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Tuesday, October 29, 2019

नमक स्वादानुसार

नाम                   -  नमक स्वादानुसार
लेखक                -  निखिल सचान
फॉर्मेट                -  पेपरबैक
पृष्ठ संख्या           -  165 पेज
मूल्य                  -  ₹78
प्रकाशक            -  हिन्दी युग्म
खरीद                -  Amazon (Buy Now)

ये पुस्तक निखिल सचान जी की लिखी कहानियों का संग्रह है। इसमें वर्णित सभी कहानियाँ बहुत ज़मीनी हैं, कई बार पढ़ते हुए आप कहानियों को स्वयं से जोड़ पायेंगे। साधारण-से-साधारण शब्द जो हम रोज़मर्रा में इस्तेमाल करते हैं उन्हें छोड़कर शायद ही कोई ऐसा शब्द इस पूरी पुस्तक में मिले जिसके लिए आपको शब्दकोश की सहायता लेनी पड़े। इसमें बच्चों के लिए भी कहानियाँ हैं परन्तु पूरी पुस्तक बच्चों के लिए नहीं है। बिना लाग-लपेट के सीधी-सादी बात कहने का लेखक के पास बढ़िया हुनर है जो इस किताब में साफ़ दिखाई देता है। वैसे किसी भी लेखक पर सिर्फ एक किताब पढ़कर टिपण्णी करना उचित होगा या नहीं ये मैं अभी नहीं कह सकता हूँ। लेकिन मैं निखिल सर की और जो किताबें मार्केट में उपलब्ध हैं उन्हें पढ़कर ये जानने को उत्सुक हूँ कि लेखक ने एक ही शैली में सब पुस्तकें लिखी हैं या सबकी शैली भिन्न-भिन्न हैं। अगर भिन्न हो तो ही ज्यादा बेहतर रहेगा। वैसे किसी ने कहा है कि "किताब की विषय-वस्तु और खाने में नमक स्वादानुसार ही अच्छा लगता है।" इसलिए मैं ये नहीं दावा कर सकता कि ये पुस्तक आपको अच्छी लगेगी या  बुरी...

वैसे तो किसी भी पुस्तक पर मेरे द्वारा लिखे गये सभी विचार मेरे व्यक्तिगत ही होते हैं, उन्हें ‘पुस्तक की समीक्षा’ समझने की जगह केवल ‘मेरा नज़रिया’ कहना ज्यादा उचित होगा, परन्तु इस निजता बावजूद मेरा थोड़ा और व्यक्तिगत मानना ये है कि "आप कितने भी अच्छे लेखक हों, आपकी कितनी भी बेस्ट सेलिंग पुस्तकें बाज़ार में छायी हों, आपकी फैन फॉलोयिंग कितनी भी भारी मात्रा में हो फिर भी यदि आपके लेखन में (खासकर यदि आप हिन्दी में लिख रहे हैं) कोई एक शब्द भी ‘अश्लील’ आता है तो मैं ये कहूँगा कि आपको लेखन में अभी और परिक्क होना बाक़ी है।" मुझे लगता है कि दुनियाँ की शायद ही ऐसी कोई स्थिति हो जिसे हिन्दी जैसी समृद्ध और विशाल शब्दकोश वाली ‘मर्यादित भाषा’ में प्रस्तुत करते हुए आपको ‘अश्लील या अमर्यादित’ शब्दों का प्रयोग करना पड़े।

इस पुस्तक का सबसे बड़ा ‘निगेटिव पॉइंट’ मेरी नज़र में यही है। लेकिन ये टिपण्णी इस लेखक के लिये नहीं है बल्कि उन लेखकों के लिए है जिन्होंने ‘अश्लीलता को सफ़लता का अधियार बना रखा है।‘ जब मैं इस लेखक (निखिल सचान सर) की और पुस्तकें पढ़ लूँगा तब निर्णय ले पाउँगा कि ये टिपण्णी इनके लिए है या नहीं, फिलहाल इस किताब में प्रयुक्त हुए अश्लील शब्द मेरे हिसाब से जबरदस्ती धोपे गये हैं उनकी ज़रूरत बिलकुल भी नहीं थी। उम्मीद है आप समझ गये होंगे कि पुस्तक के अच्छी या बुरी लगने के दावे को मैंने पहले ही क्यों खारिज़ कर दिया था। इस पुस्तक में कुल 9 कहानियाँ हैं जिनमें से मुझे जो पसन्द आयी उनकी सूची इस प्रकार है:-
  • परवाज़
  • हीरो
  • टोपाज़ (अगर ये मेरी कहानी होती तो इसका शीर्षक मैं 'लास्ट लीफ़' रखता)
  • साफ़े वाला साफ़ा लाया
  • विद्रोह
इन सबके अतिरिक्त आधुनिक प्रिंटिंग क्वालिटी के साथ मुद्रित कवर का डिजाईन सुन्दर और आकर्षक है। अन्दर के पेज साधारण हैं उसमें कोई ख़ास डिजाईन नहीं हुई है। हाँ! इसके बैक कवर पर जो कुछ लिखा है उसमें लाल रंग प्रयुक्त हुआ है और कवर का रंग काला है। यदि काले पर लाल की जगह पीला से लिखा जाता तो बैक कवर में अलग ही चमक होती जो अभी देखने को नहीं मिलती है। बैक कवर पर ही लेखक की तस्वीर और सोशल मिडिया लिंक मुद्रित है अगर इसी के साथ उनका थोड़ा व्यक्तिगत जीवन परिचय भी दिया रहता तो और बेहतर था। इस किताब को पढ़ने या न पढ़ने के लिए मैं नहीं कहूँगा ये आप ऊपर दिए विवरण और अमेज़न पर दिए गये प्रतिक्रियाओं को पढ़कर खुद निर्णय करे। हाँ! यदि आपको ज़मीन से जुड़ी कहानियों को थोड़ा मिर्च, मसाला के साथ पढ़ने का मन हो तो आप ये पुस्तक ले सकते हैं। इसमें अपनी समझ का ‘नमक स्वादानुसार’ मिलाकर आनन्दित हो सकते हैं।

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जीवन वृक्ष

नाम                   -  जीवन वृक्ष
लेखक                -  डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम
फॉर्मेट                -  पेपरबैक
पृष्ठ संख्या           -  144 पेज
मूल्य                  -  ₹105
प्रकाशक            -  प्रभात प्रकाशन
खरीद                -  Amazon (Buy Now)

इससे पहले कि मैं पुस्तक के विषय में कुछ लिखूँ आपका ध्यान कवर की तरफ आकर्षित करना चाहूँगा। इस पुस्तक की भूमिका देश के भूतपूर्व प्रधानमन्त्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी जी ने लिखी है। वे स्वयं भी लोकप्रिय राजनेता के साथ-साथ बहुत शानदार कवि थे। ये पुस्तक डॉ. अब्दुल कलाम जी की तमिल और अंग्रेजी कविताओं का हिन्दी अनुवाद है। इस पुस्तक में कविताओं के साथ-साथ उसकी विषयवस्तु और किस परिस्थिति में उनकी रचना हुई वो भी बताया गया है। डॉ. कलाम ने जीवन की तमाम घटनाओं को कविता में ढाला है, इसीलिए हर कविता से आप स्वयं का जुड़ाव महसूस कर सकते हैं। सभी कविताओं में जिस तरह के हिन्दी शब्दों का चयन किया है उसके लिए अनुवादक (श्री अरुण तिवारी जी और राकेश शर्मा जी) की और उपमाओं को जिस शानदार तरीके और नयेपन के साथ प्रयोग किया गया है उसके लिए डॉ. कलाम साहब की जितनी तारीफ़ की जाये कम होगी। डॉ. कलाम की रचना है तो सबसे बड़ी ख़ासियत यही है कि इसकी हर कविता में एक सन्देश है जो आदर्श जीवन की प्रेरणा देता है। उनका तो पूरा जीवन जी अनुकरणीय है और उसी का प्रतिबिम्ब उनकी रचनाएँ भी होती हैं। उनकी दो पुस्तकें “अग्नि की उड़ान” और “मेरी जीवन यात्रा” मैं पहले ही पढ़ चुका हूँ। अब “जीवन वृक्ष” पढ़ते हुए पिछली दोनों पुस्तकों में वर्णित कई घटनाओं का पद्य रुपान्तरण पढ़ने का आनन्द प्राप्त हुआ है। जीवन वृक्ष में कुल 49 कविताएँ हैं और ये कह पाना कि कौन-सी सबसे अच्छी है मेरे लिए तो लगभग असम्भव ही है। उनकी पहली कविता का शीर्षक है “तरूणाई” उसकी एक पंक्ति है “मैं महसूस करता हूँ कि छोटा लक्ष्य रखना एक अपराध है” ऐसे ही एक कविता जिसका शीर्षक “आँसू” है, उसकी एक पंक्ति है “ये आँसू ही तुमको बनायेंगे महान्” इसी तरह इसमें हर कविता बहुत उम्दा और प्रेरणादायक है। मैं जीवन चक्र को समझने के लिए जीवन वृक्ष को अवश्य पढ़ने का सुझाव दूँगा। 

इस पुस्तक की प्रिटिंग क्वालिटी प्रभात प्रकाशन की अन्य पुस्तकों की तरह ही बढ़िया है। इसका कवर भी बहुत सुन्दर है जिस पर लगी हुई डॉ. कलाम की तस्वीर (साभार) राष्ट्रपति भवन से ली गयी है। इसके आलावा जो इस पुस्तक के अन्दर के पेज हैं उसमें प्रत्येक के दाहिने तरफ फूलों जैसी चित्रकारी की गयी है जो इस पुस्तक को अनायास ही बहुत आकर्षक बनाते हैं। डॉ. अब्दुल कलाम जी के साथ-साथ पण्डित श्री अटल बिहारी बिहारी वाजपेयी जी की भूमिका लेखन वाली इस पुस्तक के एक बार अवश्य पढ़ें। 

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Monday, October 28, 2019

टोपी शुक्ला

नाम                   -  टोपी शुक्ला
लेखक                -  डॉ. राही मासूम रज़ा
फॉर्मेट                -  पेपरबैक
पृष्ठ संख्या           -  114 पेज
मूल्य                  -  ₹100
प्रकाशक            -  राजकमल प्रकाशन
खरीद                -  Amazon (Buy Now)

