उन्हें स्वायत्तता नहीं दिया जा सकता है, इसके परिणामस्वरूप तीन को छोडकर शेष सभी राजवाडों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। बस्तर की रियासत में कच्चे सोने का बड़ा भारी क्षेत्र था और इस भूमि को दीर्घकालिक पट्टे पर हैदराबाद की निज़ाम सरकार खरीदना चाहती थी। सरदार पटेल को जैसे ही ये जानकारी प्राप्त हुई वे वीपी मेनन के साथ तुरन्त उड़ीसा पहुँचे, वहाँ के 23 राजाओं से कहा, "कुएँ के मेढक मत बनो, महासागर में आ जाओ" इस तरह उन्होंने सभी 23 राजाओं को भारत में विलय करवा लिया। फिर नागपुर के 38 राजाओं से मिले, इन्हें "सैल्यूट स्टेट" कहा जाता था। अर्थात् जब कोई इनसे मिलने जाता तो तोप छोड़कर सलामी दी जाती थी। पटेल ने इन राज्यों की बादशाहत समाप्त करके उन्हें भारत में मिला लिया। इसी तरह वे काठियावाड़ पहुँचे जहाँ लगभग 250 रियासतें थी। जिनमें कुछ केवल 20-20 गाँव की रियासतें थीं, सबको भारत में विलय करवाया। एक बार मुम्बई गये और आसपास के राजाओं से बातचीत करके उन्हें भारत में मिलाया। अन्ततः15 अगस्त 1947 तक केवल तीन रियासतें-कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद छोड़कर उन्होंने सभी रियासतों को भारत में मिला दिया। इन तीन रियासतों में भी जूनागढ़ को 9 नवम्बर 1947 को मिला लिया गया, जब उसका निज़ाम पाकिस्तान भाग गया था। 13 नवम्बर को सरदार पटेल जी ने सोमनाथ के भग्न मंदिर के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया, जो नेहरू जी के तीव्र विरोध के पश्चात भी बनवा दिया। 1948 में हैदराबाद भी केवल 4 दिन की पुलिस कार्रवाई द्वारा भारत में मिला लिया गया। जहाँ तक कश्मीर रियासत की बात है तो इसको पण्डित जवाहरलाल नेहरू जी ने सरदार पटेल के एकीकरण अभियान से निकालकर स्वयं अपने अधिकार में रख लिया था। यदि नेहरु जी ने ऐसा न किया होता तो निश्चित ही आज कश्मीर समस्या होती ही नहीं। कश्मीर को लेकर पटेल जी के पास पुख्ता योजना थी परन्तु उस पर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया। सरदार पटेल जी कश्मीर में जनमत संग्रह तथा कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने पर नेहरु जी से असहमत थे।
आज का अखण्ड भारत जो हमारे पास है वो सरदार पटेल जी की मेहनत, साहस, लगन और तपस्या का परिणाम है। विश्व के इतिहास में वो एकमात्र ऐसे व्यक्तित्व रहे कि जिसने इतनी बड़ी मात्रा में राज्यों का एकीकरण किया हो। सरदार पटेल जी ने छोटी-बड़ी 562 रियासतों का भारतीय संघ में विलीनीकरण करके भारत को एकता और अखण्डता का वरदान दिया। नि:संदेह सरदार पटेल द्वारा यह 562 रियासतों का एकीकरण विश्व इतिहास का एक आश्चर्य था। भारत की यह रक्तहीन क्रांति थी। महात्मा गांधी ने सरदार पटेल को इन रियासतों के बारे में लिखा था, "रियासतों की समस्या इतनी जटिल थी जिसे केवल तुम ही हल कर सकते थे।" लोगों की मान्याता बनी कि सरदार पटेल बिस्मार्क की तरह थे। लेकिन लंदन टाइम्स ने लिखा था "बिस्मार्क की सफलताएँ पटेल जी के सामने महत्वहीन रह जाती हैं। यदि पटेल जी के कहने पर चलते तो कश्मीर, चीन, तिब्बत व नेपाल के हालात आज जैसे न होते। पटेल जी सही मायनों में मनु के शासन की कल्पना थे। उनमें कौटिल्य की कूटनीतिज्ञता तथा महाराज शिवाजी की दूरदर्शिता थी। वे केवल सरदार ही नहीं बल्कि भारतीयों के हृदय के भी सरदार थे।"
केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने "राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता" को प्रोत्साहित करने के लिए पद्म पुरस्कारों की तर्ज पर ‘सरदार पटेल राष्ट्रीय एकता सम्मान’ प्रदान करने का निर्णय लिया है। गृह मंत्रालय की ओर से जारी अधिसूचना के अनुसार, यह सम्मान "राष्ट्रीय एकता और अखण्डता" को प्रोत्साहित करने में दिये गये प्रेरक योगदान तथा सशक्त एवं अखण्ड भारत के मूल्यों को मजबूती देने वालों को दिया जायेगा। नस्ल, पेशा, पद या लिंग के भेदभाव के बिना कोई भी व्यक्ति यह सम्मान पाने का हक़दार होगा। यह सम्मान बेहद दुर्लभ मामलों में बहुत योग्य व्यक्ति को मरणोपरांत भी दिया जा सकेगा। केंद्र सरकार ने 31 अक्टूबर जो कि सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती है, उस दिन को "राष्ट्रीय एकता दिवस या राष्ट्रीय या अखण्डता दिवस" के रूप में मनाने का फैसला किया है। अदम्य साहस के धनी, अद्भुत धैर्य के स्वामी सरदार पटेल को उनके इस अद्भुत और अकल्पनीय योगदान के कारण "लौह पुरुष" कहा जाता है। एकता की प्रतिमूर्ति सरदार पटेल जी की प्रतिमा “स्टेच्यू ऑफ़ यूनिटी” का निर्माण गुजरात राज्य के नर्मदा जिले में ‘सरदार सरोवर’ बाँध के पास साधू बेट नामक स्थान पर लगाई गयी है। 182 मीटर (597 फीट) और आधार सहित 240 मीटर (790 फीट) की ऊँचाई वाली ये मूर्ति विश्व की सबसे ऊँची मूर्ति है।
अखण्ड भारत की नींव को अपना जीवन सौंपकर मजबूत करने वाले सरदार पटेल जी के हम कृतज्ञ हैं, कि उन्हीं की वजह से आज हम एक विकासशील राष्ट्र में जीने का सौभाग्य प्राप्त कर रहे हैं। अगर वो नहीं होते तो शायद भारत की विशालता आज इतनी नहीं होती जितनी की है। ऐसे में बहुत हद है सम्भव है हम अपने देश के तमाम राज्यों के ही पड़ोसी देश होते और उन्हीं के साथ लड़ाई-झगड़े में फँसकर अपने विकास का मार्ग अवरुद्ध किये बैठे रहते। परन्तु पटेल जी के अतुलनीय योगदान के कारण सभी रियासतों ने भारत में विलय किया और आज भारत विकास के मार्ग पर अग्रसर है। दुनियाँ के बड़े-से-बड़े राष्ट्र भारत की मित्रता का आदर करते हैं और वे भारत के साथ मधुर सम्बन्ध की इच्छा रखते हैं। कुछ देश जो स्वयं ही भारत से शत्रुता किये बैठे हैं उनकी हालत कितनी बदतर है ये हमसे छुपी नहीं है। बार-बार शान्ति प्रस्तावों को अपमानित करने वाला पाकिस्तान आज अपने बोये काँटों से घायल होता रहता है। यदि सरदार पटेल जी न होते तो शायद हम दुनियाँ के नक़्शे पर इतना कम स्थान पाते कि दिखाई ही नहीं पड़ते। परन्तु आज का भारत अपने वीर सपूतों, महापुरुषों के आचरण पर गर्व करता हुआ हिमालय की चट्टानों से भी मजबूत होकर अपना सिर ऊँचा किये दुनियाँ को विकास, आदर्श, शान्ति, संघर्ष, संस्कार की परिभाषा सिखाता रहता है।
जय हिन्द-जय भारत
- कुमार आशीष
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