बी. आर. चोपड़ा जी द्वार निर्देशित ‘महाभारत’ धारावाहिक के अमर संवादों का लेखन करने वाले ‘डॉ. राही मासूम रज़ा’ द्वारा रचित उपन्यास ‘टोपी शुक्ला’ वास्तव में बलभद्र नारायाण शुक्ला उर्फ़ टोपी शुक्ला का जीवन परिचय है। पुस्तक की भूमिका में लिखा है कि “टोपी शुक्ला में एक भी गाली नहीं है। परन्तु शायद यह पूरा उपन्यास एक गन्दी गाली है। यह उपन्यास अश्लील है- जीवन की तरह। ‘यह कहानी इस देश, बल्कि इस संसार की कहानी का एक स्लाइस है।‘

हिन्दू-मुस्लिम रिश्तों पर करारे व्यंगात्मक शैली में लिखा गया ये उपन्यास सचमुच आज की परिस्थिति को आईना दिखा रहा है जिसकी सूरत बहुत ही ख़राब है। इसी में एक जगह लिखा है कि “हिन्दू-मुसलमान अगर भाई-भाई हैं तो कहने की ज़रूरत नहीं। यदि नहीं हैं तो कहने से क्या फ़र्क पड़ेगा?" इस कहानी का जो प्रमुख पात्र टोपी शुक्ला है, उसे कुछ जगह नौकरी इसलिए नहीं मिलती क्योंकि वह हिन्दू है और कुछ जगह इसलिए नहीं मिलती क्योंकि वह मुस्लिम है। इस पुस्तक के अनुसार इस देश में सभी जातियों के लिए थोड़ा या ज्यादा जगह की गुंजाइश है पर जो हिन्दुस्तानी है वो कहाँ जाये? यह उपन्यास जहाँ हिन्दू-मुस्लिम सम्बन्धों की सच्चाई उजागर करता है वहीं एक तीखा प्रश्न भी समाज के सामने लाकर रख देता है, जिस पर बड़े-बड़े सामाजिक ठेकेदारों को सोचने और उत्तर खोजने की ज़रूरत है। उपन्यास के अन्त में टोपी शुक्ला उन लोगों से कंप्रोमाइज नहीं कर पाता है जो समाज के तथाकथित ठेकेदार हैं, जो टोपी शुक्ला से इसीलिए नफरत करते हैं क्योंकि वो हिन्दू होकर भी मुसलमानों से हमदर्दी रखता है, उनके साथ रहता है। इसीलिए  जब टोपी शुक्ला को नौकरी मिलती है तो वो आत्महत्या कर लेता है। ‘आत्महत्या’ वाली बात लिखकर मैं इस पुस्तक के क्लाइमैक्स का उजागर नहीं कर रहा हूँ क्योंकि ये पूरी पुस्तक हर पन्ने पर क्लाइमैक्स है। उसे उजागर करने के लिए मुझे पूरी किताब ही यहाँ लिखनी पड़ेगी। परन्तु मैं ऐसा करने वाला नहीं हूँ क्योंकि मैं चाहता हूँ कि एक बार आप इस पुस्तक को जरूर पढ़ें। इस पुस्तक के लगभग सभी किरदार मुख्य भूमिका में नज़र आते हैं, केवल कुछ को छोड़कर (जो मुख्य पात्र में नहीं है) सभी पात्र में आप स्वयं को पायेंगे। ऐसा लगेगा कि ये कहानी आपकी ही है। जैसे-जैसे पन्ने पलटते जायेंगे आप अपना भी किरदार बदलते जायेंगे और यही बात मुझे इस पुस्तक की सबसे ख़ास लगी। इसी पुस्तक में कथाकार कहता है कि “कोई कहानी कभी बिलकुल किसी एक की नहीं हो सकती। कहानी सबकी होती है और फिर भी उसकी ईकाई नहीं टूटती है।“

इस पुस्तक की प्रिंटिंग क्वालिटी आधुनिकता के हिसाब से ठीक है। परन्तु इसके कवर में बहुत हल्का पेपर इस्तेमाल हुआ है जो कि अब प्रचलन में बहुत कम देखने को मिलता है। इसका फ्रंट कवर कहानी की गाथा से मैचिंग करता नहीं लग रहा है। (ये मेरा व्यक्तिगत मत ही है क्योंकि बनाने वाले ने जरूर कुछ सोचा होगा।) परन्तु कवर पर कुछ पात्र हैं जो आपस में बातचीत करते दिखाये गये हैं वो सभी मुस्लिम भेषभूषा में हैं जबकि कहानी हिन्दू-मुस्लिम रिश्ते पर है तो कवर में दोनों का उल्लेख इसे शायद और बेहतर बनाता। बैक कवर पर ‘राही मासूम रज़ा’ साहब की तस्वीर के पुस्तक का उपसंहार और भूमिका की एक पंक्ति इसे पढ़ने को लालायित करती है। इन सब के अतिरिक्त मैं फिर से कहना चहूँगा कि पुस्तक की विषयवस्तु और लेखन बहुत उम्दा है। भाव अतिउत्तम हैं, आपको ये  पुस्तक जरूर पढ़नी चाहिए।  


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Sunday, October 27, 2019

दीपावली पर माँ भारती के पुत्रों को पत्र


ईश्वरीय स्वरुप सम्माननीय भारती पुत्रों!
चरणस्पर्श

सर्वप्रथम आप सभी को पूरे देश की तरफ से दीपावली की अनन्त शुभकामनाएँ! अद्भुत स्थिति है, आज पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ दीपकोत्सव का पावन पर्व मनाया जा रहा है और आपके पास आज भी सिवाय शुभकामनाओं के और कुछ भी नहीं। हमने अपने घरों को लाइट्स से सजाया है, सैकड़ों दीपक जल रहे हैं, मिठाइयाँ बाँटी जा रही हैं। लाई-बताशे का पहला फाँका मारकर लोग ज्ञान दे रहे हैं कि चायनीज़ लाइट्स का इस्तेमाल गलत है, पटाखों से प्रदुषण फ़ैलता है और जाने क्या-क्या... परन्तु आप लोग इन सब राजनितिक/सामाजिक बयानबाजी से दूर श्वेत हिम की चादर पर हाथियारों के साथ खड़े, जीवन और मृत्यु के मोहबंधन से स्वतन्त्र, चौकन्ने होकर सिर्फ ये सोच रहे हैं कि आपसे कोई चूक न हो जिससे देश में चल रहे हर्षोत्सव में विघ्न न पड़े। ‘शुभ-दीपावली’ में कोई ‘अशुभ, अप्रिय’ घटना न हो, किसी के अन्तःकरण में किसी प्रकार का अँधेरा न रह जाये। हज़ारों फीट ऊँचाई पर खड़े बर्फीली हवाओं का शोर सुनते हुए, लगातार अपनी मौत को आँखे दिखाकर, या रेगिस्तान में उड़ते रेतों के बवण्डरों की धूल फाँककर जीने के बावज़ूद जो आपकी सतर्कता है उसी के बलबूते आज भारत जगमग कर रहा है। भारत के त्यौहारों और माँ भारती के चेहरे की रौनक के प्रथम कारण आप लोग ही हैं। आपसे ही देश की सुरक्षा है, आपसे ही देश में खुशियाँ हैं, आपसे ही देश में रौशनी का अम्बार लगा है। पता नहीं इस वक़्त देश के कितने लोग आपको याद कर रहे होंगे, परन्तु वो माँ जिसने दूध के माध्यम से अपनी रगों में बहने वाला रक्त पिलाकर आपको पालापोसा था, वो पिता जिसने फटी बनियान के जेब में से रूपये निकालकर आपको पढ़ाया-लिखाया, वो बहन जिसकी कई वर्षों से राखी प्रतीक्षा में है कि भैया घर आये तो त्यौहार हो, वो पत्नी जिसके सिन्दूर रोज़ उससे पूछते हैं कि जिसके लिए माथे पर सजा रही हो वो माथा चूमने कब आयेगा, वो भाई जो गर्व से सीना चौड़ा करके गाँव भर में बताता रहता है कि उसका भैया सैनिक है, वो गाँव वाले जिन्हें आपकी फ़िक्र लगी रहती है, वो आपका हर “आशीष” जो आपकी याद में पत्र लिख रहा है वो सब आपको बहुत याद कर रहे हैं। मैं पूरे देश की तरफ से कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए आपके और आपके परिवार वालों के महानतम त्याग को प्रणाम करता हूँ। ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि आपको दीर्घजीवन प्रदान करें, आपके जीवन में खुशियों का दीपक सदैव जगमगाता रहे। पुनः दीपकोत्सव की बहुत-बहुत बधाईयाँ...

- कुमार आशीष
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Saturday, October 26, 2019

भारत की अखण्डता और सरदार पटेल

चित्र : गूगल से साभार

आज का विषय है - “भारत की अखण्डता और सरदार पटेल” इससे पहले कि मैं भारत की अखण्डता या उसमें सरदार पटेल जी के योगदानों की चर्चा शुरू करूँ, एक संक्षिप्त परिचय सरदार पटेल जी का प्राप्त कर लेते हैं।

‘सरदार पटेल’ के नाम से प्रसिद्ध भारतीय राजनीति के अति-महत्वपूर्ण व्यक्तित्व का पूरा नाम वल्लभ भाई झावेर भाई पटेल था। पटेल जी का जन्म गुजरात राज्य के नडियाद नामक स्थान पर 31 अक्टूबर 1875 को हुआ था। वे झवेरभाई पटेल एवं लाडबा देवी की चौथी संतान थे। मुख्यतः स्वाध्याय से अपनी शिक्षा की शुरुआत करने वाले सरदार पटेल जी ने लन्दन जाकर बैरिस्टर की पढ़ाई की। पढ़ाई ख़त्म होने के अगले दिन वो स्वदेश लौटे और अहमदाबाद में वक़ालत करने लगे। लन्दन में अध्ययन और निवास के दौरान सुबह से लेकर रात लाइब्रेरी बन्द होने तक वो पढ़ते रहते थे। एक दिन में सत्रह-सत्रह घंटे पढ़ाई करने का ही चमत्कार था कि छात्रवृत्ति के साथ फीस माफ़ी का भी फायदा पाते थे। उसके बाद जब वक़ालत शुरू की तो विपक्षी अधिवक्ता क्या कई बार तो जज तक को अपने ज्ञान और वाक्पटुता से आश्चर्यचकित कर देते थे। हर मुकदमें में पूरा समय और जी-जान लगाने का फायदा ये होता था कि वो लगभग हर मुकदमा जीत जाते थे, जिससे उन्हें खूब काम, धन और यश प्राप्त हुआ। कहते हैं एक बार जब वो किसी मुकदमें को लेकर अदालत में बहस कर रहे थे तभी उन्हें एक तार प्राप्त हुआ, उन्होंने उसे पढ़कर टेबल पर रख दिया और केस जारी रखा। जब बहस समाप्त हुई और वो केस जीत गये तो उन्होंने अपने सहयोगियों को बताया कि तार में लिखा है कि उनकी पत्नी का देहान्त हो गया है। केस के बीच में ही ये जानकार भी जिस धैर्य के साथ वो अपने काम में लगे रहे वो सचमुच अद्भुत था और वहाँ उपस्थित सभी लोगों को आश्चर्यचकित करने वाला था। 

सरदार पटेल जी ने जब अपना व्यवसायिक जीवन शुरू किया तो वो बहुत शान-ओ-शौकत से रहते थे। परन्तु धीरे-धीरे गाँधी जी के विचारों और व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उनका भी झुकाव भारतीय स्वतन्त्रता के आन्दोलनों में होने लगा। स्वतन्त्रता आन्दोलन में सरदार पटेल जी ने सबसे पहला और बड़ा योगदान खेडा संघर्ष में दिया। गुजरात का खेडा खण्ड उन दिनो भयंकर सूखे की चपेट में था। किसानों ने अंग्रेज सरकार से भारी कर में छूट की माँग की, जो कि जाहिर है अंग्रेज कभी पूरी नहीं करते। परन्तु तब सरदार पटेल जी ने उन किसानों का नेतृत्व किया तथा लोगों को कर न देने के लिए प्रेरित किया, परिणामस्वरुप सरकार झुकी और उस वर्ष करों में राहत दी गयी।

इस तरह सार्वजानिक जीवन में प्रवेश के बाद सरदार पटेल बस देश के होकर रह गये। खेडा सत्याग्रह के अलावा नागपुर झण्डा सत्याग्रह, बोरसद सत्याग्रह, रॉलेट एक्ट का विरोध, बारदोली सत्याग्रह, असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन, त्रिपुरी सम्मलेन, क्रिप्स मिशन, भारत छोड़ो आन्दोलन, शिमला आन्दोलन कैबिनेट मिशन, आंतरिक सरकार में भी उनका योगदान अत्यन्त महत्वपूर्ण रहा। सविनय अवज्ञा आन्दोलन के समय चौरी-चौरा हत्याकाण्ड के फलस्वरूप जब गाँधी जी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन को स्थगित करने की घोषणा कर दी तो देश की सामान्य जनता के साथ-साथ अनेक चोटी के नेताओं को भी बहुत निराशा हुई। पण्डित लाला लाजपत राय जी और पण्डित मोतीलाल नेहरु जी जो कि उन दिनों जेल में थे, उन्हें भी गाँधी जी के इस निर्णय से बहुत आघात लगा था और उन्होंने एक असहमति का पत्र भी गाँधी जी को लिख भेजा था। ऐसे समय में भी बड़े नेताओं में केवल दो नेता श्री राजेन्द्र बाबू और वल्लभ भाई पटेल जी बिना किसी नुक्ताचीनी के, बिना चेहरे पर निराशा का भाव लाये, पूरे अनुराग और श्रद्धा से गाँधी जी के निर्णय में साथ खड़े रहे।

अपने साहसिक निर्णयों, देश सेवा की सच्ची भावनाओं और ज़मीनी स्तर से जुड़कर काम करने की लगन के चलते जल्दी ही सरदार पटेल जी काँग्रेस के कद्दावर नेता बन गये। काँग्रेस के सभी कार्यकर्ता पण्डित जवाहर लाल नेहरु जी से भी अधिक सरदार पटेल को प्यार करते थे और सम्मान देते थे। इसका सबसे बड़ा उदाहरण ये है कि जब स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री के चुनाव की बात आई तो अधिकाँश प्रान्तीय काँग्रेस समितियों ने अपना मत सरदार पटेल के पक्ष में दिया। क्योंकि सब जानते थे कि नेहरु जी और पटेल जी दोनों ने वक़ालत की डिग्री लन्दन से प्राप्त की है मगर फिर भी वक़ालत में पटेल जी नेहरु जी से बहुत आगे थे। नेहरु जी अन्तराष्ट्रीय ख्याति के भूखे थे जबकि सरदार पटेल जी भारत के गरीब किसानों को लेकर चिंतित रहते थे। नेहरु जी से अधिक मत हासिल करने के बावजूद भी सरदार पटेल जी ने गाँधी जी की इच्छा का सम्मान करते हुए स्वयं को प्रधानमन्त्री की दौड़ से बाहर ही रखा और स्वतन्त्र भारत के प्रथम उप-प्रधानमन्त्री तथा गृह-मन्त्री बने।

5 जुलाई 1947 को एक ‘रियासत विभाग’ की स्थापना की गई थी। सरदार पटेल जी उप-प्रधानमन्त्री के साथ-साथ गृह और रियारत मन्त्री भी बनाये गये थे। उनका प्रथम दायित्व टुकड़े-टुकड़े में बिखरे भारत का एकीकरण करके उसे अखण्डता प्रदान करना था। इस अभियान में सरदार पटेल जी ने अपना महत्वपूर्ण योगदान आज़ादी से ठीक पहले (संक्रमण काल में) देना शुरू कर दिया था। उन्होंने वीपी मेनन के साथ मिलकर देसी राजाओं को समझाया कि उन्हें स्वायत्तता नहीं दिया जा सकता है, इसके परिणामस्वरूप तीन को छोडकर शेष सभी राजवाडों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। बस्तर की रियासत में कच्चे सोने का बड़ा भारी क्षेत्र था और इस भूमि को दीर्घकालिक पट्टे पर हैदराबाद की निज़ाम सरकार खरीदना चाहती थी। सरदार पटेल को जैसे ही ये जानकारी प्राप्त हुई वे वीपी मेनन के साथ तुरन्त उड़ीसा पहुँचे, वहाँ के 23 राजाओं से कहा, "कुएँ के मेढक मत बनो, महासागर में आ जाओ" इस तरह उन्होंने सभी 23 राजाओं को भारत में विलय करवा लिया। फिर नागपुर के 38 राजाओं से मिले, इन्हें "सैल्यूट स्टेट" कहा जाता था। अर्थात् जब कोई इनसे मिलने जाता तो तोप छोड़कर सलामी दी जाती थी। पटेल ने इन राज्यों की बादशाहत समाप्त करके उन्हें भारत में मिला लिया। इसी तरह वे काठियावाड़ पहुँचे जहाँ लगभग 250 रियासतें थी। जिनमें कुछ केवल 20-20 गाँव की रियासतें थीं, सबको भारत में विलय करवाया। एक बार मुम्बई गये और आसपास के राजाओं से बातचीत करके उन्हें भारत में मिलाया। अन्ततः15 अगस्त 1947 तक केवल तीन रियासतें-कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद छोड़कर उन्होंने सभी रियासतों को भारत में मिला दिया। इन तीन रियासतों में भी जूनागढ़ को 9 नवम्बर 1947 को मिला लिया गया, जब उसका निज़ाम पाकिस्तान भाग गया था। 13 नवम्बर को सरदार पटेल जी ने सोमनाथ के भग्न मंदिर के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया, जो नेहरू जी के तीव्र विरोध के पश्चात भी बनवा दिया। 1948 में हैदराबाद भी केवल 4 दिन की पुलिस कार्रवाई द्वारा भारत में मिला लिया गया। जहाँ तक कश्मीर रियासत की बात है तो इसको पण्डित जवाहरलाल नेहरू जी ने सरदार पटेल के एकीकरण अभियान से निकालकर स्वयं अपने अधिकार में रख लिया था। यदि नेहरु जी ने ऐसा न किया होता तो निश्चित ही आज कश्मीर समस्या होती ही नहीं। कश्मीर को लेकर पटेल जी के पास पुख्ता योजना थी परन्तु उस पर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया। सरदार पटेल जी कश्मीर में जनमत संग्रह तथा कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने पर नेहरु जी से असहमत थे।

आज का अखण्ड भारत जो हमारे पास है वो सरदार पटेल जी की मेहनत, साहस, लगन और तपस्या का परिणाम है। विश्व के इतिहास में वो एकमात्र ऐसे व्यक्तित्व रहे कि जिसने इतनी बड़ी मात्रा में राज्यों का एकीकरण किया हो। सरदार पटेल जी ने छोटी-बड़ी 562 रियासतों का भारतीय संघ में विलीनीकरण करके भारत को एकता और अखण्डता का वरदान दिया। नि:संदेह सरदार पटेल द्वारा यह 562 रियासतों का एकीकरण विश्व इतिहास का एक आश्चर्य था। भारत की यह रक्तहीन क्रांति थी। महात्मा गांधी ने सरदार पटेल को इन रियासतों के बारे में लिखा था, "रियासतों की समस्या इतनी जटिल थी जिसे केवल तुम ही हल कर सकते थे।" लोगों की  मान्याता बनी कि सरदार पटेल बिस्मार्क की तरह थे। लेकिन लंदन टाइम्स ने लिखा था "बिस्मार्क की सफलताएँ पटेल जी के सामने महत्वहीन रह जाती हैं। यदि पटेल जी के कहने पर चलते तो कश्मीर, चीन, तिब्बत व नेपाल के हालात आज जैसे न होते। पटेल जी सही मायनों में मनु के शासन की कल्पना थे। उनमें कौटिल्य की कूटनीतिज्ञता तथा महाराज शिवाजी की दूरदर्शिता थी। वे केवल सरदार ही नहीं बल्कि भारतीयों के हृदय के भी सरदार थे।"

केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने "राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता" को प्रोत्साहित करने के लिए पद्म पुरस्कारों की तर्ज पर  ‘सरदार पटेल राष्ट्रीय एकता सम्मान’ प्रदान करने का निर्णय लिया है। गृह मंत्रालय की ओर से जारी अधिसूचना के अनुसार, यह सम्मान "राष्ट्रीय एकता और अखण्डता" को प्रोत्साहित करने में दिये गये प्रेरक योगदान तथा सशक्त एवं अखण्ड भारत के मूल्यों को मजबूती देने वालों को दिया जायेगा। नस्ल, पेशा, पद या लिंग के भेदभाव के बिना कोई भी व्यक्ति यह सम्मान पाने का हक़दार होगा। यह सम्मान बेहद दुर्लभ मामलों में बहुत योग्य व्यक्ति को मरणोपरांत भी दिया जा सकेगा। केंद्र सरकार ने 31 अक्टूबर जो कि सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती है, उस दिन को "राष्ट्रीय एकता दिवस या राष्ट्रीय या अखण्डता दिवस" के रूप में मनाने का फैसला किया है। अदम्य साहस के धनी, अद्भुत धैर्य के स्वामी सरदार पटेल को उनके इस अद्भुत और अकल्पनीय योगदान के कारण "लौह पुरुष" कहा जाता है। एकता की प्रतिमूर्ति सरदार पटेल जी की प्रतिमा “स्टेच्यू ऑफ़ यूनिटी” का निर्माण गुजरात राज्य के नर्मदा जिले में ‘सरदार सरोवर’ बाँध के पास साधू बेट नामक स्थान पर लगाई गयी है। 182 मीटर (597 फीट) और आधार सहित 240 मीटर (790 फीट) की ऊँचाई वाली ये मूर्ति विश्व की सबसे ऊँची मूर्ति है।

अखण्ड भारत की नींव को अपना जीवन सौंपकर मजबूत करने वाले सरदार पटेल जी के हम कृतज्ञ हैं, कि उन्हीं की वजह से आज हम एक विकासशील राष्ट्र में जीने का सौभाग्य प्राप्त कर रहे हैं। अगर वो नहीं होते तो शायद भारत की विशालता आज इतनी नहीं होती जितनी की है। ऐसे में बहुत हद है सम्भव है हम अपने देश के तमाम राज्यों के ही पड़ोसी देश होते और उन्हीं के साथ लड़ाई-झगड़े में फँसकर अपने विकास का मार्ग अवरुद्ध किये बैठे रहते। परन्तु पटेल जी के अतुलनीय योगदान के कारण सभी रियासतों ने भारत में विलय किया और आज भारत विकास के मार्ग पर अग्रसर है। दुनियाँ के बड़े-से-बड़े राष्ट्र भारत की मित्रता का आदर करते हैं और वे भारत के साथ मधुर सम्बन्ध की इच्छा रखते हैं। कुछ देश जो स्वयं ही भारत से शत्रुता किये बैठे हैं उनकी हालत कितनी बदतर है ये हमसे छुपी नहीं है। बार-बार शान्ति प्रस्तावों को अपमानित करने वाला पाकिस्तान आज अपने बोये काँटों से घायल होता रहता है। यदि सरदार पटेल जी न होते तो शायद हम दुनियाँ के नक़्शे पर इतना कम स्थान पाते कि दिखाई ही नहीं पड़ते। परन्तु आज का भारत अपने वीर सपूतों, महापुरुषों के आचरण पर गर्व करता हुआ हिमालय की चट्टानों से भी मजबूत होकर अपना सिर ऊँचा किये दुनियाँ को विकास, आदर्श, शान्ति, संघर्ष, संस्कार की परिभाषा सिखाता रहता है।


जय हिन्द-जय भारत

- कुमार आशीष
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Tuesday, October 22, 2019

रश्मिरथी

नाम                   -  रश्मिरथी
लेखक                -  श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’
फॉर्मेट                -  पेपरबैक
पृष्ठ संख्या           -  176 पेज
मूल्य                  -  ₹105
प्रकाशक            -  लोकभारती प्रकाशन प्रा. लि.
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श्री दिनकर जी की अद्भुत रचना शैली का आनन्द लेने और महाभारत के प्रमुख पात्रों में एक 'कर्ण'  को जानने के लिए सबसे अच्छी पुस्तक है। इस पुस्तक के माध्यम से कर्ण को लेकर आपके सोचने का नज़रिया एकदम स्पष्ट हो जायेगा, उस महान व्यक्तित्व के आगे स्वयं देवराज नतमस्तक हैं। इस पुस्तक में हस्तिनापुर के राज्यसभा में भगवान् कृष्ण जी ने जो विराट् स्वरुप दिखाया था और उसके बाद किस तरह से कर्ण-कृष्ण संवाद हुआ वो बहुत शानदार शैली में चित्रित किया गया है। इसके बाद कुन्ती-कर्ण संवाद पढ़ते हुए कोई भी भावुक हो सकता है। पुस्तक में ये भी बताया गया है कि महाभारत की घटनाओं से समस्त मनुष्य जाति के लोगों को क्या सीखना चाहिए... अगर आप काव्यप्रेमी हैं तो निश्चित ही ये पुस्तक आपको बहुत बढ़िया लगेगी।

इसकी प्रिंटिंग क्वालिटी आधुनिकता के हिसाब से उतनी चमकदार नहीं लगी जितनी होनी चाहिए।  पुस्तक की कवर बहुत बढ़िया है लेकिन अन्दर के पेज की डिजाईन बहुत साधारण बनाया है, उसमें कुछ छोटे-छोटे चित्र आदि जोड़े जाते तो अलग ही आकर्षण उत्पन्न होता। लेकिन पुस्तक की प्रस्तुति कैसी भी हो रचना शैली बहुत शानदार है। आख़िर एक बड़े कवि श्रीरामधारी सिंह दिनकर जी की रचना है, तो दिनकर जी का नाम ही काफी है। उनके पास पाठकों को बाँधे रखने की अद्भुत कला है।


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Monday, October 21, 2019

राम (इक्ष्वाकु के वंशज)

नाम                   -   राम (इक्ष्वाकु के वंशज)
लेखक                -  अमीश त्रिपाठी
फॉर्मेट                -  पेपरबैक
पृष्ठ संख्या           -  350 पेज
मूल्य                  -  ₹198
प्रकाशक            -  यात्रा-वेस्टलैण्ड
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ये पुस्तक अमीश सर द्वारा रचित “श्रीरामचन्द्र” सिरीज़ की पहली पुस्तक है। इस सिरीज़ में कुल तीन पुस्तकें हैं:-

1) राम (इक्ष्वाकु के वंशज)
2) सीता (मिथिला की योद्धा)
3) रावण (आर्यवर्त का शत्रु)

मैंने अभी तक पहली पुस्तक पढ़ी है। इसके आधार पर कह सकता हूँ कि लेखक की लेखन प्रतिभा और शोधन क्षमता निश्चित रूप से प्रशंसनीय है। इस पुस्तक को मनोरंजन के लिए किसी उपन्यास की तरह पढ़ा जाना चाहिए, इससे आपका ऐतिहासिक ज्ञान मजबूत होगा ये जरूरी नहीं है और जो होगा उसके ग़लत होने की सम्भावना बहुत प्रबल है। इस किताब की उपयोगिता कई गुना बढ़ सकती थी यदि इसमें प्रस्तुत वो तथ्य जो परम्परागत तथ्यों से बिल्कुल विपरीत हैं, उनका सन्दर्भ भी दिया गया होता। उसके बिना ऐसा लगता है कि ये विपरीत तथ्य लेखक के निजी विचार हैं या दिमाग़ी फितूर है जिसका सच्चाई से कोई लेना-देना नहीं है। ये भी हो सकता है कि मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि मैंने श्री राम जी के बारे में गिने-चुने ग्रन्थ ही पढ़े हैं। जैसे:- श्रीरामचरितमानस, रामायण, कवितावली, दोहावली आदि। इन सबको पढ़ने के बाद जो मैंने पाया उसके बहुत विपरीत कई तथ्य इस पुस्तक में है। लेखक ने निश्चित ही इस पौराणिक घटना से जुड़े तमाम भाषाओं के ग्रंथों का अध्ययन किया है। उस हिसाब से वो सही होंगे लेकिन फिर भी मेरे लिए उन सभी तथ्यों को बिना सन्दर्भ के स्वीकार कर पाना बहुत मुश्किल है, लगभग असम्भव है। 

तथ्यों से हटकर बात करें तो इस पुस्तक में भाषा शैली, प्राकृतिक सौन्दर्य, भेषभूषा, नगर आदि का जो वर्णन है वो एकदम जीवन्त है। पढ़ते हुए एक रेखा चित्र जैसा खिंच जाता है। इसके अलावा प्राचीन पद्धतियों एवं सामाजिक एवं मानसिक स्थितियों का खूब बढ़िया और जानदार चित्रण है। 

इस पुस्तक में जो सबसे ख़ास बात है वो इसका कवर डिजाईन है। बहुत ही आकर्षक डिजाईन है। अन्दर के पृष्ठों पर भी यदि कुछ चित्रादि होते तो अन्दर के पृष्ठ भी आकर्षक लगते परन्तु उसे डिजाईन करने में शायद हमारी परम्परागत उपन्यास शैली का अनुसरण किया गया है। मैं फिर से कहूँगा कि कवर को देखकर बहुत आकर्षण होता है।


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एवरेस्ट की बेटी

नाम                   -   एवरेस्ट की बेटी
लेखक                -  अरुणिमा सिन्हा
फॉर्मेट                -  पेपरबैक
पृष्ठ संख्या           -  168 पेज
मूल्य                  -  ₹112
प्रकाशक            -  प्रभात प्रकाशन
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जब ये पुस्तक मुझे मिली तो मैंने बस भूमिका पढ़ने के लिए खोला था। बाकी शायद मैं बाद में पढ़ता परन्तु मुझे इतना जुड़ाव हो गया कि पूरी पुस्तक एक बार में पढ़ गया और पढ़ते हुए रोता रहा। ‘अरुणिमा सिन्हा’ की आत्मकथा हमें विषम-से-विषम क्षणों में में भी हार न मानने की प्रेरणा देती है। राष्ट्रीय स्तर की वॉलीबॉल खिलाड़ी अरुणिमा सिन्हा के आगे एक सुनहरा भविष्य था। अपनी नौकरी के जब वो लखनऊ से दिल्ली जा रही थीं तभी कुछ राक्षसों ने उन पर हमला कर दिया। कोच में खूब भीड़ थी पर दुर्भाग्य से सब कायरों की भीड़ थी तो किसी ने सहायता नहीं की। काफी देर तक कई लोगों से अकेले ही अरुणिमा लड़ती रहीं और फिर एक धक्का लगा जिससे वो चलती ट्रेन से बाहर गिर गयीं। गिरते हुए सामने की पटरी पर आ रही ट्रेन से भी टकराई जिसके कारण बहुत बुरी तरह घयाल होकर पटरी के किनारे पड़ी थीं। उनका एक पैर ट्रेन के नीचे आ जाने से कट गया था। कड़ाके की ठण्डी और भीषण दर्द सहते हुए अपनी मौत से पंजा लड़ा रही थीं। उन्हें ये तक नहीं पता था कि अगली आने वाली ट्रेन वो देख पायेंगी या उससे पहले मर जायेंगी। सात-आठ घंटे तक मौत के पंजे से अपनी ज़िन्दगी बचाये रखने वाली अरुणिमा को सुबह आसपास के गाँव वालों की कुछ सहायता मिली। उन्हें बरेली के सरकारी अस्पताल में ले जाया गया जहाँ बेहोशी की दवा उपलब्ध न होने के कारण पूरे होशो-हवाश में अरुणिमा ने अपना कटा हुआ पैर सर्जरी के माध्यम से अपने शरीर से अलग करवाया। डॉक्टर्स ये करने को तैयार नहीं थे पर अरुणिमा के जोर देने पर उन्हें ऐसा करना पड़ा। अरुणिमा ने अपने सेना-नायक पिता को बहुत कम उम्र में खो दिया था। उनकी संदिग्ध हालत में डूबकर मौत हो गयी थी और उसका इल्ज़ाम अरुणिमा की माँ और बड़े भैया पर आया। उस षडयंत्र से किसी तरह बाहर निकलने के बाद उनके बड़े भैया का खून हो गया। अब उनकी माँ, एक बड़ी बहन और एक छोटा भाई उनके परिवार में हैं। 

इस पुस्तक में अरुणिमा ने अपने पूरे जीवन की घटित घटनाओं का वर्णन किया है। इसमें पता चलता है कि अगर प्रशासन के लोग मेहरबान होते हैं तब क्या होता है और विपरीत होते हैं तब क्या होता है? भारत में महिलाओं की सुरक्षा पद्धति और किसी असहाय से फायदा उठाने वाले लोग कितने गिरे हुए हो सकते हैं वो आपको इस पुस्तक में देखने को मिल जायेगा। ‘एक सरकारी विभाग अपनी शाख बचाने के लिए उसी के चरित्र और व्यव्हार पर हमला कर सकती है जो स्वयं पीड़ित है’ इसका सबसे बड़ा उदाहरण इस पुस्तक में है। हर किसी से अरुणिमा के कटे अंगों को बार-बार काटकर अपना-अपना हित साधने की खूब कयावद की... 

परन्तु, जो मौत से लड़ने का साहस रखती हो उसके लिए दुनियाँ से लड़ना कौन-सी बड़ी बात है? उसने सभी आलोचकों और विरोधियों के गाल पर करारा तमाचा उस वक़्त जड़ दिया जब वो बिना किसी का हाथ पकड़े अपने नकली पैरों के सहारे ठीक से चल भी नहीं पा रही थी और फिर भी निर्णय लिया कि उसे दुनियाँ की सबसे ऊँची चोटी “एवरेस्ट” पर चढ़ना है। अनेक परेशानियों का सामना करते हुए, बर्फ की श्वेत चादर को अपने पैरों से निकलते हुए खून से लाल करके... आगे-आगे कदम बढ़ाते हुए वो दुनियाँ की सबसे ऊँची चोटी पर पहुँचती है और इस तरह वो एवरेस्ट पर चढ़ने वाली प्रथम विकलांग महिला और (प्रथम भारतीय विकलांग) का विश्वकीर्तिमान अपने नाम कर लेती है। पर्वतारोहण के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्मश्री’ तथा ‘तेनजिंग नोर्गे अवार्ड’ से सम्मानित किया है। आजकल अरुणिमा सिन्हा जी गरीब और अशक्त जनों के लिए निःशुल्क स्पोर्ट्स अकादमी के लिए प्रयासरत हैं। 

एक लड़की जो शारीरिक रूप से दिव्यांग है, गरीब परिवार से है उसने किस तरह अपने मानसिक बल से और संघर्ष से एवरेस्ट की पहली महिला विजेता के पास पहुँची? कैसे उनसे मिलने का जरिया बनाया? क्या-क्या सीखा? कैसे-कैसे चुनातियों से लड़कर आगे बढ़ी? कौन-कौन उनके साथ आया? कौन सहयोगी रहा, किसने टांग पीछे खींची? कैसे धन इत्यादि की व्यवस्था की? कब-कब चढ़ाई के दौरान मरते-मरते बची? ऑक्सीजन ख़त्म होने को था फिर भी एवरेस्ट पर फोटो खिंचवाई और विडियो भी बनवाया... इस सब को जानने के लिए आपको ये पुस्तक “एवरेस्ट की बेटी” पढ़नी चाहिए। बहुत ही प्रेरणादायक है और दुनियाँ की लड़ाई के मैदान में कैसे डटकर खड़े रहना है इसका बहुत बड़ा उदाहरण आपको मिलेगा।

पुस्तक की प्रिंटिंग क्वालिटी सही है पर अच्छा रहता अगर इसके अन्दर के पेज एकदम सफेद होते। इसमें कुछ ख़ास-ख़ास तस्वीरें हैं जो कलर प्रिंट की गयी हैं और फोटोजेनिक पेपर के इस्तेमाल से उनकी चमक भी बढ़ गयी है। कवर की डिजाईन और उस पर लिखे अंश पर्याप्त हैं कि किसी को भी इस पुस्तक की लालसा हो।

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मेरी मेरी याद

नाम                   -   मेरी मेरी याद
लेखक                -  डॉ. कुमार विश्वास
फॉर्मेट                -  पेपरबैक
पृष्ठ संख्या           -  176 पेज
मूल्य                  -  ₹159
प्रकाशक            -  राजकमल प्रकाशन
खरीद                -  Amazon (Buy Now)

‘डॉ. कुमार विश्वास’ कवि का नाम ही इतना महत्त्वपूर्ण है कि पुस्तक के नाम का महत्व कुछ कम हो जाता है। लोग इनकी पुस्तक को उसके नाम से नहीं बल्कि रचनाकार के नाम से ही खरीदना और पढ़ना चाहेंगे। कुमार सर की एक और पुस्तक मैंने पढ़ी है “कोई दीवाना कहता है”- मुझे “फिर मेरी याद” में पिछली बार की अपेक्षा कुछ कम गीत लग रहे हैं, और सबसे ख़ास बात ये है कि उनकी एक रचना है “फिर मेरी याद आ रही होगी, फिर वो दीपक बुझा रही होगी..., इसकी कमी बहुत ज्यादा लगी। मेरे हिसाब से इस रचना को तो जरूर इस पुस्तक में होना चाहिए था। खैर, इसमें बाक़ी रचनाएँ बहुत कमाल की है। इसमें विशेषतः मुक्तक, क़ता और आज़ाद अशआर जो हैं वो इसकी उपयोगिता बढ़ा देते हैं। कुछ विशेष रचनाएँ जो मुझे ज्यादा पसन्द आयी उनकी सूची इस प्रकार है:-
  • तुम से कौन कहेगा आकर?
  • चंदा रे! गुस्सा मत होना!
  • वंश नहीं चलता कान्हा
  • सार्त्र!
  • लाख भीगे ज़मीन का आँचल
  • जब छुआ साथ तुलसी चौरा
  • बोलो रानी क्या नाम करूँ?
इसकी प्रिंटिंग क्वालिटी तो बढ़िया है ही साथ ही इसके अन्दर के पेज के डिज़ाइन बहुत रोचक हैं। कवर पर कुमार सर की फोटो और ऑटोग्राफ के साथ डिजाईन का थीम और कलर बहुत सुन्दर लग रहा है। जिन लोगों को गीत और कविता पढ़ने की लालसा रखते हैं वो इसे पढ़ सकते हैं। इसमें ज़िन्दगी के विभिन्न रंगों को अलग-अलग चित्रित रचनाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है।


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मेरी जीवन-यात्रा

नाम                  -   मेरी जीवन यात्रा
लेखक               -  डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम
फॉर्मेट                -  पेपरबैक
पृष्ठ संख्या           -  144 पेज
मूल्य                  -  ₹102
प्रकाशक            -  प्रभात प्रकाशन
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डॉ. कलाम साहब की इस पुस्तक “मेरी जीवन-यात्रा” को पढ़ने से पहले मैंने उन्हीं की आत्मकथा “अग्नि की उड़ान” पढ़ी थी। मैं विशेष रूप से सुझाव दूँगा कि आप भी इसी क्रम का अनुसरण करें। इसका मुख्य कारण ये है कि इस पुस्तक में डॉ. कलाम ने अग्नि की उड़ान के कई सन्दर्भों को छुआ है। जो उस पुस्तक में संक्षिप्त में थे वो यहाँ विस्तार में हैं और जो वहाँ विस्तार में थे वो यहाँ संक्षिप्त में हैं। “मेरी जीवन-यात्रा” एक तरह से “अग्नि की उड़ान” का निचोड़ है, साथ ही इसमें आपको ये भी खुलकर पढ़ने को मिलेगा कि अग्नि की उड़ान में वर्णित घटनाक्रमों से हम क्या सीख सकते हैं और डॉ. कलाम ने ख़ुद अपने जीवन की उन घटनाओं से क्या सीखा है? जिनका जीवन की प्रेरणादायक हो उनके जीवन से जुड़ी हर छोटी-बड़ी बात हमें बहुत कुछ सिखाती है। इसलिए आपको “अग्नि की उड़ान” के पश्चात “मेरी जीवन-यात्रा” जरूर पढ़नी चाहिए जिससे आप दोनों पुस्तकों के उद्देश्य और सारांश को ठीक ढंग से समझ सकेंगे और उनका अनुसरण करके आप स्वयं को सफलता के मार्ग पर अग्रसर कर सकेंगे।

दोनों ही पुस्तक प्रभात प्रकाशन से है तो प्रिंट क्वालिटी और पेपर एक ही तरह का है। “मेरी जीवन-यात्रा” पुस्तक की अन्दर के पृष्ठों की डिजाईन में एक बात ये ख़ास ई कि इसमें हर नये अध्याय से पहले डॉ. कलाम और उनसे जुड़े कुछ लोगों के स्केच मुद्रित किये हैं जो इसे आकर्षक भी बनाते हैं और हमें भावात्मक रूप से भी डॉ. कलाम से जोड़ते हैं।


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Saturday, October 19, 2019

अग्नि की उड़ान

नाम                  -   अग्नि की उड़ान
लेखक               -  डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम
लेखन सहयोगी    -  श्री अरुण तिवारी
फॉर्मेट                -   पेपरबैक
पृष्ठ संख्या           -  196 पेज
मूल्य                  -   ₹132
प्रकाशक            -  प्रभात प्रकाशन
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“अग्नि की उड़ान” पुस्तक डॉ. कलाम की आत्मकथा “विंग्स ऑफ़ फायर” [Wings of Fire] की हिन्दी एडिशन है। डॉ. कलाम का पूरा जीवन जी हर आयुवर्ग के लोगों को प्रेरणा देने वाला रहा है। उन्होंने एक ऐसा आदर्श जीवन जिया है कि हर गरीब-से-गरीब व्यक्ति और अमीर-से-अमीर व्यक्ति उन्हें पढ़कर उनसे बहुत कुछ सीख सकता है। इस पुस्तक को मुख्यतः युवाओं को ध्यान में रखकर लिखा गया है। इस पुस्तक में अभावों से लड़कर, परिश्रम से सफ़लता के बड़े-बड़े कीर्तिमान गढ़ने की प्रेरणा प्रदान करने की शक्ति निहित है, साथ ही ये पुस्तक वैज्ञानिक आत्मनिर्भरता एवं प्रद्यौगिकी दक्षता हासिल करने के लिए भारत के संघर्षशील प्रयासों की भी गाथा है। इस पुस्तक में उन वैज्ञानिक प्रतिष्ठाओं का इतिहास समाहित है जो स्वयं को तकनीकि क्षेत्र में स्थापित करने के लिए प्रयासरत हैं। इस पुस्तक के लेखन सहयोगी श्री अरुण तिवारी जी का कहना है कि “इस पुस्तक को पढ़ते हुए आप डॉ. कलाम का सानिध्य अनुभव करेंगे और वे आपके आत्मीय मित्र बन जायेंगे।” इस किताब को पढ़कर मेरा जो अनुभव रहा है उसके आधार पर कह सकता हूँ कि श्री अरुण तिवारी जी ने अक्षरशः सत्य कहा है। मैं सभी लोगों को यह किताब पढ़ने की सलाह दूँगा। इसको पढ़कर आप निश्चित ही अपने जीवन की सभी समस्याओं को हल करके उसे एक नयी दिशा देने के लिए प्रेरित होंगे। इस पुस्तक को पढ़ने के बाद मैंने दो लेख लिखे थे, दोनों ही लेख आपको इस पुस्तक को अच्छे से समझने में मदद करेंगे। आप टाइटल पर क्लिक करके लेख पढ़ सकते हैं-

1) अग्नि की उड़ान, सलाम मेरे कलाम
2) डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के नाम पत्र 

किताब की प्रिंट क्वालिटी अच्छी है। परन्तु इसके अन्दर के पृष्ठ की डिज़ाइन बहुत साधारण रखी है उसे और बेहतर किया जा सकता था और यदि वो चमकदार सफ़ेद पेपर पर मुद्रित होता तो बात ही अलग होती। अच्छी बात ये है कि पूरे पुस्तक के हर अध्याय की शुरुआत पर डॉ. कलाम की तस्वीर इसके आकर्षण में वृद्धि करती है। इस पुस्तक का कवर डिज़ाइन बहुत यूनिक है, सामने और पीछे दोनों की तरफ कवर अन्दर की तरफ मोड़कर एक फ्लैप जैसा बनाया गया है। फ्रंट कवर के फलैप पर पुस्तक के ही कुछ अंश जो “त्रिशूल” परियोजना से सबंधित है वो संक्षित में मुद्रित है तथा बैक के फ्लैप पर डॉ. कलाम और  श्री अरुण तिवारी के बारे में संक्षित जानकारी मुदित है। प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित इस पुस्तक पर एक 3D होलोग्राम भी लगाया है जिससे नकली पुस्तकों से बचा जा सके। इसलिए कृपया होलोग्राम देखकर ही खरीदें।


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रिच डैड पूअर डैड


नाम            -  रिच डैड पूअर डैड
लेखक         -  रॉबर्ट टी. कियोसाकी
फॉर्मेट         -  पेपरबैक
पृष्ठ संख्या    -  320 पेज
मूल्य           -  118
प्रकाशक     -  मंजुल पब्लिशिंग हाउस
खरीद         -  Amazon (Buy Now)

बेस्टसेलिंग रही इस किताब में अमीर बनने के परम्परागत तरीकों हटकर कुछ नया सिखाया गया है। इस पुस्तक ने ये मिथ तोड़ा कि मकान आपकी संपत्ति है। इस पुस्तक के अनुसार नौकरी करो, मेहनत करो पैसा बचाओ ये तरीका बहुत पुराना हो गया है। पैसे बचाकर अमीर बनने का तरीक़ा तब का है जब मानव गुफाओं में रहा करते थे। अब नया दौर है और तरीके भी नये हैं। उन्हीं तरीकों को जानने-समझने तथा वित्तीय-बुद्धि विकसित करने के लिए इस पुस्तक को कम-से-कम एक बार हर इंसान को पढ़नी चाहिए। विशेष रूप से ऐसे लोग जिन्होंने हाल में नौकरी या बिजनेस शुरू किया हो वो लोग ज़रूर पढ़ें। वैसे ये किताब उससे पहले पढेंगे तो शायद आपको नौकरी और बिजनेस में से विकल्प चुनने में आसानी रहेगी और आप ऐसा विकल्प चुनेंगे जो आपकी ज़िन्दगी के लिए सही रहेगा। इस पुस्तक में मुख्यतः ये बात समझाई गयी है कि “पैसे के लिए काम न करके पैसे से अपने लिए कैसे काम करवाया जाये” ये बात अभी अचरज भरी लग सकती है परन्तु पुस्तक पढ़ने पर समझ आयेगा कि ये करना न केवल आवश्यक ही है बल्कि बहुत आसान भी है। अमीर लोगों के सोचने और गरीब लोगों के सोचने में मुख्य अंतर क्या होता है वो इस पुस्तक में कई उदाहरणों से समझाया गया है। हर बात बहुत सरल और उदारहरण के साथ लिखी जाने से हमें बहुत आसानी से और जल्दी समझ आ जाती है।

किताब की प्रिंट क्वालिटी भी बहुत कमाल की है, सभी पृष्ठ ऐसे डिजाईन किये गये हैं कि पढ़ते की रोचकता कई गुना बढ़ जाती है और इसका कवर की डिज़ाइन भी बहुत सुन्दर है।


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राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के नाम पत्र

चित्र : गूगल से साभार

प्रिय मोहनदास करमचन्द जी! 
सादर अभिवादन!
                  
                            सर्वप्रथम मैं ये स्पष्ट कर देता हूँ कि मैंने आपको महात्मा गाँधी, बापू या राष्ट्रपिता जैसे सम्बोधन से सम्बोधित क्यों नहीं किया? इसका कारण ये है कि अपने देश भारत में ही आपके ‘महात्मा’ होने पर प्रश्न-चिन्ह लग चुका है, ‘बापू या राष्ट्रपिता’ जैसे शब्द लगभग बैन होने की कगार पर हैं और ‘गाँधी’ तो जैसे गाली का पर्यायवाची शब्द ही हो।

उपर्युक्त स्पष्टीकरण से सम्भव है आप मेरी विवशता समझ गये होंगे। धरती पर और अपने देश में हम सब कुशल मंगल हैं और आशा करते हैं आप भी स्वर्ग के आनन्द सकुशल भोग रहे होंगे। पत्र में अपनी कुशलता बताने का यह एक औपचारिक तरीक़ा हमें सिखाया गया है। वास्तविकता ये है कि हम लोग बहुत परेशान हैं, हम आपस में लड़ते रहते हैं, अपने ज़िद और अहंकार में हम देशहित तक का त्याग किये बैठे हैं। जिस सत्य और अहिंसा की पुस्तक आप हमें थमा गये थे वो हममें से अधिकतर लोग गन्दे नाले में फेंक चुके हैं और जिन्होंने अपने पास रखा भी है, वो सिर्फ उसे शोभा की वस्तु की तरह प्रयोग में ले रहे हैं। हालाँकि अभी भी कुछ ऐसे लोग हैं जो अहिंसा की बात करते हैं, अहिंसा का पाठ ख़ुद भी पढ़ते हैं और दूसरों को भी सिखाते हैं, ये और बात है ये लोग भी इसे अपने आचरण में नहीं लाते हैं। आपके बारे में मुझे जानकारी है कि आप एक वकील थे। उस ज़माने में उच्च शिक्षा बहुत कम लोगों को हासिल हो पाती थी, जाहिर है वकील भी कम रहे होंगे। मुझे ये बात समझ नहीं आ रही है कि आपने वक़ालत छोड़ कर देश-सेवा का रास्ता क्यों चुन लिया? वक़ालत करते ढेर सारा पैसा कमाते, लग्ज़री ज़िन्दगी जीते और यदा-कदा रैली वगैरह में जाकर लम्बे-चौड़े भाषण दे आते तो शायद आज़ादी में आपका योगदान कुछ ख़ास तरह से आँका जाता। लेकिन आपने अपनी जीवन शैली इतनी साधारण कर ली कि आपके असाधारण योगदान भी आज धूल फांक रहे हैं। आप बहुत अच्छे वकील रहे होंगे परन्तु आज आप अपना ही पक्ष लेकर कुछ कह नहीं सकते हैं, आप अपने ही देश में गालियाँ खाने और बार-बार अपमानित होने के लिए विवश हैं। आपका दुःख कदाचित् मैं समझ पा रहा हूँ। आपके जीवन की तमाम घटनाओं को लेकर आपको नित्य-नई गालियों से सम्मानित किया जाता है और ये सम्मान आपको उन लोगों द्वारा मिलता है जिन्होंने आपके विषय में एक पृष्ठ तक नहीं पढ़ा है। आपकी आत्मकथा “सत्य के साथ मेरे प्रयोग” पढ़ते हुए मैं कई जगह ठिठक गया। आप जानते थे कि ये पुस्तक एक दिन सामान्य जनमानस तक जरूर पहुँचेगी, फिर भी आपने स्वयं को बिलकुल खोलकर उसमें रख दिया है। जितनी बेबाक़ी और निडरता से आपने उस पुस्तक में अपनी ज़िन्दगी और गलतियों को लेकर बात की है उतनी बेबाकी से हम अपनी वो डायरी भी नहीं लिख पाते हैं जो सिर्फ हमें पढ़नी रहती है।

धरती पर अभी ऐसे भी लोग कम नहीं हैं जो आपके वर्चस्व के आगे नतमस्तक हैं। बहुत-से लोग ऐसे हैं जो अपने दिल में आपके लिए बहुत प्यार और बहुत सम्मान भी रखते हैं। कुछ ऐसे लोग भी हैं जो भले ही दिल से आपको सम्मान या प्यार न करते हों, परन्तु उनका साहस अभी इतना नहीं बढ़ा है कि खुलकर आपका विरोध कर सकें। वो आज भी पब्लिक डोमेन में आपकी तारीफ़ करते ही पाये जाते हैं। वो जानते हैं कि आज और आज के आने वाले हज़ार वर्षों बाद तक आपकी उपेक्षा करके भारत में अपनी छवि बनाये रखना सम्भव नहीं है। उनको पता है कि नाथूराम गोडसे की गोली ने भले ही आपका शरीर निर्जीव कर दिया था परन्तु दुनियाँ में अभी वो गोली नहीं बन सकी है जो आपके विचार को ख़त्म कर सकें। 

मैं अगर अपनी बात करूँ तो मैं आपके बारे में जितना भी अनर्गल पढ़ता हूँ मेरे दिल में आपके प्रति श्रद्धा और बढ़ जाती है। क्योंकि मैं जानता हूँ कि किसी बहुत अच्छे व्यक्ति के बारे में भी बहुत ज्यादा बुरी बातें हो सकती हैं। ये सच है कि मैं भी आपके कुछ निर्णयों से और कुछ आचरणों से सहमत नहीं हूँ, इसका मतलब ये भी हो सकता है कि वो आपकी ग़लती रही हो और ये भी हो सकता है कि उन बिन्दुओं को समझने में मैं ही ग़लती कर रहा हूँ। मेरा अपना मानना ये है कि “कोई भी बड़ी लड़ाई अकेले नहीं जीती जाती है, बल्कि उसमें कई लोगों का योगदान होता है और हर योगदान का अपना महत्वपूर्ण स्थान होता है।” अपने इसी सिद्धांत के आधार पर मैं अक्सर सोचता हूँ कि देश की आज़ादी और उसके तुरन्त बाद के हालात पर काबू करने में जिन असंख्य लोगों का योगदान था उसमें जो भाग आपका था वो हमेशा बना रहेगा। किसी और के बड़े-से-बड़े योगदान का मतलब ये नहीं कि आपका योगदान कम हो जाता है। हर व्यक्ति के योगदान का तरीका अलग-अलग था और उसी के सामूहिक प्रयास से हमें आज़ादी मिली। इस लड़ाई में जो भाग आपके हिस्से में आया था वो इतना विस्तृत था कि आने वाली सदियों में जब तक भारतीय इतिहास ज़िदा रहेगा आपके योगदान की सराहना होती रहेगी। हर सच्चा भारतवासी पूरी श्रद्धा और सम्मान से आपको और आपके योगदानों को प्रणाम करता रहेगा।

बस एक ही दिक्कत है, मैं ये नहीं जानता कि ये भारतीय इतिहास किस सदी तक जीवित रहेगा? क्योंकि आधुनिक राजनीतिक परिदृश्य में हर कोई इतिहास को अपने हितों के हिसाब से तोड़ने-मरोड़ने में लगा हुआ है। इसलिए मुझे डर है कहीं वास्तिक इतिहास अपनी सच्चाई को गले लगाये किसी चिता पर लेटा हुआ न मिले, कहीं वो अपना आस्तित्व खोकर धुआँ बनकर उड़ न जाये? जिन्हें आपको अच्छा कहने में फायदा है वो अच्छा कहते हैं, जिन्हें बुरा कहने में फायदा है वो बुरा कहते हैं। इन दोनों तरह के लोगों को इस बात से कोई मतलब नहीं है कि आप अच्छे थे या बुरे थे, इन्हें बस अपने हितों के हिसाब से बोलना है। कुछ ‘गाँधी बापू अमर रहे’ बोलते हैं कुछ ‘नाथूराम गोडसे अमर रहें’ बोलते हैं और इसी विचाराधारा के टकराव में आपका ‘सत्य-अहिंसा’ दम तोड़ देता है, फिर दोनों विचारधारा के लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं। खैर, जितना मैं आपको समझ पाया हूँ उस हिसाब से इतना विश्वास है कि आप अपने अपमान से तो दुःखी नहीं होते होंगे, क्योंकि आप मान-अपमान की सीमा से आगे बढ़ चुके हैं। लेकिन आपको ये जानकर तो दुःख जरूर होता होगा कि जिस ‘राम-राज्य’ की कल्पना आपने भारत के लिए की थी उसी राम के चरित्र पर अब लोग प्रश्न-चिन्ह लगाने लगे हैं। कुछ अति बुद्धिजीवी लोग अब ‘जय लंकेश, जय लंकेश’ करते रहते हैं। उन्हें राम नहीं बनना है उन्हें तो रावण बनने की लालसा जकड़े हुए है। अब सोचिये जिस देश के लोगों को अखिल ब्रम्हाण्ड नायक ‘परमपिता’ में कमी दिखाई दे जाती हो उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ के अन्दर कमियाँ ढूँढने में कौन-सी देर लगनी है।

एक वक़्त था कि श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर जी ने आपको “महात्मा” कह दिया और दुनियाँ आपको “महात्मा” मानने लगी। श्री सुभाष चन्द्र बोस जी ने आपको “राष्ट्रपिता” कहकर सम्बोधित कर दिया और दुनियाँ आपको भारत का “राष्ट्रपिता” कहने लगी। अब ये वाला युग बदल चुका है, अब हमारे पास ‘राईट टू इन्फॉर्मेशन’ (आरटीआई) [RTI – Right to Information] की सुविधा है। जब तक उस कागज़ के टुकड़े में लोगों को ‘महात्मा’ या ‘राष्ट्रपिता’ लिखा नहीं मिलेगा तब तक लोग आपके प्रति ऐसे सम्बोधनों से परहेज़ करते रहेंगे। बहुत-से लोग तो सुभाष बाबू की तरफ से खड़े होकर आपको दिन-रात गाली देते हैं, ये और बात है कि सुभाष बाबू आपका बहुत सम्मान करते थे। लेकिन उन्हें इससे क्या? न तो ऐसे लोग सुभाष बाबू को पढ़ते-समझते हैं और न आपको पढ़ने में समय जाया करना चाहते हैं। इस तरह की ओछी मानसिकता वाले कुछ लोग बहुत घटिया आचरण करते हैं। एक वक़्त था सबकी जन्मदात्री माँ उन्हें बचपन से एक पुरुष की तरफ ईशारा करके कह देती थी कि ये तुम्हारा बाप है और लोग उसी पुरुष को जीवन भर पिता मानकर आदर-सम्मान देते थे। परन्तु अब लोगों के पास आधुनिक तकनीकि है- डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक अम्ल (डीएनए) [DNA – Deoxyribo Nucleic Acid]। जब तक इस रिपोर्ट में लिखकर नहीं आयेगा वो अपने बाप को बाप मानने को तैयार नहीं है। हर बात का प्रमाण ढूँढने की अंधी ज़िद पाले हुए लोग बहुत ही विवेकहीन, संस्कारहीन और भावुकताहीन जीवन जीते जा रहे हैं और इन सबको वो “आधुनिकता” के आवरण में छिपाये रखते हैं। ये आवरण अन्दर से कैसा भी हो बाहर से तो सुन्दर ही दिखता है।

आपसे कहने को मेरे पास इतना कुछ है कि सब लिखने बैठूँगा तो एक पूरी किताब बन जायेगी। अन्त में मैं आपसे इतना ही बताना चाहूँगा कि मैं आपको बहुत प्यार करता हूँ, मेरे ह्रदय में आपका एक सम्मानजनक स्थान है। आपकी दी हुई शिक्षा के सहारे, आपके बताये  हुए रास्ते पर चलने का यथासम्भव प्रयास भी करता हूँ। मैं जिस राष्ट्र का नागरिक हूँ आप उसके ‘राष्ट्रपिता’ हैं, देश के सभी नागरिकों को बच्चों की तरह प्यार करने वाले ‘बापू’ हैं, आदर्श जीवन की परिभाषा जीने वाले आप ‘महात्मा’ हैं। मुझे आपके सम्मान में प्रयोग किये जाने वाले इन सम्बोधनों के लिए किसी प्रमाण नहीं आवश्यकता नहीं है। आप मेरे हैं, मेरे देश के हैं, मैं इस बात पर गर्व करता हूँ। आपको बहुत-बहुत प्रणाम, बहुत सम्मान और प्यार...

आई लव यू प्यारे बापू! 

सधन्यवाद

आपका अपना
- कुमार आशीष
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Tuesday, October 15, 2019

डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के नाम पत्र

चित्र : गूगल से साभा

परम आदरणीय डॉ कलाम साहब!
चरणस्पर्श
                                 सर्वप्रथम आपके जन्मदिवस पर आपको बहुत-बहुत बधाई कलाम साहब! मेरे लिए तो आपका कद और किरदार ईश्वर के समकक्ष ही है। हमारे धरा-धाम पर सब कुशल मंगल है, आशा है आप भी परमपिता के सानिध्य में सानन्द होंगे। आज आपके जन्मदिवस पर आपके सभी चाहने वाले आपको अपनी-अपनी तरह से याद कर रहे हैं और मैं ये कल्पना करने में व्यस्त हूँ कि आप अब अपना जन्मदिवस कैसे मानते होंगे? क्या आप देवराज इन्द्र की सभा में उपस्थित सभी देवताओं के बीच विशेष आसन पर विराजमान होकर अपने जीवन के अनुभवों से सबको आश्चर्यचकित कर रहे होंगे या फिर बैकुण्ठनाथ के साथ क्षीरसागर के किनारे उसी प्रकार ऊँगली पकड़े चल रहे होंगे जैसे बचपन में धरती पर अपने पिता जी की ऊँगली पकड़कर समुद्र किनारे टहला करते थे। आप स्वयं साहित्यकार भी हैं और हिन्दी के प्रतिभाशाली पुत्रों का जमावड़ा तो स्वर्ग में पहले से ही लगा है। बहुत हद तक सम्भव है आज महाप्राण निराला आपको “राम की शक्तिपूजा” सुना रहे हों, दिनकर जी अपनी “रश्मिरथी” से माहौल को नई दिशा दे रहे हों, आपके निकटतम मित्र पण्डित अटल बिहारी वाजपेयी जी अपनी “इक्यावन कविताओं” से आपको सराबोर कर रहे हों या फिर डॉ. हरिवंश राय बच्चन जी अपनी “मधुशाला” के सस्वर वाचन से माहौल को नई उमंग और तरंग देने में व्यस्त हों। विक्रम साराभाई, प्रो. सतीश धवन और ब्रम्हप्रकाश जैसे महान वैज्ञानिक इस महफ़िल में उपस्थित रहते होंगे। उन्हें भी पता चलता होगा कि जिस कलाम नाम के पौधे का रोपण उन्होंने धरती पर किया था वो बड़ा होकर पेड़ के रूप में पूरे देश-दुनियाँ को छाया बाँटने की सामर्थ्य रखने वाला बन गया। अहा! कवियों, लेखकों और वैज्ञानिकों का क्या अद्भुत संगम हो रहा होगा। अगर ऐसी महफ़िल जमी होगी तो मुझे पूरा विश्वास है कि पण्डित अटल बिहार वाजपेयी जी पोखरण में हुए परमाणु परीक्षण के दौरान आपने जो अदम्य साहस और कार्य-कुशलता का परिचय दिया था उसकी चर्चा करके अपनी प्रशंसा भरी प्रतिक्रियाओं और स्नेहिल मधुर मुस्कान से आपको गदगद जरूर कर रहे होंगे।
                               
उन्हें ऐसा करना भी चाहिए क्योंकि पोखरण में अमेरिकी सेटलाइट्स से बचते हुए जो आपने इतना बड़ा चमत्कार किया था न उसी का प्रतिफल कि आज कोई भी दुश्मन देश भारत की तरफ भृकुटी तक तिरछी करके देखने की हिम्मत नहीं रखते हैं। आपके अथक प्रयासों से जिन शक्तियों का जन्म हुआ उसी से सुसज्जित भारत की छवि देखकर कोई भी देश भारत से सिर्फ दोस्ती ही करना चाहता है। जिस तरह श्वेत सप्त अश्वों से जुते रथ पर भगवान् श्रीकृष्ण को सारथि और अर्जुन को रथी के रूप में बैठे देखकर भगवान् शिव के अतिरिक्त कोई भी भयभीत हो जाता था उसी तरह आज बड़े-से-बड़े शक्तिशाली देशों की हिम्मत नहीं है कि वो भारत के साथ दुश्मनी करने की सोचे भी... पोखरण में प्राण-पीने वाली गर्मी और बार-बार उठने वाले रेत के बवंडरों से जूझते हुए आपने जिस तरह से परमाणु-परीक्षण के काम को अंज़ाम दिया था वो तो कदाचित् देवलोक वालों को भी अचरज में डाल देता होगा, वैसे भी देवलोक वासी परिश्रम और संघर्ष करना क्या जाने ये तो केवल मनुष्यों का विशेषाधिकार है। आपकी काम की लगन और निष्ठा के कारण ही ‘भारत’ परमाणु शक्ति से संपन्न राष्ट्रों की सूची में स्थान प्राप्त कर सका।

इससे पहले भी इसरो की तमाम उपग्रह प्रक्षेपण परियोजना में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए देश के पहले सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SLV-III) को विकसित करने के लिए मिशन डायरेक्टर के रूप में महत्वपूर्ण योगदान दिया। एसएलवी-3 ने जुलाई 1980 में पृथ्वी की कक्षा के निकट में रोहिणी उपग्रह को सफलतापूर्वक इंजेक्ट किया, जिसके बाद भारत स्पेस क्लब का विशेष सदस्य बना। इसके अलावा पृथ्वी, अग्नि, नाग, ब्रम्होस और त्रिशूल आदि प्रोजेक्ट्स पर काम करते हुए  भारत को बैलेस्टिक मिसाइल और लॉन्चिंग टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भर बनाने के कारण आप “मिसाइल मैन” के नाम से अलंकृत हुए। वैज्ञानिक जीवन के अलग हटकर आपने देश की सेवा में महत्वपूर्ण योगदान, देश के 11वें राष्ट्रपति के रूप में दिया। ज़मीनी स्तर से जुड़कर काम करने की अद्भुत कला ने आपको “जनता का राष्ट्रपति” बना दिया। अपने वैज्ञानिक जीवन में तमाम अलग-अलग परियोजनाओं पर काम करते हुए आपने बहुत संघर्ष झेला। किस तरह आपके जीवन के महत्वपूर्ण 3 वर्षों में (जबकि आपका काम पर ध्यान देना बहुत महत्वपूर्ण था तभी) जीजा जी, पिता जी फिर माता जी का इंतकाल हुआ। इससे आप भावात्मक रूप से काफी व्यथित हुए। “एसएलवी-3” की असफ़लता ने आपको कितना कष्ट दिया होगा? एक प्रतिभाशाली वैज्ञानिक जो यदि चाहता तो देश के बाहर जाकर काम करता और धनाड्य वैज्ञानिकों में शामिल हो सकता था उसने सिर्फ देश की सेवा करने के लिए उस लग्ज़री ज़िन्दगी और अपार धन-दौलत को ठोकर मार दी थी। फिर यही वैज्ञानिक “अग्नि” की असफलता पर रोज़ कैसे-कैसे व्यंग-बाणों से घायल होता था, कितने कार्टून बना दिए गये उसे चिढ़ाने के लिए... आपके कार्यों के दौरान प्रकृति ने भी आपकी खूब परीक्षा ली, कभी उमस, कभी तेज़ आँधी ने सदा ही आपको परेशान किया। परन्तु इन सब से लड़कर, जीतकर आप आगे बढ़े और अपने सपनों को साकार करते हुए देश को महाशक्ति बनाने में सहायता की। श्रम और प्रकृति का ये संघर्ष कितना अद्भुत रहा होगा।

आपके अद्भुत कारनामों के परिणाम स्वरुप ही आपको लगभग चालीस विश्वविद्यालयों द्वारा मानद डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्राप्त हुईं, भारत सरकार द्वारा 1981 में पद्म भूषण और 1990 में पद्म विभूषण से आपको सम्मानित किया गया। वैसे तो ये सम्मान व्यक्ति को सम्मानित करते हैं परन्तु कभी-कभी इनके भाग्य में कुछ ऐसे लोग भी आते हैं जो इन सम्मानों को सम्मानित करते हैं। इसी क्रम में 1997 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान “भारत-रत्न” आपको पाकर सम्मानित और गौरवान्वित हुआ।

आपकी पुस्तक “अग्नि की उड़ान” में लेखक श्री अरुण तिवारी जी ने पाठको को संबोधित करते हुए लिखा है, “इस पुस्तक के माध्यम से आप उनके (डॉ कलाम सर) सानिध्य का आनन्द प्राप्त करेंगे और वे आपके आत्मीय मित्र बन जायेंगे।“ इस बात से मैं अक्षरशः सहमत हूँ। मुझे सचमुच ऐसा लगा जैसे आप मेरे बगल में बैठकर अपने जीवन-वृत्तांत सुना रहे हों। जैसे-जैसे मैं आपके विषय में पढ़ता जाता हूँ मेरी ये धारणा और दृढ़ हो जाती है कि आप कभी इस धरती पर थे ही नहीं, आपमें जितनी क्षमता, कुशलता, साहस और सादगी थी वो मनुष्यों में किसी में भी नहीं देखने को मिलती है। हालाँकि इस धारणा में सच्चाई तो नहीं है क्योंकि मुझे खुद ही आपके जीवन काल में धरती पर रहने का सौभाग्य प्राप्त रहा है। अब ये सौभाग्य देवलोक वाले उठा रहे हैं। वहाँ तो कोई काम भी नहीं रहता होगा, परमपिता की इच्छा मात्र से सब कार्य संचालित होते हैं। भूख, प्यास जैसे रोग तो मानवीय हैं तो निश्चित ही वहाँ के लोग इन सब से मुक्त होंगे। आप पूरा समय अपने अनुभवों और प्रेरक विचारों से देवलोक वालों को आनंदित करते होंगे। अभी लिखने से मन नहीं भरा है परन्तु अब आगे फिर कभी... आज आपका दिवस है आपको पुनः बहुत-बहुत बधाई, जब तक धरती पर थे तब तक काम और देश सेवा के अतिरिक्त आपने स्वयं का कोई अस्तित्व रखा ही नहीं था। अब आपके सपनों का भारत बन रहा है, हमारे प्रतिभाशाली वैज्ञानिक देश को टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अग्रसर कर रहे हैं। अब आप आनन्द से अपना जन्मदिवस मनाइये और भगवान् से बात करके पुनः धरती पर आने का कुछ इंतज़ाम करिए। ये भी है कि शायद आप अपनी तरह के एक ही थे, आप जैसे लोग हर शताब्दी के भाग्य में नहीं होते वो तो युग-युगान्तर में एक बार ही धरती पर आते हैं। आपकी पुस्तक के अनुसार, आपने प्रेम की पीड़ा को रॉकेट बनाने के मुक़ाबले में कहीं अधिक कठिन समझा इसलिए स्वयं का जीवन एकाकी रखा परन्तु मैं तो जितना आपको पढ़ता जाता हूँ उतना ही आपसे मेरा इश्क़ गाढ़ा होता जा रहा है। आपकी पुस्तक में पढ़ी एक कविता पढ़कर अक्सर खुद को उर्जान्वित करता रहता हूँ:-

‘क्यों है चिंतित
सहमा, डरा, उदास, कापुरुष।
अभी कहाँ आया है अवसर,
अभी कहाँ खोया है कुछ भी।’

अन्त में आपके लिए आपकी ही एक कविता की कुछ पंक्तियाँ लिख रहा हूँ...

‘सुन्दर हैं वे हाथ
सृजन करते जो सुख से
धीरज से
सच से
साहस से
हर क्षण, हर पल
हर दिन, हर युग।’

आई मिस यू कलाम साहब! आई लव यू....
आपका अपना
- कुमार आशीष
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